ॐ भूर्भुवः स्वः वरुण! इहागच्छ, इह तिष्ठ वरुणाय नमः, वरुणमावाहयामि, स्थापयामि।
पिछली गर्मियों (जून २००९) में छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू सूखे से बचाव के लिए ऐतिहासिक बुद्धेश्वर महादेव मंदिर में वरुण यज्ञ कराने के कारण चर्चा में आये थे. राजनगर नंगल के श्रद्धा के केंद्र वरुण देव मंदिर के बारे में शायद निर्मला कपिला जी अधिक जानकारी दे सकें. असुर-आदित्य वरुणदेव दस दिक्पालों में से एक हैं जिनके कन्धों पर पश्चिम दिशा का भार है. उनका अस्त्र पाश है. पापियों को वे इसी पाश से बांधते हैं. सिंध और कच्छ की तटीय क्षेत्रों में वरुणदेव की पूजा अधिक होती थी. भारत में वरुण देव के शायद बहुत मंदिर नहीं बचे हैं. यह कहते हुए मुझे ध्यान है कि भारत के बारे में कोई भी बात कहते समय मुझे भारत की अद्वितीय विविधता के बारे में अपने अज्ञान का ध्यान रखना चाहिए. शायद इसी लेख पर किसी टिप्पणी में भारत के एक ऐसे क्षेत्र का पता लगे जहां वरुणदेव के मंदिरों की भरमार हो. पाकिस्तानियत नाम के ब्लॉग में सिंध प्रदेश के मनोरा द्वीप में स्थित ऐसे एक मंदिर का सचित्र वर्णन है. इस मंदिर और उसकी दुर्दशा के बारे में अधिक जानकारी फैज़ा इल्यास की इस रिपोर्ट में है
त्वम॑ग्ने रु॒द्रो असु॑रो म॒हो दि॒वस्त्वं शर्धो॒ मारु॑तं पृ॒क्ष ई॑शिषे।पीछे एक कड़ी में हमने असुर का संधि विच्छेद असु+र के रूप में देखा था.
त्वं वातै॑ररु॒णैर्या॑सि शंग॒यस्त्वं पू॒षा वि॑ध॒तः पा॑सि॒ नु त्मना॑॥
हड़प्पा साहित्य और वैदिक साहित्य के भगवान सिंह "सुर" का अर्थ कृषिकर्मा मानते है. उन्हीं के अनुसार उत्पादन के साधनों पर अधिकार रखने वाले देव थे और अनुत्पादक लोग असुर। तो क्या उत्पादन के समर्थक सुर हुए और अनुत्पादक बंध और हड़ताल के समर्थक असुर? आइये देखें, व्याख्याकारों के अनुसार असुर की कुछ परिभाषायें निम्न है:
खैर अपना-अपना ख्याल है - हमें क्या? मगर इस बीच हम देव शब्द की परिभाषा तो देख ही लें - अगली कड़ी में.
- असुं राति लाति ददाति इति असुरः
- असुषु रमन्ते इति असुरः
- असु क्षेपणे, असून प्राणान राति ददाति इति असुरः
- सायण के अनुसार: असुर = बलवान, प्राणवान
- निघंटु के अनुसार: असुर = जीवन से भरपूर, प्राणवान
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