मात्रा के गणित का शऊर नहीं, न फ़ुर्सत। अगर, बात और लय होना काफ़ी हो, तो ग़ज़ल कहिये वर्ना हज़ल या टसल, जो भी कहें, स्वीकार्य है।(अनुराग शर्मा)
काम अपना भी हो ही जाता मगर
कुछ करने का हमको सलीका न था
भाग इस बिल्ली के थे बिल्कुल खरे
फ़ूटने को मगर कोई छींका न था
ज़हर पीने में कुछ भी बड़प्पन नहीं
जो प्याला था पीना वो पी का न था
जिसको ताउम्र अपना सब कहते रहे
बेमुरव्वत सनम वह किसी का न था
तोड़ा है दिल मेरा कोई शिकवा नहीं
तोड़ने का यह जानम तरीका न था।