(अनुराग शर्मा)
दीवारें मजदूरों की दर-खिड़की सारी सेठ ले गए।
सर बाजू सरदारों के निर्धन को खाली पेट दे गए।।
साम-दाम और दंड चलाके सौदागर जी भेद ले गए।
माल भर लिया गोदामों में रखवालों को गेट दे गए।।
मेरी मिल में काम मिलेगा कहके मेरा वोट ले गए।
गन्ना लेकर सस्ते में अब चीनी महंगे रेट दे गए।।
ठूँस-ठास के मन न भरा तो थैले में भरपेट ले गए।
चाट-चाट के चमकाने को अपनी जूठी प्लेट दे गए।।
अंत महीने बचा रुपय्या जनसेवा के हेत ले गए।
रक्त-सनी जिह्वा से बाबा शान्ति का उपदेश दे गए।।
चिकनी-चुपड़ी बातें करके हमसे सारा देश ले गए।
हाथी घोड़े प्यादे खाकर मंत्री जी चेक मेट दे गए।।
[आपको बड़े दिन, क्वांज़ा, हनूका, और नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!]
दीवारें मजदूरों की दर-खिड़की सारी सेठ ले गए।
सर बाजू सरदारों के निर्धन को खाली पेट दे गए।।
साम-दाम और दंड चलाके सौदागर जी भेद ले गए।
माल भर लिया गोदामों में रखवालों को गेट दे गए।।
मेरी मिल में काम मिलेगा कहके मेरा वोट ले गए।
गन्ना लेकर सस्ते में अब चीनी महंगे रेट दे गए।।
ठूँस-ठास के मन न भरा तो थैले में भरपेट ले गए।
चाट-चाट के चमकाने को अपनी जूठी प्लेट दे गए।।
अंत महीने बचा रुपय्या जनसेवा के हेत ले गए।
रक्त-सनी जिह्वा से बाबा शान्ति का उपदेश दे गए।।
चिकनी-चुपड़ी बातें करके हमसे सारा देश ले गए।
हाथी घोड़े प्यादे खाकर मंत्री जी चेक मेट दे गए।।
[आपको बड़े दिन, क्वांज़ा, हनूका, और नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं!]
अंत महीने बचा रुपय्या जनसेवा के हेत ले गए।
ReplyDeleteरक्त-सनी जिह्वा से बाबा शान्ति का उपदेश दे गए।
-बहुत उम्दा!! एकदम सटीक !!
बहुत ही सुंदर ओर सटीक लगी आप की यह कविता.
ReplyDeleteधन्यवाद
प्यारी सी इस नज्म ने मन मोह लिया भाई
ReplyDeleteबेहतरीन और सामयिक।
शोषण की सनातन गाथा को स्वर देती.रोज़ ठगे जाने की पीड़ा से निकली आवाज़.
ReplyDelete"ठूंस-ठास के मन न भरा तो थैले में भरपेट ले गए।
ReplyDeleteचाट-चाटके चमकाने को अपनी खाली प्लेट दे गए।।"
हालात की तस्वीर है असली इस रचना में । बेहतरीन प्रविष्टि ।
... bahut sundar rachanaa, behad prabhaavashaali !!!
ReplyDeleteचिकनी-चुपड़ी बातें करके हमसे सारा देश ले गए।
ReplyDeleteहाथी घोड़े प्यादे खाकर मंत्री जी चेक मेट दे गए।।
बहुत लाजवाब. एकदम सत्य.
रामराम.
आज के हालात की अच्छी तफसीर पेश की है आपने -बहूत खूब !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteलोकोक्तियों और मुहावरों का सुन्दर प्रयोग किया है।
मेरी मिल में काम मिलेगा कहके मेरा वोट ले गए।
ReplyDeleteगन्ना लेकर सस्ते में अब चीनी महंगे रेट दे गए।।
बिल्कुल सटीक . सामयिक रचना
भैया! अमेरिका में हैं कि भारत में? दिव्य दृष्टि या गहन जुड़ाव?
ReplyDeleteकिस किस को कहूँ - डाहन मरे जा रहा हूँ!
अधिक क्या कहूँ - इस एक पर मेरी सारी कविताएँ कुर्बान।
सामान्यत: ऐसा कुछ दिखने पर मैं लम्बी चौड़ी हाँक देता हूँ लेकिन अर्थ सौन्दर्य, गुरुता, मार और प्रयोगों पर स्तब्ध हूँ - कुछ कहने लायक नहीं।
री मिल में काम मिलेगा कहके मेरा वोट ले गए।
ReplyDeleteगन्ना लेकर सस्ते में अब चीनी महंगे रेट दे गए
अंत महीने बचा रुपय्या जनसेवा के हेत ले गए।
रक्त-सनी जिह्वा से बाबा शान्ति का उपदेश दे गए।
वाह वाह बहुत सही और सटीक अभिव्यक्ति है । इस शानदार रचना के लिये बधाई
अरे अनुराग जी...वाह! वाह!!
ReplyDeleteनहीं फिर से..वाह! वाह!!
दिल से निकली हैं...लाजवाब लिखे हैं । खास कर इन दो पंक्तियों को तो संग लिये जा रहा हूं:-
"चिकनी-चुपड़ी बातें करके हमसे सारा देश ले गए।
हाथी घोड़े प्यादे खाकर मंत्री जी चेक मेट दे गए"
bilkul sahi kaha sab kuchh to yahi loot le jate hain
ReplyDeleteचिकनी-चुपड़ी बातें करके हमसे सारा देश ले गए।
ReplyDeleteहाथी घोड़े प्यादे खाकर मंत्री जी चेक मेट दे गए।।
वाह। सादी भाषा में 'व्यंजना' का आनन्द। साधुवाद।
सुंदर.
ReplyDeletechor uchchake jab jaha milte ek vahi ban jata dal/koi janta dal,koi bahujan dal,koi panja our kamal
ReplyDeletejelo se nirvachit hote yaha kaisa kanoon/sabhya our sambhrant ho gaye kar-kar sou-sou khoon/
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन..खासतौर पर
ReplyDeleteअंत महीने बचा रुपय्या जनसेवा के हेत ले गए।
रक्त-सनी जिह्वा से बाबा शान्ति का उपदेश दे गए।
एक ग़ज़ल का शे’र याद आ गया--
ऊँची ऊँची बिल्डिंगे बनीं
लोग बेमक़ान हो गये॥॥।
साम-दाम और दंड चलाके सौदागर जी भेद ले गए।
ReplyDeleteमाल भर दिया गोदामों में रखवालों को गेट दे गए।।
ये लाइन हिंदुस्तान में फैले करप्शन पर एकदम सटीक बैठती हैं...
अनुराग जी आपका जवाब नहीं..
"ठूंस-ठास के मन न भरा तो थैले में भरपेट ले गए।
ReplyDeleteचाट-चाटके चमकाने को अपनी खाली प्लेट दे गए।।"
वर्तमान हालत को पेश करती एक यथार्थ वादी अभिव्यक्ति...........
ठूंस-ठास के मन न भरा तो थैले में भरपेट ले गए।
ReplyDeleteचाट-चाटके चमकाने को अपनी जूठी प्लेट दे गए।।
बहुत करारा व्यंग है ...... अच्छी रचना है .........सटीक और सार्थक ........
लेन देन के इस उपक्रम में, आये तो हम, लेट हो गये!
ReplyDeleteयथार्थ की व्यंगात्मक अभिव्यक्ति ...अतिसुन्दर.
ReplyDeleteअनुराग जी नमस्कार, सुन्दर बहुत खूब लिखा आपने मेरे ब्लाग पर आपका स्वागतहै। अंत महीने बचा रुपय्या जनसेवा के हेत ले गए।
ReplyDeleteरक्त-सनी जिह्वा से बाबा शान्ति का उपदेश दे गए।।
चिकनी-चुपड़ी बातें करके हमसे सारा देश ले गए।
हाथी घोड़े प्यादे खाकर मंत्री जी चेक मेट दे गए।।
sashkt vyang .
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