Thursday, August 8, 2013

मन गवाक्ष चित्रावली - इस्पात नगरी से [64]

कैनेडा, संयुक्त राज्य, जापान और भारत के कुछ अलग से द्वारों की पुरानी पोस्ट "मेरे मन के द्वार - चित्रावली" की अगली कड़ी प्रस्तुत है। प्रस्तुत सभी चित्र अमेरिका महाद्वीप में लिए गए हैं।
मन गवाक्ष फिर फिर खुल जाये, शीतल मंद समीर बहाये
(इस्कॉन मंदिर माउण्ड्सविल, वेस्ट वर्जीनिया)
पंथी पथ के बदल रहे पर पथ बेचारे वहीं रहे
(इस्कॉन मंदिर माउण्ड्सविल, वेस्ट वर्जीनिया)

मन की बात सुना भी डालो, यह दर आज खुला ही छोड़ो
(पैलेस ऑफ गोल्ड, इस्कॉन मंदिर माउण्ड्सविल, वेस्ट वर्जीनिया)

द्वार भव्य है भवन अनूठा, पर मेरा तो मन है झूठा
(पैलेस ऑफ गोल्ड, इस्कॉन मंदिर माउण्ड्सविल, वेस्ट वर्जीनिया)

प्यार का इज़हार करेंगे, रोज़ तेरे द्वार करेंगे
(मांटेगो बे, जमयिका) 

द्वार बंद कोई आ न पाता, मन मानस सूना रह जाता
(ओचो रिओस, जमयिका)

स्वागत है ओ मीत हमारे, चरण पड़े जो इधर तुम्हारे
(ओचो रिओस, जमयिका) 

सपने में हर रोज़ जगाते, खुली आँख वह द्वार न पाते
(परदेस के एक भारतीय ढाबे में भित्तिचित्र)  

दिल खुला दर भी खुला था, मीत फिर भी न मिला था
(नॉर्थ पार्क, पिट्सबर्ग)

वसुंधरा का प्यार है, खुला-खुला ये द्वार है
(नॉर्थ पार्क, पिट्सबर्ग) 

दस द्वारे को पिंजरा, तामे पंछी कौन, रहे को अचरज रहे, गए अचम्भा कौन। ~ (संत कबीर?)
(नॉर्थ पार्क, पिट्सबर्ग)

[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: Photos by Anurag Sharma]

* सम्बन्धित कड़ियाँ *
* इस्पात नगरी से - श्रृंखला
* मेरे मन के द्वार - चित्रावली

Friday, August 2, 2013

कैन्टन एवेन्यू, बीचव्यू - इस्पात नगरी से [63]

बरेली में थे तो सब कुछ समतल था। बिहारीपुर का ढलान, या कुल्हाड़ापीर की चढ़ाई से आगे यदि कोई सोचता तो शायद छावनी की हिलट्रेक रोड ही थी। हाँ, नैनीताल बहुत दूर नहीं था। सैर के लिए लोग गर्मियों में अक्सर वहाँ जाते थे। धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों के लिए पूर्णागिरी देवी का दर्शन पर्वत यात्रा का कारक बनाता था। इस शृंखला की पिछली कड़ी में हमने पिट्सबर्ग के हिमाच्छादित कुटिल पथों के नैसर्गिक सौन्दर्य को देखा था। आज फिर से हम पिट्सबर्ग की सैर पर निकले हैं। ऊंची, नीची, टेढ़ी मेढ़ी सड़कें। सावन के महीने में बर्फ तो नहीं है लेकिन टेढ़ापन मौसम से कहाँ बदलता है?


आपके साथ आज हम चलते हैं कैन्टन एवेन्यू (Canton Avenue) देखने जिसका ढलान (grade) 37% है। यह मामूली सी दिखने वाली संख्या किसी सड़क की चढ़ाई के लिए काफी बड़ी है, इतनी बड़ी कि सामान्यतः नज़रअंदाज़ रहने वाली मामूली सी सड़क कैन्टन एवेन्यू को आधिकारिक रूप से अमेरिका की सबसे ढलवां सड़क होने का गौरव प्राप्त है।

गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकोर्ड्स के अनुसार न्यूज़ीलैंड की बाल्डविन स्ट्रीट संसार की सबसे खड़ी चढ़ाई है। लेकिन जब उसके ढलान की बात आती है तब स्पष्ट होता है कि वास्तव में कैन्टन एवेन्यू ही संसार की सबसे खड़ी चढ़ाई वाली सड़क है। शुक्र है कि अमेरिका में वोट पाने के लिए इन मुद्दों की आक्रामक दूकानदारी का रिवाज नहीं है वरना ...  

कैन्टन एवेन्यू की कुल लंबाई 192 मीटर या 630 फुट है। इस पर तीन मीटर की क्षैतिज दूरी तय करने पर आप स्वतः ही 1.1 मीटर चढ़ लेते हैं। पिट्सबर्ग के लोगों को यह सड़क देखने पर कोई आश्चर्य नहीं होता क्योंकि बहुत से घरों के घास के मैदान भी इससे अधिक ढलवां होते हैं। लेकिन (ड्राइवेबल) सड़क की बात और है। सड़क के किनारे का फुटपाथ दरअसल सीढ़ियाँ हैं।

पिट्सबर्ग की "डर्टी दजन" साइकल रेस 12 चढ़ाइयों से गुजरती है जिनमें कैन्टन एवेन्यू सबसे महत्वपूर्ण है। इसी साइकिल दौड़ के कैन्टन एवेन्यू खंड की एक वीडियो क्लिप यूट्यूब के सौजन्य से प्रस्तुत है।


सम्बन्धित कड़ियाँ
* इस्पात नगरी से - श्रृंखला
* डर्टी दजन साइकल रेस
* कैन्टन एवेन्यू - विकीपीडिया
 

Monday, July 1, 2013

मार्जार मिथक गाथा

(अनुराग शर्मा)

बिल्लियाँ जब भी फुर्सत में बैठती हैं, इन्सानों की ही बातें करती हैं। यदि आप कभी सुन पाएँ तो जानेंगे कि उनके अधिकांश लतीफे मनुष्यों के बेढंगेपन पर ही होते हैं। कहा जाता है कि बहुत पहले बिल्लियों के चुटकुले भी बहुरंगी होते थे। फिर धीरे-धीरे आत्म-केन्द्रित इंसान प्रकृति के साथ-साथ बिल्लियों के हास्य-व्यंग्य पर भी कब्जा करता गया और अब तो कोई पढ़ी-लिखी बिल्ली इंसान की कल्पना किए बिना ढंग से हँस भी नहीं सकती है। बिल्लियों के विपरीत इन्सानों के चुट्कुले अपने और दूसरे के बीच के अंतर से उत्पन्न होते हैं। उनमें अक्सर दूसरे देश, धर्म, प्रांत या मज़हब के इन्सानों का ज़िक्र होता है। कभी-कभी उनमें गधे या कुत्ते जैसे सरल प्राणी शामिल होते हैं लेकिन अक्सर तो इंसानी साहित्य की अन्य विधाओं की तरह उनके लतीफों का दायरा भी सीमित ही रह गया है। लेकिन कुछ इंसान दूसरों से अलग हैं। वे इंसानी नस्ल के आगे भी सोचते हैं। मनुष्यमात्र की बात करना उनके लिए स्वार्थ का प्रतिमान है।

ऐसे टुन्नात्मिक प्रवृत्ति वाले लोगों का संसार बिल्ली-कुत्तों के दुख-दर्द, उनके राजनीतिक अधिकार, सरकार द्वारा मछलियों की अभिव्यक्ति के दमन और घोड़े-गदहे-जिराफ़ और गेहूँ-कमल-गुलाब की समानता के अधिकार के बारे में सोचता है। वे दुबले हुए जाते हैं इसीलिए आप सड़क पर खुजलाते आवारा कुत्तों को देख पाते हैं, वरना ज़ालिम नगर पालिका वाले उन्हें कब का पकड़ ले जाते। ये महात्मा लोग जीवित हैं इसीलिए गायें पोलीथीन की थैलियाँ खा सकती हैं, वरना तो भक्तजन गायों को भी पूजनीय देवी बनाकर मंदिरों और गौशालाओं में बांधकर रख देते। इन्हीं की दया से कर्तव्यनिष्ठ कसाई भेड़-बकरियों को मनुष्य की कैद से आज़ादी दिला पाते हैं। ये लोग आमतौर पर हम-आप जैसे अल्पज्ञ और नश्वर प्राणियों को घास नहीं डालते हैं। लेकिन थोड़ी पीने के बाद वे रहमदिल हो जाते हैं। ऊपर से अगर मुफ्त की मिल जाये फिर तो ये निस्वार्थ मनुष्य और भी दरियादिल दिखने लगते हैं।

ऐसी ही एक मुफ्तखोर पार्टी में जब दारूचन्द जी ने मेरे सलाम को इगनोर नहीं किया तो मेरा साहस बढ़ गया। मैं अपने कोला के गिलास को उनकी दारू के पास रखकर एक कुर्सी खींचकर उनके निकट बैठकर उनकी और उनकी मित्र मंडली की बातें ऐसे सुनता गया जैसे फेसबुक की मित्र-सूची से निकाला गया व्यक्ति अपने पुराने गैंग की वाल को पढ़ता है।

"मुहल्ले में चोरियाँ होने लगीं तो सबने कहा कि एक कुत्ता पाल लो।" ये सुरासिंह थे।
"अच्छा! फिर?" बाकियों ने समवेत स्वर में पूछा।
"चोर तो चोर, कुत्ते भी जब मेरे गली से गुज़रते थे, तो अपनी दुम दबाकर दूसरी ओर की दीवार से चिपककर चलते थे, ऐसे गरजता था मेरा टॉम।"
"गोल्डेन रिट्रीवर था कि जर्मन शेपर्ड?"
"बुलडॉग या लेब्रडोर होगा ... "
"अजी बिलकुल नहीं, मेरा टॉम तो शेर का मौसा है, एक खतरनाक बिलौटा।"
"आँय!" कुत्तापछाड़ बिलाव की बात सुनकर मेरा मुँह खुला का खुला रह गया लेकिन बाकी मंडली को कोई खास आश्चर्य नहीं हुआ। बल्कि यह किस्सा सुनकर पियक्कड़ कुमार "पीके" को अपनी बिल्ली याद आ गई।

पीके की बिल्ली का पिंजरा
"मेरी बिल्ली तो बहुत मक्कार है। रात में अपना पिंजरा छोडकर मेरे बिस्तर में घुस जाती थी" पीके ने कहा।
"अच्छा! फिर?" बाकियों ने समवेत स्वर में पूछा।
"फिर क्या? मैंने कुछ दिन बर्दाश्त क्या किया उसकी तो हिम्मत बढ़ती ही गई। अब तो वह मुझे धकिया कर पूरे बिस्तर पर ही कब्जा करने लगी।"
"ऐसे ही होता है। लोग आते हैं आव्रजक बनकर, फिर देश के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति बन जाते हैं।
"आप चुप रहिये! हर बात में राजनीति ले आते हैं ...", लोगों ने सुरासिंह को झिड़का, "फिर? आगे क्या हुआ"
"अब तो मैं सोते समय 10-12 तकिये लेकर सोता हूँ। बिल्ली के पास आते ही एंटी-एयरक्रेफ्ट मिसाइल की तरह एक-एक करके उस पर फेंकना शुरू कर देता हूँ। अकल ठिकाने आ जाती है।

सब सुना रहे थे तो भला अंगूरी प्यारी कैसे चुप रहतीं? अपनी ज़ुल्फें झटककर बोलीं, "मेरी दुलारी तो बस गायब ही हो गई थी!"
"आपसे डरकर?"
"शटअप!"
"अरे इसे छोड़िए, नादान है। आप अपना किस्सा सुनाये" दारूचन्द ने बात सम्भाली।
"कई दिन से लापता थी। पुलिस में रिपोर्ट भी लिखाई। जब कुछ नहीं हुआ तो एक प्राइवेट डिटेक्टिव रखा। उसकी कई हफ्तों की खोज के बाद पड़ोसी नगर के रेसकोर्स में मिली। पड़ोसियों के कुत्ते को भगाकर ले गई थी।
"अरेSSS गज़्ज़ब!" सभी ने आश्चर्य व्यक्त किया।

"आप तो काफी पिछड़े हुए लगते हैं। आपके पास तो बिल्ली नहीं होगी विलायत खाँ जी।"
"पिछड़े होंगे आप। हमारा तो पूरा खानदान ही बिल्लीपालक है। पुरखे शेर-चीते पालते थे। आज के जमाने में उन्हें खिलाने को गरीब लोग कहाँ ढूंढें, सो बिल्ली पालकर शौक पूरा कर रहे हैं।
"तो बिल्ली को खिलाने के लिए चूहे कहाँ ढूंढते हैं?"
"इत्ता टाइम कहाँ है अपने पास। पहले दूध पिलाते थे। अब तो हम कभी चाय पिला देते हैं कभी कॉफी। घटिया नस्ल की बिल्लियाँ कोक-पेप्सी भी पी लेती हैं लेकिन आला दर्जे की बिल्लियाँ रोज़ एक-दो पैग वोदका न पियें तो उन्हें नींद ही नहीं आती है।
"अच्छा! ये बात!" बाकियों ने समवेत स्वर में कहा।
"कभी ज़्यादा तंग करें तो मैं अपनी नशे की गोली भी खिला देता हूँ सुसरियों को।"
"क्या ज़माना आ गया है, आदमी तो आदमी, बिल्लियाँ भी नशा करती हैं।" सभी ने आश्चर्य व्यक्त किया।

"आप बड़े चुप-चुप हैं, आपके घर में बिल्ली नहीं है क्या?"
"जी नहीं! गुज़र गई!"
"कैसे?" सभी ने आश्चर्य से एकसाथ पूछा।
"बड़ी महत्वाकांक्षी थी"
"अच्छा! कैसे गुज़री?" सभी ने आश्चर्य व्यक्त किया।
"खबर फैली हुई थी कि चुनाव आ रहे हैं। सो अपने बच्चों को मुँह में दाबकर ..."
"इलेक्शन में खड़ी हो रही है?"
"चुनाव प्रचार को निकली?"
"ट्रक से कुचल गई?"
अरे नहीं, पूरी बात कहने तो दीजिये।"
"जी!"
"बाल बच्चों समेत गुजरात के लिए गुज़री है। सुना है कि मोदी पीएम बनेंगे तब सीएम की सीट खाली होगी न। हमारी बिल्ली की नज़र उसी पर है।"

[समाप्त]