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एकाकीपन के निर्मम मरु में
मैं असहाय खड़ा पछताता
कोई आता
दुःख के सागर में डूबा
मैं ज्यों ही ऊपर उतराता
कोई आता
घोर व्यथा अवसाद में डूबे
पीड़ित हिय को वृथा आस दिखलाता
कोई आता
आँसू की अविरल धारा
बहने से रोक नही पाता*
कोई आता
मेरा जीवन रक्षक बन जाता
कोई आता।
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*आभार: सीमा गुप्ता
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