Wednesday, April 13, 2011

कुसुमाकर कवि

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रंग भरे कुदरत ने इन्द्रधनुष प्यार का
याद तेरी हर तरफ मौसम ये बहार का

मुँह लगा के पीनी मुझे तो नागवार है
देखकर चढे नशा तौ जादू है खुमार का

हैसियत नहीं यहाँ से खाक भी उठा सकूँ
देखने चला हूँ रंग-रूप इस बज़ार का

खुद से मैं छिपा हुआ सामने न आ सकूँ
फटी जेब खाली हाथ आर का न पार का

छन्द लय और बहर कुछ मुझे पता नहीं
बोल आप से लिये कवि हूँ मैं उधार का


[कुसुमाकर कवि = जो कवि नहीं है लेकिन बहार के मौसम में कविता जैसा कुछ कहना चाहता है।]
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16 comments:

  1. यह कुसुमाकर कवि तो सुधाकर लग रहा है .................. शीतल अमृतमयी फुहार सी लगी यह रचना .

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  2. तलस्पर्शी सच्चाई!!!

    हैसियत नहीं यहाँ खाक भी उठा सकूँ
    देखने चला हूँ रंग-रूप इस बज़ार का

    सभी की यह भ्रमपूर्ण सोच है।

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  3. छन्द लय और बहर कुछ मुझे पता नहीं
    बोल आप से लिये कवि हूँ मैं उधार का.....

    balak ki bebasi tippani tak udhar ka......

    pranam.

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  4. कवि हूं मैं उधार का ......
    वाह क्या बात है....

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  5. जो कविता लिखी है, उससे तो सिद्ध होता है कि आप मूल के कवि हैं, न कि उधार के।

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  6. लगता है शीर्षक में कुछ गलती हो गयी है -होना सुकुमार कवि था न :)

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  7. जब बात मौसम (=ऋतु?) और कवि की है तो कुसुमाकर के साथ शुक्राचार्य की बात भी होनी चाहिए :)
    पता नहीं क्यों मुझे ऋतूनां कुसुमाकरः याद आ गया.

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  8. पता नहीं जिसे बंदे को बहारें पता चलने लग जायें उसे कवि कहेंगे भी कि नहीं :)

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    1. बहार का खुमार या बहर का हिसाब :)

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  9. कविता उधार के कवि की तो नहीं लगती.:)

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  10. उधार का यह कवि तो बहुत बडा साहूकार लग रहा है।

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  11. रंग भरे कुदरत ने इन्द्रधनुष प्यार का याद तेरी हर तरफ मौसम ये बहार का
    "bhut khubsurat alfaaj"
    regards

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  12. बहुत खूब! उधारी वाली बात तो सही नहीं लगती!

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  13. kavi toh tabhi kavi hai...jo bina khe bahut si batoin ka ahsas kara de....

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  14. Jinko shabdon ki jadugari aati hai ve udhar ke kavi ho hi nahi sakte..han! shabd to vahi rahte hain aapni aavaz dalni hoti hai..achchhi rachana..badhai..

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