Saturday, July 4, 2009

बार-बार दिन यह आए

छः जुलाई १९३५ को जब तिब्बत के एक छोटे से गाँव में ल्हामो धोण्डुप का जन्म हुआ था तब किसे पता था कि यह बालक बड़ा होकर महामहिम दलाई लामा (तेनजिन ग्यात्सो) बनकर संसार भर के करोड़ों लोगों को प्रेम और करुणा के साथ सत्य और अहिंसा की प्रेरणा ही नहीं बनेगा वरन अनेकों लोगों के लिए साक्षात अवतार जैसा मान्य होगा।

यह दलाई लामा का सरल व्यक्तित्व ही है कि वह अपने को तिब्बत, गेलुग परिवार या बौद्ध धर्म तक सीमित न रखकर संपूर्ण विश्व के नागरिक बन सके। १९४९ में चीन द्वारा तिब्बत पर हुए हमले के बाद १९५९ में नेहरू जी की सहायता से दलाई लामा और लाखों शरणार्थियों ने भारत आकर तिब्बत की निर्वासित सरकार का गठन किया। तब से यह सरकार धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) में ही स्थापित है। सब जानते हैं कि चीन ने तिब्बत के अलावा सिक्किम, भूटान, लद्दाख और अरुणाचल के क्षेत्रों पर भी अपना दावा किया और इस सम्पूर्ण हिमालय क्षेत्र को हथियाने के प्रयास किए। अंततः सिक्किम और भूटान पर कब्ज़ा न कर पाने की स्थिति में भारत पर हमला भी किया और अंतर्राष्ट्रीय दवाब बनने पर सेना की वापसी भी कर ली परन्तु बलपूर्वक कब्जाए हुए लद्दाखी क्षेत्र अक्साई चिन को नहीं छोड़ा।

मंगोल भाषा में दलाई लामा का अर्थ है ज्ञान का महासागर। यह दलाई लामा का नेतृत्व ही है जिसने तिब्बत में चीनी दमन के ख़िलाफ़ चल रहे आन्दोलन को हिंसक नहीं होने दिया है। चीनी कब्जे में तिब्बत में जनता की खराब स्थिति का शांतिपूर्ण हल ढूँढने के लिए दलाई लामा ने अस्सी के दशक में एक शांति योजना भी प्रस्तुत की। १९८९ में दलाई लामा को शान्ति का नोबेल पुरस्कार मिला और चीन की धमकियों की परवाह किए बिना अनेकों राष्ट्रों ने उन्हें अपने देश के विशिष्ट नागरिक का दर्जा दिया है। उनको अनेकों सम्मान एवं बीसिओं डॉक्टरेट उपाधियां भी मिल चुकी हैं । भारत व अमेरिका के अलावा भी अनेकों विश्व विद्यालय उन्हें प्रवचन के लिए बुलाते रहते हैं। अपनी शांत मुस्कान के लिए प्रसिद्व दलाई लामा पचास से अधिक पुस्तकों के लेखक भी हैं।

यदि उनके जीवन संदेश को गिने-चुने शब्दों में कहना हो तो मैं चुनूंगा - अहिंसा, क्षमा, विश्व-बंधुत्व और नम्रता। दलाई लामा को जन्म दिन मुबारक!

दलाई लामा - चित्र सौजन्य: अनुराग शर्मातिब्बत संबन्धी कुछ लिंक
तिब्बत के मित्र
चीनी दमन और तिब्बती अहिंसा
भारत तिब्बत समन्वय केंद्र



Thursday, July 2, 2009

शैशव - एक कविता

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शैशव में सुख सारे थे।
सारे जग के प्यारे थे ।।

राज सभी पर अपना था।
चलते हुक्म हमारे थे।।

गुड्डे-गुडियाँ, गेंदें-गोली।
ईद, बिहू और पोंगल, होली।।

सब त्यौहार मनाते थे।
हम कितना इतराते थे।।

जीवन सुख से चलता था।
बिन मांगे सब मिलता था।।

दिन वैभव से कटते थे।
ऐसे ठाठ हमारे थे।।

शैशव में सुख सारे थे।
सारे जग के प्यारे थे ।।

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Wednesday, June 24, 2009

प्रभु की कृपा, भयऊ सब काजू...

लगभग एक वर्ष पहले जब हमारे मित्र श्री भीष्म देसाई ने विनोबा भावे द्वारा १९३२ में धुले जेल में दिए गए गीता प्रवचन के वाचन के बारे में बात की तब हम दोनों ने ही यह नहीं सोचा था कि प्रभु-कृपा से यह काम शीघ्र ही संपन्न हो जाएगा। देसाई जी ने पिट्सबर्ग में रहते हुए अपने व्यस्त कार्यक्रम में से समय निकालकर भारत से इस पुस्तक की चार भाषाओं में अनेकों प्रतियाँ मंगवाईं और सभी संभावित वाचकों में बाँटीं। आर्श्चय की कोई बात नहीं है, देसाई दंपत्ति हैं ही ऐसे। इससे पहले, अपनी बेटी की शादी में उन्होंने चिन्मय मिशन द्वारा प्रकाशित गीता का सम्पूर्ण अनुवाद एवं व्याख्या का एक-एक सेट प्रत्येक अतिथि को दिया था। मैं शादी में भारत नहीं जा सका था सो मेरे लिए वे उसे वापस आने पर घर आकर दे गए।

मैंने गीता की विभिन्न व्याख्याएं पढीं हैं। कुछ विद्वानों की लिखी हुई और कुछ भक्तों (गुरुओं) की लिखी हुई। (क्या कहा, मार्कस बाबा की व्याख्या - जी नहीं, वे इतने भाग्यशाली नहीं थे कि हम तक पहुँच पाते।) दोनों ही प्रकारों की अपनी-अपनी सीमायें हैं। मगर विनोबा की व्याख्या में वे सभी बातें स्पष्ट समझ में आती हैं जिनकी अपेक्षा उन जैसे भक्त, विद्वान् और क्रांतिकारी से की जा सकती है । मैं तो यहाँ तक कहूंगा कि जीवन में सफलता की आकांक्षा रखने वाले हर व्यक्ति को विनोबा जी का यह भाषण सुनना चाहिए।

हिन्दी में सम्पूर्ण पाठ अनुराग शर्मा के स्वर में निम्न पोस्ट पर उपलब्ध है: पिट-ऑडियो पर सुनें