Saturday, October 29, 2022

आधी सदी का क़िस्सा - एक रोचक भविष्य की गाथा

"आधी सदी का क़िस्सा" एक रोचक भविष्य की गाथा है जो तकनीकी विकास द्वारा संसार की वर्तमान समस्याओं के हल के साथ-साथ नयी मानसिक समस्याओं का यथार्थ निरूपण करती है।

एक अलग सा भविष्य पुराण

विज्ञान-कथाएँ नयी बात नहीं हैं। मैं एच जी वेल्स को पढ़कर बड़ा हुआ और आप सबने भी नयी-पुरानी अनेक रचनाएँ पढ़ी होंगी जो पूर्णतः, या अंशतः आगत का सत्याभास कराती हैं। बचपन से अब तक मैंने अनेक वैज्ञानिक कल्पनाओं को सच होते देखा है। मानवता निरंतर विकासरत है लेकिन पिछले 20-30 साल में दुनिया जितनी बदली है, शायद वैसी तीव्र गति से क्रांतिकारी परिवर्तन पहले कभी नहीं हुए। 

महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आने वाले 50 वर्ष हमारी दुनिया को पूरी तरह बदलने वाले हैं। यह उपन्यासिका आगामी अर्धशती की खिड़की खोलने का एक विनम्र साहित्यिक प्रयास है। मुझे आश्चर्य भी है, और इस बात की प्रसन्नता भी कि इस उपन्यास के बिंदु अब तक किसी अन्य लेखक द्वारा प्रकट नहीं किये गये हैं और इसीलिये यह रचना जितनी प्रामाणिक है उतनी ही रोचक भी। इस उपन्यासिका का विषय लम्बे समय से मेरे दिमाग़ में गहरी उथल-पुथल मचा रहा था, सो इसे काग़ज़ पर उतारना मेरे लिये अत्यावश्यक था। आशा है आपको पसंद आयेगा।

ईबुक का किंडल संस्करण एमेज़ॉन पर उपलब्ध है और आप अपने देश के एमेज़ॉन /किंडल लिंक से इसे प्राप्त कर सकते हैं। सदा की तरह इस बार भी, आपकी प्रतिक्रियाओं व सुझावों का स्वागत है।
 
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सन 2068: वैज्ञानिक प्रगति ने संसार को एक वैल-कनेक्टेड विश्व-नगरी में बदल दिया है।

किताबें तो 2043 में छपी अंतिम पुस्तक के साथ डिजिटल युग के चरमोत्कर्ष पर ही समाप्त हो गई थीं। तब तक कुछ किताबें डिजिटल स्वरूप में प्राचीन-तकनीक वाले कम्प्यूटरों में रह गई थीं। लेकिन अब तो कम्प्यूटर होते ही नहीं। एक अति-तीव्र हस्तक में ही सब कुछ होता है। सारी जानकारी तो केंद्रीय बिग-क्लाउड पर रहती है। लेकिन बिग-क्लाउड के अचानक इस बुरी तरह बिगड़ जाने की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। किसी को ठीक से पता नहीं कि बिग-क्लाउड को हुआ क्या था। दुर्भाग्य से उसकी मरम्मत के मैनुअलों की इलेक्ट्रॉनिक प्रतियाँ भी बिग-क्लाउड पर ही रखी होने के कारण अब अप्राप्य हैं। एक ही व्यक्ति से उम्मीद है। वह है जॉनी बुकर।

जॉनी बुकर वर्तमान क्लाउड के मूल निर्माताओं में से एक है। कभी वह बिग-क्लाउड परियोजना का प्रमुख था। बल्कि सच कहें तो वही इस विचार का जनक था कि संसार को केवल एक क्लाउड की ज़रूरत है। उसी के प्रयत्नों के कारण संयुक्त राष्ट्र ने सभी देशों पर दवाब डालकर पूरे विश्व की समस्त जानकारी को एक केंद्रीय क्लाउड में डाला, जिसे बिग-क्लाउड का नाम दिया गया।
𝓐𝓭𝓱𝓲 𝓢𝓪𝓭𝓲 𝓚𝓪 𝓠𝓲𝓼𝓼𝓪 (𝐀𝐧𝐮𝐫𝐚𝐠 𝐒𝐡𝐚𝐫𝐦𝐚) 𝙞𝙨 𝙖 𝙛𝙪𝙩𝙪𝙧𝙞𝙨𝙩𝙞𝙘 𝙩𝙖𝙡𝙚 𝙩𝙝𝙖𝙩 𝙨𝙝𝙤𝙬𝙨 𝙪𝙨 𝙝𝙤𝙬 𝙩𝙚𝙘𝙝𝙤𝙡𝙤𝙜𝙮 𝙬𝙞𝙡𝙡 𝙨𝙤𝙡𝙫𝙚 𝙢𝙤𝙨𝙩 𝙛𝙤 𝙤𝙪𝙧 𝙘𝙪𝙧𝙧𝙚𝙣𝙩 𝙞𝙨𝙨𝙪𝙚𝙨 𝙬𝙝𝙞𝙡𝙚 𝙘𝙧𝙚𝙖𝙩𝙞𝙣𝙜 𝙣𝙚𝙬 𝙘𝙝𝙖𝙡𝙡𝙚𝙣𝙜𝙚𝙨 𝙛𝙤𝙧 𝙩𝙝𝙚 𝙢𝙤𝙨𝙩 𝙞𝙣𝙩𝙚𝙡𝙡𝙞𝙜𝙚𝙣𝙩 𝙮𝙚𝙩 𝙨𝙚𝙣𝙨𝙞𝙩𝙞𝙫𝙚 𝙨𝙥𝙚𝙘𝙞𝙚𝙨

Saturday, July 9, 2022

काव्य: भाव-बेभाव

(अनुराग शर्मा)

प्रेम तुम समझे नहीं, तो हम बताते भी तो क्या
थे रक़ीबों से घिरे तुम, हम बुलाते भी तो क्या 

वस्ल के क़िस्से ही सारे, नींद अपनी ले गये
विरह के सपने तुम्हारे, फिर डराते भी तो क्या

जो कहा, या जैसा समझा, वह कभी तुम थे नहीं
नक़्शा-ए-बुत-ए-काफ़िर, हम बनाते भी तो क्या

भावनाओं के भँवर में, हम फँसे, तुम तीर पर
बिक गये बेभाव जो, क़ीमत चुकाते भी तो क्या

अनुराग है तुमने कहा, पर प्रीत दिल में थी नहीं
हम किसी अहसान की, बोली लगाते भी तो क्या

Monday, July 4, 2022

बिग क्लाउड 2068

Anurag Sharma

सन 2068: वैज्ञानिक प्रगति ने संसार को एक वैल-कनेक्टेड विश्व-नगरी में बदल दिया है।

किताबें तो 2043 में छपी अंतिम पुस्तक के साथ डिजिटल युग के चरमोत्कर्ष पर ही समाप्त हो गई थीं। तब तक कुछ किताबें डिजिटल स्वरूप में प्राचीन-तकनीक वाले कम्प्यूटरों में रह गई थीं। लेकिन अब तो कम्प्यूटर होते ही नहीं। एक अति-तीव्र हस्तक में ही सब कुछ होता है। सारी जानकारी तो केंद्रीय बिग-क्लाउड पर रहती है। लेकिन बिग-क्लाउड के अचानक इस बुरी तरह बिगड़ जाने की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। किसी को ठीक से पता नहीं कि बिग-क्लाउड को हुआ क्या था। दुर्भाग्य से उसकी मरम्मत के मैनुअलों की इलेक्ट्रॉनिक प्रतियाँ भी बिग-क्लाउड पर ही रखी होने के कारण अब अप्राप्य हैं। एक ही व्यक्ति से उम्मीद है। वह है जॉनी बुकर।

जॉनी बुकर वर्तमान क्लाउड के मूल निर्माताओं में से एक है। कभी वह बिग-क्लाउड परियोजना का प्रमुख था। बल्कि सच कहें तो वही इस विचार का जनक था कि संसार को केवल एक क्लाउड की ज़रूरत है। उसी के प्रयत्नों के कारण संयुक्त राष्ट्र ने सभी देशों पर दवाब डालकर पूरे विश्व की समस्त जानकारी को एक केंद्रीय क्लाउड में डाला, जिसे बिग-क्लाउड का नाम दिया गया।

बिग-क्लाउड की विश्व-व्यापी सफलता के बाद बुकर की गिनती संसार के सर्वाधिक धनाढ्यों में होने लगी। लेकिन रिटायरमेंट के बाद वह थोड़ा बहक गया। जीवन-पर्यंत अविवाहित रहे बुकर ने बिग-क्लाउड के खतरों पर बोलना शुरू कर दिया। उसे जिस समारोह में भी बुलाया जाता वह डिजिटल जगत से ‘किताब की ओर वापसी’ की बात करता। फिर उसने कुछ लोगों को इकट्ठा कर ‘किताब-वापसी’ अभियान भी शुरू किया। स्कूल-कॉलेजों में बुलाया जाना बंद हुआ तो स्वयं ही विभिन्न वैज्ञानिक और तकनीकी सम्मेलनों में जा-जाकर किताब-वापसी की ज़रूरत पर भाषण देने लगा। शुरू में तो लोगों ने सुना लेकिन फिर बाद में उस पर सठियाए पुरातनपंथी का ठप्पा लग गया। पुस्तक बचाओ आंदोलन आरम्भ करने के कारण संसार भर में उसकी पहचान एक ऐसे दकियानूसी बूढ़े के रूप में स्थापित हो गई जिसे अपने जैसे दो-चार बूढ़ों के अतिरिक्त किसी का समर्थन न था। उसने बहुत कोशिश की, लेकिन संगठन बढ़ना तो दूर, बूढ़े सदस्यों की मृत्यु के साथ धीरे-धीरे टूटना आरम्भ हो गया। एक दिन ऐसा आया जब बुकर अकेला रह गया। कभी-कभार उसके बयान क्लाउड पर दिखते थे, फिर वह अज्ञातवास में चला गया था। अफ़वाहें थीं कि अपनी अकूत दौलत से उसने डिजिटल रिवॉल्यूशन के बाद भी बच रही सारी किताबें खरीदकर किसी गुप्त जगह में संसार का सबसे बड़ा पुस्तकालय बना डाला था।
***

सभी विशेषज्ञों की राय थी कि बुकर तथा उसकी टीम द्वारा दशकों पहले छापे गये टैक्निकल मैनुअल ही बिग-क्लाउड की समस्या से उबार सकते हैं।

वैसे तो तब तक तकनीक इतनी उन्नत हो चुकी थी कि जंगल में मरी हुई किसी चींटी के भी निर्देशांक सही-सही पता किये जा सकते थे, लेकिन बिग-क्लाउड सम्बंधित समस्याओं के चलते बुकर का पता लगाने में पुलिस को कई दिन लग गये।

जब पुलिस वहाँ पहुँची तो वह संसार की बेरुखी से निराश और हताश होकर अपनी पुस्तकें अपने महल के परिसर में लगी एक विशाल भट्टी में जला रहा था। आखिरी पुस्तक उनकी आँखों के सामने जली, जिस पर लिखा था – बिग-क्लाउड ट्रबलशूटिंग (अंतिम खण्ड)...

Tuesday, June 21, 2022

महाकवियों के बीच हम


हे खुले केश वाली तरुणी क्यूँ दिखती हो यूँ उदास प्रिये
आके छत पे तुम बैठ गयीं 
क्यूँ छोड़ के सारी आस प्रिये

इस छत पर है दीवार नहीं पर निष्ठुर यह संसार नहीं
मुस्कान तुम्हारी 
लाखों की,  हो चिंता से दो-चार नहीं

यदि केश तुम्हारे सूख गये तो चलो कलेवा कर लो तुम
शुभ दिन की शुरुआत करो मत बैठो ऐसे यूँ गुम-सुम
***

एक मित्र ने वाट्सऐप पर निम्न टिप्पणी भेजी तो उपर्युक्त पंक्तियाँ स्वतः फूट पड़ीं

एक नवयुवती जब छज्जे पर बैठी  है। केश खुले हुए हैं और चेहरे को देखकर लगता है कि वह उदास है। उसकी मुख मुद्रा देखकर लग रहा है कि जैसे वह छत से कूदकर आत्महत्या करने वाली है। विभिन्न कवियों से अगर इस पर लिखने को कहा जाता तो वो कैसे लिखते.....

😀😀😀😀😀😀😀😀😀

मैथिली शरण गुप्त

अट्टालिका पर एक रमणी अनमनी सी है अहो 
किस वेदना के भार से संतप्त हो देवी कहो ? 
धीरज धरो संसार में, किसके नहीं है दुर्दिन फिरे
हे राम! रक्षा कीजिए, अबला न भूतल पर गिरे।😀


काका हाथरसी

गोरी बैठी छत पर, कूदन को तैयार 
नीचे पक्का फर्श है, भली करे करतार 
भली करे करतार, न दे दे कोई धक्का 
ऊपर मोटी नार, नीचे पतरे कक्का 
कह काका कविराय, अरी मत आगे बढ़ना 
उधर कूदना मेरे ऊपर मत गिर पड़ना।😊


गुलजार

वो बरसों पुरानी इमारत 
शायद 
आज कुछ गुफ्तगू करना चाहती थी 
कई सदियों से 
उसकी छत से कोई कूदा नहीं था।
और आज 
उस 
तंग हालात 
परेशां
स्याह आँखों वाली 
उस लड़की ने
इमारत के सफ़े 
जैसे खोल ही दिए
आज फिर कुछ बात होगी 
सुना है इमारत खुश बहुत है...😀


हरिवंश राय बच्चन

किस उलझन से क्षुब्ध आज 
निश्चय यह तुमने कर डाला
घर चौखट को छोड़ त्याग
चढ़ बैठी तुम चौथा माला
अभी समय है, जीवन सुरभित
पान करो इस का बाला
ऐसे कूद के मरने पर तो
नहीं मिलेगी मधुशाला 😊


प्रसून जोशी

जिंदगी को तोड़ कर 
मरोड़ कर 
गुल्लकों को फोड़ कर 
क्या हुआ जो जा रही हो 
सोहबतों को छोड़ कर 😄


रहीम

रहिमन कभउँ न फांदिये, छत ऊपर दीवार 
हल छूटे जो जन गिरि, फूटै और कपार 😀


तुलसी

छत चढ़ नारी उदासी कोप व्रत धारी 
कूद ना जा री दुखीयारी
सैन्य समेत अबहिन आवत होइहैं रघुरारी 😟


कबीर

कबीरा देखि दुःख आपने, कूदिंह छत से नार 
तापे संकट ना कटे , खुले नरक का द्वार'' 😃


श्याम नारायण पांडे

ओ घमंड मंडिनी, अखंड खंड मंडिनी 
वीरता विमंडिनी, प्रचंड चंड चंडिनी 
सिंहनी की ठान से, आन बान शान से 
मान से, गुमान से, मत गिरो मकान से 
तुम डगर पे मत गिरो, तुम नगर पे मत गिरो
तुम कहीं अगर गिरो, शत्रु पर मगर गिरो।😃


गोपाल दास नीरज

हो न उदास रूपसी, तू मुस्काती जा
मौत में भी जिन्दगी के कुछ फूल खिलाती जा
जाना तो हर एक को है, एक दिन जहान से
जाते जाते मेरा, एक गीत गुनगुनाती जा 😀


राम कुमार वर्मा

हे सुन्दरी तुम मृत्यु की यूँ बाट मत जोहो।
जानता हूँ इस जगत का
खो चुकि हो चाव अब तुम
और चढ़ के छत पे भरसक
खा चुकि हो ताव अब तुम
उसके उर के भार को समझो।
जीवन के उपहार को तुम ज़ाया ना खोहो,
हे सुन्दरी तुम मृत्यु की यूँ बाँट मत जोहो।😀


हनी सिंह

कूद जा डार्लिंग क्या रखा है 
जिंजर चाय बनाने में 
यो यो की तो सीडी बज री 
डिस्को में हरयाणे में 
रोना धोना बंद कर
कर ले डांस हनी के गाने में 
रॉक एंड रोल करेंगे कुड़िये 
फार्म हाउस के तहखाने में..

😄😄😄😄😄😄😄😄😄

5 मिनट के बाद वह उठी और बोली, "चलो बाल तो सूख गए अब चल के नाश्ता कर लेती हूँ।"

🙏 हिन्दी प्रेमियों के लिए 🙏

🌸ऐसा आनंद किसी दूसरी भाषा में संभव नहीं है🌸

Saturday, July 31, 2021

काव्य: वफ़ा

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)

वफ़ा ज्यूँ हमने निभायी, कोई निभाये क्यूँ
किसी के ताने पे दुनिया को छोड़ जाये क्यूँ॥

कराह आह-ओ-फ़ुग़ाँ न कभी जो सुन पाया
ग़रज़ पे अपनी बार-बार वह बुलाये क्यूँ॥

सही-ग़लत की है हमको तमीज़ जानेमन
न करें क्या, या करें क्या, कोई बताये क्यूँ॥

झुलस रहा है बदन, पर दिमाग़ ठंडा है
जो आग दिल में लगी हमनवा बुझाये क्यूँ॥

थे हमसफ़र तो बात और हुआ करती थी
वो दिल्लगी से हमें अब भला सताये क्यूँ॥

जो बार-बार हमें छोड़ बिछड़ जाता था 
वो बार-बार मेरे दर पे अब भी आये क्यूँ॥
***