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अमेरिका के नव-इंग्लैंड क्षेत्र में 200 वर्ष पुराना एक ऐतिहासिक चिकित्सालय है। बॉस्टन के मैसैचुसैट्स जनरल हॉस्पिटल ने इस वर्ष अपनी द्विशताब्दी मनाई। 12 जनवरी 1965 में इस चिकित्सालय के चार्ल्स बुलफ़िंच भवन को अमेरिका की ऐतिहासिक धरोहरों में एक स्थान मिला। इस भवन के ऊपरी तल में सूर्य से प्रकाशित गुम्बद में एक छोटा सा गोल थियेटर जैसा हॉल है जो सन 1821 से 1876 तक इस चिकित्सालय का शल्यक्रिया कक्ष था।
उन दिनों शल्यक्रिया का काम बहुत कठिन होता था, क्योंकि मरीज़ अपने पूरे होशो-हवास में होता था। विभिन्न चिकित्सा संस्थान अनेक रसायनों के साथ ऐसे प्रयोग करते जा रहे थे जिनसे मरीज़ की पीडा कम की जा सके। इसी आशा के साथ 16 अक्टूबर 1846 में इस जगह पर गुम्बद की छत से आते सूर्य के प्रकाश में एक ऐसी शल्यक्रिया हुई जिसने नया इतिहास रचा।
उस दिन ऑपरेशन से पहले एक स्थानीय दंत चिकित्सक विलियम मॉर्टन (William Thomas Green Morton) द्वारा मरीज़ ऐडवर्ड गिल्बर्ट ऐबट को मुख द्वारा ईथर दिया गया। सर्जरी के बाद जब मरीज़ ने बताया कि उसे सर्जरी के दौरान कुछ भी पता नहीं चला, न कोई पीडा हुई तो हारवर्ड मेडिकल स्कूल के मुख्य शल्यकार जॉन कॉलिंस वारैन ने गर्व से घोषणा की, "सज्जनों, यह पाखण्ड नहीं है!" यह बयान अकारण नहीं था। ईथर के इस सफल प्रयोग से पहले अनेक असफल प्रयोग हुए जिन्हें आलोचकों द्वारा पाखण्ड कहा गया था।
ईथर डोम आज भी प्रयोग में लाया जाता है और जब उपलब्ध हो तब जनता द्वारा इसका दर्शन किया जा सकता है। इस कक्ष में एक ममी और अपोलो की भव्य मूर्ति के अतिरिक्त वारैन और लुसिया प्रोस्पैरी नामक कलाकारों द्वारा बनाया गया उस ऐतिहासिक सर्जरी का भव्य चित्र आज भी दीवार पर टंगा है।
[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: Ether Dome pictures by Anurag Sharma]
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* इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
* Ether Dome
अमेरिका के नव-इंग्लैंड क्षेत्र में 200 वर्ष पुराना एक ऐतिहासिक चिकित्सालय है। बॉस्टन के मैसैचुसैट्स जनरल हॉस्पिटल ने इस वर्ष अपनी द्विशताब्दी मनाई। 12 जनवरी 1965 में इस चिकित्सालय के चार्ल्स बुलफ़िंच भवन को अमेरिका की ऐतिहासिक धरोहरों में एक स्थान मिला। इस भवन के ऊपरी तल में सूर्य से प्रकाशित गुम्बद में एक छोटा सा गोल थियेटर जैसा हॉल है जो सन 1821 से 1876 तक इस चिकित्सालय का शल्यक्रिया कक्ष था।
उन दिनों शल्यक्रिया का काम बहुत कठिन होता था, क्योंकि मरीज़ अपने पूरे होशो-हवास में होता था। विभिन्न चिकित्सा संस्थान अनेक रसायनों के साथ ऐसे प्रयोग करते जा रहे थे जिनसे मरीज़ की पीडा कम की जा सके। इसी आशा के साथ 16 अक्टूबर 1846 में इस जगह पर गुम्बद की छत से आते सूर्य के प्रकाश में एक ऐसी शल्यक्रिया हुई जिसने नया इतिहास रचा।
उस दिन ऑपरेशन से पहले एक स्थानीय दंत चिकित्सक विलियम मॉर्टन (William Thomas Green Morton) द्वारा मरीज़ ऐडवर्ड गिल्बर्ट ऐबट को मुख द्वारा ईथर दिया गया। सर्जरी के बाद जब मरीज़ ने बताया कि उसे सर्जरी के दौरान कुछ भी पता नहीं चला, न कोई पीडा हुई तो हारवर्ड मेडिकल स्कूल के मुख्य शल्यकार जॉन कॉलिंस वारैन ने गर्व से घोषणा की, "सज्जनों, यह पाखण्ड नहीं है!" यह बयान अकारण नहीं था। ईथर के इस सफल प्रयोग से पहले अनेक असफल प्रयोग हुए जिन्हें आलोचकों द्वारा पाखण्ड कहा गया था।
ईथर डोम आज भी प्रयोग में लाया जाता है और जब उपलब्ध हो तब जनता द्वारा इसका दर्शन किया जा सकता है। इस कक्ष में एक ममी और अपोलो की भव्य मूर्ति के अतिरिक्त वारैन और लुसिया प्रोस्पैरी नामक कलाकारों द्वारा बनाया गया उस ऐतिहासिक सर्जरी का भव्य चित्र आज भी दीवार पर टंगा है।
[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: Ether Dome pictures by Anurag Sharma]
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सम्बन्धित कड़ियाँ
* इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
* Ether Dome
यह तो कमाल ही है। ईथर देने की प्रक्रिया इतनी व्यापक और उसकी शुरुआत इतने छोटे स्तर पर, इतनी अनायास! बहुत ही रोचक है।
ReplyDeleteरोचक ... एकदम नई जानकारी है मेरे लिए तो ...आभार
ReplyDeleteविष्णु जी,
ReplyDeleteशायद मैं अपनी बात ठीक से कह नहीं सका। यह प्रक्रिया अनायास नहीं थी। तब ऐसे साधन खोजे जा रहे थे जिनसे मरीज़ों की पीडा कम हो सके। ईथर के इस सफल प्रयोग से पहले अनेक असफल प्रयोग हुए जिन्हें आलोचकों द्वारा पाखण्ड कहा गया था। आपके ध्यान दिलाने के बाद अब यह जानकारी पोस्ट में डाल दी है।
नवीन दिलचस्प जानकारी के लिए आभार आपका !
ReplyDeleteबेहतर और दिलचस्प जानकारी .....!
ReplyDeleteरोचक जानकारी।
ReplyDeleteहोश में सर्जरी बाप रे ये करवाने की हिम्मत कितनो में होती थी |
ReplyDeleteबेहतरीन जानकारी...मुझे भी नहीं पता था...जानकर अच्छा लगा...
ReplyDeleteसचित्र जानकारी देने के लिए आभार!
ReplyDeleteरोचक जानकारी !
ReplyDeleteबहुत ही रोचक और उपयोगी जानकारी
ReplyDeleteदिलचस्प जानकारी...
ReplyDeleteऐतिहैसिक एवं रोचक जानकारी
ReplyDeleteबिलकुल नयी जानकारी से परिपूर्ण लेख....शोधपूर्ण
ReplyDeleteज्ञानवर्धक जानकारी के लिए आभार॥
ReplyDeleteयही आगे जाकर एनेस्थीसिया ब्रांच बन गई, और इस फ़ील्ड में इतनी प्रगति हुई कि खतरनाक और जटिल से जटिल आपरेशन आज बिना किसी पीडा के होते हैं, ईथर के उपयोग के प्राथमिक इतिहास की जानकारी देने के लिये आपका बहुत बहुत आभार.
ReplyDeleteरामराम.
Very interesting article.
ReplyDeleteअच्छी जानकारी !!
ReplyDeleteपीड़ारहित शल्यचिकित्सा के उद्भव स्थल का आपने भ्रमण करवा दिया।
ReplyDeleteउस समय यह यकीन करना असम्भव ही होगा कि चीर-फाड़ हो और पीड़ा भी न हो? इसीलिए इस कल्पना को पाखण्ड कहा गया होगा।
बेहोशी के पहले की रोचक शुरुवात ! नयी जानकारी रही !
ReplyDeleteबेहतर और दिलचस्प जानकारी .....!
ReplyDeleteबहुत रोचक ... एकदम नई जानकारी,आभार.
ReplyDeleteगज़ब । हर बेहतर काम पहले पाखंड की संज्ञा पा ही जाता है ।
ReplyDeleteजानकारी का आभार ।