Friday, September 12, 2025

प्रहरी की यात्रा - 2

ज़मीन पर नहीं खड़े, जो नभ में उड़े हैं,
साथियों, जीवनसाथियों से भी छले गये हैं,
द्वेष, उपेक्षा और तिरस्कार के तेल में,
जिनके निर्मल हृदय, सतत तले गये हैं।

अनुरोध, सुझाव, सलाह सब धूल हुए,
चिंतन और विश्वास से बनाई योजनाएँ
क्रूरता से तोड़ी, निर्ममता से बिखेरी गईं,
अविश्वास से हारीं, प्रेम की सब कामनाएँ।

कानाफूसी, अफ़वाहें, फिर उपहास हुआ,
कड़वी बातें, घातें, काँटे, भाले खूब चुभे,
स्वजन दूर, घर सूने और द्वार खामोश हुए,
सूनेपन से सूने मन की आशा को तुषार मिला।

संघर्ष और विजय नज़रअंदाज़ होते रहे,
अपवाद बस वही एक शिरोमणि कवच था,
महानायक के उस अंतिम सम्मान में भी,
आदर नहीं, बीमे की रकम का लालच था।

इस कठिन राह पर चलने वाला हर कोई,
जिसने कृतघ्नता का फल जान देकर चुकाया,
उनका मूल्य अवर्णनीय है, चुका नहीं सकते,
माणिक, रत्न, अशर्फ़ी देकर भी रहे बकाया।

No comments:

Post a Comment

मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।