काक
खुदा जब बरक्कत देता है तो आस-औलाद के रूप में देता है। पिछले बरस काकिनी ने 5 अंडे दिये थे। शाम को जब हम भोज-खोज से वापस आये तो अंडे अपने-आप बढकर दस हो गये। कोई बेचारी शायद फ़ॉस्टर-पेरेंट्स की तलाश में थी। हम दोनों ने सभी को अपने बच्चों जैसे पाला। इस बरस दूसरे पाँच तो उड गये, खुदा उन्हें सलामत रखे। हमारे पाँच सहायता के लिये वापस आ गये हैं, हम तो इसी में खुश हैं।
कोकिला
कैसे मूर्ख होते हैं यह कौवे भी। पिछले बरस भी मैं अपने अंडे छोड आयी थी। बेवक़ूफ अपने समझकर पालते रहे। कितना श्रम व्यर्थ किया होगा, नईं? खैर, अपनी-अपनी किस्मत है। अब इस साल फिर से ... अब अण्डे सेना, बच्चे पालना, कोई बुद्धिमानों के काम तो हैं नहीं। कुछ हफ़्तों में जब पले पलाये उड जायेंगे तब मिल आऊंगी। मुझे तो दूसरे कितने बडे-बडे काम करने हैं इस जीवन में। पंछीपुर के मंत्रिमंडल के लायक भी तो बनाना है अपने बच्चों को। चलो, आज के अण्डे रखकर आती हूँ मूर्खों के घर में।
हंस
पंछीपुर तो बस अन्धेरनगरी में ही बदलता जा रहा है अब धीरे-धीरे। गरुडराज को तो अन्धाधुन्ध शिकार के अलावा किसी काम-धाम से कोई मतलब ही नहीं रहा है अब। मंत्रिमंडल में सारे के सारे मौकापरस्त भर गये हैं। आम जनता भी भ्रष्ट होती जा रही है। कोकिला तक केवल ज़ुबान की मीठी रह गयी है। मुझ जैसे ईमानदार तो किसी को फ़ूटी आँख नहीं सुहाते। सच बोलना तो यहाँ पहले भी कठिन था, लेकिन अब तो खतरनाक भी हो गया है। मैं तो कल की फ़्लाइट से ही चला मानसरोवर की ओर ...
गरुड
अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम, दास मलूका कह गये सबके दाता राम। काम करने के लिये तो चील-कौवे हैं ही। राज-काज का भार कोयल और मोर सम्भाल लेते हैं। अपन तो बस शिकार के लिये नज़रें और पंजे तेज़ करते हैं और जम के खाते हैं। और कभी कभी तो शिकार की ज़रूरत भी नहीं पडती। आज ही किस्मत इतनी अच्छी थी कि घोंसला महल में अपने आप ही पाँच अंडे आ गये। पेट तो तीन में ही भर गया, दो तो सांपों के लिये फेंकने पडे। आडे वक्त में काम तो वही आते हैं न!
[समाप्त]
खुदा जब बरक्कत देता है तो आस-औलाद के रूप में देता है। पिछले बरस काकिनी ने 5 अंडे दिये थे। शाम को जब हम भोज-खोज से वापस आये तो अंडे अपने-आप बढकर दस हो गये। कोई बेचारी शायद फ़ॉस्टर-पेरेंट्स की तलाश में थी। हम दोनों ने सभी को अपने बच्चों जैसे पाला। इस बरस दूसरे पाँच तो उड गये, खुदा उन्हें सलामत रखे। हमारे पाँच सहायता के लिये वापस आ गये हैं, हम तो इसी में खुश हैं।
कोकिला
कैसे मूर्ख होते हैं यह कौवे भी। पिछले बरस भी मैं अपने अंडे छोड आयी थी। बेवक़ूफ अपने समझकर पालते रहे। कितना श्रम व्यर्थ किया होगा, नईं? खैर, अपनी-अपनी किस्मत है। अब इस साल फिर से ... अब अण्डे सेना, बच्चे पालना, कोई बुद्धिमानों के काम तो हैं नहीं। कुछ हफ़्तों में जब पले पलाये उड जायेंगे तब मिल आऊंगी। मुझे तो दूसरे कितने बडे-बडे काम करने हैं इस जीवन में। पंछीपुर के मंत्रिमंडल के लायक भी तो बनाना है अपने बच्चों को। चलो, आज के अण्डे रखकर आती हूँ मूर्खों के घर में।
हंस
पंछीपुर तो बस अन्धेरनगरी में ही बदलता जा रहा है अब धीरे-धीरे। गरुडराज को तो अन्धाधुन्ध शिकार के अलावा किसी काम-धाम से कोई मतलब ही नहीं रहा है अब। मंत्रिमंडल में सारे के सारे मौकापरस्त भर गये हैं। आम जनता भी भ्रष्ट होती जा रही है। कोकिला तक केवल ज़ुबान की मीठी रह गयी है। मुझ जैसे ईमानदार तो किसी को फ़ूटी आँख नहीं सुहाते। सच बोलना तो यहाँ पहले भी कठिन था, लेकिन अब तो खतरनाक भी हो गया है। मैं तो कल की फ़्लाइट से ही चला मानसरोवर की ओर ...
गरुड
अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम, दास मलूका कह गये सबके दाता राम। काम करने के लिये तो चील-कौवे हैं ही। राज-काज का भार कोयल और मोर सम्भाल लेते हैं। अपन तो बस शिकार के लिये नज़रें और पंजे तेज़ करते हैं और जम के खाते हैं। और कभी कभी तो शिकार की ज़रूरत भी नहीं पडती। आज ही किस्मत इतनी अच्छी थी कि घोंसला महल में अपने आप ही पाँच अंडे आ गये। पेट तो तीन में ही भर गया, दो तो सांपों के लिये फेंकने पडे। आडे वक्त में काम तो वही आते हैं न!
[समाप्त]
प्रसन्नमना मोर, नववृन्दावन मन्दिर वैस्ट वर्जीनिया में |
शुभकामनायें अपने घर को ...संक्रमण काल है ...अंत में कुछ अच्छा ही होगा !
ReplyDeleteआपको व आपके परिवार को भी शुभकामनाएं..भगवान बचाये रखे सबको...चालों से
ReplyDeleteA good narration of present state of affairs through fable like real animal stories:)
ReplyDeleteIs your new collection is displayed on right side?
sorry transliteration tool is not in order ...
लगता है, आपने दादी-नानी से लोक कथाऍं भरपूर सुनी हैं। असर साफ दिखाई देता है।
ReplyDelete@अरविन्द मिश्र जी,
ReplyDelete"पतझड सावन वसंत बहार" तो अब कई वर्ष पुराना हो चला है।
बिलकुल सटीक चित्रण है.., आज बस ऐसे ही पंछी दिख रहे हैं वातावरण में... एक शीतल बयार बहने लगी है!! देखें क्या होता है..!!
ReplyDeleteअनुराग भाई,
ReplyDeleteगिद्ध को कैसे भूल गए...
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बहुत बधाई...
जय हिंद...
समाज पर चोट करती लघुकथाएं। बहुत श्रेष्ठ।
ReplyDeleteयही हैं दुनिया के रंग,
ReplyDeleteसबके अपने ढंग !
:)sundar kahaani - hamesha kee tarah :)
ReplyDeletejanmaashtami kee badhaiyan (sorry - no transliteration)
पक्षी-स्वभाव से आपने मानव-स्वभाव को व्याख्यायित कर दिया इसे अर्थ की चौथी शक्ति अर्थात 'तात्पर्य शक्ति' से समझा जा सकता है.
ReplyDeleteकोयल और मोर ...... साहित्य में सर्वश्रेष्ठ पक्षी कहे गये हैं....
ReplyDeleteकोयल (नर) गाता बहुत मीठा है .......... लेकिन अपनी कर्कशा मादा के छल में पूरा साथ देता है.
अपने अण्डों को 'वायस' के घोंसले में देकर उन्हें पोषित भी करवाते हैं.
मादा कोयल अपने अंडे को काफी समय तक अपनी इच्छा से भीतर ही रोक सकती है... और मादा कौवे की अनुपस्थिति में २ सैकिंड में ही अंडे देकर उतने ही अंडे नष्ट करके उड़ जाती है.
मादा कोयल कौवे के घोंसले में अंडे छोड़ आने के कई फार्मूले अपनाती है. जैसे
कौवे-घौंसले के ठीक ऊपर वाली डाल पर बैठकर मादा कोयल अंडा देती है जो ठीक वहीँ जाकर गिरता है जहाँ अन्य अंडे रखे होते हैं.
कभी-कभी दो मादा कोयलों की नज़र एक ही चुनाव-क्षेत्र पर होती है ऐसे में वह कौवे के अंडे नष्ट करके अपने अंडे रख आती हैं... राज-परिवारों में अथवा सत्ता-परिवारों में इस रीति का निर्वहन आज़ भी किया जाता है.
कभी-कभी मादा कौवे की उपस्थिति के कारण मादा कोयल को मौक़ा ही नहीं मिलता कि वे अपने अंडे उनके घोंसले में छोड़ आयें... इसलिये वे योजनाबद्ध तरीके से अपने अंडे वहाँ छोडती हैं. ऐसे में पहले मीठा गाने वाला 'नर कोयल' कौव्वे-घौंसले के आगे ... भद्दी-सी आवाज में चिल्लाता है कौवा उसके पीछे पड़ जाता है और जब ढेर सारे कौवों के द्वारा उस नर कोयल का पीछा किया जाता है तब मूर्ख कौवी भी अपने साथियों का साथ देने उड़ चलती है. इसी मौके की तलाश में मादा कोयल अपने अंडे लौंच कर आती है. आज भी इस रीति पर सत्ता-पक्ष चलता है... मूर्ख जनता का ध्यान भटकाने वाले मुद्दों में उसे उलझा दिया जाता है और अपने बड़े हेतु (स्वार्थ) साधे जाते हैं... बहुर सारी अन्य विशेषताएँ भी हैं टिप्पणी काफी लम्बी हो जायेगी.. इसलिये एक दूसरी बात कहकर चुप होता हूँ.
आज जो 'अन्ना के अनशन' में सपरिवार सुविधा से समय दे पा रहे हैं. उसको उदघाटित करता हूँ.
एक परिवार है जिसमें सुबह के झाडू-पौंछे के लिये 'कामवाली' और नाश्ता-खाना बनाने वाली 'मेड' बर्तन धोने वाली लगी हुई है... एक दूसरे परिवार में एक नेपाली छोटा बच्चा दिनभर सेवा में लगा रहता है... तब तो हसबेंड-वाइफ की नौकरियाँ चल पाती हैं.... साथ ही समाजसेवा और राजनीति हो पाती है.... एक घरेलू नौकर को 'अनशन में समय देने का समय नहीं मिलता .. वह चाहकर भी कहीं जा नहीं सकता.... मैं जब कपड़े धोकर सुखाने को डाल रहा होता हूँ तब एक परिवार में वह छोटा नेपाली बच्चा भी साफ़-सफाई और कपड़े फैला रहा होता है.... इसलिये मैं जानता हूँ कि इस क्रान्ति का इस वर्ग पर कभी भी असर पड़ने वाला नहीं.... बंधुआ और बाल मजदूरी के विरोध का गाना गाने वाले कम्युनिस्ट अपने घरों में बाहर की राजनीति तभी कर सकते हैं या अनशन का दिखावा कर सकते हैं जब तक उनके घरों के सभी काम 'कामवाली' 'आया' 'नेपाली बच्चे मतलब घरेलू नौकर' करते रहेंगे... कोयल (नेता) और मोर (अभिनेता) बहुत प्रभावी होते हैं... अपनी मोहक वाणी से अपने मोहक नृत्य से ... अपने पक्ष में समर्थन तो जुटा लेते हैं... लेकिन व्यक्तिगत तौर पर उस पीड़ा को भोग नहीं पाते जो 'पालक दम्पति कौवे' की श्रमसाध्य साधना से मिलती है... वे तो जनता को मूर्ख बनाते आये हैं और पक्षिराज और स्वर-साम्राज्ञी से भूषित होते आये हैं.
बहुत सुन्दर पोस्ट
ReplyDeleteइसी जरिये पंछी निहारन भी हो गया,आभार.
ReplyDeleteआपको कृष्ण जन्माष्टमी पर्व की शुभकामनायें और बधाइयाँ.
सभी पात्र आज के भारतीय समाज में मिल जायेंगे ... और गरुड़, कोकिला कुछ ज्यादा मात्र में ...
ReplyDeleteसटीक कथा है ..
कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं ...
फ़िर भी, काको काक: पिको पिक:।
ReplyDeleteगांधी-जयंती दूर है लेकिन "सबको सम्मति दे भगवान"
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें
ReplyDeleteजन्माष्टमी की शुभकामनाएं॥
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteश्री कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
:)
ReplyDeleteबहुत अच्छी कथा...
ReplyDeleteश्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें
आज के दौर के तो यही रंग हैं......बहुत सुंदर लगा मोर का चित्र ....जन्माष्टमी की शुभकामनायें
ReplyDeleteaapki laghukatha bahut sari meva padi kheer ke se swad se khai. janmaashtami ka yah uphaar der tak yaad rahne wala hai, badhai aur dhanywad bhi.
ReplyDeleteaapki laghukatha bahut sari meva padi kheer ke se swad se khai. janmaashtami ka yah uphaar der tak yaad rahne wala hai, badhai aur dhanywad bhi.
ReplyDeleteराजनैतिक हालातों को कहानी में खूब पिरोया ...
ReplyDeleteकलयुगी पंचतंत्र !
सार्थक!! अनुत्तर दृष्टांत!! बेजोड़!!
ReplyDeleteA very unique post. Great satire !
ReplyDeleteसमसामयिक घटनाओं पर आक्रमण करती बेजोड़ लघु कथा ! बधाई !
ReplyDeleteaapki saf aur aur saral bhasha ka prayog sab kuchh kah pane me samarth hai
ReplyDeletekavyachitra.blogspot.com
madhu
वाह...एकदम ताज़ा कर गयी ये लधुकथा!!
ReplyDeleteअभी तो सब अंडे साथ हैं, समय उनका अन्तर बतायेगा।
ReplyDelete