Sunday, December 14, 2008

काश - कविता

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एकाकीपन के निर्मम मरु में
मैं असहाय खड़ा पछताता
कोई आता

दुःख के सागर में डूबा
मैं ज्यों ही ऊपर उतराता
कोई आता

घोर व्यथा अवसाद में डूबे
पीड़ित हिय को वृथा आस दिखलाता
कोई आता

आँसू की अविरल धारा
बहने से रोक नही पाता*
कोई आता

मेरा जीवन रक्षक बन जाता
कोई आता।

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Saturday, December 13, 2008

बहाना - कविता

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हमसे झगड़ा तो इक बहाना था
आ चुका जितना उसको आना था

वो तो कब से तैयार बैठा था
गोया बेकार सब मनाना था

घर की ईंटें भी ले गया संग में
सिर्फ़ फुटपाथ पर ठिकाना था

जेब सदियों से अपनी खाली थी
मेरा क्या था जो अब गंवाना था

हम थे नाज़ुक मिज़ाज़ पहले से
उसके बस का कहाँ रुलाना था।

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Friday, December 12, 2008

तुम्हारे बगैर - कविता

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ज़िंदा रहे हैं हम
तुम्हारे बगैर भी
गर जिंदगी इक आग के
दरिया का नाम है

ख़्वाबों में मिला करते हैं
तुमसे हमेशा हम
इसके सिवा न हमको तो
कुछ और काम है

तेरी है न मेरी है
दुनिया है यह फानी
हम तो हैं उस जहाँ के
जहाँ तेरा धाम है

पीने की आरजू क्या
हम ख़ाक करेंगे
तेरा जो साथ न हो तो
जीना हराम है।

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