ये स्वप्न कहाँ ले जाते हैं
ये स्वप्न कहाँ ले जाते हैं
सच्चे से लगते कभी कभी
ये पुलाव खयाली पकाते है
सपने मनमौजी होते हैं
कोई नियम समझ न पाते हैं
ज्ञानी का ज्ञान धरा रहता
अपने मन की कर जाते हैं
सब कुछ कभी लुटा देते
सर्वस्व कभी दे जाते हैं