Tuesday, March 3, 2009

वक़्त - एक कविता

यह वक़्त है
बदलते रहना इसकी फितरत है
कहीं दिल मिलते हैं
कहीं सपने टूटते हैं
मनचाहा होता भी है
और नहीं भी होता है
मनचाहा हो भी जाए
तो भी
बहुत सा मनचाहा
नहीं होता है
क्योंकि
यह वक़्त है
बदलते रहना इसकी फितरत है।
(अनुराग शर्मा)

25 comments:

  1. वक्त की सुंदरतम परिभाषा. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  2. क्योंकि
    यह वक़्त है
    बदलते रहना इसकी फितरत है।
    " जो न बदले वो वक़्त नहीं होता.....
    जो अपना है उसे मनुष्य
    कभी नहीं खोता....."

    सुंदर

    Regards

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  3. यही तो वक्त की खासियत भी है. सुन्दर. आभार.

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  4. वक़्त यूँ ही अपनी बात करता है ..बहुत सुन्दर लगी आपकी यह कविता

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  5. वस्‍तुत:, परिवर्तन ही समय है। समय का तो प्रत्‍येक पल नयापन लेकर आता है। वक्‍त ही गतिवान और गतिशील है। वक्‍त की हर शै गुलाम, वक्‍त का हर शै पर राज।
    बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति है आपकी अनुरागजी।

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  6. बहुत गहरी और भाव पूर्ण कविता...
    नीरज

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  7. वक्त पर एक रचना पढकर अच्छा लगा।

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  8. बहुत सा मनचाहा
    नहीं होता है
    क्योंकि
    यह वक़्त है
    बदलते रहना इसकी फितरत है।

    सही बात को इतने आसान रूप में कविता में कह देना बडी बात है।

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  9. बहुत सुंदर अनुराग जी....बहुत सुंदर
    मनचाहा हो भी जाए
    तो भी
    बहुत सा मनचाहा
    नहीं होता है
    बढ़िया

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  10. वाह्! अति उत्तम.....सचमुच सब वक्त की ही माया है.

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  11. अच्छी कविता अनुराग जी !

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  12. सुन्दर। कहते हैं जो जितना बदलता है वह उतना ही वही रहता है!

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  13. सीधी-सच्ची बात यही है,
    समय बदलता रहता है।
    जल जम जाता कभी,
    कभी फिर वर्फ पिघलता रहता है।।

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  14. अनुराग जी बहुत ही सुंदर ओर सच्ची बात कह दी आप ने अपनी इस कविता मे, वक्त बस चलता रहता है.
    धन्यवाद

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  15. वक़्त हर ज़ख्म भर देता है
    दर्द देता है और दर्द की दवा भी देता है

    आपने वक़्त की बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति दी है अनुराग जी. आप हर रोज़ चाहे एक ही पंक्ति लिखें पर लिखें ज़रूर .

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  16. अच्‍छी लगी आपकी रचना।

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  17. समय बदले इन्सान का मन ना बदले तब क्या होता है ?
    -लावण्या

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  18. और जिसने वक्‍त की नब्‍ज को पहचान लिया, वह अपने वक्‍त का शहंशाह बन जाता है।

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  19. वक्त के लिये छोटी सी कविता में बहुत बडी बात कह गये आप.

    लिखते रहें.

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  20. बदलते रहना संसार की नियति है। इस बदलाहट में भी कुछ है जो नहीं बदलता!

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  21. अनुराग जी,

    वक्त की नब्ज पर बहुत सधा सा हाथ रखा है.

    होली के अवसर पर बहुत सी रंगभरी शुभकामायें.

    आदर सहित,

    मुकेश कुमार तिवारी

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  22. बहुत खूब अनुराग भाई...वक़्त की सच्ची तस्वीर !!!!!!!!!!!!

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  23. वाह! अनुरागजी.
    खुशदीप भाई के ब्लॉग से इस पोस्ट का लिंक मिला.
    बदलते वक़्त और मन की चाहत को आपने सुन्दर ढंग से उकेरा है.जरूरी नहीं हर चाहत की पूर्ति से
    आनंद भी मिल जाये.लेकिन ऐसा वक़्त भी आ सकता है जब हमे ऐसी चाहत के भी दर्शन हो जाये जिससे स्थाई आनंद (परमात्मा) की प्राप्ति भी हो सके.आईये ऐसी चाहत की ही खोज की जावे.

    मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है.जो चाहत के विषय पर ही है.

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