Sunday, December 5, 2010

गंजा – लघु कथा

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मेरी एक लघुकथा जो गर्भनाल के 48वें अंक में पृष्ठ 61 पर प्रकाशित हुई थी. जो मित्र वहाँ न पढ़ सके हों उनके लिए आज यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ कृपया बताइये कैसा रहा यह प्रयास। देवी नागरानी जी द्वारा इस कहानी का सिन्धी भाषा में किया गया अनुवाद सिन्ध अकादमी ब्लॉग पर उपलब्ध है। लघुकथा डॉट कॉम ने इस लघुकथा को स्थान दिया है। यह लघुकथा आवाज़ और रेडिओ प्लेबैक इण्डिया पर भी उपलब्ध है। ~ अनुराग शर्मा
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वह छठी कक्षा से मेरे साथ पढ़ता था। हमेशा प्रथम आता था। फिर भी सारा कॉलेज उसे सनकी मानता था। एक प्रोफेसर ने एक बार उसे रजिस्टर्ड पागल भी कहा था। कभी बिना मूँछों की दाढ़ी रख लेता था तो कभी मक्खी छाप मूँछें। तरह-तरह के टोप-टोपी पहनना भी उसके शौक में शुमार था।

बहुत पुराना परिचय होते हुए भी मुझे उससे कोई खास लगाव नहीं था। सच तो यह है कि उसके प्रति अपनी नापसन्दगी मैं कठिनाई से ही छिपा पाता था। पिछले कुछ दिनों से वह किस्म-किस्म की पगड़ियाँ पहने दिख रहा था। लेकिन तब तो हद ही हो गयी जब कक्षा में वह अपना सिर घुटाये हुए दिखा।

एक सहपाठी प्रशांत ने चिढ़कर कहा, “सर तो आदमी तभी घुटाता है जब जूँ पड़ जाएँ या तब जब बाप मर जाये।” वह उठकर कक्षा से बाहर आ गया। जीवन में पहली बार वह मुझे उदास दिखा। प्रशांत की बात मुझे भी बुरी लगी थी सो उसे झिड़ककर मैं भी बाहर आया। उसकी आँखों में आँसू थे। उसकी पीड़ा कम करने के उद्देश्य से मैंने कहा, “कुछ लोगों को बात करने का सलीका ही नहीं होता है। उनकी बात पर ध्यान मत दो।”

उसने आँसू पोंछे तो मैंने मज़ाक करते हुए कहा, “वैसे बुरा मत मानना, बाल बढ़ा लो, सिर घुटाकर पूरे कैंसर के मरीज़ लग रहे हो।”

मेरी बात सुनकर वह मुस्कराया। हम दोनों ठठाकर हँस पड़े।
बरेली कॉलेज (सौजन्य: विकीपीडिया)
आज उसका सैंतालीसवाँ जन्मदिन है। सर घुटाने के बाद भी कुछ महीने तक मुस्कुराकर कैंसर से लड़ा था वह।
[समाप्त]

कहानी का ऑडियो - रेडियो प्लेबैक इण्डिया के सौजन्य से:


Tuesday, November 30, 2010

पर्दे पर भारत

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चैनल फ्लिप करते हुए एक जगह "इंडिया" देखा तो रुक गया। माथे पर लाल टीके लगाये और गले में दोशाला डाले हुए दो पुरुष एक दूसरे से पुर्तगाली भाषा में बात कर रहे थे। जब तक कुछ समझ पाता, ब्रेक हो गया और रिओ की प्रसिद्ध "क्राइस्ट द रिडीमर" मूर्ति की पृष्ठभूमि में बीडी गीत "जिगर मा बडी आग है" बजने लगा। ब्राज़ीली सहकर्मी से पूछने पर पता लगा कि भारतीय मार्ग या भारत का पथ (Caminho das Índias) नामक सीरियल ब्राज़ील का हरदिल अजीज़ टीवी सीरियल है। 19 जनवरी 2009 को पहली बार प्रसारित इस नाटक के अभिनेता ब्राज़ीली ही हैं।

भारत का पथ

अमेरिका में आजकल अंग्रेज़ी भाषा में आने वाला एक और सीरियल "आउटसोर्स्ड" भी प्रसिद्धि पा रहा है। "आउटसोर्स्ड" सीरियल से पहले इसी नाम की एक फ़िल्म भी बन चुकी है जो अधिक पहचान नहीं पा सकी थी। द लीग ऑफ एक्स्ट्राऑर्डिनैरी जैंटलमैन, नेमसेक और स्लमडॉग मिलियनेर आदि फिल्मों ने भारतीय कलाकारों के लिये अमरीकी ड्राइंगरूम का मार्ग सरल कर दिया है। किसी ज़माने में अगर किसी अंग्रेज़ी फ़िल्म में शशि कपूर दिख जाते थे तो कमाल ही लगता था।

वैसे अमेरिकी फ़िल्मों और टीवी रूपकों में यदा कदा भारतीय दिख जाते हैं परंतु आजकल एक सीरियल में अनिल कपूर और दूसरे में इरफ़ान खान नियमित दिख रहे हैं। लेकिन हमारे प्रिय भारतीय चरित्र तो फिनीयस और फर्ब वाले "बलजीत" हैं। काफी समय से आपसे उनकी मुलाकात कराने के बारे में सोच रहा था परंतु किसी न किसी कारण से रह जाता था। अगर फ़िनीयस... भारत में आता है तो सदा अपने अंकों की चिंता करने वाले बालक से शायद आप परिचित ही हों। आइये देखते हैं, उनका एक गीत...

हिमालय पर्वत से...

सन्योग से मैंने आज ही इटली के टीवी सीरिअल "सान्दोकान" में मुख्य भूमिका निभाने वाले भारतीय अभिनेता कबीर बेदी को इटली का सर्वोच्च असैनिक सम्मान "Ordine al Merito della Repubblica Italiana" दिये जाने का समाचार पढा था। बधाई!


उदय जी ने बलजीत के गीत का हिन्दी अनुवाद रखने का अनुरोध किया है. सो पहले तो मूल गीत के बोल:
Baljeet: From the mountains of the Himalayas,
To the valleys of Kashmir!
My forefathers and their four fathers
knew one thing very clear!
That to be a great success in life,
you have to make the grade!
But if I cannot build a prototype,
my dreams will be puréed!

Phineas, Ferb, and Baljeet: Puréed! Puréed!

Phineas: I know what we are going to do today!
Ferb and I are on the case!
We'll help you build your prototype,
You won't be a disgrace!

Baljeet: Good! With your mechanical inclinations,
and my scientific expertise,
we are a team that can not be beaten-

Phineas: Wait, something just occurred to me,
Where's Perry? Where's Perry?

और अब हिन्दी अनुवाद:-

बलजीत: हिमालय की चोटियों से, कश्मीर की घाटी तक
मेरे परदादे और उंसे चार पीढी पहले भी
यह बात जानते थे अच्छी तरह
कि जीवन में अति सफल होने के लिये तुम्हें अच्छे अंक लाने हैं!
किंतु यदि मैं (कक्षा में) मॉडल न बना सका
तो मेरे सपनों की चटनी बन जायेगी!

सभी: कचूमर, कचूमर!

फिनीयस: मुझे पता है क्या करना है, फर्ब और मैं काम पर लगते हैं
हम तुम्हारे लिये मॉडल बनायेंगे और तुम बदनामी से बचोगे!

बलजीत: ठीक! तुम्हारा यांत्रिक रुझान
और मेरा वैज्ञानिक कौशल,
हमारा दल अजेय है

फिनीयस: रुको, मुझे अचानक याद आया,
पैरी कहाँ है? पैरी कहाँ है?

[पैरी फिनीयस और फर्ब का पालतू चींटीखोर है जो कि दरअसल एक जासूस है]

सीक्रेट एजेंट पैरी
अरे, पैरी उन्हें कैसे मिलेगा, वह तो मेरी किताबों के बीच छिपा है।

Saturday, November 27, 2010

आपका आभार! काला जुमा, बेचारी टर्की - [इस्पात नगरी से - 33]

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आप लोग मेरी पोस्ट्स को ध्यान से पढते रहे हैं और अपनी विचारपूर्ण टिप्पणियों से उनका मूल्य बढाते रहे हैं इसका आभार व्यक्त करने के लिये आभार दिवस से बेहतर दिन क्या होगा।

घर के अन्दर तो ठंड का अहसास नहीं है मगर खिड़की के बाहर उड़ते बर्फ के तिनके अहसास दिला रहे हैं कि तापमान हिमांक से नीचे है। परसों आभार दिवस यानि थैंक्सगिविंग था, अमेरिका का एक बड़ा पारिवारिक मिलन का उत्सव। उसके बाद काला जुम्मा यानि ब्लैक फ़्राइडे गुज़र चुका है। बस अड्डे, हवाई अड्डे और रेलवे स्टेशन तो भीड़ से भरे हुए थे ही, अधिकांश राजपथ भी वर्ष का सर्वाधिक यातायात ढो रहे थे।

पहला थैक्सगिविंग सन 1621 में मनाया गया था जिसमें "इंग्लिश सैपरेटिस्ट चर्च" के यूरोपीय मूल के लोगों ने अमेरिकन मूल के 91 लोगों के साथ मिलकर भाग लिया था। थैंक्सगिविंग पर्व में आजकल का मुख्य आहार टर्की नामक विशाल पक्षी होता है परंतु किसी को भी यह निश्चित रूप से पता नहीं है कि 1621 के भोज में टर्की शामिल थी या नहीं। अक्टूबर 1777 में अमेरिका की सभी 13 कॉलोनियों ने मिलकर यह समारोह मनाया। 1789 में ज़ॉर्ज़ वाशिंगटन ने थैंक्सगिविंग को एक राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाने की घोषणा की परंतु तब इस बात का विरोध भी हुआ।

सारा जोसेफा हेल, बॉस्टन महिला पत्रिका और गोडी'ज़ लेडी'ज़ बुक के 40 वर्षीय अभियान के बाद अब्राहम लिंकन ने 1863 में आभार दिवस का आधुनिक रूप तय किया जिसमें नवम्बर के अंतिम गुरुवार को राष्ट्रीय पर्व और अवकाश माना गया। 1941 के बाद से नवम्बर मास का चौथा गुरुवार "आभार दिवस" बन गया।

दंतकथा है कि लिंकन के बेटे टैड के कहने पर टर्की को मारने के बजाय उसे राष्ट्रपति द्वारा क्षमादान देकर व्हाइट हाउस में पालतू रखा गया। ज़ोर्ज़ बुश के समय से राष्ट्रपति द्वारा क्षमादान की परम्परा को पुनरुज्जीवित किया गया और जीवनदान पायी यह टर्कीयाँ वर्जीनिया चिड़ियाघर और डिज़्नेलैंड में लैंड होती रही हैं। यह एक टर्की भाग्यशाली है परंतु इस साल के आभार दिवस के लिये मारी गयी साढे चार करोड टर्कियाँ इतनी भाग्यशाली नहीं थीं।

आभार दिवस के भोज के बाद लोगों को व्यायाम की आवश्यकता होती है और इसका इंतज़ाम देश के बडे चेन स्टोर करते हैं - साल की सबसे आकर्षक सेल के लिये अपने द्वार अलसुबह या अर्धरात्रि में खोलकर। इसे कहते हैं ब्लैक फ्राइडे! इन सेल आयोजनों में कभी कभी भगदड और दुर्घटनायें भी होती हैं। कुछ वर्ष पहले एक वालमार्ट कर्मी की मृत्यु भी हो गयी थी। इंटरनैट खरीदी का चलन आने के बाद से अब अगले सोमवार को साइबर मंडे सेल भी चल पडी हैं।
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इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
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