Tuesday, November 22, 2011

आधुनिक बोधकथा – न ज़ेन न पंचतंत्र

आभार
यह लघुकथा गर्भनाल के नवम्बर अंक में प्रकाशित हुई थी। जो मित्र वहां न पढ़ सके हों उनके लिए आज यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। कृपया बताइये कैसा रहा यह प्रयास।
... और अब कहानी

आधुनिक बोधकथा – न ज़ेन न पंचतंत्र
जब लोमडी को आदमी के बच्चों के मांस का चस्का लगा तो उसने बाकी कठिन शिकार छोड़कर भोले और कमज़ोर मनु-पुत्रों को निशाना बनाना शुरू किया। गाँव के बुज़ुर्गों को चिंता हुई तो उन्होंने बच्चों को गुलेल चलाना सिखा दिया। अभ्यास के लिये बच्चों ने जब गुलेल को ऊपर चलाया तो आम, जामुन और न जाने क्या-क्या अमृत वर्षा हुई। अभ्यास के लिये नीचे नहीं भी चलाया बस खुद चले तो भी कीचड़ और अन्य प्रकार की अशुद्धियाँ और मल आदि में सने। बच्चों ने सबक यह सीखा कि सज्जनों से पंगा भी हो जाय तो उसमें भी सब का भला होता है और दुर्जनों से कितनी भी दूरी रखो, बचा नहीं जा सकता।

उधर बच्चों के सशस्त्र होते ही लोमड़ी बेचैन सी इधर-उधर घूमने लगी। जब भी बच्चों की ओर मुँह मारती, पत्थर मुँह पर पड़ते। थक हारकर बिना कुछ सोचे-समझे एक गुफ़ा के सामने खेलते नन्हें शावकों पर झपट पड़ी और शावकों के पिता सिंह जी वनराज का भोजन बनी। शावकों ने सबक यह सीखा कि भूखी और बेचैन होने पर लोमड़ियों को अपनी खाल के अन्दर सुरक्षित रह पाने लायक बुद्धि नहीं बचती।

[समाप्त]

34 comments:

  1. सार्थक सटीक सन्देश!

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  2. काश हर लोमड़ी /भेड़िये को ऐसा सबक मिलता रहे!

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  3. शिक्षा प्रद कथा ......

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  4. अब यह जेन कथा से किस भान्ति अलग है यह जिज्ञासा कथा निष्णात निशांत दूर करेगें या आप ही मुखरित होंगे :)

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  5. बुराई को सभी मिलकर (छोटे-छोट कंकड़ से ही सही) प्रहार करते रहें तो वह एक दिन हैरान परेशान होकर समाप्त हो जाता है।

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  6. मिश्र ही,
    निशांत जी ही इस पर प्रकाश डालें तो बेहतर है। मैं तो इसे इसलिये ज़ेन कथा नहीं कह सकता क्योंकि इसके लेखक को अपने ज़ेनत्व का बोध अभी तक तो हुआ नहीं है।

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  7. सच। कम शब्दों में अधिक और महत्वपूर्ण बात!!

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  8. इस जेन कथा पर पंचतंत्र के पात्र की तरह दम दबाये हम भी हाज़िर हैं.. सीख मिली, जो हम बरसों से लिए बैठे हैं.. ज्ञान प्राप्त हुआ जो हमें बरसों पहले नोएडा के जामुन तले प्राप्त हो चुका था... निशांत जी को कष्ट देने की आवश्यकता नहीं.. इस कथा की व्याख्या अन्यत्र भी संभव है!!और इसका उद्गम जानने वाले स्वर्ग सिधार गए (ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे!)

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  9. सन्देश साफ़ है और बहुत अच्छा लगा !
    काश लोमड़ियों / भेडियों को समझ आये .....
    आभार !

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  10. मुझे तो यह कथा ब्लॉग-जगत की ही लगती है.ज़ेन कथाएं कभी-कभार पढ़ लेता हूँ,पंचतंत्र की कथाएं हमेशा प्रभावित करती हैं,उन्हीं के नजदीक यह कथा भी.

    मगर लोमड़ी मर गई क्या ?

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  11. अर्थात विरोध करते रहना चाहिये।

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  12. @संतोष त्रिवेदी ,
    लगता है आपने जेन कथाओं में लोमड़ी के व्यवहार को अच्छी तरह नहीं पढ़ा है -मैंने जेन कथायें विधिवत पढी है -लोमड़ी जल्दी नहीं मरती बस अपना पूछ छोड़ दती है ..भ्रमित करती है और आपात काल में मरने का नाटक करती है ..इधर उधर दुबक जाती है मगर खतरा टालते ही फिर लोमड कृत्य आरंभ कर देती है .....मगर एक न एक दिन तो फंसेगी ही लोमड़ी !

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  13. जो मैं पत्रिकाओं में पढ़ रहा था वह अब साक्षात् समझ में आ गया !!

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  14. वाह! मनन करने वाली सुन्दर कथा.

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  15. अच्छी प्रस्तुति ।
    बहुत अच्छे मानसिक भाव को संप्रेषित करते हुए ।

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  16. ग़ज़ब !
    समझ भी आ रहा है !
    कहीं पे निगाहें , कहीं पे निशाना !:)

    लेकिन सन्देश सही ,सार्थक और पालन करने लायक हैं .

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  17. शिक्षा प्रद

    jai baba banaras....

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  18. लोभ पाप का मूल है। और लालच बुरी बला!!

    साथ ही चालाकी का भी अंत निश्चित है।

    सटीक व सार्थक सन्देश!!

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  19. थोड़े से शब्दों में इत्ते सारे सबक!!
    गज़ब ही गज़ब।

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  20. सन्देश अच्छा है.

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  21. @ अरविन्द जी आपकी आशंका-अनुसार लोमड़ी मरने का यदि नाटक करती है तो फिर शर्माजी को फिर से 'चेक' कर लेना चाहिए कि वह मरी है या नौटंकी कर रही है !
    वैसे गीता का एक श्लोक याद आ रहा है,"अकीर्तिम चाsपि भूतानि,मरणादतिरिच्यते" ! इस नाते तो वह कब की मर चुकी !

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  22. कमाल है ! लोमड़ी की तरफ कोई नहीं ? यह कैसा लोक तंत्र ? कोई तो होना चाहिए न ! भाई हम तो लोमड़ी की तरफ हैं .......अन्धेरा कायम रहे हमेशा .....

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  23. kam shabdo me sateek baat kehti saargarbhit kahani ...

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  24. बिलकुल सही सबक है....... शिक्षाप्रद बोधकथा

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  25. ( कल से सोच रहा था कि टिप्पणी करूँगा पर समय छल करता रहा )

    गहन निहितार्थ लिए इस कथा में परिपक्वता (बुज़ुर्ग) और प्रतीकात्मक गुलेल, आत्मरक्षण के साथ उचित अनुचित में भेद कर पाने की सीख देती है/बोध कराती है ! उचित के अत्यंत निकट अनुचित की सतत उपस्थिति में स्वयं को भ्रम मुक्त रखने की औकात निश्चय ही 'विवेक' और 'वैचारिक परिपक्वता' पे निर्भर है ! सो कथा के प्रथमार्ध के लिए साधु साधु !

    लोमड़ी होना एक प्रवृत्ति है और वनराज होना भी इस लिहाज़ से लोमड़पन और उसके विरुद्ध 'अभय के वर' का यह खेल चलता रहेगा ! सीख यह कि लोमड़पन जय का आधार कभी नहीं हो सकता ! अतः लोमड़ियों की पनाहगाहों / मांदों को स्वयं की भूमिका पर विचार करना चाहिए :)

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  26. गर्भ नाल में आपकी ये पोस्ट पढ़ी थी... बढिया लगी.. आज फिर याद करवा दिया.

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  27. गढ़नाल एमिन भ ये कहानियां पढ़ी हैं ... मज़ा आया दुबारा पढ़ के ... सन्देश देती हैं ये कहानियां ...

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  28. मिस्टेक हो गयी लोमड़ी से। शिकार शेर से करवाना था!

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  29. अच्छी कहानी है :)

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  30. Replies
    1. बहुत शिक्षा प्रद कथा है !!

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