सेण्टा क्लॉज़, और दन्त परीपिट्सबर्ग पर यह शृंखला मेरे वर्तमान निवास स्थल से आपका परिचय कराने का एक प्रयास है। संवेदनशील लोगों के लिए यहाँ रहने का अनुभव भारत के विभिन्न अंचलों में बिताये हुए क्षणों से एकदम अलग हो सकता है। कोशिश करूंगा कि समानताओं और विभिन्नताओं को उनके सही परिप्रेक्ष्य में ईमानदारी से प्रस्तुत कर सकूँ। आपके प्रश्नों के उत्तर देते रहने का हर-सम्भव प्रयत्न करूंगा, यदि कहीं कुछ छूट जाए तो कृपया बेधड़क याद दिला दें, धन्यवाद!
क्रिस्मस के बड़े दिन की हार्दिक शुभकामनाएँ!
सांता निकोलस क्लाज़ |
अमेरिका के बच्चों को सेंटा क्लाज़ में बहुत विश्वास है. उन्हें दंत परी (टूथ फेरी = Tooth Fairy) में भी उतना ही विश्वास है. सेंटा क्लाज़ तो फ़िर भी साल में एक बार ही दिखता है. दंत परी तो हर दाँत टूटने पर आ जाती है और बच्चों के टूटे हुए दाँत के बदले में चुपचाप कोई छोटा सा उपहार रख जाती है.
जब मेरी बेटी का पहला दूध का दाँत टूटा, तब भी उसे दंत परी के अस्तित्व पर विश्वास नहीं था और आज भी नहीं है. दंत-परी के उपहारों के लिए भी उसने दंत-परी के बजाय सदैव अपने माता-पिता को ही जिम्मेदार माना. मगर इस क्रिसमस पर उसने अपनी माँ से यह ज़रूर पूछा कि क्या वह (बेटी) पहले कभी सेंटा क्लाज़ में विश्वास रखती थी. माँ को याद नहीं था, सो उसने अपने कभी कुछ भी न भूलने वाले पिता से पूछा.
मैंने याद दिलाया कि जब हम उसके प्री-स्कूल के क्रिसमस समारोह में गए थे. सारे बच्चे खुश थे. उन्होंने अपनी अध्यापिकाओं के साथ क्रिसमस-गीत भी गाये. उसके बाद वहाँ सेंटा क्लाज़ भी आ गए. सारे बच्चे उनकी तरफ़ दौड़े. मेरी बेटी शायद उनको देख नहीं सकी है, यह सोचकर उसकी माँ ने बड़े उत्साह के साथ उसे बताया, "देखो बेटा, सेंटा क्लॉज़ आ गए." बेटी ने मुड़कर सेंटा को ध्यान से देखा और मुस्कुराकर कहा, "मुझे पता है, ... वह तो बॉब है." तब हमने ध्यान से देखा और पाया कि संता की वेशभूषा में वे स्कूल के संरक्षक बॉब ही थे.
उस प्री-स्कूल की कक्षाओं की खिड़कियों में एक तरफ़ से देख सकने वाले शीशे लगे थे ताकि माता-पिता बाहर रहकर भी कक्षा के अन्दर के अपने बच्चों को देख सकें जबकि अन्दर से बच्चे बाहर का कुछ न देख पायें. अक्सर होता यह था कि मेरी पत्नी स्कूल की छुट्टी होने से पहले ही स्कूल चली जाती थी. जब भी वे कक्षा की खिड़की के बाहर खड़ी होती थीं और अगर बेटी की नज़र इत्तेफाक से खिड़की पर पड़ जाए तो वह उंगली से हवा में उनके चेहरे का रेखांकन सा करती हुई अपनी शिक्षिका से "माय मॉम!" कहती हुई बाहर आ जाती थी. यदि शिक्षिका उसकी बात पर अविश्वास करते हुए उसको पकड़कर वापस ले जाने की कोशिश करती तो वह रोना शुरू कर देती थी थी और बाहर आकर ही दम लेती थी. शिक्षिका बाहर आकर देखती तो माँ को सचमुच वहाँ उपस्थित देखकर आश्चर्यचकित रह जाती थी.
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