Tuesday, December 29, 2009

ये बदनुमा धब्बे

.
मेरे शुभचिंतक
जुटे हैं दिलोजान से
मिटाने
बदनुमा धब्बों को
मेरे चेहरे से
शुभचिंतक जो ठहरे
लहूलुहान हूँ मैं
कुछ भी
देख नहीं सकता
समझा भी नहीं पाता
किसी को कि
ये धब्बे नहीं
मेरी आँखें हैं!

.

21 comments:

  1. बहुत खूब..कम शब्द में एक बेहतरीन अभिव्यक्ति..बढ़िया लगा..धन्यवाद जी!!

    ReplyDelete
  2. ग़जब !
    ऐसे शुभचिंतकों से भगवान बचाए।
    बड़ी मजबूत आँखें हैं।
    _____________________

    जाने कितने अर्थ समेटे है यह कविता। सुरूप बनाने की कोशिश में विरूप ही नहीं करते बल्कि अन्धकूप में ढकेलते शुभेच्छु!
    आप यदि स्वतंत्र दृष्टि रखते हैं तो बदनुमा हो जाते हैं ... आँखों का धब्बा दिखना! क्या प्रयोग है!!

    ReplyDelete
  3. समझा नहीं पाता हूँ
    किसी को कि
    ये धब्बे
    मेरी आँखें हैं!


    बेहद सटीक अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर. धन्यवाद

    ReplyDelete
  5. ऐसे दोस्तों का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आपको दुश्मनों की जरूरत नहीं पड़ती..

    इतनी तो गनीमत है कि जिन धब्बों को हटा रहे हैं, उनकी हक़ीकत आपको तो मालूम है..

    कभी-कभी आपकी ग़ैरजानकारी में भी ये कुछ ज्यादा शुभचिंतित होकर और भी बदनुमा धब्बों को हटाने की कोशिश कर सकते हैं.. सावधानी बरतने की आवश्यकता है..

    ReplyDelete
  6. बहुत गहन!! सटीक!!


    यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

    हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

    मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

    नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

    निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

    वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

    आपका साधुवाद!!

    नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!

    समीर लाल
    उड़न तश्तरी

    ReplyDelete
  7. मैं तो हमेशा इस बात को याद दिलाता रहता हूँ कि नादान दोस्तों से दानेदार दुश्मन लाख गुने बेहतर हैं !

    ReplyDelete
  8. धब्बे शायद उन्की भी आन्खो मे होन्गे

    ReplyDelete
  9. लहूलुहान हूँ मैं
    कुछ भी
    देख नहीं सकता
    समझा नहीं पाता हूँ
    किसी को कि
    ये धब्बे
    मेरी आँखें हैं!
    कितनी पीड़ा है इन शब्दों में , सम्वेदनशील अभिव्यक्ति......सुन्दर
    regards

    ReplyDelete
  10. गजब खड़ूस हैं लोग...
    अगर ऐसे शुभचिंतक हैं तो फिर दुश्मनों की कमी तो आपको महसूस नहीं होती होगी... है न ???
    इनका नाम शुभचिंतक नहीं अशुभचिन्तक होना चाहिए अनुराग जी...
    कविता बहुत अच्छी लगी...
    देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर..!!

    ReplyDelete
  11. बेहतरीन कविता |
    सच कहा गिरिजेश जी ने - बेहतरीन प्रयोग - आँखों का धब्बा दिखना !

    ReplyDelete
  12. कम शब्दों में गहरी बात कह दी .... दूसरों में कुछ खोजने की पीछे इंसान अपने अंदर झाँकना भूल जाता है .......... नया साल बहुत बहुत मुबारक ........

    ReplyDelete
  13. कमाल है जी!
    गागर में सागर!!
    चर्चा मंच पर भी इसकी चर्चा है!

    नव वर्ष की शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  14. अनुराग भाई ,
    आपके लेखन की धार ,
    यूं ही बकरार रहे
    और
    आपके समस्त परिवार को ,
    नव - वर्ष की मेरी हार्दिक
    शुभ कामनाएं भी प्रेषित कर रही हूँ
    - लावण्या

    ReplyDelete
  15. बहुत खूब!

    यह कुछ वैसा ही कि, मेरे कैमरे के लेंस में फंगस है और लोगों को लगता है कि मुझे फोटो लेना नहीं आ रहा!

    ReplyDelete
  16. Is arthpurn rachna ke liye badhai.

    Nav varsh ki dheron shubkamnayen.

    ReplyDelete
  17. अरे !!! ये क्या खूब कह डाला..!!!

    इतनी ज़िंदगी जी डाली, ये खयाल पहली बार ही पढा़.

    नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनायें...आपको, भाभीजी और बच्चों के लिये...

    ReplyDelete
  18. अन्तिम पंक्ति पढकर उछल गया। भाषा का अनूठा चमत्‍कार है इस कविता में। आनन्‍द आ गया।

    ReplyDelete
  19. कुछ दिन नेट से दूर रही देरी के लिये क्षमा चाहती हूँ नये साल की बहुत बहुत शुभकामनायें। सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये बधाई

    ReplyDelete
  20. sashakt bhavo kee asardar abhivykti !

    ReplyDelete

मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।