Wednesday, June 3, 2009

४ जून - सर्वहारा और हत्यारे तानाशाह

आज उस दुखद घटना की बीसवीं बरसी है जिसके जीवित बचे हजारों पीड़ित आज भी चीन की विभिन्न जेलों में सड़ रहे हैं। ५ जून १९८९ को चीन के तिआनआनमेन चौक (Tiananmen Square) में लिया गया वह फोटो आज दो दशक बाद भी दुनिया भर में तानाशाहीयों के ख़िलाफ़ जन-विरोध का प्रतीक बना हुआ है जिसमें सैनिक टैंकों की एक कतार एक निहत्थे प्रदर्शनकारी को कुचलने ही वाली है। दमनकारी चीनी सरकार ने सपने में भी नहीं सोचा था कि मुखर और जनप्रिय सरकारी अधिकारी हूँ याओबांग की मृत्यु का शोक मनाने के लिए १५ अप्रैल १९८९ को तिआनमान चौक में इकट्ठे हुए दस लाख लोग नागरिक स्वतन्त्रता की मांग करने की हिम्मत कर सकेंगे। लेकिन तानाशाह अगर जनता का मन पढ़ सकते होते तो फ़िर दुनिया भर में जनतंत्र ही होता।

चीन की सरकार ने हूँ याओबांग को १९८६-८७ के छात्र आन्दोलन का जिम्मेदार ठहराते हुए महासचिव पद से त्यागपत्र देने को मजबूर किया था। जनता उनके इस प्रकार हटाये जाने से सरकार से पहले ही नाराज़ थी। मगर बाद में जब सरकारी सूत्रों ने उनकी अचानक हुई मृत्यु की ख़बर देना शुरू किया तो दमन से गुस्साए बैठे लोगों के आक्रोश का ठिकाना नहीं रहा। छात्रों ने अहिंसक तरीके से हूँ याओबांग पर लगाए गए आरोपों को वापस लेने की मांग की। मगर उन्हें क्या पता कि सर्वहारा का दम भरने वालों की असलियत कितनी घिनौनी हो सकती है।

चीन की साम्यवादी हुकूमत के धमकाने पर भी जब जनता ने मैदान नहीं छोडा तो सेना ने नरसंहार शुरू किया। चीन के रेड्क्रोस के अपने शुरूआती आंकडों के अनुसार भी इस सैनिक कार्रवाई में ४ जून १९८९ को ढाई हज़ार से अधिक लोग शहीद हुए। बाद में चीन की सरकार ने आधिकारिक रूप से २४१ मृतक और ७००० घायलों की संख्या बताई। आज के दिन चीन और उसके बाहर जन-स्वातंत्र्य के लिए जान देने वाले शहीदों को नमन! ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे और दुनिया से दुष्टों का सफाया करे। इस अवसर पर बाबा नागार्जुन की एक पंक्ति ज़रूर कहना चाहूंगा:
हरी ॐ तत्सत!

Saturday, May 30, 2009

जून का आगमन

तदैव लग्नं सुदिनं तदैव, ताराबलं चंद्रबलं तदैव विद्याबलं दैवबलं तदैव लक्ष्मिपतिम तेंघ्रियुग्मस्मरामि जैसा कि उपरोक्त संस्कृत वचन से स्पष्ट है कि प्रभु के बनाए सभी दिन, लग्न, मुहूर्त आदि सबके लिए समान रूप से शुभ होते हैं। फिर भी यह मानव मन की प्रकृति है जो चाहे अनचाहे शुभ मुहूर्त ढूंढती रहती है। तथाकथित भविष्यविज्ञानी (दरअसल भूत-वक्ता) भी मानव मन की इस कमजोरी का भरपूर लाभ उठाते रहे हैं। अपने बचपन के दिन याद करुँ तो, तब अधिकाँश भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में वर्ष के अंत में अगले वर्ष का भविष्य-फल छपा करता था और बड़े चाव से पढा भी जाता था। लोग उस पर चर्चा भी करते थे और विश्वास भी। चर्चा में कभी-कभार मैं भी भाग लेता था मगर मेरे सामने विश्वास-अविश्वास का प्रश्न नहीं था क्योंकि मैं दिसम्बर के महीने में हमेशा ही भविष्यफल पढता तो था मगर आने वाले वर्ष का नहीं बल्कि गुज़रे हुए वर्ष का। ऐसा मैंने लगभग एक दशक तक किया और भविष्यफल को अधिकांशतः ग़लत ही पाया। भाषा के लच्छों में लपेटे हुए कयास अक्सर मेरे जैसे बालक द्वारा रखी गयी संभावनाओं से भी गए गुज़रे होते थे, उनके सही होने का तो सवाल ही नहीं उठता था। जो बात सबसे ज़्यादा व्यथित करती थी वह थी इन भविष्यवक्ताओं की अभिरुचि का दायरा। वे विकास, जनोत्थान की बात नहीं करते थे बल्कि "किसी राजनेता की गंभीर बीमारी की संभावना", "पड़ोसी देश से युद्ध की आशंका", "कहीं बाढ़ तो कहीं सूखे की भविष्यवाणी" और "सट्टा बाज़ार का रुझान" बताते थे। ज़ाहिर है कि दिसम्बर का महीना मेरे लिए बहुत रोचक था मगर मेरा प्रिय महीना तो जून का ही था। स्कूल की छुट्टियां शुरू हो जाती थीं और अपने नाते-रिश्तेदारों से मिलना, दूर-दूर घूमना शुरू हो जाता था। और निर्बंध होने की वह बेफिक्री, उसका तो कोई जवाब ही नहीं था। कभी कभी इस बात का दुःख भी होता था कि मई या जुलाई की तरह जून में ३१ दिन क्यों नहीं होते हैं. फिर इस बात का संतोष भी होता था कि चलो यह मास फरवरी से तो बड़ा ही है। जून में न तो दीवाली होती थी और न ही होली। न रंग फेंकते थे और न ही आतिशबाजी होती थी मगर हम पतंग खूब उडाते थे। बरेली की पतंग और बरेली का ही मांझा। क्या पेंच लड़ते थे? पड़ोस में रहने वाला फीरोज़ अक्सर लंगड़ (डोर में पत्थर बांधकर बनाया गया लंगर) डालकर उडती पतंगों को अपनी छत पर गिराकर चुरा लिया करता था। भगवान् जाने आजकल कहाँ लंगड़ डाल रहा होगा। जून मास मुझे इतना प्रिय था कि मैंने अपनी बेटी का नाम भी जून रखने के बारे में सोचा था। परसों एक जून उसी प्रिय मास का पहला दिन है। हिन्दी फ़िल्म "ब्लैक" समेत दुनिया भर में अनेकों फिल्मों और लोगों की प्रेरणा-स्रोत बनी हेलन केलर का जन्म दिन भी एक जून को ही होता है। उनके अलावा प्रसिद्ध अभिनेत्री मर्लिन मनरो और "डेनिस द मेनास" के रचयिता "हेंक केचम" भी इसी दिन जन्मे थे। बहुत सी अन्य विभूतियाँ जैसे कि ब्लेज़ पास्कल, मक्सिम गोर्की, सलमान रश्दी, प्रकाश पादुकोण और पोल मैककोर्टनी(बीटल) भी इसी महीने में जन्मी थीं। वैसे कुछ खगोल-वैज्ञानिकों का दावा है कि प्रभु यीशु भी २५ दिसम्बर को नहीं बल्कि 17 जून, २ ई.पू. को पैदा हुए थे। विस्तार से पढने के इच्छुक लोग यह लेख देख सकते हैं। अगर धार्मिक लोगों में वैज्ञानिक सोच का विस्तार होने लगे तो वह दिन दूर नहीं है जब हम क्रिसमस जून में मनाया करेंगे। जो भी हो मैं जून-प्रसन्न हूँ तो सोचा कि अपनी खुशी आप लोगों के साथ बाँट लूँ। शुभ जून।

Monday, May 18, 2009

बाजी शाकाहारी, बेल्जियम ने मारी

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कुछ समय पहले मैंने शाकाहार पर एक शृंखला लिखी थी जिसमें अन्य बातों के साथ पर्यावरण पर शाकाहार के अच्छे प्रभाव का ज़िक्र भी नैसर्गिक रूप से आ गया था। हम भारतीय तो नसीब वाले हैं कि हमारे देश में अहिंसा, प्राणीप्रेम और शाकाहार की हजारों वर्ष पुरानी परम्परा रही है। अहिंसक विचारधारा की जन्मभूमि में आज भले ही कुछ लोग शाकाहार को पुरातनपंथी मानने लगे हों, शाकाहार का डंका विश्व भर में बज रहा है। व्यक्तिगत रूप से तो शाकाहार विश्व भर में ही प्रचलन में आ रहा है परन्तु बेल्जियम के गेंट नगर ने इसे आधिकारिक बनाकर इतिहास ही रच डाला है।

पर्यावरण की रक्षा के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए मांसाहार के दुष्प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से बेल्जियम के गेंट के नगर प्रशासन ने हर सप्ताह एक दिन (गुरूवार को) 'शाकाहार दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। इस दिन नगर के अधिकारी और चुने गए जन-प्रतिनिधि शाकाहारी भोजन करेंगे और स्कूली बच्चे भी अपने तरीके से शाकाहार दिवस को मनाएँगे।

नगर प्रशासन को विश्वास है कि इस प्रयोग से धरा को क्षति पहुँचाने वाली ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी तो होगी ही, लगे हाथ मोटापा और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से छुट्टी भी मिल जायेगी। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि विश्व में ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन का एक बड़ा भाग मांस के कारखानों से आता है। हम तो इतना ही कहेंगे - बधाई गेंट, बधाई बेल्जियम! आपने पहल की है, अन्य देश-नगर भी धीरे-धीरे सीख ही लेंगे।

आज का सवाल: लगभग पांच शताब्दी पहले एक मुस्लिम सम्राट ने शाकाहार की खूबियों को देखते हुए यह निश्चित किया कि राजमहल में शुक्रवार का दिन अहिंसक भोजन का दिन हुआ करेगा। इस सम्राट का धर्मान्ध प्रपौत्र पीने के लिए गंगाजल के प्रयोग के लिए भी मशहूर है। क्या आप इन दोनों में से किसी का भी नाम बता सकते हैं?