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Monday, December 6, 2010

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के दर्शन - तोक्यो के मन्दिर में


नेताजी जापानी में
इस बार जापान के लिये बिस्तरा बांधते समय हमने तय कर लिया था कि कुछ भी हो जाये मगर वह जगह अवश्य देखेंगे जहाँ नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के भस्मावशेष (अस्थियाँ) रखे हैं। सो, जाने से पहले ही रेनकोजी मन्दिर की जानकारी जुटाने के प्रयास आरम्भ कर दिये। पुराने समय में छोटा-बडा कोई भी कार्य आरम्भ करने से पहले स्वयम् से संकल्प करने की परम्परा थी। परम्परा का सम्मान करते हुए हमने भी संकल्प ले लिया। कुछ जानकारी पहले से इकट्ठी कर ली ताकि समय का सदुपयोग हो जाये। जापान पहुँचकर पता लगा कि संकल्प लेना कितना आवश्यक था। कई ज्ञानियों से बात की परंतु वहाँ किसी ने भी नेताजी का नाम ही नहीं सुना था। उस स्थल का नाम बताया - रेनकोजी मन्दिर, तब भी सब बेकार। मुहल्ले का नाम (वादा, सुगानामी कू) बताया तो जापानी मित्रों ने नेताजी के बारे में एक जानकारी पत्र छापकर मुझे दिया था ताकि इसे दिखाकर स्थानीय लोगों से रेनकोजी मन्दिर की जानकारी ले सकूँ। वे स्वयं भी भारत और जापान के साझे इतिहास के बारे में पहली बार जानकर खासे उत्साहित थे। होटलकर्मियों ने जापानी में स्थल का नक्शा छाप दिया और सहकर्मियों ने 'चंद्रा बोस' तथा मन्दिर के बारे में कुछ जानकारी इकट्ठी करके हमें हिगाशी कोएंजी (Higashi-Koenji) स्टेशन का टिकट दिला कर मेट्रो में बिठा दिया।

लाफिंग बुद्धा/चीनी कुवेर की मूर्ति
हिगाशी कोएंजी उतरकर हमने सामने पड़ने वाले हर जापानी को नक्शा दिखाकर रास्ता पूछना आरम्भ किया। लोग नक्शा देखते और फिर जापानी में कुछ न कुछ कहते हुए (शायद क्षमा मांगते हुए) चले जाते। एकाध लोगों ने क्षमा मांगते हुए हाथ भी जोड़े। आखिरकार संकल्प की शक्ति काम आयी और एक नौजवान दुकानदार ने अपने ग्राहकों से क्षमा मांगकर बाहर आकर टूटी-फ़ूटी अंग्रेज़ी और संकेतों द्वारा हमें केवल दो मोड़ वाला आसान रास्ता बता दिया। उसके बताने से हमें नक्शे की दिशा का अनुमान हो गया था। जब नक्शे के हिसाब से हम नियत स्थल पर पहुँँचे तो वहाँ एक बड़ा मन्दिर परिसर पाया। अन्दर जाकर पूछ्ताछ की तो पता लगा कि गलत जगह आ गये हैं। वापस चले, फिर किसी से पूछा तो उसने पहले वाली दिशा में ही जाने को कहा। एक ही सडक (कन्नाना दोरी) पर एक ही बिन्दु के दोनों ओर कई आवर्तन करने के बाद एक बात तो पक्की हो गयी कि हमारा गंतव्य है तो यहीं। फिर दिखता क्यों नहीं?

रेनकोजी मन्दिर का स्तम्भ
सरसरी तौर पर आसपास की पैमाइश करने पर एक वजह यही लगी कि हो न हो यह रेनकोजी मन्दिर मुख्य मार्ग पर न होकर बगल वाली गली में होगा। सो घुस गये चीनी कुवेर की प्रतिमा के साथ वाली गली में।

कुछ दूर चलने पर रेनकोजी मन्दिर पहुुँच गये। दरअसल यह जगह स्टेशन से अधिक दूर नहीं थी। हम मुख्य मार्ग पर चलकर आगे चले आये थे।

मन्दिर पहुँचकर पाया कि मुख्यद्वार तालाबन्द था। वैसे अभी पाँच भी नहीं बजे थे लेकिन हमारे जापानी सहयोगियों ने मन्दिर के समय के बारे में पहले ही दो अलग-अलग जानकारियाँ दी थीं। एक ने कहा कि मन्दिर पाँच बजे तक खुलता है और दूसरे ने बताया कि मन्दिर हर साल 18 अगस्त को नेताजी की पुण्यतिथि पर ही खुलता है। अब हमें दूसरी बात ही ठीक लग रही थी।

कांजी लिपि में नेताजी का नामपट्ट =>

सूचना पट्

कार्यक्रम/समयावली?
द्वार तक आकर भी अन्दर न जा पाने की छटपटाहट तो थी परंतु दूर देश में अपने देश के एक महानायक को देख पाने का उल्लास भी था। द्वार से नेताजी की प्रतिमा स्पष्ट दिख रही थी परंतु सन्ध्या का झुटपुटा होने के कारण कैमरे में साफ नहीं आ रही थी।


मन्दिर का मुख्यद्वार
सुभाष चन्द्र बोस जैसे महान नेता के अंतिम चिह्नों की गुमनामी से दिल जितना दुखी हो रहा था उतना ही इस जगह पर पहुँचने की खुशी भी थी। वहाँ की मिट्टी को माथे से लगाकर मैंने भरे मन से अपनी, और अपने देशवासियों की ओर से नेताजी को प्रणाम किया और कुछ देर चुपचाप वहाँ खड़े रहकर उस प्रस्तर मूर्ति को अपनी आँखों में भर लिया।


छत पर प्रतीक चिह्न

गर्भगृह जहाँ अस्थिकलश रखा है

समृद्धि के देव रेनकोजी

रेनकोजी परिसर में नेताजी
मेरा लिया हुआ चित्र दूरी, अनगढ़ कोण, हाथ हिलने और प्रकाश की कमी आदि कई कारणों से उतना स्पष्ट नहीं है इसलिये नीचे का चित्र विकीपीडिया के सौजन्य से:
यह चित्र विकीपीडिया से

मन्दिर का पता:
रेनकोजी मन्दिर, 3‐30-20, वादा, सुगिनामी-कू, तोक्यो (जापान)
मन्दिर के दर्शन के लिये भविष्य में यहाँ आने के इच्छुकों के लिये सरल निर्देश:

हिगाशी कोएंजी स्टेशन के गेट 1 से बाहर आकर बायें मुड़ें, और पार्क समाप्त होते ही पतली गली में मुड़कर तब तक सीधे चलते रहें जब तक आपको दायीं ओर एक मन्दिर न दिखे। यदि यह गली मुख्य सड़क में मिलती है या बायीं ओर आपको ऊपर वाला चीनी कुवेर दिखता है तो आप मन्दिर से आगे आ गये हैं - वापस जायें, रेनकोजी मन्दिर अब आपके बायीं ओर है। नीचे मन्दिर का गूगल मैप है और उसके नीचे पूरे मार्ग का आकाशीय दृश्य ताकि आप मेरी तरह भटके बिना मन्दिर की स्थिति का अन्दाज़ लगा सकें।

View Larger Map


View Renkoji Temple, Tokyo in a larger map
हिगाशी कोएंजी स्टेशन से रेनको-जी मन्दिर तक का नक्शा

[अंतिम चित्र विकिपीडिया से; अन्य सभी चित्र: अनुराग शर्मा द्वारा]
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विषय सम्बन्धित कुछ बाह्य कड़ियाँ
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What happened that day
Indian Express story
Netaji's memorial
Shah Nawaz Report
अंतिम सत्य
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Thursday, October 28, 2010

लक्ष्मी स्वामिनाथन सहगल - एक और वीरांगना

चित्र अंतर्जाल अभिलेख से साभार
(जन्म:24 अक्टूबर 1914 – अवसान:23 जुलाई 2012)

मद्रास उच्च न्यायालय के सफल वकील डॉ0 स्वामिनाथन के घर खुशियाँ मनाई जा रही थीं। 24 अक्तूबर 1914 को उनके घर लक्ष्मी सी बेटी का जन्म हुआ था जिसका नाम उन्होने लक्ष्मी ही रखा, लक्ष्मी स्वामिनाथन। लक्ष्मी की माँ अम्मुकुट्टी एक समाज सेविका और स्वाधीनता सेनानी थीं। लक्ष्मी पढाई में कुशल थीं। सन 1930 में पिता के देहावसान का साहसपूर्वक सामना करते हुए 1932 में लक्ष्मी ने विज्ञान में स्नातक परीक्षा पास की। 1938 में उन्होने मद्रास मेडिकल स्कूल से ऐमबीबीएस किया और 1939 में जच्चा-बच्चा रोग विशेषज्ञ बनीं। कुछ दिन भारत में काम करके 1940 में वे सिंगापुर चली गयीं।

सिंगापुर में उन्होने न केवल भारत से आये आप्रवासी मज़दूरों के लिये निशुल्क चिकित्सालय खोला बल्कि भारत स्वतंत्रता संघ की सक्रिय सदस्या भी बनीं। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1942 में जब अंग्रेज़ों ने सिंगापुर को जापानियों को समर्पित कर दिया तब लक्ष्मी जी ने आहत युद्धबन्दियों के लिये काफी काम किया। उसी समय ब्रिटिश सेना के बहुत से भारतीय सैनिकों के मन में अपने देश की स्वतंत्रता के लिये काम करने का विचार उठ रहा था।

दो जुलाई 1943 का दिन ऐतिहासिक था जब सिंगापुर की धरती पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने कदम रखे। उनकी सभाओं और भाषणों के बीच आज़ाद हिन्द फौज़ की पहली महिला रेजिमेंट के विचार ने मूर्तरूप लिया जिसका नाम वीर रानी लक्ष्मीबाई के सम्मान में झांसी की रानी रेजिमेंट रखा गया। 22 अक्तूबर 1943 को डॉ0 लक्ष्मी स्वामिनाथन झांसी की रानी रेजिमेंट में कैप्टेन पद की सैनिक अधिकारी बन गयीं। बाद में उन्हें कर्नल का पद मिला तो वे एशिया की पहली महिला कर्नल बनीं। बाद में वे आज़ाद हिन्द सरकार के महिला संगठन की संचालिका भी बनीं।

विश्वयुद्ध के मोर्चों पर जापान की पराजय के बाद सिंगापुर में पकडे गये आज़ाद हिन्द सैनिकों में कर्नल डॉ लक्ष्मी स्वामिनाथन भी थीं। चार जुलाई 1946 में भारत लाये जाने के बाद उन्हें बरी कर दिया गया। नेताजी के दायें हाथ मेजर जनरल शाहनवाज़ व कर्नल गुरबक्ष सिंह ढिल्लन और कर्नल प्रेमकुमार सहगल पर लाल किले में देशद्रोह आदि के मामलों के मुकदमे चले जिसमें पण्डित नेहरू, भूलाभाई देसाई और कैलाशनाथ काटजू की दलीलों के चलते उन तीनों वीरों को बरी करना पडा।

लाहौर में मार्च १९४७ में कर्नल प्रेमकुमार सहगल से शादी के बाद डॉ0 लक्ष्मी स्वामिनाथन कानपुर में बस गयीं। बाद में वे सक्रिय राजनीति में आयीं और 1971 में मर्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी से राज्यसभा की सदस्य बनीं। 1998 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मनित किया गया। 2002 में 88 वर्ष की आयु में उन्होने वामपंथी दलों की ओर से श्री ए पी जे अब्दुल कलाम के विरुद्ध राष्ट्रपति पद का चुनाव भी लडा था।

चित्र: रिडिफ के सौजन्य से
कम्युनिस्ट नेत्री बृन्दा करात की फिल्म अमू की अभिनेत्री और स्वयम एक कम्युनिस्ट नेत्री सुभाषिनी अली इन्हीं दम्पत्ति की पुत्री हैं। डॉ सहगल के पौत्र और सुभाषिनी और मुज़फ्फर अली के पुत्र शाद अली साथिया, बंटी और बब्ली आदि फिल्मों के सफल निर्देशक रह चुके हैं। प्रसिद्ध नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई उनकी सगी बहन हैं।

[मूल आलेख: अनुराग शर्मा; गुरुवार 28 अक्टूबर 2010; Thursday, October 28, 2010)

अपडेट: 23 जुलाई 2012: आज आज़ाद हिन्द की इस अद्वितीय वीरांगना के देहांत का दुखद समाचार मिला है। कैप्टन डा॰ लक्ष्मी सहगल अब इस संसार में नहीं हैं ... विनम्र श्रद्धांजलि!

जनसत्ता 24 जुलाई 2012 में कैप्टन सहगल के देहावसान का समाचार

सम्बन्धित कड़ियाँ
* आजाद भारत की लक्ष्मीबाई..कैप्टन लक्ष्मी सहगल
* लक्ष्मी सहगल - विकीपीडिया
* कैप्टन लक्ष्मी सहगल का निधन