ग़जब ! ऐसे शुभचिंतकों से भगवान बचाए। बड़ी मजबूत आँखें हैं। _____________________
जाने कितने अर्थ समेटे है यह कविता। सुरूप बनाने की कोशिश में विरूप ही नहीं करते बल्कि अन्धकूप में ढकेलते शुभेच्छु! आप यदि स्वतंत्र दृष्टि रखते हैं तो बदनुमा हो जाते हैं ... आँखों का धब्बा दिखना! क्या प्रयोग है!!
लहूलुहान हूँ मैं कुछ भी देख नहीं सकता समझा नहीं पाता हूँ किसी को कि ये धब्बे मेरी आँखें हैं! कितनी पीड़ा है इन शब्दों में , सम्वेदनशील अभिव्यक्ति......सुन्दर regards
गजब खड़ूस हैं लोग... अगर ऐसे शुभचिंतक हैं तो फिर दुश्मनों की कमी तो आपको महसूस नहीं होती होगी... है न ??? इनका नाम शुभचिंतक नहीं अशुभचिन्तक होना चाहिए अनुराग जी... कविता बहुत अच्छी लगी... देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर..!!
मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।
बहुत खूब..कम शब्द में एक बेहतरीन अभिव्यक्ति..बढ़िया लगा..धन्यवाद जी!!
ReplyDeleteग़जब !
ReplyDeleteऐसे शुभचिंतकों से भगवान बचाए।
बड़ी मजबूत आँखें हैं।
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जाने कितने अर्थ समेटे है यह कविता। सुरूप बनाने की कोशिश में विरूप ही नहीं करते बल्कि अन्धकूप में ढकेलते शुभेच्छु!
आप यदि स्वतंत्र दृष्टि रखते हैं तो बदनुमा हो जाते हैं ... आँखों का धब्बा दिखना! क्या प्रयोग है!!
समझा नहीं पाता हूँ
ReplyDeleteकिसी को कि
ये धब्बे
मेरी आँखें हैं!
बेहद सटीक अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.
रामराम.
बहुत सुंदर. धन्यवाद
ReplyDeleteऐसे दोस्तों का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आपको दुश्मनों की जरूरत नहीं पड़ती..
ReplyDeleteइतनी तो गनीमत है कि जिन धब्बों को हटा रहे हैं, उनकी हक़ीकत आपको तो मालूम है..
कभी-कभी आपकी ग़ैरजानकारी में भी ये कुछ ज्यादा शुभचिंतित होकर और भी बदनुमा धब्बों को हटाने की कोशिश कर सकते हैं.. सावधानी बरतने की आवश्यकता है..
बहुत गहन!! सटीक!!
ReplyDeleteयह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
मैं तो हमेशा इस बात को याद दिलाता रहता हूँ कि नादान दोस्तों से दानेदार दुश्मन लाख गुने बेहतर हैं !
ReplyDeleteधब्बे शायद उन्की भी आन्खो मे होन्गे
ReplyDeleteलहूलुहान हूँ मैं
ReplyDeleteकुछ भी
देख नहीं सकता
समझा नहीं पाता हूँ
किसी को कि
ये धब्बे
मेरी आँखें हैं!
कितनी पीड़ा है इन शब्दों में , सम्वेदनशील अभिव्यक्ति......सुन्दर
regards
गजब खड़ूस हैं लोग...
ReplyDeleteअगर ऐसे शुभचिंतक हैं तो फिर दुश्मनों की कमी तो आपको महसूस नहीं होती होगी... है न ???
इनका नाम शुभचिंतक नहीं अशुभचिन्तक होना चाहिए अनुराग जी...
कविता बहुत अच्छी लगी...
देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर..!!
बहुत खूब.
ReplyDeleteबेहतरीन कविता |
ReplyDeleteसच कहा गिरिजेश जी ने - बेहतरीन प्रयोग - आँखों का धब्बा दिखना !
कम शब्दों में गहरी बात कह दी .... दूसरों में कुछ खोजने की पीछे इंसान अपने अंदर झाँकना भूल जाता है .......... नया साल बहुत बहुत मुबारक ........
ReplyDeleteकमाल है जी!
ReplyDeleteगागर में सागर!!
चर्चा मंच पर भी इसकी चर्चा है!
नव वर्ष की शुभकामनाएँ!
अनुराग भाई ,
ReplyDeleteआपके लेखन की धार ,
यूं ही बकरार रहे
और
आपके समस्त परिवार को ,
नव - वर्ष की मेरी हार्दिक
शुभ कामनाएं भी प्रेषित कर रही हूँ
- लावण्या
बहुत खूब!
ReplyDeleteयह कुछ वैसा ही कि, मेरे कैमरे के लेंस में फंगस है और लोगों को लगता है कि मुझे फोटो लेना नहीं आ रहा!
Is arthpurn rachna ke liye badhai.
ReplyDeleteNav varsh ki dheron shubkamnayen.
अरे !!! ये क्या खूब कह डाला..!!!
ReplyDeleteइतनी ज़िंदगी जी डाली, ये खयाल पहली बार ही पढा़.
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनायें...आपको, भाभीजी और बच्चों के लिये...
अन्तिम पंक्ति पढकर उछल गया। भाषा का अनूठा चमत्कार है इस कविता में। आनन्द आ गया।
ReplyDeleteकुछ दिन नेट से दूर रही देरी के लिये क्षमा चाहती हूँ नये साल की बहुत बहुत शुभकामनायें। सुन्दर अभिव्यक्ति के लिये बधाई
ReplyDeletesashakt bhavo kee asardar abhivykti !
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