Saturday, December 14, 2013

"क्यूरियस केस ऑफ केजरीवाल" - राजनीतिक परियोजना प्रबंधन

बहुसंख्य भारतीय जनता इतनी निराशा और अज्ञान में जीती है कि कब्रों पे चादर चढ़ाती है, आसाराम और रामपाल से मन्नतें मांग लेती है, ज़ाकिर नायक जैसों को धर्म का विशेषज्ञ समझती है और कई बार तो जेहादी-माओवादी आतंकियों और लेनिन-स्टालिन-सद्दाम-हिटलर जैसे दरिंदों तक को जस्टिफ़ाई करने लगती है। जनता के एक बड़े समूह की ऐसी दबी-कुचली पददलित भावनाओं को भुनाना बहुत सस्ता काम है ...
राजनीतिक सफलता के कुछ सूत्र

1) परेटो सिद्धांत (Pareto principle) - 80% प्रभाव वाले 20% काम करो, बस्स! - कम लागत में बड़ी इमारत बनाओ। शिवाजी ने छोटे किलों से आरंभ किया। मिज़ोरम (राज्य) का खबरों में आना कठिन है, गंगाराम (अस्पताल) ज़रूर आसान है। चूंकि दिल्ली सत्ता और मीडिया, दोनों के केंद्र में है, मीडिया को मणिपुर, अरुणाचल या कश्मीर तक जाने का कष्ट नहीं करना पड़ता। जब एक दिल्ली शहर को कब्ज़ाकर देशभर को आसानी से प्रभावित किया जा सकता है तो येन-केन-प्रकारेण वही करना ठीक है, मीडिया को भी फायदा है, घर बैठे खबर "बन" जाती है, और बाहर निकलने की जहमत बच जाती है।

2) जन-प्रभाव वाले महत्वाकांक्षी व्यक्तियों को सपने दिखाकर साथ लाओ - अन्ना हज़ारे से बाबा रामदेव तक, किरण बेदी से अग्निवेश तक, कलबे जवाद से तौकीर रज़ा तक ... कोई अनशन करे, कोई लाठी खाये, किसी का तम्बू उजड़े, सबका सीधा लाभ आप तक ही पहुँचे।

3) उन जन-प्रभाव वाले महत्वाकांक्षी व्यक्तियों के तेज को हरकर अपने में समाहित करो - किरण बेदी, अग्निवेश आदि का अनैतिक आचरण उजागर हुआ या कराया गया; बेचारे बाबा रामदेव की छवि तो ऐसी डूबी या डुबाई गई कि फिर कभी राजनीति में न घुस सकेंगे, अन्ना हज़ारे के प्रभाव का भरपूर उपयोग कर बाद में उन्हें दूध की मक्खी जैसे छिटक दिया गया। और यह क्रम आगे भी चलता रहेगा। काम में आने के बाद लोग लात मारकर निकले जाते रहेंगे - कुल मिलाकर सभी प्रभावशाली व्यक्तियों के प्रभाव का लाभ केवल केजरीवाल को मिलना चाहिए।

4) शत्रु-मित्र-तटस्थ सभी को शुभ संकेत दो - कॉङ्ग्रेस खुश थी क्योंकि बीजेपी के वोट कट रहे थे, बीजेपी खुश थी क्योंकि कॉङ्ग्रेस के खिलाफ माहौल बन रहा था, सपा और बसपा खुश क्योंकि वे सोच रहे थे कि बिल्लियों की लड़ाई में वे चांदी काट लेंगे। दुनिया भर में पिटने के बाद भारत और नेपाल में भी अपनी साख गँवाकर हाशिये पर पड़े कम्युनिस्टों की खाली केतली में भी उम्मीदों का ज्वार चढ़ने लगा। हालांकि ऐसे संकेत हैं कि बीजेपी ने अपनी हानि को चुनाव से कुछ समय पहले भाँप तो लिया था लेकिन वे उसकी प्रभावी काट नहीं सोच सके।

5) बीच-बीच में अपना मखौल उड़वाओ - अलग दिखने के लिए अजीब सी वेषभूषा अपनाओ। कम खतरनाक दिखने के लिए अजीब-अजीब से बयान देते रहो। खिल्ली ज़्यादा उड़े या विरोध कड़ा हो जाये तो पलटी खा लो। लेकिन प्रतिद्वंदियों को मस्त रहने दो, कभी चौकन्ने न होने पाएँ।

6) रोनी सूरत बनाए रखो - हार गए तो भाव कम नहीं होगा। जीतने के बाद तो पाँचों उंगलियाँ घी में होनी हैं।

7) करो वही जो सब करते हैं और खुद तुम जिसका विरोध करते दिखते हो, लेकिन कम मात्रा में धीरे-धीरे करो और इतनी होशियारी (या मक्कारी) से करो कि अगर स्टिंग ऑपरेशन भी हो जाये तो बेशर्मी से उसका विरोध कर सको।

8) संदेश प्रभावी रखो - विरोधियों को जेल भिजाने की धमकी दो इससे उन पर समर्थन का दवाब बना रहेगा। अगर कोई समर्थन न करे तो उसे भी शर्तनामा भेज दो, इससे अपने पक्ष में हवा बनती है।

9) सम्मोहन करो - झाड़ू-पंजे का स्पष्ट संबंध भी ऐसा धुंधला कर दो कि चमकता सूरज भी न दिखे, जब समर्थन देने-लेने के निकट सहयोग का संबंध स्पष्ट हो तब भी यह सहयोग न दिख पाये।

10) अपनी मंशा कभी ज़ाहिर न होने दो - चुनाव से काफी पहले से तैयारी चुनाव की करते रहो लेकिन बात भ्रष्टाचार, समाजवाद, महंगाई आदि की करो।

11) ऊँचे सपने दिखाओ - नालों, मलबे, कूड़े, रिश्वत, बदबू, और अव्यवस्था में गले तक डूबी राजधानी में व्यवस्था की नहीं, हेल्पलाइन की बात करो, लोकपाल की बात करो, मुफ्त पानी-बिजली की बात करो, जिन नेताओं से जनता त्रस्त है, उन्हें जेल भिजाने की बात करो। धरती पर स्वर्ग लाने के सपने दिखाओ  ... एक शहर भले न संभाले, पूरा देश बदलने की बात करो।

12) युवा शक्ति का भरपूर प्रयोग करो - कैच देम यंग - सच यह है कि युवा कुछ करना चाहता है, परिवर्तन का कारक बनने को व्यग्र है। देश-विदेश में जो कोई भी देश की दुर्दशा से चिंतित है उसे अपने लाभ के लिए हाँको। कम्युनिस्ट समूह इस शक्ति का शोषण अरसे से करते रहे हैं, तुम बेहतर दोहन करो।

13) आधुनिक बनो - यंत्रणा नहीं, यंत्र का प्रयोग करो - आधुनिक तकनीक, इन्टरनेट, सोशल मीडिया, डिजिटल इंगेजमेंट, एनजीओ, स्वयंसेवा, धरना, प्रदर्शन आदि के प्रभाव को पहचानो। असंगतियों को बढ़ा-चढ़ाकर बताओ। विपक्षियों पर इतनी बार आरोप लगाओ कि वह खुद ही सफाई देते फिरें ...

14) पुरानी अस्तियों को नई पैकिंग दो - अन्ना को "गांधी" का नाम दो, "गांधी टोपी" को "आम आदमी" तक पहुँचाओ, "मैं अन्ना हूँ" की जगह "मैं आम आदमी हूँ" लिखो। तानाशाही को स्व-राज का नाम दो।

अंतिम पर अनंतिम सूत्र 

15) बेशर्म बने रहो - सबको पता है बिजली मुफ्त नहीं हो सकती, पानी भी सबको नहीं मिलेगा, भ्रष्टाचारी नेता और नौकरशाह जेल नहीं जाएंगे - अव्वल तो ज़िम्मेदारी लेने से बचो। गले पड़ ही जाये तो पोल खुलने पर अपनी असफलता का ठीकरा एक काल्पनिक शत्रु, जैसे "सब मिले हुए हैं जी", "पूंजीवाद", "सड़ेला सिस्टम", "अल्पमत" या "कानूनी अड़चनें" पर फोड़ दो और सत्ता पर डटे रहो ... फिर भी बात न बने और असलियत खुलने को हो तो इस्तीफा देकर शहीद बन जाओ ... और फिर ...

... और फिर यदि न घर के रहो न घाट के तो केजरीवाल-टर्न लेकर जनता से फिर अपना पद मांगने लगो ... इस देश की जनता बड़ी भावुक है, छः महीने में किसी के भी कुकर्म भुला देती है।

अब कुछ सामयिक पंक्तियाँ / एक कविता
हर चुनाव के लिए मुकर्रर हो
 एक सपना
 हर बार नया
 जो दिखाये
 शिखर की ऊँचाइयाँ
 साथ ही रक्खे
 जमीनी सच्चाईयों से
 बेखबर ....
 
बाबा रामदेव के मंच से सात दिन में शीला दीक्षित की सरकार के लोगों के खिलाफ अदालती आदेश लाने का वायदा
* संबन्धित कड़ियाँ *
केजरीवाल - दो साल की बिना काम की तनख्वाह - नौ लाख रुपये
आतंकवाद पर सवाल किया तो स्टूडियो छोड़कर भागे केजरीवाल
साँपनाथ से बचने को नागनाथ पालने की गलतियाँ
दलाल और "आप" की टोपी
केजरीवाल कम्युनिस्ट हैं - प्रकाश करात
अग्निवेश का असली चेहरा
किरण ने जो किया वह न तो चोरी है न भ्रष्टाचार - केजरीवाल

61 comments:

  1. दिल्ली यूनिवर्सिटी वालों को इस पर झट पीएचडी दे देनी चाहिए ... ;)

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  2. क्या बात है !
    बहुत समझदार हो गये आप तो :)
    हा हा हा !

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    1. आपकी संगत का ही असर है जोशी जी :)

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  3. मामला आधुनिक पेंटिंग सा उलझा हुआ है राजनीति का आजकल।

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  4. the most worrying point is not visible here.

    this eats into the whole fabric of demcracy and moves towards dictatorship. there shall be NO OPPOSITION to any decision taken by his lordship. no discussion in the house of the people before decisions. anyone and everyone MUST comply whether he is ready or not to agree.

    communists had fooled people into believing that what we are doing is best for YOU then killed them after gaining power. i am afraid this party is doing the same thing and will tread the same route. and communists have understood this fact and moved to embrace the "comrade"

    :(

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    1. nice discussion-
      *सत्तारी बैठे रहे, तब सत्ताइस आम |
      जुड़े केजरीवाल से, पाने लगे सलाम |
      *फुर्सत में

      पाने लगे सलाम, काम दे देती दिल्ली |
      लेकिन कई कुलीन, उड़ाते इनकी खिल्ली |

      रविकर करे सचेत, छेड़ मत मधु का छत्ता |
      आये इनके हाथ, आज-कल में ही सत्ता ||

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  5. कन्फ्यूज़न , क्या सब एक से ही हैं ??

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    1. हाँ और नहीं। चरित्र मे एक से, प्रबंधन क्षमता में भिन्न ...

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  6. Too early to come to this conclusion. Its movement which was most needed and driven by people like you and me.

    Do not forget how Congress And BJP managed Nation and did WHAT with it?

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  7. सूत्र 12 बहुत महत्वपूर्ण है। सरकार बनाने की नानुकर के पीछे शायद सबसे बड़ा प्वाईंट यही है कि खुद सरकार बनाई तो something happening किसके खिलाफ़ करेंगे।

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    1. something happening वाली बात तो दूसरी पार्टियां के ज़हन में है तभी तो ना-नुकुर कर रहीं हैं :)

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    2. काँग्रेस तो नानुकुर की स्थिति में ही नहीं है लेकिन भाजपा को तो सामने आना चाहिए ...

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  8. बस प्रार्थना ही कर सकते हैं कि "आप" कुछ अलग निकलें !

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  9. इतनी जल्दी निष्कर्ष निकालना ....

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    1. जी, निष्कर्ष नहीं अवलोकन मात्र है।

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  10. प्याज़ की तरह परत दर परत खोलकर रख दिया है अनुराग जी!! पता चला कि भोजन को स्वादिष्ट बनाने वाला यह तामसिक पदार्थ आँखों में आँसू भी लाता है!! शानदार विश्लेषण!!

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  11. वाह क्या अवलोकन है !!
    अगर ये सारे राजनैतिक गुण हैं 'आप' में तो इससे बेहतर विकल्प इस वक्त भारत के पास दूसरा नहीं है, कम से कम कांग्रेसी सामंतियों का अंत तो होगा, एक ही परिवार इतने दिनों तक जो पैठ बनाये हुए है उनका तो खात्मा होगा
    भा ज पा ने भी कोई बहुत अच्छा कदम नहीं उठाया है, जनादेश और देश का हित देखते हुए वो चाहती तो आगे बढ़ कर ये जिम्मेदारी ले सकती थी लेकिन बड़े आराम से उसने भी इस जिम्मेदारी से कन्नी कटा ली है, मेरे ख्याल से भा ज पा जैसी प्रतिष्ठित पार्टी द्वारा ऐसा कदम लिया जाना कहीं से भी सही नहीं है
    भारत का राजनैतिक माहौल अब बदलेगा पूरा विश्वास है ...

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    1. भाजपा के मामले में आपसे असहमति क कोई गुंजाइश नहीं बनती। सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते यह उनकी नैतिक ज़िम्मेदारी है कि पहला कदम आगे बढ़ाकर सरकार बनाएँ और दिल्ली की जनता की भावना के साथ-साथ लोकतन्त्र की मर्यादा का भी सम्मान करें।

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    2. well, as far as my knowledge goes they have to prove majority. 36 / 70 is majority. they have 32 neither aap nor Congress will support them. then how is every one saying they should form the govt?? do you all mean that they must buy support? i don't understand this from day one.

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  12. भा ज पा एक सुनहरा मौका खो रही है सत्ता में आने का.। मेरे हिसाब अपने सारे गीले-शिकवे, और अपने अहम् को दरकिनार करके 'आप' के साथ जुड़ना चाहिए था उनको। काँग्रेस को साफ़ करने का इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा भा ज पा को , अरे कोई तो समझाए उनको :(

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  13. बढ़िया अवलोकन किया है !

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  14. प्रोपेगंडा कर रहे, शर्त अनाप-शनाप |
    वोट-बैंक में वृद्धि हित, लगे रात-दिन आप |

    लगे रात दिन आप, पिछड़ती जाए दिल्ली |
    देखो छींका टूट , भाग्यशाली यह बिल्ली |

    इक इमान की बात, बनाया बढ़िया फण्डा |
    नहीं करेंगे काम, करेंगे प्रोपेगंडा ||

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  15. बहुत अच्छी विवेचना और विश्लेषण

    http://mishrasp.blogspot.com

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  16. सच का भी पोस्टमार्टम करती पोस्ट विशुद्ध विश्लेषण करती सहज सरल किन्तु एक कडुवा सच

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  17. आपकी सहमति के लिए आपका धन्यवाद ।
    लेकिन आपके अवलोकन से मुझे असहमति है, अरविन्द केजरीवाल एक पढ़े-लिखे और बहुत ही विद्वान् और आज के लिए फिट इंसान हैं । आखिर कोई तो बात थी उनमें कि जो अन्ना हज़ारे उन्हें अपने साथ लेकर उतनी दूर चले, इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता है कि केजरीवाल ने अन्ना की मुहीम को भरपूर ताकत दी थी, इस मुहीम को ई रंग और सही तरतीब देकर लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया था, मैंने अक्सर अरविन्द को ही प्रश्नों के जवाब देते हुए देखा था और प्रश्नकर्ताओं को लाजवाब करते हुए भी । ये अलग बात है कि अन्ना से अलग होकर पार्टी बना लेना उन्हें संदेह के घेरे में ले आया, लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए अन्ना अपनी उम्र की आखरी सीढ़ी पर हैं और केजरीवाल शायद पहली सीढ़ी पर, केजरीवाल में जोश भी है और अक्ल भी, और हमें उनकी क़ाबिलियत का भरपूर उपयोग करना चाहिए। एक अकेला इंसान ज़मीन से उठ कर वहाँ तक पहुँच गया जहाँ तक उसके पहुँचने की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी । उसने वो कर दिखाया जो असम्भव था, इसलिए इस समय ये सोचना चाहिए कि केजरीवाल की विद्वता और सामर्थ्य का कैसे उपयोग किया जाए ताकि वो वो सब कर सके जो हम सभी चाहते हैं और बहुत अच्छा कर सके.
    ये जो शिंडलर्स लिस्ट आपने दिया है इसे दूसरी तरफ से अगर आप देखेंगे तो अच्छी ही बातें नज़र आएँगी, जैसे शिवाजी ने भी तो वही किया था, या फिर कम लागत में अधिक मुनाफा :)

    बात नज़रिये की है और इस बात की भी कि आप टेबल के किस ओऱ बैठे हैं, हिंदुस्तान में भगत सिंह शहीद कहाते हैं जबकि बरतानिया सरकार उन्हें आतंकवादी बताती है । :(

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  18. हैरान हूँ देख कर जहाँ सालों साल सिर्फ गुंडों मवालियों ने राज किया है और कर ही रहे हैं वहीँ एक शरीफ आदमी कुछ सकारात्मक काम करना चाह रहा है तो उसे इतनी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है

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    1. सकारात्मक करके दिखाये, यही तो चाह रहे हैं।

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  19. दिल्ली विधानसभा के चुनावों में 70 में से 28 सीटों पर AAP की जीत अरविंद केजरीवाल की कुशलता व चातर्यपूर्ण कूटनीति की कथा सुनाती हैं तो यह "अवलोकन" भी भारत के नए टीवी मीडिया पर हुमक हुमक कर चिल्लाते विशेषज्ञ पत्रकार बिरादरी वालों के अब तक के विश्लेषणों का खाका बिगाड़ने के लिए पर्याप्त है। विचार-संस्कार के अकाल में "प्रबंधन" आधारित आधुनिक साहित्य एवं समाचार विश्लेषण संसाधन अपनी लोकप्रियता "चाय-कॉफी" की तरह ही रखते हैं। इनसे औपचारिकता पूरी हो सकती है तथा तात्कालिक स्फुर्ती के गुण गाए जा सकते हैं।
    राजनीति किसी भी देश की दशा व दिशा बदलने या/तथा व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को पूर्ण करने का महत्वपूर्ण माध्यम युगों से रही है तथा आगे भी रहेगी। दिल्ली विधानसभा के चुनाव क्या यह भूमिका अरविंद केजरीवाल को दे पाएंगे जो डेढ़ वर्षों से यहां प्रत्यक्ष तथा 10 वर्षों से परोक्ष में कार्य कर रहे हैं या डॉ. हर्षवर्द्धन (मोदी) को यह भूमिका देंगे, समय जल्द ही सही उत्तर देगा। इतना तो स्पष्ट है कि पहले ही दिन स्थिति सापेक्ष निर्णय लेते हुए डॉ. हर्षवर्द्धन ने सरकार न बनाने की बात कही तथा भाजपा के सत्ता प्रेमी समन्वयवादियों को दुखी करते हुए इस पक्ष पर निरंतर मजबूती बनाए रखी है। अरविंद केजरीवाल तथा उसके साथी कई गोटियां व पासे उलट पलट कर अपनी आगे की चालों के लिए पत्ते सजाने में अभी लगे हैं। राजनीतिक बिसात पर कांग्रेस का बिना शर्त समर्थन का दांव व शर्तों का पेंच परिणाम तक पहुंच रहे हैं। AAP गुजरात की सभी 26 लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े करेगी यह घोषणा हो चुकी है तथा अण्णा हजारे ने सरकारी लोकपाल पर कहा है कि विधेयक से उनकी कई उम्मीदें पूरी हो गई हैं और जो विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया है, उससे वह संतुष्ट हैं। इस तरह उन्होंने इस टीम को "खो" देकर बैठने का मानस बना लिया है।

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    1. निष्पक्ष अवलोक और स्पष्ट विवेचन द्वारा विषय को आगे बढ़ाने के लिए आपका आभार। भारतीय परिप्रेक्ष्य में यह गुण दिन पर दिन दुर्लभ होता जा रहा है।

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  20. १- हमारे यहाँ इसी का प्रचलन है , नेहरु इंदिरा वाजपेयी सब प्रभा मंडल ज्यादा काम उतना नहीं , इन्हे पहले कुछ समय तो बिताने दीजिये फिर ये बात आप के लिए कहिये ।
    २- सभी ने यही किया है कोई साधू संतो मंदिर का मुदा ले कर तो कोई मस्लिम तुष्टिकरण और मुल्लाओ को लेकर , इन दोनों से तो भले है ये ,
    ३- नक्शलियो के हिमायती अग्निवेश की तारीफ यहाँ देख कर बहुत बड़ा आश्चर्य हो रहा है पता न था कि जो आंदोलन रूपी झीका अपनी झोली में गिराने का सोचा था उसे न गिरा देखा कर गुसा इतना ज्यादा होगा कि अग्निवेश के लिए ये लिखा जायेगा , आप तो ऐसे न थे :(
    ४- ये भी खूब रही जब बिल्ली के भाग से झीका नहीं टुटा तो दोष छीके को दे दो , अपने किये कि सजा दोनों खुद भोग रहे है जब सोचा था कि साम्प्रदायिकता के नाम पर हिंदूवाद के नाम पर वोट बटोर लेंगे , नहीं कर पाये तो। …………
    ५- गलती दुश्मन कि है जो सामने वाले को कमजोर और बेफकूफ समझे , अपनी ताकत का अंदाजा दुश्मन को न लगाने देने अकलमंदी है
    ६- जोश बनाये रखो हम ही जितने वाले है का अति आत्मविश्वास बीजेपी सा हाल करती है
    ७- जनता को मुर्ख समझ कर कुछ भी स्टिंग करने और बिलकुल चुनावो के पहले उसे दिखाने से जनता बेफकूफ बन जाती है , कम से कम अब तो इस स्टंट को करना बंद कर दे राजनीतिक दल , जनता बेफकूफ नहीं है
    ८- दुसरो को बेफकूफ समझना , समर्थन की बार बार वही राजनीतिक चाल के फंदे में हर कोई नहीं आता है , आम चुनावो के डर से उत्तर प्रदेश का "कल्याण" करने वाले ये नैतिकता का ढोंग करना बंद कर देना चाहिए
    ९- जिस आंदोलन को कांग्रेस विरोधी आंदोलन समझा उसे हवा दी जब उसी आग से बीजेपी का अपना घर जल जाये तो उसका दुखी होना लाजमी है
    १० - कम से कम जनता के मुद्दे तो चुनावी मुद्दे बने नहीं तो चुनाव जाती धर्म और डर पर लड़े और जीते जाते है
    ११ - साम्प्रदायिकता का दंगो का डर , मंदिर निर्माण आशा और आतंकवाद का डर दिखा कर वोट लेने से तो अच्छा ही है , जहा पर जिसने भी इन मुद्दो पर चुनाव लड़ा वो जीते , मतलब चुनाव जितने का फार्मूला तो यही सही है , ये कोई अपनी पसंद का करे तो विकास पुरुष कोई दूसरा करे तो चुनावी मुद्दा बहुत नाइंसाफी है
    १२ - रन वर यूनिटी के नाम पर युवा को जोड़ो , इंटरनेट पर उन्हें दुनिया जहां की गलत जानकारिया कश्मीर के बारे में मुस्लिमो के बारे में दे दे कर बेफकूफ बनाने से अच्छा है कि युवा जमीनी हक़ीक़तो और मुद्दो से जुड़े , हिन्दू और मुस्लिम बनने की जगह भारतीय बने
    १३ - सब मोदी बाबा की कृपा प्रताप है ये दिव्यज्ञान तो उन्ही ने फैलाया है , बाकि उसी का सेवन कर रहे है , धन्यवाद के पात्र है वो
    १४ - हा बिलकुल वैसे ही जैसे नेहरु तो कांग्रेसी किन्तु पटेल हम सभी के जब जैसी जरुरत हो अच्छे लोगो का उपयोग करो
    १५- बिजली तो कोई मुफ्त नहीं दे रहा है उपाय सामने है कम्पनियो और सरकारो का जोड़ घटाना सही करो एक तरफ सब्सिडी कि बात दूसरी तरफ दोहरा कर लगाओ ये कागजी जोड़ घटाना हटा दे तो पता चल जायेगा कि किस चीजे का दाम कितना है और सरकारी आय को काले धन और नीलामी प्रक्रिया से करो । हा ये ठीक है कि जनता के वादो को बहुमत के नाम पर उस तरह मत तोड़ो जैसे आज तक मंदिर नहीं बना सरकार दो बार बन कर चली गई ;)

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    1. कविता पर "आप" दोनों की कोई टिप्पणी नहीं?

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    2. ’रन फ़ॉफ़ यूनिटी’ जैसे कार्यक्रमों के साथ युवाओं को जोड़ना अपराध है? युवाओं को सिर्फ़ समलैंगिकों\नग्न परेड\देश विरोधी कार्यक्रमों के साथ ही जुड़ना चाहिये?
      मैं इनके बारे में ज्यादा नहीं जानता लेकिन तौकीर रज़ा जरूर ही एक धर्मनिरपेक्ष शख्सियत होंगे क्योंकि उन्हें ’आप’ वाले प्रचार के लिये लेकर आये थे और वो तो तुष्टिकरण या वोट बैंक की राजनीति करें, ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता।
      कश्मीर के बारे में मुस्लिमों के बारे में गलत-सलत जानकारियां? सही जानकारियाँ सामने लाईये न, हो सकता है कुछ लोगों के ज्ञान चक्षु तो खुल जायें। हो सकता है सिद्ध हो जाये कि कोई कश्मीरी पंडित अपनी धरती से अलग नहीं हुआ\किया गया बल्कि ये तो सिर्फ़ भाजपा \जनसंघ का दुष्प्रचार है और कश्मीर में भारत के राष्ट्रीय ध्वज को नहीं जलाया जाता बल्कि ये सब करने वाल हिंदु लड़के होते हैं।
      जिन पटेल ने संघ पर बैन लगाया(बेशक बाद में हटा दिया गया) उनकी अच्छाई को स्वीकार करना बुरी बात है? मेरी नजर में यह मोदी और उनकी पार्टी का गुण है कि जिस प्रशासक ने उन पर प्रतिबंध लगाया, देश हित में उनके अच्छे काम के चलते उनका सम्मान कर रहे हैं। बाजपेयी जी जिस इंदिरा गांधी का विरोध करते रहे, उनके सही निर्णय के समय दुर्गा का अवतार की संज्ञा भी दी थी। और किसी पार्टी की तरफ़ से ऐसा उदाहरण हो तो बताईयेगा। ईमानदारी और देशभक्ति के आप वाले ताजा संस्करण तो दूसरे सभी को बेईमान, शातिर वगैरह बताते हैं।
      रही बात सरकार आकर जाने की और मंदिर नहीं बना वाली तो सच ये है कि ’मंदिर तो वहीं बनेगा।’

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    3. मैंने तो बस अनुराग जी की बातो को ही थोडा मोड भर है , कहा वही है जो वो कह रहे है , दूसरे युवाओ को अपने साथ जोड़े तो वो "हाकना" "शोषण" " दोहन " हो गया और आप के पसंद के लोग जोड़े तो पुण्य , अगर वो अपराध है तो ये भी अपराध है , चुनावो के पहले यूनिटी कि याद आ गई क्या ये चुनावी खेल नहीं है , क्या ये देश भक्ति के लिए हो रहा है पटेल कि याद तब क्यों आई जब चुनाव सर पर थे तिन बार चुनाव जीत कर मुख्यमंत्री बन चुके है अब तक पटेल की याद क्यों नहीं आई , जब प्रधानमंत्री बनने की बारी आई तब अपने लौह पुरुष जो उनके विरोधी बन गए थे को कमतर दिखाने के लिए असली लौहपुरुष को खड़ा कर दिया । इधर उन्होंने ३७० का मुद्दा उठाया उधर उसके बारे में बकवास जानकारिया फ़ैल गई , कश्मीर में कोई भारतीय जमीन नहीं खरीद सकता , सुप्रीम कोर्ट का आदेश वहा लागु नहीं होता , लडकियो कि कश्मीर से बाहर शादी होते ही वहा की नागरिकता ? चली जाती है , और न जेन क्या क्या बकवास क्यों नहीं बताया जाता कि कश्मीर क्या शिमला देहरादून मसूरी जैसे पहाड़ी इलाको , आदिवासी इलाको और जंगल की जमीन कोई भी भारतीय नहीं खरीद सकता है , खेती की जमींन में आज भी पुरे भारत में बेटियो को हक़ नहीं मिलता है और बेटी को सम्पति में हक़ वाली बात कब कि ख़त्म हो गई कश्मीर में जब सुप्रीम कोर्ट ने ही उसे गलत कहा था , इस तरह की न जाने कितनी ही बकवास मुझे युवा भेजते है किस किस को और किस किस बात का जवाब दू , समझाने वाले दो चार और फ़ैलाने वाले हजारो । कभी आसाम नागालैंड के आतंकवाद कि बात क्यों नहीं उठाते है , कभी इस पर बात क्यों नहीं करते है कि आज भी भारत में प्रतिबंधित लिट्टे का समर्थन खुले आम किया जाता है जिसने हमारे देश के प्रधानमंत्री कि हत्या हमारे घर में घुस कर की , इस एक ही आतंकवाद से इतना प्यार क्यों , बताइये कि सिक्खो ने पंजाब में क्या क्या किया "था" क्या हालत "थे" एक समय वहा , उसकी भी जानकारी दीजिये आज के युवाओ को । आधी जानकारी क्यों देते है पूरा सच बताइये युवाओ को , बताइये कि जो भारत का नक्शा वो देखते है वो कितना बड़ा भ्रम है कितना कब्जे में है आजादी के बाद से अभी तक हमारे पास । संजय जी राजनीति को राजनीति कि नजर से देखिये जो मोदी कर रहे है या केजरीवाल और राहुल सभी राजनीति ही कर रहे है और उसे उसी नजर से देखिये देशभक्ति और महानता से मत देखिये , वरना आलोचना करने पर ऐसे ही बुरा लगेगा , राजनीति बुरी चीज नहीं होती है उसे गंदे तरीके से करना बुरा होता है । पसंद करना गलत नहीं है किन्तु हर बात को सही बोल अंध भक्ति अच्छी नहीं है जैसा कि आप ने कहा था अपनी पोस्ट पर ।

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    4. वैसे मुझे तो लगा था कि अनुराग जी कुछ जवाब देंगे :) कविता की समझ नहीं है सो टिप्पणी नहीं कि उस बारे में तो झूठ भी नहीं बोल सकती जैसे कि राजनीति कि समझ है का झूठ बोल सकती हूँ :)))

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    5. लोकपाल बिल को धड़फड़ा कर एलेक्शन से पहले पास कर दिया गया और तारीफ की बात कि बीजेपी ने इस बार चूँ तक नहीं किया :) This is called real politics :)
      और हाँ हर बात को घुमा फिरा कर भगवा रंग दे देना क्या सही है ?
      अनुराग जी,
      कविता की जहाँ तक बात है तो यही तो आज तक हर पार्टी ने किया है और उस पार्टी का हर नेता करता रहा है, सपने दिखाना, वादे करना, और उनको कभी पूरा नहीं करना। एक पार्टी या एक नेता ऐसा बता दें जिसने ये काम न किया हो :)

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    6. अंशुमाला जी,
      ’तब क्यों नहीं किया, अभी चुनाव के वक्त क्यों किया?’ जैसे सवाल कभी हमें सुविधानुसार प्रासंगिक दिखते हैं और कभी किसी की अस्मिता को तार-तार करते हुये, उदाहरण देने लगा तो हम विषय से भटक जायेंगे। वैसे आपने गौर किया हो तो आम सभायें ज्यादातर चुनावी मौसम में ही होती हैं, नेताओं के साथ जनता भी नींद से जागने के लिये इस पांचवे साल का इंतजार करती है। वैसे आपको बता दूँ कि ऐसे कार्यक्रम हमेशा चलते रहते हैं।
      धारा 370 का मुद्दा उठाते ही बकवास जानकारियाँ फ़ैलने लगती हैं तो इसका छुपा हुआ लाभ ये भी है कि हम इस अवसर पर ही सही, ऐसे मुद्दों के बारे में सही जानकारी प्राप्त करते हैं। अब देखिये न, बात न छिड़ती तो मुझे कैसे पता चलता कि बाकी देश के कुछ सेल्क्टेड भागों में भी ये प्रावधान है :) ज्यादा बात छिड़ी तो हो सकता है कि और भी जानकारियाँ मिले कि कैसे जम्मू-कश्मीर की तरह मसूरी, देहरादून जैसी जगहों पर भी भारत विरोधी कार्यक्रम होते हैं।
      असाम-नागालैंड के आतंकवाद की बातें भी उठती हैं लेकिन उतनी ही मात्रा में जिस मात्रा में फ़ुटेज इन राज्यों को मुख्य मीडिया में मिलता है। जहाँ ये बातें उठती हैं, वो मुख्य मीडिया नहीं और उन्हें पढ़ने वाले पहले से ही कट्टरवादी और फ़ासिस्ट कहलाते हैं इसलिये रिकमेंडेशन नहीं मिलता। वैसे भी हमें आदत है कि पहले चोट को नासूर बनने देते हैं, फ़िर उसके इलाज की सोचते हैं।
      लिट्टे या किसी भी राष्ट्रविरोधी संगठन का समर्थन हम नहीं करते। पंजाब के बारे में भी आपने जो लिखा, उससे जो अर्थ निकलता है वो एक ब्लैंकेट आरोप है और मुझे विश्वास है कि आपका मंतव्य वह नहीं ही होगा। पंजाब में जो कुछ हुआ, उसका महिमामंडन कोई नहीं करता बल्कि तह में जाईये तो पता चलेगा कि उस चिंगारी को और ऐसी हर चिंगारी को हवा देने में हाथ कौन सा है। वहाँ की आम जनता इसके हक में नहीं थी और यही वजह थी कि हमारा देश उसे नियंत्रित कर पाया।
      नक्शे बहुत बारीकी से नहीं देखे, इसलिये बहुत विस्तार से नहीं कह पाऊंगा लेकिन मैंने आजादी से बहुत पहले से भविष्य के संभावित नक्शे जरूर देखे हैं और कह सकता हूँ कि आज से दस-बीस साल पहले मैं बदलते नक्शों के पैटर्न को इतनी गंभीरता से नहीं लेता था, शायद व्यर्थ का भय मानकर भी दिमाग से झटक देता था लेकिन आज पाता हूँ कि हम सब एक गफ़लत में जी रहे हैं।
      यह बात सबसे पहले कहनी चाहिये थी, मुझे अपनी आलोचना से ही बुरा नहीं लगता तो मोदी या किसी की आलोचना से बुरा क्यूँ लगेगा? वैसे ये कन्फ़्यूज़न रियल लाईफ़ में भी बहुतों को होता है, क्या करूँ शक्ल और भाषा दोनों ही ऐसी हैं कि सामने वाले को लगता है कि ये जनाब बुरा मान गये:) अब असली बात कहता हूँ कि हम समर्थक किसी व्यक्तिविशेष के नहीं है बल्कि पसंद के खांचे के हैं। कल को मोदी इस खांचे में फ़िट न बैठेंगे तो हम किसी दूसरे के समर्थक दिखेंगे जो खांचे में मोदी से ज्यादा फ़िट होगा।
      एक बात और, हममें से कुछ लोग समझते हैं कि भाजपा या हिंदुओं की बात करने वाला यकीनन मुस्लिम विरोधी है। अगर ये गलतफ़हमी है तो बहुत बड़ी गलतफ़हमी है। यह दुष्प्रचार कुछ विशेष राजनीतिक द्लों\विचारधाराओं द्वारा इसीलिये किया जाता है कि दोनों एक दूसरे से भय खाते रहें और सिर्फ़ वोटबैंक बने रहें। मेरे खुद के ही अनेक मुस्लिम मित्र हैं और आश्चर्यचकित कर देने वाली हद तक कई बार हमारे विचार मिलते हैं।

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    7. येस, बीजेपी ने इस बार चूँ तक नहीं किया क्योंकि पिछले साल भी उन्होंने तत्कालीन बिल में सुधार के लिये पन्द्रह अनुशंसायें की थीं और कल तक उनमें से तेरह और आज शेष बची दो अनुशंसायें भी मान ली गई थीं।
      स्पष्ट पता चलेगा कि भगवा वाला ? अगर मेरी टिप्पणी से संबंधित है तो इस बारे में कुछ कहूँगा।

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    8. स्वप्न मञ्जूषा जी,
      आपके इस कन्फ़र्मेशन के बाद कि भगवा वाला प्रश्न मेरी टिप्पणी पर ही था, अपना स्पष्टीकरण दे रहा हूँ। इस थ्रेड में मैंने जिस टिप्पणी को प्रत्युत्तर दिया था, उसमें साधु संतों, मंदिर, मुस्लिम तुष्टिकरण, हिंदुवाद, मंदिर निर्माण जैसे कई मुद्दे थे जो मुझे भगवा संबंधित ही लगे थे। आरोप लगेंगे तो प्रत्युत्तर देने यहाँ मोदी, प्रवीण तोगडि़या और अशोक सिंघल जैसे लोग तो आयेंगे नहीं। वो अपने सर्किल के लोगों में व्यस्त होंगे, यहाँ तो हम जैसे ब्लॉगीय भगवे ही आयेंगे। आरोप भगवे रंग पर लगेंगे तो यथासंभव उत्तर में भी भगवा रंग दिखेगा, आरोप सुनकर उसका स्पष्टीकरण तो देना बनता ही है। हालाँकि एक दो बंधु थे जो पहले यह काम अतिशय विनम्रता और कौशल से मेरी अपेक्षा अच्छी तरह से कर रहे थे, वे अभी सक्रिय नहीं हैं तो मुझसे जो और जैसा बन पड़ा(मैं उतना विनम्र भी नहीं:) जवाब देना पड़ा। आगे भी उपलब्धता रही तो अपना मत प्रकट करता रहूँगा, जवाब न मिले तो यही समझा जाये कि किसी व्यस्तता के चलते यह जिद्दी अभी उपलब्ध नहीं है न कि यह समझा जाये कि हतोत्साहित होकर दुकान अपनी बढ़ा गया :)

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    9. आम संभाएं चुनावी मौसम में होती है किन्तु यहाँ तो वोट देने के बाद ही जनता से संपर्क ही ख़त्म कर लिया जाता है , आज दो मुख्य पार्टिया जनता से जमीनी रूप से जोड़ने पर जोर दे रही है तो इसके लिए " आप " जिम्मेदार है , तोड़ फोड़ की राजनीति नहीं हुई , जन आंदोलन का डर आज नेताओ में दिखा , उस आधार पर कानून बना और बनने की प्रक्रिया में है इन सब का कुछ तो क्रेडिट खुले दिल से " आप " को दीजिये , विश्लेषण करना बुरा नहीं है किन्तु आप की पसंद की पार्टी की सरकार नहीं बनी इस खीज में तल्खी से विश्लेषण न किया जाये तो बेहतर होगा , चुनावो में तो चुनावी राजनीति के लिए ही उतरा जाता है किन्तु चुनाव जनता के मुद्दो पर लड़े जा रहे है ,कुछ काम करने कि चाहत में लड़े जा रहे है या फिर बस पिछली सरकार के बुरे काम गिना कर वोट माँगा जा रहा है । जवाब आप कि सभी बातो का है किन्तु अनुराग जी कि पोस्ट उन मुद्दो पर नहीं है उनकी पोस्ट की ऐसी तैसी क्या करना कभी आप उस पर लिखिए खुल कर बात करेंगे तब और आप कि हर बात का जवाब भी दूंगी ।

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    10. कुछ क्या बहुत सारा क्रेडिट ’आआपा’ को जाता है बल्कि सारा क्रेडिट दे देता अगर उन्होंने सीधे तरीके से सरकार बनाकर अपना घोषणापत्र लागू करने की प्रतिबद्धता भी दिखाई होती।
      आप समेत कई लोग इस बात को मानेंगे नहीं कि अगर बिना SMS वगैरह नौटंकियां करे सरकार बना लेती तो मेरी पसंद की पार्टी तो ’आआपा’ ही हो जाती, मगर ये हो न सका। विश्लेषण हर मनुष्य अपनी सामर्थ्यानुसार ही करता है, इसमें जरूर गलती हो सकती है।
      अनुराग जी की पोस्ट इन मुद्दों पर है या नहीं, ये अलग बात है लेकिन टिप्पणियों में ये मुद्दे जरूर उठाये गये हैं और उसमें मेरा योगदान एकाध मुद्दे का ही होगा। बात निकलती है तो दूर तक जाती ही है, फ़िर भी अनुराग जी से इस बात के लिये खेद प्रकट करता हूँ।
      मेरी पोस्ट की ऐसी-तैसी करने वाला आपका वायदा जरूर पूरा होगा, आशान्वित हूँ । आपका स्वागत रहेगा।

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    11. ओह। इतनी बढ़िया चर्चा चलती रही और हम मिस कर गए ।

      संजय जी आपके हर शब्द से सहमत हूँ । भगवा पर आक्रामक होने के फैशन में पड़ेंगे तो उत्तर में भगवा आना लाजमी ही है।

      मेरी पहली पसंद आज भाजपा ही है । इसलिए नही कि वे बहुत अच्छे हों बल्कि इसलिए कि बाकी बहू त बुरे हैं ।

      और जिस बदलते नक्शे की आप बात कर रहे हैं वह तो अवश्यम्भावी है ही । क्योंकि हमारे यहाँ दिखावे की देशभक्ति तो खूब है लेकिन रेत में सर दबा कर आती मुसीबत से नजर चुराने की प्रवृत्ति और जानते बूझते देश क9 खड्डे में गिरते देखते रहने की मानसिकता भी। हमें हिन्दू भगवा को नीचा दिखाने से फुरसत मिले तब न देश के नक्शे क देखें :(

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    12. @anshumala jee,
      @ अनुराग जी कि पोस्ट उन मुद्दो पर नहीं है उनकी पोस्ट की ऐसी तैसी क्या करना
      - नहीं, नहीं, मेरे ब्लोगिंग का उद्देश्य तो आपकी प्रसन्नता ही है। आप ऐसी-तैसी के प्रयास जी-जान से करती रहिए। मुद्दों में क्या धरा है। आप अपनी बात कहिए, हमें वही सुनने में रुचि है। वैसे, आपसे पहले भी कई सीनियर कामरेड यहाँ पोस्ट से इतर होकर अपने-अपने नक्सल/माओ/पोलपोत/कैस्ट्रो/स्टालिन/मार्क्स/आतंक/अव्यवस्था प्रोपेगेंडा को धर्म/भगवा/सिख/ईसाई/सेना/व्यवस्था आदि शब्दों में लपेटकर सर्व करने के प्रयास करते रहे हैं, फिर धीरे-धीरे उस प्रचार की कमजोर चूलों को भाँपकर पीछे हट गए। कुछेक ने तो प्रोपेगेंडा-फ्लोपर मानकर मुझे अपनी फेसबुक मित्र-सूची से भी निकाल दिया है।
      @ वैसे मुझे तो लगा था कि अनुराग जी कुछ जवाब देंगे
      - वैसे तो कोई भी देख सकता है कि आपकी टिप्पनियों में उठाए सवालों के जवाब मेरे पोस्ट्स में पहले ही दिये जा चुके हैं। लेकिन समुचित जवाबों (ब्लॉग-पोस्ट) के जवाब (टिप्पणी/प्रति-टिप्पणी ) में जब हल हो चुके प्रश्न बार-बार सामने लाये जाएँ तो जवाब में मैं क्या कहूँ, आपने खुद ही किसी से कुछ कहा था: तेरा तुझको अर्पण ...
      "ये जानते हुए भी कि आप को समझाना मुश्किल है फिर भी अपनी तो आदत है कि हम चुप नहीं रहते सो ,"

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  21. केजरीवाल कि हकीकत जानने के लिए ये लेख जरूर पढ़े

    http://vishvnathdobhal.blogspot.in/2012/12/blog-post_7.html

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  22. स्पष्ट विश्लेषण, यह सब कर के अधिक समय टिके रहना बहुत कठिन है।

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  23. हा हा आप चरित्र का विश्लेषण करने में माहिर हो गए हैं ... और आप के आप का असल चेहरा सामने रख रहे हैं ...

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  24. Replies
    1. जी हाँ, संजय जी मेरी टिप्पणी आपकी ही टिप्पणी पर है ।

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    2. मॉडरेशन के चलते कुछ कन्फ़्यूज़न हो रहा था, इसलिये पूछा था और फ़िर यहाँ डिलीट करके उसी थ्रेड में यही कन्फ़र्म करना चाह रहा था। अभी कन्फ़र्म हुआ तो वहीं चलते हैं, उसी थ्रेड पर:)

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  25. किसी झूठ को स्थापित सपनों में किया जा सकता है किन्तु सर्वकालिक सार्वभौमिक और सर्वमान्य बनाया जा सकता
    कहने कि ज़रूरत नहीं जो सच है दिखता है मैं लेख से सहमत हूँ जी तर्क नहीं समय आने पर सिफर पर पहुंचेंगे

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  26. मंजूषाजी और अंशुमालाजी कि बातो से शत प्रतिशत सहमत।

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  27. मंजूषाजी और अंशुमालाजी कि बातो से शत प्रतिशत सहमत।

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  28. अंशुमाला जी,
    आपकी टिप्पणियों में प्रयुक्त कुछ असत्य कथनों पर स्पष्टीकरण आवश्यक है, आलसी को उकसाया है तो अब झेलिए भी
    @१- इन्हे पहले कुछ समय तो बिताने दीजिये फिर ये बात आप के लिए कहिये ।
    - मैंने तो इस पर कुछ कहा ही नहीं। चैन से समय बिताएँ। मेरी पोस्ट तो उनकी अप्रत्याशित सफलता के तरीके पर एक अवलोकन मात्र है। यदि आप जबरन उसे किसी अन्य रोशनी में देखना चाहती हैं, तो मैं कुछ नहीं कर सकता।

    @२- सभी ने यही किया है कोई साधू संतो मंदिर का मुदा ले कर तो कोई मस्लिम तुष्टिकरण और मुल्लाओ को लेकर , इन दोनों से तो भले है ये ,
    - बरेली दंगों के आरोपी मुल्ला तौकीर रज़ा आदि को आमंत्रित करने जैसे काम करके केजरीवाल भी वही सब कर रहे हैं तो नया क्या है? ये तो परिवर्तन का दावा करके वोट ले रहे थे।

    @३- नक्शलियो के हिमायती अग्निवेश की तारीफ यहाँ देख कर बहुत बड़ा आश्चर्य हो रहा है पता न था कि जो आंदोलन रूपी झीका अपनी झोली में गिराने का सोचा था उसे न गिरा देखा कर गुसा इतना ज्यादा होगा कि अग्निवेश के लिए ये लिखा जायेगा , आप तो ऐसे न थे :(
    - जो मेरे पोस्ट में है नहीं वह देख पाना एक बड़ी सिद्धि है, आपकी इस सिद्धि को नमस्कार! और नमस्कार उस प्रतिबद्धता को भी जिसके तहत आप नरहिंसा और दमन का प्रतीक बन चुके शब्द "नक्सल" को मेरी पोस्ट पर ले ही आईं। अगर अब तक आपको यह पता नहीं लगा है कि मेरे कोई भी पोस्ट अपनी झोली, पराई झोली, मेरा वाद, तेरा वाद मेरा स्वार्थ, तेरा स्वार्थ पर नहीं है तो आपको गहरे अंतरमनन की आवश्यकता है। इस दुनिया में हर इंसान हर काम अपने निहित स्वार्थ के वशीभूत होकर ही करे यह सोच कम्युनिस्ट सर्कल में भले ही मान्य हो, सर्व-सत्या नहीं है।

    @ ४- ये भी खूब रही जब बिल्ली के भाग से झीका नहीं टुटा तो दोष छीके को दे दो , अपने किये कि सजा दोनों खुद भोग रहे है जब सोचा था कि साम्प्रदायिकता के नाम पर हिंदूवाद के नाम पर वोट बटोर लेंगे , नहीं कर पाये तो। …………
    - जनता को बेबस समझने से बड़ा अज्ञान कुछ नहीं है। न तो वह लंबे समय तक भुलावों में आती है और न ही लंबे समय तक उसे आतंकवाद/दमन से डराया जा सकता है। कौन क्या सोच रहा था इसकी जानकारी आपको भले हो, मुझे माइंडरीडिंग की कला नहीं आती।

    @५- गलती दुश्मन कि है जो सामने वाले को कमजोर और बेफकूफ समझे , अपनी ताकत का अंदाजा दुश्मन को न लगाने देने अकलमंदी है
    - जी पोस्ट में यही लिखा है। दोहराने का शुक्रिया।

    ६- जोश बनाये रखो हम ही जितने वाले है का अति आत्मविश्वास बीजेपी सा हाल करती है
    - बीजेपी ही नहीं, दिल्ली में कॉंग्रेस/बीएसपी/कम्युनिस्ट सभी का हाल बुरा हुआ है। बल्कि सभी दलों में बीजेपी की परफ़ोर्मेंस सबसे बेहतर है। आप भले ही बीजेपी-द्रोह के चलते चुनाव परिणाम न देख पा रही हों पर मुझ जैसे सभी अराजनीतिक लोग साफ देख पा रहे हैं कि इस चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है।

    ... अगली टिप्पणी मे जारी है ...

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    1. ... पिछली टिप्पणी से जारी है ...
      ७- जनता को मुर्ख समझ कर कुछ भी स्टिंग करने और बिलकुल चुनावो के पहले उसे दिखाने से जनता बेफकूफ बन जाती है , कम से कम अब तो इस स्टंट को करना बंद कर दे राजनीतिक दल , जनता बेफकूफ नहीं है
      - मैं पहले भी कह चुका हूँ कि भारत कोई कम्युनिस्ट, धार्मिक या सैन्य तानाशाही नहीं है। यह लोकतन्त्र हैं। यहाँ जनता को अधिकार भी हैं और समझ भी। न तो मीडिया को कानून की हद में रहते हुए काम करने से रोका जा सकता है और न ही जनता किसी दवाब या दमन से डरने वाले हैं। जनता ने बीजेपी और आप को चुना है। मगर वह सब मेरे पोस्ट का विषय नहीं था।

      ८- दुसरो को बेफकूफ समझना , समर्थन की बार बार वही राजनीतिक चाल के फंदे में हर कोई नहीं आता है , आम चुनावो के डर से उत्तर प्रदेश का "कल्याण" करने वाले ये नैतिकता का ढोंग करना बंद कर देना चाहिए
      - ये किसकी बात है? किसी राजनैतिक प्रोपेगेंडा का हिस्सा है? केजरीवाल के राजनीतिक प्रबंधन की पोस्ट से इसका क्या संबंध है? ऐसे असंबंधित प्रचारात्मक वाक्य लिखने से लेखक की विश्वसनीयता ही कम होती है। और कुछ नहीं।

      @९- जिस आंदोलन को कांग्रेस विरोधी आंदोलन समझा उसे हवा दी जब उसी आग से बीजेपी का अपना घर जल जाये तो उसका दुखी होना लाजमी है
      - अन्ना हज़ारे का आंदोलन भ्रष्टाचार विरोधी था। उन्हें तो अंदाज़ भी नहीं था कि केजरीवाल इसका राजनीतिक लाभ उठाने जा रहे थे। इसमें आप बीजेपी को बीच में कहाँ से ले आईं? अब आपका बीजेपी-ओबसेशन मुझे सरप्राइज़ करने लगा है।

      @ १० - कम से कम जनता के मुद्दे तो चुनावी मुद्दे बने नहीं तो चुनाव जाती धर्म और डर पर लड़े और जीते जाते है
      और
      ११ - साम्प्रदायिकता का दंगो का डर , मंदिर निर्माण आशा और आतंकवाद का डर दिखा कर वोट लेने से तो अच्छा ही है , जहा पर जिसने भी इन मुद्दो पर चुनाव लड़ा वो जीते , मतलब चुनाव जितने का फार्मूला तो यही सही है , ये कोई अपनी पसंद का करे तो विकास पुरुष कोई दूसरा करे तो चुनावी मुद्दा बहुत नाइंसाफी है
      - ऐसा जनरल वक्तव्य देना, कहना भारतीय जनता की विचार-क्षमता का अपमान है। जन-हत्यारे नक्सली या कम्युनिस्ट विचारधारा में जन-भावनाओं का कोई मूल्य भले न हो, लोकतन्त्र में जनता ही सरकार बनाती है। उसके विचार, तौर-तरीके का सम्मान करना तो हमें सीखना ही चाहिए।

      @ १२ - रन वर यूनिटी के नाम पर युवा को जोड़ो , इंटरनेट पर उन्हें दुनिया जहां की गलत जानकारिया कश्मीर के बारे में मुस्लिमो के बारे में दे दे कर बेफकूफ बनाने से अच्छा है कि युवा जमीनी हक़ीक़तो और मुद्दो से जुड़े , हिन्दू और मुस्लिम बनने की जगह भारतीय बने
      - ओह, फिर तो "भारतीय जनता" पार्टी के नाम से आपके भड़काने की कोई वजह नहीं समझ आती :) Let public decide what they want!

      @१३ - सब मोदी बाबा की कृपा प्रताप है ये दिव्यज्ञान तो उन्ही ने फैलाया है , बाकि उसी का सेवन कर रहे है , धन्यवाद के पात्र है वो
      और
      १४ - हा बिलकुल वैसे ही जैसे नेहरु तो कांग्रेसी किन्तु पटेल हम सभी के जब जैसी जरुरत हो अच्छे लोगो का उपयोग करो
      - पुनः, ये किसकी बात है? किसी राजनैतिक प्रोपेगेंडा का हिस्सा है? केजरीवाल के राजनीतिक प्रबंधन की पोस्ट से इसका क्या संबंध है? ऐसे असंबंधित प्रचारात्मक वाक्य लिखने से लेखक की विश्वसनीयता ही कम होती है। और कुछ नहीं।

      @१५- बिजली तो कोई मुफ्त नहीं दे रहा है उपाय सामने है कम्पनियो और सरकारो का जोड़ घटाना सही करो एक तरफ सब्सिडी कि बात दूसरी तरफ दोहरा कर लगाओ ये कागजी जोड़ घटाना हटा दे तो पता चल जायेगा कि किस चीजे का दाम कितना है और सरकारी आय को काले धन और नीलामी प्रक्रिया से करो । हा ये ठीक है कि जनता के वादो को बहुमत के नाम पर उस तरह मत तोड़ो जैसे आज तक मंदिर नहीं बना सरकार दो बार बन कर चली गई ;)
      - केजरीवाल ने मीडिया के सामने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि बिल पे न करें, हमारी सरकार आएगी तो हम सब माफ कर देंगे।
      जोश अच्छी बात है लेकिन जोश में आकर किसी पोस्ट या व्यक्ति में वह सब ढूंढ लेना जो कभी था ही नहीं उतनी अच्छी बात नहीं।

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  29. अनुराग जी

    टिप्पणिया फॉलो न करने का खामियाजा एक बार फिर भुगतना पड़ा :( , मुझे पता होता कि आप को मेरी हलकी फुलकी टिप्पणियों से इतनी नाराजगी है ( नारी मुद्दो को छोड़ कर मै कभी भी गुस्से में प्रतिक्रिया नहीं देती हूँ , राजनीतिक मुद्दे पर तो कभी भी नहीं ) तो मै देवयानी वाली पोस्ट पर कभी टिप्पणी नहीं करती मै उन लोगो में नहीं हूँ जो मना करने या नाराजगी जताने के बाद भी धुस कर टिप्पणिया देते है , झगड़े विवाद करते है , मै ब्लॉग जगत में ये सब करने नहीं आई हूँ , आप एक लाइन में लिख देते की आप को मेरी टिप्पणिया पसंद नहीं आती है दुबारा कभी नहीं आती । कामरेड कम्युनिस्टी आदि जैसी बाते कहने कि आवश्यकता नहीं थी , ये शब्द आप के अति गुस्से और खीज को दिखा रहा है । मार्क्स को जीवन में एक बार कोर्स की किताब में पढ़ा था तब भी समझ नहीं आया था , पता न था की केवल ईश्वर में विश्वास न करने से मै कामरेड हो जाउंगी , और सच बताऊ तो इस बात की जानकारी भी मुझे आप की ही पोस्ट से हुई थी कि ईश्वर में विश्वास न करना कम्युनिष्ट होना होता है जब आप ने भगत सिंह के बारे में लिखा था । आज आप नौकरानी के मानवाधिकार ,शोषण के खिलाफ खड़े है अपने ही देश के सम्मान को दरकिनारा कर तो आप कामरेड नहीं है , मैंने कश्मीरियों और माओवाद के नाम पर मासूम लोगो के शोषण के खिलाफ लिख दिया तो मै कामरेड हो गई । अपने ही देश के सरकार के खिलाफ ( भारत सरकार केवल भारत सरकार होती है बीजेपी या कांग्रेसी या तीसरे मोर्चे कि नहीं )और विदेशी सरकार के पक्ष में लिख रहे है मै भी आप को कुछ नाम दे दू ऐसा करने पर । । आप कि पोस्ट में बात "आप" से निकल कर कही और चली गई और भगवा जैसे शब्द आ गए ( जो मैंने नहीं लिखा था ) इसलिए मैंने उसे वही बंद करने के लिए एक सामान्य शब्द ऐसी कि तैसी ,मतलब पोस्ट के विषय से इतर बात करना और मुख्य मुद्दे को गायब कर देना के लिए लिखा मुझे नहीं पता कि एक मामूली शब्द को आप किस रूप में लेने लगे । मै जब भी टिप्पणी करती हूँ तो ये सोच कर करती हूँ कि मेरी बात जीतनी जल्दी समझ में आ जाये उतना ठीक बहस न हो ( मेरे कहने का अर्थ समझ आ जाये न की उसे मानने की जबरजस्ती ) , गागर में सागर भरना मुझे नहीं आता है और किसी ने कुछ भी लिख दिया बसउसकी हा में हा मिलाना भी नहीं आता है आप को जितना पढ़ा था उस हिसाब से लगा आप बीजेपी के समर्थक है इसलिए जवाब में बीजेपी को भी वही रखा जहा आप " आप " पार्टी को रख रहे थे । कहने का अर्थ इतना ही था कि हर राजनितिक पार्टी का उदय ऐसे ही होता है चाहे वो " आप" हो या बीजेपी । मै जब एक और ब्लॉगर कि पोस्ट पर कांग्रेस के खिलाफ लिखती हूँ ( क्योकि वो कांग्रेस के समर्थक है )तब मै आप को कामरेड नहीं नजर आई । यदि आप को कुछ लोगो का अपने ब्लॉग पर आना नहीं पसंद है तो उसे लिख देना था जैसे कुछ लोगो ने लिखा हुआ है और कई बार साफ कह दिया है कि फला फला मेरे ब्लॉग पर न आये केवल हा में हा मिलाने वाले ही मेरे ब्लॉग पर आये , असहमतियों को यहाँ नहीं सूना जायेगा , ऐसा कुछ लिखा होता तो मै भी नहीं आती । मेरी टिप्पणियों से आप को कुछ बुरा लगा तो माफ़ी , जिसे भी आप चाहे तो हटा दे मै हमेसा इसे ब्लॉगस्वामी का एकाधिकार मानती हूँ ।

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    1. अंशुमाला जी,
      किसी पोस्ट या टिप्पणी को पढ़कर उसमें से बिलकुल असंबंधित निष्कर्ष निकालकर रख देने की आपकी क्षमता मुझे फिर आश्चर्यचकित कर रही है।
      @मै उन लोगो में नहीं हूँ जो मना करने या नाराजगी जताने के बाद भी धुस कर टिप्पणिया देते है , झगड़े विवाद करते है , मै ब्लॉग जगत में ये सब करने नहीं आई हूँ
      - बहुत आभार। विवाद वालों की भी कमी नहीं है, और अपने अपने वाद वालों की भी। शायद अब तक आपको पता लगा हो कि आप सरीखे मैं भी उन लोगों में नहीं हूँ, न मेरे पास इतना वक्त है कि फिजूल की बहसों में उलझ सकूँ।

      @आप एक लाइन में लिख देते की आप को मेरी टिप्पणिया पसंद नहीं आती है दुबारा कभी नहीं आती ।
      - नहीं, मैं वह नहीं लिखता, न कहता हूँ, जो मेरे मंशा नहीं है। यथा संभव स्पष्ट लिखने की चेष्टा करता हूँ ताकि किसी को "बिटवीन द लाइंस" पढ़ने की तकलीफ न करनी पड़े। बात टिप्पणी की है ही नहीं, बात हर बार वह मुद्दा हाइलाइट करने की है जो कभी था ही नहीं, न पोस्ट में , न टिप्पणी में, न लिखा गया न कहा गया।

      @ इस बात की जानकारी भी मुझे आप की ही पोस्ट से हुई थी कि ईश्वर में विश्वास न करना कम्युनिष्ट होना होता है जब आप ने भगत सिंह के बारे में लिखा था ।
      - ऊपर, और अपनी पिछली टिप्पणी में मैंने आपकी इसी खूबी का ज़िक्र किया है जिसमें आप वह निष्कर्ष निकाल पाती हैं जो कभी कहा या लिखा ही नहीं गया, जिसकी कभी मंशा भी नहीं थी और जो किसी नियम से भी सत्य भी नहीं है। वही पोस्ट पाँच लोगों को पढ़ाये और चैक कर लीजिये कि आपका बताया हुआ निष्कर्ष निकाल पाना कितनी दुर्लभ कला है। वैसे मैं जीतने समय तक नास्तिक रहा हूँ उतनी तो शायद आपकी आयु भी नहीं होगी। मगर कम्युनिस्ट - न, व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को अमान्य करने वाली कोई भी विचारधारा मुहे कभी मान्य नहीं हो सकती।

      @ कामरेड कम्युनिस्टी आदि जैसी बाते कहने कि आवश्यकता नहीं थी , ये शब्द आप के अति गुस्से और खीज को दिखा रहा है ।
      - आप करें तो ठीक, हम करें तो गुस्सा और खीज - भगवान की माया, कहीं धूप कहीं छाया

      @ आप को जितना पढ़ा था उस हिसाब से लगा आप बीजेपी के समर्थक है
      - लगता है आपने काफी कम पढ़ा है मुझे। आप भी बहुत बिज़ी होंगी लेकिन आपको "लग रहे" गलत को सही करने में यदि मुझे अधिक पढ़ना आपकी सहायता कर सके तो मेरा अनुरोध यही है कि दो-चार बिन्दु देखकर जल्दबाज़ी में आधे-अधूरे निष्कर्ष निकालने के बजाय समय मिलने पर बचे हुए आलेख भी पढ़ डालिए।
      - आप किसी को भी निराधार ही किसी का समर्थक बता दें, सही है लेकिन आपकी लगातार लिखी जा रही बात के आधार पर कोई आपको कुछ कह दे तो आप नाराज़ होकर अपनी उपरोक्त टिप्पणी जैसी बात कहकर कभी न आने की बात करेंगी। सोचने का ये कौन सा तरीका है, मैं समझने में पूर्णतया असमर्थ हूँ।

      @आज आप नौकरानी के मानवाधिकार ,शोषण के खिलाफ खड़े है अपने ही देश के सम्मान को दरकिनारा कर तो आप कामरेड नहीं है
      - जी, मैं हमेशा मानवाधिकार के पक्ष में और शोषण के खिलाफ ही हूँ और मेरे देश का सम्मान वहीं है जहां मानवमात्र का सम्मान है, चाहे वो देश के सामान्य नागरिक हों, चाहे देश के लिए जान देने वाले सैनिक। इसके लिए मुझे किसी दमनकारी विचारधारा कि बैसाखी पकड़ने की ज़रूरत नहीं है और न ही किसी भ्रष्ट अधिकारी को सपोर्ट करने की।

      @मैंने कश्मीरियों और माओवाद के नाम पर मासूम लोगो के शोषण के खिलाफ लिख दिया तो मै कामरेड हो गई ।
      - जी नहीं, बात इतनी सी नहीं है, अपनी टिप्पणियाँ फिर से पढ़िये, शायद आप देख पाएँ कि आपकी टिप्पणियों में आतंकवादियों को भी पीड़ित ही बताया गया है और जास्तीफ़ाई करने के लिए कभी अल्पकालिक खलिस्तान और कभी एलटीटीई आतंकवाद की बात की जाती है। आतंकवाद और हिंसा के प्रचार पर आप अपने ब्लॉग पर जो चाहे लिखें, यहाँ मेरे पोस्ट से अगर वैसे बेतुके निष्कर्ष निकाले जाएँगे तो उनका उत्तर देना मेरा कर्तव्य है और उसमें मुझे समस्या नहीं है। समस्या बस इतनी है कि निष्कर्ष का कोई आधार तो हो। हर बार गोल-चक्कर में घूमते रहने वाले प्रचार का जवाब क्या हो सकता है भला? महेंद्र कर्मा हत्याकांड जैसे नृशंस कृत्य पर भी आपकी टिप्पणी आतंकवाद का महिमामंडन और लोकतन्त्र को अपमानित ही कर रही थी।

      @ मै जब भी टिप्पणी करती हूँ तो ये सोच कर करती हूँ कि मेरी बात जीतनी जल्दी समझ में आ जाये उतना ठीक बहस न हो (
      - जी, आपकी टिप्पणियों की लम्बाइयाँ और दोहराव से काफी कुछ स्पष्ट हो ही चुका है। आपकी बात ही समझ आने का आग्रह क्यों? क्या दूसरा पक्ष सदैव गलत ही होता है?
      ... जारी है ...

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    2. ... जारी है ...
      @कहने का अर्थ इतना ही था कि हर राजनितिक पार्टी का उदय ऐसे ही होता है चाहे वो " आप" हो या बीजेपी
      - पोस्ट राजनीतिक पार्टियों के बारे में नहीं, केजरीवाल के उदय के बारे में है। फिर भी आप बीजेपी आदि बल्कि उससे आगे बढ़ाकर आप नक्सल, एलटीटीई आदि का ज़िक्र ले आईं उसकी कोई ज़रूरत नहीं है।

      @ मै जब एक और ब्लॉगर कि पोस्ट पर कांग्रेस के खिलाफ लिखती हूँ ( क्योकि वो कांग्रेस के समर्थक है )तब मै आप को कामरेड नहीं नजर आई ।
      - जी जैसे आपने मेरे कुछ ही पोस्ट पढ़ी हैं, वैसे ही मैंने भी आपकी सारी पोस्ट्स और टिप्पणियाँ नहीं पढ़ीं हैं। कॉंग्रेस के खिलाफ लिखने से कॉमरेड हो जाते हैं, यह वाला निष्कर्ष भी आपकी अनूठी-निष्कर्ष-कला का उत्कृष्ट उदाहरण लगता है।

      @ यदि आप को कुछ लोगो का अपने ब्लॉग पर आना नहीं पसंद है तो उसे लिख देना था
      - जी, कभी ऐसा बुरा वक्त आयेगा तो ब्लॉग लिखना ही बंद करना पसंद करूंगा, ... :)

      @ असहमतियों को यहाँ नहीं सूना जायेगा , ऐसा कुछ लिखा होता तो मै भी नहीं आती
      - एक बार फिर, आपकी गजब की निष्कर्ष कला ने अचंभित किया। फिर भी इस बार बता ही देता हूँ कि मेरे नियमित पाठक अवश्य जानते हैं कि मैंने ऐसी-ऐसी असहमतियाँ प्रकाशित की हैं, जिनके बारे में आप सोच भी नहीं सकतीं। इस ब्लॉग की टिप्पणी पॉलिसी स्पष्ट शब्दों में लिखी है और हर टिप्पणी उसी पॉलिसी से गवर्न होती है।

      @ मेरी टिप्पणियों से आप को कुछ बुरा लगा तो माफ़ी
      - मुझे यहाँ माफी कि कोई वजह नज़र नहीं आती, न बुरा लगने की कोई बात ही नहीं है लेकिन जिस व्यक्ति में बड़ी संभावना दिखती हो, वहाँ पर हर बार वही अपनी बात ही समझाने का आग्रह और विशिष्ट निष्कर्ष निकालने की प्रवृत्ति नज़र आए तो निराशा अवश्य होती है।

      @ जिसे भी आप चाहे तो हटा दे मै हमेसा इसे ब्लॉगस्वामी का एकाधिकार मानती हूँ।
      - ब्लॉगस्वामी का अधिकार तो है पर एकाधिकार नहीं। जो टिप्पणियाँ इस ब्लॉग की टिप्पणी पॉलिसी में अटक जाती हैं, वे कभी दिखती ही नहीं, इसलिए मुझे कभी उन्हें हटाने का कष्ट नहीं करना पड़ता।

      आपकी पिछली टिप्पणियों में कही बातों पर भी बात की जा सकती थी, लेकिन एक तो मुझे बहस का शौक नहीं हैं दूसरे आपकी उपरोक्त टिप्पणी से स्पष्ट है कि आप अपनी बात तो समझाना चाहती हैं लेकिन जवाबी बहस के लिए तैयार नहीं हैं।

      पुनः, टिप्पणी करना न करना आपकी रुचि, प्राथमिकता और अधिकार का क्षेत्र है, उस पर मैं कुछ नहीं कह सकता लेकिन मैं अपने आलेखों का सत्याग्रह जारी रखूँगा, कोई पढे न पढे।

      शुभकामनायें,
      अनुराग

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  30. अनुराग जी
    आप के मुताबिक असंबंधित निष्कर्ष निकालना मेरी खासियत है तो मै ये जानना चाहूंगी की आप ने किन बातो से ये निष्कर्ष निकाल लिया की मै कामरेड हूँ, असंबंधित निष्कर्ष निकलने वाला या कोई व्यक्तिगत सम्बोधन क्यों न मै आप के लिए कहूं । मैरी टिप्पणी में कोई भी आप को निशाना बना कर किया गया व्यक्तिगत आक्षेप या सम्बोधन हो तो आप बताये जबकि आप तुरंत ही मुझ पर व्यक्तिगत टिप्पणी करने लगे , अदा जी ने मुझसे सहमति दिखाई क्या आप उन्हें भी कामरेड कहेंगे , या देवयानी के मुद्दे पर आज शिल्पा जी मुझसे सहमत है तो आप उन्हें भी कामरेड कहेंगे, सम्भवतः आप को मुझसे पहले से ही कोई नाराजगी थी मेरी किसी टिपण्णी से या फिर किसी कामरेड से बहस का गुस्सा आप मुझ पर निकाल रहे थे । मैंने कहा आतंकवादियो का समर्थन किया है क्या आप मुझे बताइयेगा , प्रतिटिप्पणी में मैंने ये कहा है कि केवल कश्मीर के आतंकवाद से इतनी नफ़रत क्यों हर तरह के आतंकवाद से सभी को नफ़रत होनी चाहिए , सिखो की बात का अर्थ इतना है कि जैसे एक समय पंजाब आतंकवाद के समय उन्हें शक कि नजर से देखा जाता है लगता था कि ये समस्या कभी सुलझेगी ही नहीं किन्तु आज ऐसा नहीं है ,तो युवाओ को बताने कि जरुरत है की हर मुस्लिम कश्मीरी को शक कि नजर से देखने कि जरुरत नहीं है , ये एक दौर है जो चला जायेगा उसे इतना बढाने कि जरुरत नहीं है , और न ही जरुरत इस बात कि है कि हर पुराणी बात को खोदा जाये । मेरी नाराजगी बाद में आप कि दी गई प्रतिक्रिया पर नहीं है आप ने पहले जो कुछ लिखा हुआ है उस पर है जहा आप कह रहे है कि
    @anshumala jee,
    @ अनुराग जी कि पोस्ट उन मुद्दो पर नहीं है उनकी पोस्ट की ऐसी तैसी क्या करना
    - नहीं, नहीं, मेरे ब्लोगिंग का उद्देश्य तो आपकी प्रसन्नता ही है। आप ऐसी-तैसी के प्रयास जी-जान से करती रहिए। मुद्दों में क्या धरा है। आप अपनी बात कहिए, हमें वही सुनने में रुचि है। वैसे, आपसे पहले भी कई सीनियर कामरेड यहाँ पोस्ट से इतर होकर अपने-अपने नक्सल/माओ/पोलपोत/कैस्ट्रो/स्टालिन/मार्क्स/आतंक/अव्यवस्था प्रोपेगेंडा को धर्म/भगवा/सिख/ईसाई/सेना/व्यवस्था आदि शब्दों में लपेटकर सर्व करने के प्रयास करते रहे हैं, फिर धीरे-धीरे उस प्रचार की कमजोर चूलों को भाँपकर पीछे हट गए। कुछेक ने तो प्रोपेगेंडा-फ्लोपर मानकर मुझे अपनी फेसबुक मित्र-सूची से भी निकाल दिया है।
    @ वैसे मुझे तो लगा था कि अनुराग जी कुछ जवाब देंगे
    - वैसे तो कोई भी देख सकता है कि आपकी टिप्पनियों में उठाए सवालों के जवाब मेरे पोस्ट्स में पहले ही दिये जा चुके हैं। लेकिन समुचित जवाबों (ब्लॉग-पोस्ट) के जवाब (टिप्पणी/प्रति-टिप्पणी ) में जब हल हो चुके प्रश्न बार-बार सामने लाये जाएँ तो जवाब में मैं क्या कहूँ, आपने खुद ही किसी से कुछ कहा था: तेरा तुझको अर्पण ...
    "ये जानते हुए भी कि आप को समझाना मुश्किल है फिर भी अपनी तो आदत है कि हम चुप नहीं रहते सो ,"

    आप दीप कि जी पोस्ट पर दी गई जिस टिप्पणी का जिक्र कर रहे है वो केवल समलैंगिगता पर उनके बात न समझने के कारण कही गई थी उनकी पिछली पोस्ट इसी विषय में पढ़िए जहा पर मेरे आलावा बहुत से लोगो ने उन्हें लिंक दे बात समझाया था , किन्तु वो "कुछ और " जानना चाह रहे थे , इसलिए मैंने ये टिप्पणी वहा कि थी , जिसे आप घसीट के क्रोध में यहाँ ले कर आये । आप कि पिछली पोस्टो और इस टिप्पणी में साफ झलकता है की कामरेड कम्युनिष्टों को लेकर आप में कितनी नफ़रत है और कामरेड शब्द आप गाली की तरह प्रयोग करते है , जो आप ने मेरे लिए किया , मुझे अपनी आलोचना सुनने में कोई परहेज नहीं है , दीप जी कि पोस्ट पढ़ी होगी तो वहा ये भी लिखा था कि हम सभी अपने विचारो के साथ अपना जीवन जीने के लिए स्वतंत्र है क्योकि हम सभी अलग अलग व्यक्तित्व है , मै आप कि बात से असहमत थी आप मेरी बात से बात यही ख़त्म थी , किन्तु आप ने क्रोध में बात को दूसरी तरफ मोड़ दिया और उसे विचार की जगह व्यक्तिगत बना दिया , मै हमेसा टिप्पणी अपने विचार रखने भर के लिए प्रयोग करती हूँ और उसे रखा कर चली जाती हूँ किसी से ये नहीं कहती हूँ कि केवल मै ही सही हूँ या दुसरो को उसे मानना ही चाहिए , मै असहमतियों को रखने से डरती नहीं हूँ क्योकि मै टिप्प्णी पाने के लिए टिप्पणी नहीं करती और न ही दोस्ती में हा में हा मिलाती हूँ ।
    मै तो स्माइली आदि भी लगा देती हूँ कि किसी को ये न लगे की मेरी कोई भी प्रतिक्रिया गुस्से में या तल्खी में दी जा रही है । आपकि ब्लॉगिंग ऐसे ही सहमत लोगो के साथ चलती रहे

    शुभकामनाये,
    अंशुमाला :)

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