छोड़ फूलों को परे कांटे जो उठाते हैं ज़ख्म और दर्द ही हिस्से में उनके आते हैं |
बेदर्दी है हाकिम निठुर बँटवारा
ज़मीं हो हमारी गगन है तुम्हारा
जहाँ का हरेक ज़ुल्म हँस के सहा
प्यार में बुज़दिली कैसे होती गवारा
सभी कुछ मिटाकर चला वो जहाँ से
उसका रहा तन पर दिल था हमारा
तेरे नाम पर थी टिकी ज़िन्दगानी
नहीं तेरे बिन होगा अपना गुज़ारा
वो दामे-मुहब्बत नहीं जान पाया
बिका कौड़ियों में दीवाना बेचारा