Sunday, November 16, 2008

सबसे पुरानी जीवित जीप - युद्ध की विरासत

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना ने एक ऐसे विश्वसनीय मोटर वाहन की ज़रूरत महसूस की जो कि उस समय उपलब्ध वाहनों से अधिक शक्तिशाली हो और साथ ही आल-वील ड्राइव भी हो. वाहन का चलता-फिरता प्रारूप प्रस्तुत करने के लिए ४९ दिन का समय बहुत कम था और अधिकाँश बड़ी कंपनियां इतने कम समय में ऐसा क्रांतिकारी डिजाइन सामने लाने लायक नहीं थीं. ऐसे समय पर सन १९४० में पिट्सबर्ग के बाहर बटलर में स्थित एक छोटी सी कंपनी अमेरिकन बैंटम ने एक ऐसा वाहन बनाया जो कि बाद में पौराणिक (legendary के लिए यदि आपके पास कोई बेहतर हिन्दी/उर्दू शब्द है तो कृपया मुझे ज़रूर बताएं) हो गया और आज सारी दुनिया में जीप के नाम से जाना जाता है . चूंकि अमेरिकन बैंटम एक छोटी सी कंपनी थी और सेना को डर था कि वह उनकी मांग को पूरा नहीं कर सकेगी इसलिए उन्होंने क्रम से दो और कम्पनियों को बैंटम वाहन का प्रारूप दिखाया और उन्हें भी वही वाहन समान संख्या में बनाने को कहा. इस तरह दुनिया की पहली जीप को विल्लीज़ और फोर्ड ने भी बनाया.

आज सारी दुनिया में जीप नाम एक तरह से स्पोर्ट्स यूटिलिटी वाहनों (SUVs) का पर्याय सा बन गया है. कई कंपनियों को स्थानांतरित होकर जीप ब्रांड नेम अंततः क्राइसलर की अमानत है. अमेरिकी वाहन उद्योग की पतली हालत के बारे में तो आप सुन ही रहे होंगे. फोर्ड और जनरल मोटर्स के साथ-साथ क्राइसलर पर भी अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है इसलिए यह कहना सम्भव नहीं है कि जीप का ऐतिहासिक नाम और कितने दिन अपने अस्तित्व को बचा सकेगा.

चित्र सौजन्य: अनुराग शर्माचित्र सौजन्य: अनुराग शर्मा

सबसे पहली सत्तर कारों के लॉट में से सिर्फ़ एक जीप जीवित बची है. बैंटम ००७ के नाम से जानी गयी यह जीप विश्व की सबसे पुरानी जीवित जीप है. आज वह जीप पिट्सबर्ग के हाइन्ज़ इतिहास केन्द्र में अपने मूल रूप में रखी हुई है. ऊपर के चित्र उसी जीप के हैं जो मैंने अपने सेलफोन से लिए हैं. प्रकाश कम होने की वजह से चित्र कम प्रकाशित हैं मगर जीप फिर भी भली-भांति दृष्टव्य है.

Thursday, November 13, 2008

चीनी दमन और तिब्बती अहिंसा

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महामहिम दलाई लामा की अगुयाई में अगले हफ्ते से हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला नगर में निर्वासित तिब्बतियों के एक-सप्ताह तक चलने वाले एक सम्मेलन का आयोजन हो रहा है. हमेशा की तरह कम्युनिस्ट चीन ने पहले से ही बयानबाजी करके भारत पर राजनैतिक दवाब डालना शुरू कर दिया है. एक तरफ़ चीन ने भारत को याद दिलाया कि वह इस सम्मेलन को भारत भूमि पर हो रहा एक चीन विरोधी कार्यक्रम मानेगा वहीं दूसरी ओर चीन ने कहा कि भारत की बताई उत्तरी सीमा को उसने कभी नहीं माना है खासकर पूर्वोत्तर में.

दशकों से निर्वासन में जी रहे हमारे उत्तरी पड़ोसी देश के नागरिकों की देश वापस लौटने की आस अभी भी ज्वलंत है. भले ही उनके प्रदर्शन हमारे अपने भारतीयों के प्रदर्शनों की तरह हिंसक न हों मगर उनका जज्बा फ़िर भी प्रशंसनीय है.

मुझे तिब्बतियों से पूर्ण सहानुभूति है और मुझे अहिंसा में उनके दृढ़ विश्वास के प्रति पूर्ण आदर भी है. मगर अहिंसा की उनकी परिभाषा से थोडा सा मतभेद है. मेरा दिल उनके लिए यह सोचकर द्रवित होता है कि तानाशाहों की नज़र में उनकी अहिंसा सिर्फ़ कमजोरी है. मुझे बार-बार यह लगता है कि अहिंसा के इस रूप को अपनाकर वे एक तरह से तिब्बत में पीछे छूटे तिब्बतियों पर चीन के दमन को अनजाने में सहारा ही दे रहे हैं.

अहिंसा के विचार का उदय और विकास शायद भारत में ही सबसे पहले हुआ. गीता जैसे रणांगन के मध्य से कहे गए ग्रन्थ में भी अहिंसा को प्रमुखता दिया जाना यह दर्शाता है कि अहिंसा की धारणा हमारे समाज में कितनी दृढ़ है. परन्तु हमारी संस्कृति में अहिंसा कमजोरी नहीं है बल्कि वीरता है. और गीता में श्री कृष्ण ने अर्जुन की मोह के वश आयी छद्म-अहिंसा की अवधारणा को तोड़ते हुए उसे थोपे गए युद्ध में अपने ही परिजनों और गुरुजनों का मुकाबला करने के लिए कहा था.
दूसरे अध्याय में भगवान् कहते हैं:

सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि ॥२- ३८॥

सुख-दुख, लाभ-हानि, जय और पराजय को समान मानकर युद्ध करते हुए पाप नहीं लगता. आख़िर सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय को समान मानने वाला किसी से युद्ध करेगा ही क्यों? युद्ध के लिए निकलने वाला पक्ष किसी न किसी तरह के त्वरित या दीर्घकालीन सुख या लाभ की इच्छा तो ज़रूर ही रखेगा. और इसके साथ विजयाकान्क्षा होना तो प्रयाण के लिए अवश्यम्भावी है. अन्यथा युद्ध की आवश्यकता ही नहीं रह जाती है. तब गीता में श्री कृष्ण बिना पाप वाले किस युद्ध की बात करते हैं? यह युद्ध है अन्याय का मुकाबला करने वाला, धर्म की रक्षा के लिए आततायियों से लड़ा जाने वाला युद्ध. आज या कल तिब्बतियों को निर्दय चीनी तानाशाहों के ख़िलाफ़ निष्पाप युद्ध लड़ना ही पडेगा जिससे बामियान के बुद्ध के संहारक तालेबान समेत दुनिया भर के तानाशाहों को आज भी हथियार बेचने वाला चीन बहुत समय तक तिब्बत की बौद्ध संस्कृति का दमन न कर सके.

दलाई लामा - चित्र सौजन्य: अनुराग शर्मा
चित्र: अनुराग शर्मा
तिब्बत संबन्धी कुछ लिंक
तिब्बत के मित्र
दलाई लामा



Tuesday, November 11, 2008

जीवन - कविता

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सुरीला तेरे जैसा या
कंटीला मेरे जैसा है
जाने यह जीवन कैसा है?

कभी गऊ सा सीधा सादा
कभी मरखना भैंसा है
जाने यह जीवन कैसा है?

जी पाते न मर पाते
कुछ साँप छछूंदर जैसा है
जाने यह जीवन कैसा है?

मानव का मोल रहा क्या है
अब सबका सब कुछ पैसा है
जाने यह जीवन कैसा है?

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