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Tuesday, June 13, 2023

बेगाने इस शहर में

(अनुराग शर्मा)

बाग़-बगीचे, ताल-तलैया
लहड़ू, इक्का, नाव ले गये

घर, आंगन, ओसारे सारे
खेत, चौपालें, गाँव ले गये

कुत्ते, घोड़ा, गाय, बकरियाँ
पीपल, बरगद छाँव ले गये

रोटी छीनी, पानी लीला
भेजा, हाथ और पाँव ले गये

चौक-चौक वे भीख मांगते
जिनकी कुटिया, ठाँव ले गये

Tuesday, May 23, 2023

बीती को बिसार के...

(अनुराग शर्मा)

कुछ अहसान जताते बीती
और कुछ हमें सताते बीती

चाह रही फूलों की लेकिन
किस्मत दंश चुभाते बीती

जिन साँपों ने डसा निरंतर
उनको दूध पिलाते बीती

आस निरास की पींगें लेती
उम्र यूँ धोखे खाते बीती

खुल के बात नहीं हो पाई
ज़िंदगी भेद छुपाते बीती

जिनको याद कभी न आये
उनकी याद दिलाते बीती॥

Wednesday, November 2, 2022

फ़्री ईबुक - निःशुल्क डाउनलोड: आधी सदी का क़िस्सा

एमेज़ॉन #1 बेस्टसेलर, "आधी सदी का क़िस्सा" एमेज़ॉन पर दो नवम्बर से चार नवम्बर 2022 तक कुल तीन दिन (72 घण्टे निरंतर) नि:शुल्क डाउनलोड के लिये उपलब्ध है। इस अवसर का लाभ उठाइये। डाउनलोड कड़ियाँ
 
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आने वाले 50 वर्ष हमारी दुनिया को पूरी तरह बदलने वाले हैं। यह उपन्यासिका आगामी अर्धशती की खिड़की खोलने का एक विनम्र साहित्यिक प्रयास है। मुझे आश्चर्य भी है, और इस बात की प्रसन्नता भी कि इस उपन्यास के बिंदु अब तक किसी अन्य लेखक द्वारा प्रकट नहीं किये गये हैं और इसीलिये यह रचना जितनी प्रामाणिक है उतनी ही रोचक भी। इस उपन्यासिका का विषय लम्बे समय से मेरे दिमाग़ में गहरी उथल-पुथल मचा रहा था, सो इसे काग़ज़ पर उतारना मेरे लिये अत्यावश्यक था। आशा है आपको पसंद आयेगा।


Saturday, October 29, 2022

आधी सदी का क़िस्सा - एक रोचक भविष्य की गाथा

"आधी सदी का क़िस्सा" एक रोचक भविष्य की गाथा है जो तकनीकी विकास द्वारा संसार की वर्तमान समस्याओं के हल के साथ-साथ नयी मानसिक समस्याओं का यथार्थ निरूपण करती है।

एक अलग सा भविष्य पुराण

विज्ञान-कथाएँ नयी बात नहीं हैं। मैं एच जी वेल्स को पढ़कर बड़ा हुआ और आप सबने भी नयी-पुरानी अनेक रचनाएँ पढ़ी होंगी जो पूर्णतः, या अंशतः आगत का सत्याभास कराती हैं। बचपन से अब तक मैंने अनेक वैज्ञानिक कल्पनाओं को सच होते देखा है। मानवता निरंतर विकासरत है लेकिन पिछले 20-30 साल में दुनिया जितनी बदली है, शायद वैसी तीव्र गति से क्रांतिकारी परिवर्तन पहले कभी नहीं हुए। 

महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आने वाले 50 वर्ष हमारी दुनिया को पूरी तरह बदलने वाले हैं। यह उपन्यासिका आगामी अर्धशती की खिड़की खोलने का एक विनम्र साहित्यिक प्रयास है। मुझे आश्चर्य भी है, और इस बात की प्रसन्नता भी कि इस उपन्यास के बिंदु अब तक किसी अन्य लेखक द्वारा प्रकट नहीं किये गये हैं और इसीलिये यह रचना जितनी प्रामाणिक है उतनी ही रोचक भी। इस उपन्यासिका का विषय लम्बे समय से मेरे दिमाग़ में गहरी उथल-पुथल मचा रहा था, सो इसे काग़ज़ पर उतारना मेरे लिये अत्यावश्यक था। आशा है आपको पसंद आयेगा।

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सन 2068: वैज्ञानिक प्रगति ने संसार को एक वैल-कनेक्टेड विश्व-नगरी में बदल दिया है।

किताबें तो 2043 में छपी अंतिम पुस्तक के साथ डिजिटल युग के चरमोत्कर्ष पर ही समाप्त हो गई थीं। तब तक कुछ किताबें डिजिटल स्वरूप में प्राचीन-तकनीक वाले कम्प्यूटरों में रह गई थीं। लेकिन अब तो कम्प्यूटर होते ही नहीं। एक अति-तीव्र हस्तक में ही सब कुछ होता है। सारी जानकारी तो केंद्रीय बिग-क्लाउड पर रहती है। लेकिन बिग-क्लाउड के अचानक इस बुरी तरह बिगड़ जाने की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। किसी को ठीक से पता नहीं कि बिग-क्लाउड को हुआ क्या था। दुर्भाग्य से उसकी मरम्मत के मैनुअलों की इलेक्ट्रॉनिक प्रतियाँ भी बिग-क्लाउड पर ही रखी होने के कारण अब अप्राप्य हैं। एक ही व्यक्ति से उम्मीद है। वह है जॉनी बुकर।

जॉनी बुकर वर्तमान क्लाउड के मूल निर्माताओं में से एक है। कभी वह बिग-क्लाउड परियोजना का प्रमुख था। बल्कि सच कहें तो वही इस विचार का जनक था कि संसार को केवल एक क्लाउड की ज़रूरत है। उसी के प्रयत्नों के कारण संयुक्त राष्ट्र ने सभी देशों पर दवाब डालकर पूरे विश्व की समस्त जानकारी को एक केंद्रीय क्लाउड में डाला, जिसे बिग-क्लाउड का नाम दिया गया।
𝓐𝓭𝓱𝓲 𝓢𝓪𝓭𝓲 𝓚𝓪 𝓠𝓲𝓼𝓼𝓪 (𝐀𝐧𝐮𝐫𝐚𝐠 𝐒𝐡𝐚𝐫𝐦𝐚) 𝙞𝙨 𝙖 𝙛𝙪𝙩𝙪𝙧𝙞𝙨𝙩𝙞𝙘 𝙩𝙖𝙡𝙚 𝙩𝙝𝙖𝙩 𝙨𝙝𝙤𝙬𝙨 𝙪𝙨 𝙝𝙤𝙬 𝙩𝙚𝙘𝙝𝙤𝙡𝙤𝙜𝙮 𝙬𝙞𝙡𝙡 𝙨𝙤𝙡𝙫𝙚 𝙢𝙤𝙨𝙩 𝙛𝙤 𝙤𝙪𝙧 𝙘𝙪𝙧𝙧𝙚𝙣𝙩 𝙞𝙨𝙨𝙪𝙚𝙨 𝙬𝙝𝙞𝙡𝙚 𝙘𝙧𝙚𝙖𝙩𝙞𝙣𝙜 𝙣𝙚𝙬 𝙘𝙝𝙖𝙡𝙡𝙚𝙣𝙜𝙚𝙨 𝙛𝙤𝙧 𝙩𝙝𝙚 𝙢𝙤𝙨𝙩 𝙞𝙣𝙩𝙚𝙡𝙡𝙞𝙜𝙚𝙣𝙩 𝙮𝙚𝙩 𝙨𝙚𝙣𝙨𝙞𝙩𝙞𝙫𝙚 𝙨𝙥𝙚𝙘𝙞𝙚𝙨

Saturday, July 9, 2022

काव्य: भाव-बेभाव

(अनुराग शर्मा)

प्रेम तुम समझे नहीं, तो हम बताते भी तो क्या
थे रक़ीबों से घिरे तुम, हम बुलाते भी तो क्या 

वस्ल के क़िस्से ही सारे, नींद अपनी ले गये
विरह के सपने तुम्हारे, फिर डराते भी तो क्या

जो कहा, या जैसा समझा, वह कभी तुम थे नहीं
नक़्शा-ए-बुत-ए-काफ़िर, हम बनाते भी तो क्या

भावनाओं के भँवर में, हम फँसे, तुम तीर पर
बिक गये बेभाव जो, क़ीमत चुकाते भी तो क्या

अनुराग है तुमने कहा, पर प्रीत दिल में थी नहीं
हम किसी अहसान की, बोली लगाते भी तो क्या

Saturday, July 31, 2021

काव्य: वफ़ा

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)

वफ़ा ज्यूँ हमने निभायी, कोई निभाये क्यूँ
किसी के ताने पे दुनिया को छोड़ जाये क्यूँ॥

कराह आह-ओ-फ़ुग़ाँ न कभी जो सुन पाया
ग़रज़ पे अपनी बार-बार वह बुलाये क्यूँ॥

सही-ग़लत की है हमको तमीज़ जानेमन
न करें क्या, या करें क्या, कोई बताये क्यूँ॥

झुलस रहा है बदन, पर दिमाग़ ठंडा है
जो आग दिल में लगी हमनवा बुझाये क्यूँ॥

थे हमसफ़र तो बात और हुआ करती थी
वो दिल्लगी से हमें अब भला सताये क्यूँ॥

जो बार-बार हमें छोड़ बिछड़ जाता था 
वो बार-बार मेरे दर पे अब भी आये क्यूँ॥
***

Sunday, July 18, 2021

एकाकी कोना

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)


मन में इक सूना कोना है
जिसमें छिप-छिपके रोना है
अपनी पीर सम्भालो आप ही
कहके किससे क्या होना है॥

गलियों-गलियों फिरता मारा
रात विवश और दिन बेचारा
जागृत मनवा चैन न पाता
भाग्य में अपने कब सोना है॥

ग़र्द-गुबार और छींटें गंदी
इधर-उधर से हम पर पड़तीं
दुनिया धोने निकले थे अब 
तन-मन अपना ही धोना है॥ 

सीमित रिश्ते सतही नाते
खुद से बाहर सोच न पाते
जीते जी जिससे भी मिल लो
शव अपना खुद ही ढोना है॥

सुख आभासी दुःख आभासी
जीवन माया, या बस छाया
जो भी मिला इसी जीवन का
अपना क्या था जो खोना है॥

Saturday, July 17, 2021

कविता: मुक्ति

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)


जीवन को रेहन रखा था
स्वार्थी लालों के तालों में॥

निर्मल अमृत व्यर्थ बहाया
सीमित तालों या नालों में॥

परपीड़क हर ओर मिले पर
जगह मिली न दिलवालों में॥

अब जब इतना बोध हो गया
सोच रहा मैं किस पथ जाऊँ॥ 

स्वाद उठाऊँ जीवन का
या मुक्तमना छुटकारा पाऊँ॥

धरती उठा उधर रख दूँ या
चल दूँ खिसके मतवालों में॥

चलूँ चाल न अपनी लेकिन
न उलझूँ ठगिनी चालों में॥

Friday, April 16, 2021

प्रेम के हैं रूप कितने (अनुराग शर्मा)

तोड़ता भी, जोड़ता भी, मोड़ता भी प्रेम है,
मेल को है आतुर और छोड़ता भी प्रेम है॥

एकल वार्ता और काव्यपाठ, साढ़े सात मिनट की ऑडियो क्लिप
गूगल पॉडकास्ट (Google Podcast)
स्पॉटिफ़ाई (spotify)एंकर (anchor.fm)
सावन (Saavn)

काव्य तरंग || असीम विस्तार



Sunday, February 7, 2021

कविता: निर्वाण

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)


अंधकार से प्रकट हुए हैं
अंधकार में खो जायेंगे

बिखरे मोती रंग-बिरंगे
इक माला में पो जायेंगे

इतने दिन से जगे हुए हम
थक कर यूँ ही सो जायेंगे

देख हमें जो हँसते हैं वे
हमें न पाकर रो जायेंगे

रहे अधूरे-आधे अब तक
इक दिन पूरे हो जायेंगे॥

Thursday, August 8, 2019

कुछ पुस्तकें मेरी, कुछ सेतु की

क्या आपने इनमें से कोई पुस्तक पढ़ी है? अधिक जानकारी के लिये संदर्भित पुस्तक के चित्र पर क्लिक कीजिये
India as an IT Superpower
Anurag Sharma
अनुरागी मन कथा संग्रह :: लेखक: अनुराग शर्मा
Basic Hindi 2 Workbook :: Sonia Taneja
Paco's Atlas And Other Poems
By John Thieme
Aesthetic Negotiations :: Sunil Sharma
सेतु, मासिक पत्रिका
हिंदी व अंग्रेज़ी में
कुछ और सुंदर, रोचक, उपयोगी, त्रुटिहीन पुस्तकें शीघ्र आ रही हैं। पुस्तकें एमेज़ॉन पर उपलब्ध हैं, अधिक जानकारी के लिये संदर्भित पुस्तक के चित्र पर क्लिक कीजिये।

Tuesday, July 9, 2019

कुछ साक्षात्कार

विडियो Video


हिंदी सम्पादन की चुनौतियाँ - टैग टीवी कैनैडा पर अनुराग शर्मा, सुमन घई और शैलजा सक्सेना
Anurag Sharma with Suman Ghai and Shailja Saxena on Tag TV Canada



मॉरिशस टीवी पर डॉ. विनय गुदारी के साथ अनुराग शर्मा का साक्षात्कार
Anurag Sharma's Interview by Dr. Vinay Goodary on Mauritius TV



आप्रवासी साहित्य सृजन सम्मान का फ़्रैंच समाचार French News about MGI Mauritius Award



अनुराग शर्मा का साक्षात्कार (अंग्रेज़ी में) In discussion with Sparsh Sharma (English)

ऑडियो Audio
एनएचके (जापान) पर अनुराग शर्मा से नीलम मलकानिया की वार्ता
Neelam Malkania speaks to Anurag Sharma on NHK Radio (Japan)

रेडियो सलाम नमस्ते (अमेरिका) पर अनुराग शर्मा का साक्षात्कार
Hindi Interview with Anurag Sharma on Radio Salam Namaste, Texas





मुद्रित, व अन्य Print and Online

Sunday, July 15, 2018

हल - लघुकथा

(लघुकथा व चित्र: अनुराग शर्मा)

प्लास्टिक और पॉलीथीन के खिलाफ़ आंदोलन इतना तेज़ हुआ कि प्रशासन को यह समस्या हल करने के लिये आपातकालीन सभा बुलानी पड़ी। दो-चार पदाधिकारी प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई और बलप्रयोग के पक्ष में थे लेकिन अन्य सभी समस्या को गम्भीर मानते हुए एक वास्तविक हल चाहते थे।

“पूर्ण प्रतिबंध” गहन विमर्श के बाद सभा के अध्यक्ष ने कहा। अधिकांश सदस्यों ने सहमति में तालियाँ बजाईं।

“पॉलीथीन के बिना सामान दुकान से घर तक कैसे आयेगा?” एक असंतुष्ट ने पूछा।

“बेंत की कण्डी, काग़ज़ के लिफ़ाफ़े और कपड़े के थैलों में” किसी ने सुझाया।

“खाना पकाने के लिये घी-तेल भी तो चाहिये, वह?”

“घर से शीशे की बोतल लेकर जाइये।”

“एक घर से कोई कितनी बोतलें लेकर जा पायेगा? एक पानी की, एक सरसों के तेल की, एक नारियल के तेल की, एक सिरके की, एक ...” एक सदस्या ने आपत्ति की

“तो तेल-सिरके को भी बैन करना पड़ेगा। दूध लेकर आइये और उसी से घर पर घी बनाइये।” उत्तर तैयार था।

“... दूध? लेकिन सरकारी डेयरी का दूध भी तो पॉलीथीन के पाउच में ही आता है!”

“तो हम दूध को भी बैन कर देंगे।”

“लेकिन, उससे तो बच्चों का स्वास्थ्य प्रभावित होगा ...”

“स्वास्थ्य के लिये दूध छोड़कर अण्डे खाइये न, वे तो दफ़्ती के डब्बों में भी मिलते हैं।”

रात बढ़ती गई, बात बढ़ती गई, प्रतिबंधित सामग्री की सूची भी बढ़ती गई।

अगले दिन अखबार में खबर छपी कि तुरंत प्रभाव से राज्य के बाज़ारों में दूध, और घरों में रसोईघर प्रतिबंधित कर दिये गये हैं। समाचार से यह तथ्य ग़ायब था कि प्रशासनिक परिषद के एक प्रमुख सदस्य राज्य ढाबा संघ के पदाधिकारी थे और दूसरे अण्डा उत्पादक समिति के।

[समाप्त]

Saturday, May 19, 2018

देवासुर संग्राम 10



व्यक्तिगत विकास और स्वतंत्रता - देव और असुर व्यवस्था का मूल अंतर


पिछली कड़ियों में हम देख चुके हैं कि देव दाता हैं, उल्लासप्रिय हैं, यज्ञकर्ता (मिलकर जनहितकार्य करने वाले) हैं। वे शाकाहारी और दयालु होने के साथ-साथ कल्पनाशील, प्रभावी वक्ता हैं। हम पहले ही यह भी देख चुके हैं कि असुर गतिमान, द्रव्यवान, और शक्तिशाली हैं। वे महान साम्राज्यों के स्वामी हैं। हमने यह भी देखा कि वरुण और रुद्र जैसे आरम्भिक देव असुर हैं। सुर-काल में असुर पहले से उपस्थित हैं, जबकि पूर्वकाल के सुर भी असुर हैं। इतने भर से यह बात तो स्पष्ट है कि सुरों का प्रादुर्भाव असुरों के बाद हुआ है। असुर सभ्यता विकसित हो चुकी है। नगर बस चुके हैं। सभ्यता आ चुकी है, लेकिन कठोर और क्रूर है। असुर व्यवस्था में एक सशक्त राज्य, शासन-प्रणाली, और वंशानुगत राजा उपस्थित हैं। और आसुरी व्यवस्था में वह असुरराज ही उनका ईश्वर है। वह असुर महान सबका समर्पण चाहता है। उसके कथन के विरुद्ध जाने वाले को जीने का अधिकार नहीं है।  यहाँ तक कि राज्य का भावी शासक, वर्तमान राजा हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद भी नारायण में विश्वास व्यक्त करने के कारण मृत्युदण्ड का पात्र है। असुर साम्राज्य शक्तिशाली और क्रूर होते हुए भी भयभीत है। व्यवस्था द्वारा प्रमाणिक ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य दैवी शक्ति में विश्वास रखने वाले व्यक्तियों से उनकी आस्था खतरे में पड़ जाती है। वे ऐसे व्यक्तियों को ईशनिंदक मानकर उन्हें नष्ट करने को प्रतिबद्ध हैं, भले ही ऐसा कोई व्यक्ति उनकी अपनी संतति हो या उनका भविष्य का शासक ही हो। आस्था के मामले में असुर व्यवस्था नियंत्रणवादी और एकरूप है। किसी को उससे विचलित होने का अधिकार नहीं है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिये वहाँ कोई स्थान नहीं है। धार्मिक असहिष्णुता आसुरी व्यवस्था के मूल लक्षणों में से एक है।

आस्था की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अतिरिक्त सुर-व्यवस्था में असुरों की तुलना में एक और बड़ा अन्तर आया है। जहाँ असुर व्यवस्था एकाधिकारवादी है, एक राजा और हद से हद उसके एकाध भाई-बंधु सेनापति के अलावा अन्य सभी एक-समान स्तर में रहकर शासन के सेवकमात्र रहने को अभिशप्त हैं, वहीं सुर व्यवस्था संघीय है। हर विभाग के लिये एक सक्षम देवता उपस्थित है। जल, वायु, बुद्धि, कला, धन, स्वास्थ्य, रक्षा, आदि, सभी के अपने-अपने विभाग हैं और अपने-अपने देवता। सभी के बीच समन्वय और सहयोग का दायित्व इंद्र का है। महत्वपूर्ण  होते हुये भी वे सबसे ख्यात नहीं हैं, न ही अन्य देवताओं के नियंत्रक ही।

इंद्र  देवताओं के संघ के अध्यक्ष हैं।  इंद्र का सिंहासन पाने के इच्छुकों के लिये निर्धारित तप की अर्हता है, जिसके पूर्ण होने पर कोई भी व्यक्ति स्वयं नया इंद्र बनने का प्रस्ताव रख सकता है। पौराणिक भाषा में कहें तो, इंद्र का सिंहासन 'डोलता' भी है। असुरराज के विपरीत इंद्र एक वंशानुगतशानुगत उत्तराधिकार नहीं बल्कि तप से अर्जित एक पद है जिस पर बैठने वाले एक दूसरे के रक्तसम्बंधी नहीं होते।

एकाधिकारवादी, असहिष्णु, और क्रूर विचारधाराएँ संसार में आज भी उपस्थित हैं जिनके मूल में आसुरी नियंत्रणवाद है। यह नियंत्रणवाद अपने विचारकों-पीरों-पैगम्बरों-किताबों के कूप-मण्डूकत्व के बाहर के वैविध्य को नष्ट कर देने को आतुर है, उसके लिये किसी भी सीम तक जा सकता है। लेकिन साथ दैवी उदारवाद, वैविध्य, सहिष्णुता और सहयोग, संस्कृति  की जिस उन्नत विचारधारा का वर्णन भारतीय धर्मग्रंथों में सुर-तंत्र के रूप में है, भारतीय मनीषियों, हमारे देवों के सर्वे भवंतु सुखिनः, और तमसो मा ज्योतिर्गमय की वही अवधारणा आज समस्त विश्व को विश्व बंधुत्व और लोकतंत्र की ओर निर्देशित कर रही है।

सुरराज वरुण के हाथ में पाश है, जबकि देवों के हाथ अभयमुद्रा में हैं - भय बनाम क्षमा - नश्वर मानव किसे चुनेंगे? सुरासुर का भेद समुद्र मंथन के समय स्पष्ट है। वह युद्ध के बाद मिल-बैठकर सहयोग से मार्ग निकालने का मार्ग है जिसमें बहुत सा हालाहल निकलने के बाद चौदह रत्न और फिर अमृत मिला है जो सुरों के पास है। सुर व्यवस्था अमृत व्यवस्था है। कितना भी संघर्ष हो, इसी में स्थायित्व है, यही टिकेगी।

[क्रमशः]

Saturday, January 6, 2018

देवासुर संग्राम 9 - नियंत्रणवाद से समन्वय की ओर

सर्वेषाम् देवानाम् आत्मा यद् यज्ञः  (शतपथ ब्राह्मण)
सब देवों की आत्मा यज्ञ (मिलकर कार्य करना) में बसती है


पिछली कड़ियों में हमने सुर, असुर, देव, दैत्य, दानव, भूत, पिशाच, राक्षस आदि शब्दों पर दृष्टिपात किया है।
हम यह भी देख चुके हैं कि देव दाता हैं, उल्लासप्रिय हैं, यज्ञकर्ता (मिलकर जनहितकार्य करने वाले) हैं। वे शाकाहारी, शक्तिशाली, सहनशील, और दयालु होने के साथ-साथ कल्पनाशील, प्रभावी वक्ता हैं। देव उत्साह से भरे हैं, उनके चरण धरती नहीं छूते। हम पहले ही यह भी देख चुके हैं कि सुर, असुर दोनों शक्तिशाली हैं, परंतु असुरत्व में अधिकार है, जबकि देवत्व में दान है। असुर गतिमान, द्रव्यवान, और शक्तिशाली हैं। वे महान साम्राज्यों के स्वामी हैं। यह भी स्पष्ट है कि वरुण और रुद्र जैसे आरम्भिक देव असुर हैं। उनके अतिरिक्त मित्र, अग्नि, अर्यमन, पूषा, पर्जन्य आदि देव भी असुर हैं। अर्थ यह कि पूर्वकाल के देव भी असुर ही हैं। सुर-काल में असुर पहले से उपस्थित हैं। इतने भर से यह बात तो स्पष्ट है कि सुरों का प्रादुर्भाव असुरों के बाद हुआ है। पहले के देव असुर इसलिये हैं कि उस समय तक वे सुर व्यवस्था को फलीभूत नहीं कर सके हैं। सुर सभ्यता की पूर्ववर्ती असुर सभ्यता विकसित हो चुकी है। नगर बस चुके हैं। सभ्यता आ चुकी है, लेकिन उसे सुसंस्कृत होना शेष है। वह अभी भी कठोर और क्रूर है। असुर व्यवस्था में आधिपत्य है, एक सशक्त राज्य, शासन-प्रणाली, और वंशानुगत राजा उपस्थित हैं। आसुरी व्यवस्था में वह असुरराज ही उनका ईश्वर है। वह असुर महान सबका समर्पण चाहता है। उसके कथन के विरुद्ध जाने वाले को जीने का अधिकार नहीं है।  यहाँ तक कि राज्य का भावी शासक, वर्तमान राजा हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद भी नारायण में विश्वास व्यक्त करने के कारण मृत्युदण्ड का पात्र है। असुर साम्राज्य शक्तिशाली और क्रूर होते हुए भी भयभीत है। व्यवस्था द्वारा प्रमाणिक ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य दैवी शक्ति में विश्वास रखने वाले व्यक्तियों से उनकी आस्था खतरे में पड़ जाती है। वे ऐसे व्यक्तियों को ईशनिंदक मानकर उन्हें नष्ट करने को प्रतिबद्ध हैं, भले ही ऐसा कोई व्यक्ति उनकी अपनी संतति हो या उनका भविष्य का शासक ही हो। आस्था के मामले में असुर व्यवस्था नियंत्रणवादी और एकरूप है। किसी को उससे विचलित होने का अधिकार नहीं है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिये वहाँ कोई स्थान नहीं है। अपनी विचारधारा से इतर मान्यताओं को बलपूर्वक नष्ट करना वे अपना अधिकार समझते हैं। धार्मिक असहिष्णुता आसुरी व्यवस्था के मूल लक्षणों में से एक है।


आस्था की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अतिरिक्त सुर-व्यवस्था में असुरों की तुलना में एक और बड़ा अन्तर आया है। जहाँ असुर व्यवस्था एकाधिकारवादी है, एक राजा और हद से हद उसके एकाध भाई-बंधु सेनापति के अलावा अन्य सभी एक-समान स्तर में रहकर शासन के सेवकमात्र रहने को अभिशप्त हैं, वहीं सुर व्यवस्था संघीय है। हर विभाग के लिये एक सक्षम देवता उपस्थित है। जल, वायु, बुद्धि, कला, धन, स्वास्थ्य, रक्षा, आदि, सभी के अपने-अपने विभाग हैं और अपने-अपने देवता। सभी के बीच समन्वय, सहयोग, और सम्वाद का दायित्व इंद्र का है। महत्वपूर्ण  होते हुये भी वे सबसे ख्यात नहीं हैं, न ही अन्य देवताओं के नियंत्रक ही।

इतना ही नहीं  देवताओं के संघ के अध्यक्ष का पद हस्तांतरण योग्य है। इंद्र के पद को कोई भी चुनौती दे सकता है,  और अपनी पात्रता का प्रस्ताव रख सकता है।  इंद्र का सिंहासन पाने के इच्छुकों के लिये निर्धारित तप की अर्हता है, जिसके होने पर पौराणिक भाषा में, इंद्र का सिंहासन 'डोलता' भी है। असुरराज के विपरीत इंद्र एक वंशानुगत उत्तराधिकार नहीं बल्कि तप से अर्जित एक पद है जिस पर बैठने वाले एक दूसरे के रक्तसम्बंधी नहीं होते।

एकाधिकारवादी, असहिष्णु, और क्रूर विचारधाराएँ संसार में आज भी उपस्थित हैं जिनके मूल में आसुरी नियंत्रणवाद है। लेकिन इसके साथ ही दैवी उदारवाद, वैविध्य, सहिष्णुता और सहयोग, संस्कृति  की जिस उन्नत विचारधारा का वर्णन भारतीय धर्मग्रंथों में सुर-तंत्र के रूप में है, भारतीय मनीषियों, हमारे देवों के सर्वे भवंतु सुखिनः, और तमसो मा ज्योतिर्गमय की वही अवधारणा आज समस्त विश्व को विश्व बंधुत्व और लोकतंत्र की ओर निर्देशित कर रही है।

असुरराज के हाथ में पाश है, जबकि देवों के हाथ अभयमुद्रा में हैं - भय बनाम क्षमा - नश्वर मानव किसे चुनेंगे? सुरासुर का भेद समुद्र मंथन के समय स्पष्ट है। समुद्र मंथन के समय असुर-राज शक्तिशाली था। जबकि सुर एक नयी व्यवस्था स्थापित कर रहे थे। लम्बे समय से स्थापित राजसी असुर शक्ति इस नई प्रबंधन व्यवस्था को जन्मते ही मिटाने को आतुर थी। समुद्र-मंथन युद्ध के बाद मिल-बैठकर चिंतन, मनन, और सहयोग से भविष्य चुनने का मार्ग है जिसमें बहुत सा हालाहल निकलने के बाद चौदह रत्न और फिर अमृत मिला है जो सुरों के पास है। सुर व्यवस्था अमृत व्यवस्था है। कितना भी संघर्ष हो, इसी में स्थायित्व है, यही टिकेगी। विचारवान मनुष्य को किसी विचारधारा का रोबोट नहीं बनाया जा सकता। पाश बनाम अभय! तानाशाही कितनी भी शक्तिशाली हो जाये, मानवता कभी भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार नहीं छोड़ेगी।

[क्रमशः]

Monday, May 1, 2017

डर लगता है - कविता

सुबह-सुबह न रात-अंधेरे घर में कोई डर लगता है
बस्ती में दिन में भी उसको अंजाना सा डर लगता है

जंगल पर्वत दश्त समंदर बहुत वीराने घूम चुका है
सदा अकेला ही रहता, हो साथ कोई तो डर लगता है

कुछ दूरी भी सबसे रक्खी सबको आदर भी देता है
भिक्षुक बन दर आए रावण, पहचाने न डर लगता है

अक्खड़ और संजीदा उसकी सबसे ही निभ जाती है
भावुक लोगों से ही उसको थोड़ा-थोड़ा डर लगता है

नाग भी पूजे, गाय भी सेवी, शूकर कूकर सब पाला है
पशुओं से भी आगे है जो उस मानव से डर लगता है।
(चित्र व शब्द: अनुराग शर्मा)

Sunday, April 9, 2017

असलियत - कविता

इश्क और मुश्क
छिपाए नहीं छिपते
न ही छिपते हैं
रक्तरंजित हाथ।
असलियत मिटती
नहीं है।
बहुत देर तक
नहीं छिपा सकोगे
बगल में छुरी।
भले ही
दिखावे के लिए
जपने लगो राम,
कुशलता से ढँककर
माओ, स्टालिन, पोलपोट
बारूदी सुरंग और
कलाश्निकोव को ...
अंततः टूटेंगे बुत तुम्हारे
और सुनोगे-देखोगे
सत्यमेव जयते

(अनुराग शर्मा)

Tuesday, February 28, 2017

फिरकापरस्त - एक कविता

(अनुराग शर्मा)

क्यूबा के कम्युनिस्ट राजवंश का प्रथम तानाशाह
बंदूकों से
उगलते हैं मौत
और जहर
रचनाओं से
जैसे कि जहर और
गोली में बुद्धि होती हो
अपने-पराये का
अंतर समझने की

खुशी से उछल रहे हैं कि
दुश्मनों के खात्मे के बाद
समेट लेंगे उनकी
सारी पूंजी
और दुनिया उनकी
मेहनत से बनी
गिराकर सारे बुत
बताएंगे खुद को खुदा
और बैठकर पिएंगे चुरुट
चलाएँगे हुक्म

समझते नहीं कि जहर
अपने फिरके आप बनाता है
बंदूक की नाल
खुद पर तन जाती है
जब सामने दुश्मन का
कोई चिह्न नहीं बचता
समाचार: अहिंसा का प्रवर्तक भारत झेलता है सर्वाधिक विस्फ़ोट, जेहाद, माओवाद के निशाने पर    

Thursday, December 31, 2015

2016 की शुभकामनायें! कविता

चित्र व शब्द: अनुराग शर्मा

बीतते हुए वर्ष की
अंतिम रात्रि
यूँ लगती है
जैसे अंतिम क्षण
किसी जाते हुए  
अपने के
साथ तो हैं पर
साथ की खुशी नहीं
जाने का गम है
सच पूछो तो
यही क्या कम है!
नववर्ष 2016 आप सबके जीवन में सफलता, समृद्धि और खुशियाँ बढ़ाये  

Sunday, July 19, 2015

किस्सागो का पक्ष - अनुरागी मन

अनुरागी मन से दो शब्द

अपनी कहानियों के लिए, उनके विविध विषयों, रोचक पृष्ठभूमि और यत्र-तत्र बिखरे रंगों के लिए मैं अपने पात्रों का आभारी हूँ। मेरी कहानियों की ज़मीन उन्होंने तैयार की है। वे सब मेरे मित्र हैं यद्यपि मैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता हूँ।

कथा निर्माण के उदेश्य से मैं उनसे मिला अवश्य हूँ। कहानी लिखते समय मैं उन्हें टोकता भी रहता हूँ। लेकिन हमारा परिचय केवल उतना ही है जितना कहानी में वर्णित है। बल्कि वहाँ भी मैंने लेखकीय छूट का लाभ उठाया है। इस हद तक, कि कुछ पात्र शायद अपने को वहाँ पहचान न पायें। कई तो शायद खफा ही हो जाएँ क्योंकि मेरी कहानी उनका जीवन नहीं है।

मेरे पात्र भले लोग हैं। अच्छे या बुरे, वे सरल और सहज हैं, जैसे भीतर, तैसे बाहर। मेरी कहानियाँ इन पात्रों की आत्मकथाएँ नहीं हैं। उन्हें मेरी आत्मकथा समझना तो और भी ज्यादती होगी। मेरी कहानियाँ समाचारपत्र की रिपोर्ट भी नहीं हैं। मैंने अपने या पात्रों के अनुभवों में से कुछ भी यथावत नहीं परोसा है।

मेरी हर कहानी एक संभावना प्रदान करती है। एक अँधेरे कमरे में खिड़की की किसी दरार से दिखते तारों की तरह। किसी सुराख से आती प्रकाश की एक किरण जैसे, मेरी कहानियाँ आशा की कहानियाँ हैं। यदि कहीं निराशा दिखती भी है, वहाँ भी जीवन की नश्वरता के दुःख के साथ मृत्योर्मामृतम् गमय का उद्घोष है। कल अच्छा था, आज बेहतर है, कल सर्वश्रेष्ठ होगा।

हृदयस्पर्शी संस्मरण लिखने के लिए पहचाने जाने वाले अभिषेक कुमार ने अपने ब्लॉग पर अनुरागी मन की एक सुंदर समीक्षा लिखी है, मन प्रसन्न हो गया। आभार अभिषेक!

इसे भी पढ़िये:
अनुरागी मन की समीक्षा अभिषेक कुमार द्वारा
लेखक बेचारा क्या करे? भाग 1
लेखक बेचारा क्या करे? भाग 2
* अच्छे ब्लॉग लेखन के सूत्र
* बुद्धिजीवी कैसे बनते हैं?