जहाँ तक काव्य का प्रश्न है और शब्द संयोजन का सवाल है बहुत उम्दा बनी है कविता अनुराग जी... लेकिन भाव पक्ष थोड़ा अलग सा लगा है.. इसे पढ़ कर एक बहुत पुरानी ग़ज़ल याद आई है :
आकर जो मेरी कब्र पर तूने जो मुस्कुरा दिया बिजली चमक के गिर पड़ी सारा कफन जला दिया.. मैं सो रहा था चैन से ओढ़े कफन मज़ार में यहाँ भी सताने आ गए किसने पता बता दिया...
Comment received in email from Girijesh Rao नेट डाउन है। मोबाइल से काम चला रहा हूँ। क्या भय कविता पर यह टिप्पणी प्रकाशित कर पाएँगे:
ये कैसा समय ? सहमने से मुक्ति मृत्त्योपरांत ! कब्र में सुरक्षा की अनुभूति! जीवन नहीं रहा लेकिन सुरक्षा और सहम से मुक्ति की बात ! ऐब्सर्डिटी की इंतहा है।
दूसरा शेर तो बस महसूस करते जा रहा हूँ। डर, जीवन और मुक्ति - जीवन है तो डर है। जीवन न रहे तो मुक्ति का क्या अर्थ ..... डर से मुक्ति जीवन से मुक्त होने पर सिद्ध हो तो सब व्यर्थ ही हुआ न ! भैया, क्या कह गए !!
[नोट: गिरिजेश ने अपनी एक पोस्ट में विरोधाभास और उलटबांसी का ज़िक्र किया था उसी से प्रेरित होकर मैंने यह दो शेर यहाँ रखे थे - मैं उलटबांसी को विरोधाभास से बिलकुल अलग मानता हूँ, आपका क्या ख्याल है? ]
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जहाँ तक काव्य का प्रश्न है और शब्द संयोजन का सवाल है बहुत उम्दा बनी है कविता अनुराग जी...
ReplyDeleteलेकिन भाव पक्ष थोड़ा अलग सा लगा है..
इसे पढ़ कर एक बहुत पुरानी ग़ज़ल याद आई है :
आकर जो मेरी कब्र पर तूने जो मुस्कुरा दिया
बिजली चमक के गिर पड़ी सारा कफन जला दिया..
मैं सो रहा था चैन से ओढ़े कफन मज़ार में
यहाँ भी सताने आ गए किसने पता बता दिया...
Just correct your heading| It should be मौत और जिन्दगी के डर । तश्तरी की पोस्ट से यहाँ आया। Good site|
ReplyDeleteदोनों शेर खूबसूरत हैं । दूसरा तो बेहद हसीन !
ReplyDeleteवाह क्या खूब कहा। शुभकामनायें
ReplyDeleteमौत का अब डर भी यारों
ReplyDeleteहो गया काफूर है
ज़िंदगी की बात ही क्या
ज़िंदगी जाने के बाद ....
BAHUT HI UMDA ... LAJAWAAB KAHA HAI ... SAB KUCH KHONE KE BAAD PAANE KA KOI MAKSAD NAHI .... DONO SHER KAMAAL HAIN ...
भय तो तब तक ही भयभीत करेगा जब जिन्दा होन्गे . मां की गोद और मौत का आगोश सबसे ज्यादा भयरहित होता है .
ReplyDeleteKYA BAAT KAHI AAPNE......WAAH ! WAAH ! WAAH !....LAJAWAAB !!SUPERB !!
ReplyDeleteIN DO PADON ME HI KAMAAL RACH DAALA AAPNE !! BAAR BAAR DUHRA CHUNKI HUN ,PAR MAN NAHI BHAR RAHA....
मौत का अब डर भी यारों
ReplyDeleteहो गया काफूर है
ज़िंदगी की बात ही क्या
ज़िंदगी जाने के बाद ....
बहुत लाजवाब और भावप्रवण रचना, शुभकामनाएं.
रामराम.
सुन्दर अभिव्यक्ति....मौत की सच्चाई और उसके आकर्षण का सुन्दर चित्रण
ReplyDeleteसरल और चुस्त शब्दों के ज़रिये एक पूरा दर्शन खोलती कविता.
ReplyDeleteComment received in email from Girijesh Rao
ReplyDeleteनेट डाउन है। मोबाइल से काम चला रहा हूँ।
क्या भय कविता पर यह टिप्पणी प्रकाशित कर पाएँगे:
ये कैसा समय ? सहमने से मुक्ति मृत्त्योपरांत !
कब्र में सुरक्षा की अनुभूति! जीवन नहीं रहा लेकिन सुरक्षा और सहम से मुक्ति की बात ! ऐब्सर्डिटी की इंतहा है।
दूसरा शेर तो बस महसूस करते जा रहा हूँ।
डर, जीवन और मुक्ति - जीवन है तो डर है। जीवन न रहे तो मुक्ति का क्या अर्थ ..... डर से मुक्ति जीवन से मुक्त होने पर सिद्ध हो तो सब व्यर्थ ही हुआ न !
भैया, क्या कह गए !!
[नोट: गिरिजेश ने अपनी एक पोस्ट में विरोधाभास और उलटबांसी का ज़िक्र किया था उसी से प्रेरित होकर मैंने यह दो शेर यहाँ रखे थे - मैं उलटबांसी को विरोधाभास से बिलकुल अलग मानता हूँ, आपका क्या ख्याल है? ]
कसी हुई बहर पे दो बेहतरीन शेर अनुराग जी!
ReplyDeleteमौत का अब डर भी यारों
ReplyDeleteहो गया काफूर है
ज़िंदगी की बात ही क्या
ज़िंदगी जाने के बाद
Anuraag ji, ye to sachbyaani hai.
khub likha hai.
अब बड़ा महफूज़ हूँ मैं
ReplyDeleteकब्र में आने के बाद
बेहतरीन .. निशब्द कर दिया.