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अनुराग शर्मा
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Tuesday, December 29, 2009
ये बदनुमा धब्बे
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मेरे शुभचिंतक
जुटे हैं दिलोजान से
मिटाने
बदनुमा धब्बों को
मेरे चेहरे से
शुभचिंतक जो ठहरे
लहूलुहान हूँ मैं
कुछ भी
देख नहीं सकता
समझा भी नहीं पाता
किसी को कि
ये धब्बे नहीं
मेरी आँखें हैं!
(
अनुराग शर्मा
)
.
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