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Monday, September 15, 2008
नहीं होता - एक कविता
बात तो आपकी सही है यह
थोड़ा करने से सब नहीं होता
फिर भी इतना तो मैं कहूंगा ही
कुछ न करने से कुछ नहीं होता
इक खुमारी सी छाई रहती है
उन पर कुछ भी असर नहीं होता
लोग दिन में नशे में रहते हैं
मैं तो रातों को भी नहीं सोता
खून मेरा भी खूब खौला था
अपना सब क्रोध पी गया लेकिन
कुछ न कहने से कुछ न बदला था
कुछ भी कहता तो झगड़ा ही होता
सच ही कहता था दिल बुलंद रखो
डरना तो मौत से भी बदतर है
दम लगाते तो जीतते शायद
लेखा किस्मत का सच नहीं होता।
(अनुराग शर्मा)
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