(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा)
प्रेम का जादू यही
इक एहसास वही
अमृती धारा बही
पीर अग्नि में दही
मैं की दीवार ढही
रात यूँ ढलती रही
बंद होठों से सही
बात जो तूने कही
प्रेम का जादू यही
इक एहसास वही
अमृती धारा बही
पीर अग्नि में दही
मैं की दीवार ढही
रात यूँ ढलती रही
बंद होठों से सही
बात जो तूने कही
Lovely!
ReplyDeleteप्रेम को शब्दों में बाँध पाना मेरी दृष्टि में सबसे मुश्किल कार्य.......
ReplyDeleteमगर आप हर मुश्किल कार्य बखूबी कर जाते हैं
शायद इसीलिए तो smart indian कहलाते हैं। :-)
बहुत सुन्दर कविता सर।
आपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शनिवार (18-04-2015) को "कुछ फर्ज निभाना बाकी है" (चर्चा - 1949) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बन्द होठों से सही
ReplyDeleteबात जो तू ने कही
वाह बहुत खूब 1
बहुत बढ़िया शब्द भाव संयोजन रचना में, अमृती मतलब तीर्थपात्र ?
ReplyDeleteबंद होटों से अस्फुट मंत्र , बहुत सुन्दर सूत्र प्रेम में ईगोलेस्स होने का !
सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबढ़िया :)
ReplyDeleteवाह क्या कुछ कह दिया
ReplyDeleteबंद होठों से सही
ReplyDeleteबात जो तूने कही ...
बंद आखों से कही बातें अक्सर अपना असर छोड़ जाती हैं ...
छोटी बहार में मुकम्मल ग़ज़ल ...
सुंदर
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
गागर में सागर..मैं मिटे तो बात कहने की जरूरत ही नहीं रहती...
ReplyDeleteसरल शब्दों में समा गई कबीर जैसी गहन भावना - प्रभावशाली !
ReplyDeleteमैं की दीवार ढही
ReplyDeleteरात यूँ ढलती रही
...मैं की दीवार ढ़हने पर फिर दिलों के बीच दूरी कहाँ..बहुत सुन्दर और गहन प्रस्तुति...
चंद शब्दों में बहुत कुछ कह दिया
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