- अनुराग शर्मा
अपने नसीब में नहीं क्यों दोस्ती का नूर।
मिलते नहीं क्यों रहते हो इतने दूर-दूर॥
समझा था मुझे कोई न पहचान सकेगा।
यह होता कैसे दोस्त मेरे हैं बड़े मशहूर
मसरूफ़ रहे वर्ना मिलने आते वे ज़रूर॥
हम चाहते थे चार पल दोस्तों के साथ।
वह भी न हुआ दोस्त मेरे हो गये मगरूर॥
सोचा था बचपने के फिर साथी मिलेंगे।
ये हो न सका दोस्त मेरे हैं खट्टे अंगूर॥
दो पल न बिताये न जिलायी पुरानी याद।
तिनका था मैं, दोस्त मेरे थे सभी खजूर॥
वाह क्या बात है।
ReplyDeleteदोस्त भी कहते हैं और इतनी शिकायते भी करते हैं...
ReplyDeleteउन्होंने दोस्ती ही तो की थी
और भला क्या था उनका कसूर !
सुंदर प्रस्तुति !
ब्लॉगिंग से मिले नए दोस्त, हैं बड़े मशहूर.
ReplyDeleteअनुराग शर्मा नाम है, कभी मिलेंगे ज़रूर.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (13-01-2019) को "उत्तरायणी-लोहड़ी" (चर्चा अंक-3215) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
उत्तरायणी-लोहड़ी की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteदोस्ती के अलग अलग रूप ... बहुत मस्त काफिये जोड़े हैं ...
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