जब आतंकवादी किसी भीड़ भरी ट्रेन या बस में चुपचाप कोई सूटकेस बम छोड़कर गायब हो जाते थे तब बात और थी। बुर्के में धरना प्रदर्शन कर रही महिलाओं के पीछे बुर्के में ही छिपे हुए जब अचानक वे अपनी ऐ-के-४७ निकालकर निरीह जानें लेने लगते थे तब भी बात और थी। बात तब भी और थी जब देश के दुश्मन कश्मीर के पंडितों को उनके घरों से खींचकर और पंजाब में गैर-सिखों को बसों से खींचकर गोली से उड़ा रहे थे। उत्तर-पूर्व या झारखंड के घने जंगलों में छिपे हुए आतंकवादी जब सेना या अर्ध-सैनिक बालों की किसी गाडी को घेरकर हमला करते थे या चुपचाप बारूदी सुरंग बिछाकर गायब हो जाते थे वह बात भी और थी।
मगर आज जब इन हैवानों की हिम्मत इतनी बढ़ गयी है कि वे मुम्बई जैसे शहर में खुलेआम इतनी जगहों पर न सिर्फ़ एक साथ सुनियोजित हमले कर रहे थे बल्कि आतंक-निरोधी दस्ते के प्रमुख सहित कई पुलिस-कर्मियों का खून कर सके, यह सचमुच बहुत ही दुखद, निराशाजनक और खून खौला देने वाली घटना है।
इन हालिया घटनाओं से यह साफ़ है कि पिछले वर्षों में आतंक का जाल हमारे अनुमानों से कहीं बड़ा, घना, ताक़तवर और जालिम हुआ है। समय-समय पर पुराने तस्करों के साथ-साथ कल के टिकियाचोट्टों को भी पैसे के लालच में इन गतिविधियों में शामिल किया जाता रहा है। कुछ गैर-जिम्मेदार नेताओं की भड़काऊ और घटिया बयानबाजी इन आतंकवादियों को जितना बल मिला है उतना ही अदालत के सामने सबूत रखने के मामले में प्रशासन की लापरवाही बरतने से भी। सताया हुआ होने का ड्रामा करने वाले छिछले धार्मिक नेता और तथाकथित सामाजिक अभिनेता और उनके साथ ही हम में से ही कुछ लोगों द्वारा इस वहशीपन को धर्म की दीवारों में बांटना भी दहशतगर्दों के दुस्साहस को बढावा ही देता है।
पुलिस और प्रशासन को तो अधिक चुस्ती और मुस्तैदी की ज़रूरत है ही, आम जनता को भी आत्म-रक्षा और जन-सहायता के प्रशिक्षण की बड़ी मात्रा में ज़रूरत है। बेहतर हो कि सरकार और समाज सेवी संस्थायें इस तरह का कोई सार्थक कार्यक्रम देश भर के विद्यालयों में शुरू करें और यदि सम्भव हो तो उसे सभी कार्यालयों और घरों तक भी पहुँचाया जाए।
समय आ गया है जब हम सब एकजुट होकर इन पशुओं को और इनके पालने वालों को चुन-चुनकर उनके कर्मों का फल दिलाकर पीडितों के प्रति न्याय करने में सहायक बनें। इसके लिए इनकी पहचान और पकडा जाना तो ज़रूरी है ही, पक्के सबूत भी बहुत ज़रूरी हैं ताकि इस बार ये लोग हमेशा की तरह "अपराध साबित नहीं हुआ" की ढाल लेकर अपनी गतिविधियों को चला न सकें।
प्रभु पीडितों की आत्मा को शान्ति दे!
[चित्र सौजन्य: राइटर्स (Reuters), सीमा गुप्ता एवं ताऊ रामपुरिया]