Showing posts with label आलस्य. Show all posts
Showing posts with label आलस्य. Show all posts

Thursday, November 6, 2008

आलस्य

छह बोले तो सात है, सात कहें तो आठ
कभी समय पर चले नहीं, ऐसे अपने ठाठ


ऐसे अपने ठाठ, कभी मजबूरी होवे
तो भी राम भरोसे लंबी तान के सोवें


सोते से जो कोई मूरख कभी जगा दे
पछतायेंगे उसके तो दादे परदादे

दादे तो अपने भी समझा समझा हारे
ख़ुद ही हार गए हमसे आख़िर बेचारे

(अनुराग शर्मा)