छोड़ फूलों को परे कांटे जो उठाते हैं ज़ख्म और दर्द ही हिस्से में उनके आते हैं |
बेदर्दी है हाकिम निठुर बँटवारा
ज़मीं हो हमारी गगन है तुम्हारा
जहाँ का हरेक ज़ुल्म हँस के सहा
प्यार में बुज़दिली कैसे होती गवारा
सभी कुछ मिटाकर चला वो जहाँ से
उसका रहा तन पर दिल था हमारा
तेरे नाम पर थी टिकी ज़िन्दगानी
नहीं तेरे बिन होगा अपना गुज़ारा
वो दामे-मुहब्बत नहीं जान पाया
बिका कौड़ियों में दीवाना बेचारा
दर्द के प्रबल भाव ...
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ...!!
आम बात आपकी इस ग़ज़ल में ख़ास हो गई है। यह इसके शिल्प का कमाल है।
ReplyDeleteवो दामे-मुहब्बत नहीं जान पाया
ReplyDeleteबिका कौड़ियों में दीवाना बेचारा...
कीमत ही नहीं जानी तो क्या कौड़ी क्या हीरा , सब एक ही तो !
सभी कुछ मिटाकर चले वे जहाँ से
ReplyDeleteउनका रहा तन पर दिल था हमारा
gahan marmasparshi
Vaah
ReplyDeleteवाह..........
ReplyDeleteसभी कुछ मिटाकर चला वो जहाँ से
उसका रहा तन पर दिल था हमारा
बहुत सुन्दर...
अनु
नई तरह का आभास देती गज़ल....
ReplyDeleteपहली लाइन में यदि बेदर्द होता बेदर्दी की जगह पर तो क्या ज़्यादा ठीक नहीं होता ...?
क्या बात कही है !
ReplyDeleteछोड़ फूलों को परे कांटे जो उठाते हैं
ReplyDeleteज़ख्म और दर्द ही हिस्से में उनके आते हैं
बेहतरीन !
सभी कुछ मिटाकर चला वो जहाँ से
ReplyDeleteउसका रहा तन पर दिल था हमारा
किसी एक लाइन या किसी एक शब्द पर या कहू किसी एक वर्ण पर कुछ कह पाना दिल को दुखाने जैसा लगता है ,ये तो मेरा अपना फ़साने जैसा लगता है
वो दामे-मुहब्बत नहीं जान पाया
ReplyDeleteबिका कौड़ियों में दीवाना बेचारा
दीवानों के भाव भला कौन जानते हैं !
सुन्दर ग़ज़ल .
तेरे नाम पर थी टिकी ज़िन्दगानी
ReplyDeleteनहीं तेरे बिन होगा अपना गुज़ारा
वो दामे-मुहब्बत नहीं जान पाया
बिका कौड़ियों में दीवाना बेचारा
बहुत सुन्दर !
हर पंक्ति, एक से बढ़कर एक, दमदार..
ReplyDeleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteरचना और कैक्टस दोनों ही अच्छे लगे
ReplyDeleteबेदर्दी और हाकिम के नाम पर अभी तक हमें तो वो शेर याद आ जाता था जो नुमाईश में खजले की दूकान पर एक बैनर पर लिखा हुआ था,
ReplyDelete'लिखा परदेस किस्मत में, वतन को याद क्या करना
जहां बेदर्द हाकिम हो, वहाँ फ़रियाद क्या करना'
ये वाली गज़ल इक्कीस, इकतीस इक्यावन है|
दीवाने अशर्फियाँ लुटाते हैं और खुद कौडियों के दाम बिक जाते है, बहुत खूब है जी|
सच में, क्या खूब!
Deleteतभी तो वे दीवाने कहलाते हैं ..
Deleteबहुत ही शानदार...
ReplyDeleteवो दामे-मुहब्बत नहीं जान पाया
ReplyDeleteबिका कौड़ियों में दीवाना बेचारा
har pankti sundar khaskar yah .....
ज़मीं हो हमारी गगन है तुम्हारा...........
ReplyDelete_______________
पी.एस. भाकुनी
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सशक्त भाव ....सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteबहत खूब ....सुन्दर अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteधन्यवाद!
ReplyDeleteतेरे नाम पर थी टिकी ज़िन्दगानी
ReplyDeleteनहीं तेरे बिन होगा अपना गुज़ारा ...
ये सच है ... उनके बिना जीना आसान नहीं होगा ... नाम का ही इतना असर है ... सुन्दर गज़ल ...
वो दामे-मुहब्बत नहीं जान पाया
ReplyDeleteबिका कौड़ियों में दीवाना बेचारा
वाह....क्या बात है! बहुत खूब।
आपको शुभकामनाएं।
मैं तो शीर्षक देख ही खुश हुआ जा रहा हूँ, कितना सटीक!
ReplyDeleteवाह!
अहा! शानदार!! :) :)
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!शुभकामनाएं।
ReplyDeleteवो दाम-ए-मोहब्बत नहीं जान पाया। सच मोहब्बत सबसे कीमती चीज है। बिल्कुल नये बिंब। शुभकामनाएँ
ReplyDelete... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
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