[अनुराग शर्मा]
आग तुम्हारे अन्तर की मैं
अपने दिल में जला पाता
दर्द पिरो सकता सीने में
मैं भी एक कवि बन पाता
अन्धियारी यह रात अमावस
बन खद्योत चमका जाता
नहीं समझता अलग किसी को
मैं भी एक कवि बन पाता
एक जंगली फूल किसी
वनवासी के केश लगाता
पीर समझता बिना बिवाई
मैं भी एक कवि बन पाता
मुझे मिला सब बिना शर्त
वह प्यार अगर लौटा पाता
तू-तू मैं-मैं से ऊपर उठ
मैं भी एक कवि बन पाता
सत्य ढंका क्यों स्वर्णपात्र से
खोल सकें तो ज्ञान सत्य है
ग्रहण हटा, कर ज्योति ग्रहण
मैं भी एक कवि बन पाता
चित्र व कविता: अनुराग शर्मा |
अपने दिल में जला पाता
दर्द पिरो सकता सीने में
मैं भी एक कवि बन पाता
अन्धियारी यह रात अमावस
बन खद्योत चमका जाता
नहीं समझता अलग किसी को
मैं भी एक कवि बन पाता
एक जंगली फूल किसी
वनवासी के केश लगाता
पीर समझता बिना बिवाई
मैं भी एक कवि बन पाता
मुझे मिला सब बिना शर्त
वह प्यार अगर लौटा पाता
तू-तू मैं-मैं से ऊपर उठ
मैं भी एक कवि बन पाता
सत्य ढंका क्यों स्वर्णपात्र से
खोल सकें तो ज्ञान सत्य है
ग्रहण हटा, कर ज्योति ग्रहण
मैं भी एक कवि बन पाता
हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखं। तत्त्वं पूषन्न अपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये।।
[~ईशोपनिषद - 15]
यदि होता किन्नर नरेश मैं? सचमुच कवि होना कितना असम्भाव्य है ...छोडिये कवि ह्रदय तो आप हैं ही :)
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteबेहतरीन भावाव्यक्ति.....कविराज हैं आप तो...
सादर.
मित्र मैंने पढ़ा की व्यक्ति की तन्मयता ,समर्पण इश्वर को भी मजबूर कर देती है वैसा ही करने को -
ReplyDelete" कविता कर के तुलसी न लसे ,
कविता लसि पा,तुलसी की कला "
बहुत सोणा प्रयास सुन्दर काव्य सृजन बधाई हो /
....पीर समझता बिना बिवाई
ReplyDeleteमैं भी एक कवि बन पाता............
सुन्दर रचना के लिए आभार.
....पीर समझता बिना बिवाई
ReplyDeleteमैं भी एक कवि बन पाता............
कवि ह्रदय तो आप हैं ही..सुन्दर रचना के लिए आभार.
यदि आग जलती रहे तो शब्द पिघल कर ढल जाते हैं, सुन्दर कविता, कवि बनने के लिये..
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना
ReplyDeleteलेखक आलोचक बुधिल, चिंतन में मशगूल ।
वे ही तो व्याख्या करें, कवि की ऊलजुलूल ।।
दिनेश की टिप्पणी-आपकी पोस्ट का लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
कवि तो आप हैं ही, ये शायद काव्यानुभूति से पहले की स्थिति को दर्शाती है। बहरहाल, कविता बहुत अच्छी लगी।
ReplyDeleteअभिव्यक्त करने का साहस ही कवि बना देता है ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता ।
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteरंगों के पावन पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
अच्छी कविता
ReplyDeleteकविता तो अच्छी लेकिन दिल जलाना?
ReplyDeleteदिल जलता है तो जलने दे, आँसू न बहा फ़रियाद न कर, दिल ...
Deleteकवि ह्रदय से ही ऐसी सुन्दर अभिव्यक्ति निकल सकती है.
ReplyDeleteसुंदर पंक्तियाँ ..... उपलब्धि है भावों को यूँ शब्दों में ढाल लेना ......
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत है कविता..
ReplyDeleteइसपर जो मेरा पहला रिएक्सन था, उसे तो लोगों ने कह ही दिया है..
"आप तो पहले से कवि हैं" :)
सत्य ढंका क्यों स्वर्णपात्र से
ReplyDeleteखोल सकें तो ज्ञान सत्य है
ग्रहण हटा, कर ज्योति ग्रहण
मैं भी एक कवि बन पाता
बहुत ही सुन्दर भाव |
मुझे मिला सब बिना शर्त
ReplyDeleteवह प्यार अगर लौटा पाता
तू-तू मैं-मैं से ऊपर उठ
मैं भी एक कवि बन पाता ...
प्रेम को पाना ही कवी बन जाना है ... भावों को शब्दों में उतारा है ... बहुत सुन्दर ...
हम भी यही कहेंगे कि कवि तो आप पहले ही हैं !
ReplyDeleteदर्द होगा और निकलेगी हूक दिल से,
ReplyDeleteकविता उठ के आयेगी 'उसकी' महफ़िल से !!
बन तो गई आपकी कविता ! "पता नहीं,कमेन्ट नहीं आ रहा है,मेरी ओर से ये चस्पा कर दीजिए !
सत्य ढंका क्यों स्वर्णपात्र से
ReplyDeleteखोल सकें तो ज्ञान सत्य है
ग्रहण हटा, कर ज्योति ग्रहण
मैं भी एक कवि बन पाता
यहाँ जिस कवि होने की बात की जा रही है वैसा कवि तो केवल स्वयं वही एक है...कवि का एक अर्थ द्रष्टा भी है, मुझे लगता है आपका इशारा उसी ओर है.
i can say it is difficult to write few lines which show the
ReplyDeletewave on the constant feature.
कवि तो आप बन गए ☺
ReplyDelete"पीर समझता बिना बिवाई
ReplyDeleteमैं भी एक कवि बन पाता ...."
पीर समझना तो शायद इश्वर के भी बस में नहीं है कविराज - कवियों की क्या बिसात है ?
रियलिटी चैक/फ़ेयर असैसमेंट का शुक्रिया!
Deleteसत्य ढंका क्यों स्वर्णपात्र से
ReplyDeleteखोल सकें तो ज्ञान सत्य है
ग्रहण हटा, कर ज्योति ग्रहण
मैं भी एक कवि बन पाता
बहुत सुंदर कविता .... यह एक कवि ही लिख सकता है ...
एक जंगली फूल किसी
ReplyDeleteवनवासी के केश लगाता
पीर समझता बिना बिवाई
मैं भी एक कवि बन पाता
कवि तो बन ही गए आप.कवियों को खुश जो कर दिया:).
सुन्दर कविता है.
वह तो वाकई एक उपलब्धि है. :)
Deleteदर्द होगा और निकलेगी हूक दिल से,
ReplyDeleteकविता उठ के आयेगी 'उसकी' महफ़िल से !!
बन तो गई आपकी कविता !
सुन्दर रचना के लिए आभार.
ReplyDeleteकवि!!
ReplyDelete:)
bahut sundar ...aapko holi parv ki bahut bahut shubhkamnayen .......YE HAI MISSION LONDON OLYMPIC !
ReplyDeleteकवि होने की जितनी शर्ते आपने बता डी हैं यहाँ, वो स्वयं पर लागू करके देखें तो आप कवि हैं ही.. और मेरे विचार में कविता रचने से पहले कविता का मर्म समझने वाला कवि कहलाता है!!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर!!
अंतस की अग्नि , दर्द , अमावस में खद्योत , मनुष्य साम्य , आदिम सौंदर्य , पीर ,निस्वार्थ प्रेम , अहंकारहीन , पूंजी मुक्त सत्य ,ग्रहण मुक्त प्रकाश...बोले तो कवि और क्या :)
ReplyDeleteआजकल की कवि'ताई' के सन्दर्भ में सहमत नहीं हूं पर ईश्वर का एक नाम कवी भी है तो सांकेतिक रूप से यह मान रहा हूं कि ईश्वरीय गुणधर्म युक्त मनुष्य जैसे कवि होने से आशय है आपका !
बेहतरी की इच्छा तो है ही
Deleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteआशा
एक जंगली फूल किसी
ReplyDeleteवनवासी के केश लगाता
पीर समझता बिना बिवाई
मैं भी एक कवि बन पाता ...aah! bahut hi umda likha aap ne ,man khush hua padh kar
अनखुले गाँठे खोलकर ..
ReplyDeleteनिज संचय बाँटे..कवि बोलकर..
एक अच्छे दिलका मालिक ही अपनी कमियां ढूँढता रहता है ...
ReplyDeleteशुभकामनायें भाई जी !
मुझे मिला सब बिना शर्त
ReplyDeleteवह प्यार अगर लौटा पाता
तू-तू मैं-मैं से ऊपर उठ
मैं भी एक कवि बन पाता
सुंदर पंक्तियाँ है ........
बिना शर्त मिला हुआ बिना शर्त ही लौटाया जा सकता है
मुश्किल क्या है ?
यह तो कवि के ऊपर उठे भाव है !
बिना कोमल हृदय के सम्वेदनाएं प्रकट नहीं होती। कवि का मूल गुण सम्वेदना महसुस करना ही होता है। बाकि सारी अनुभूतियां बंधी चली आती है।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिलाषा!!कविवर!!
कवि बनने के लिये कुछ और भी चाहिये क्या ?
ReplyDeleteआपने दद्दा माखनलालजी चतुर्वेदी की याद दिला दी। कवि तो आप हैं ही।
ReplyDeleteभावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति से आप कवि
ReplyDeleteबन दिल में प्रवेश कर गए हैं.
शानदार प्रस्तुति के लिए आभार.
होली के रंगारंग शुभोत्सव पर बहुत बहुत
हार्दिक शुभकामनाएँ
सत्य ढंका क्यों स्वर्णपात्र से
ReplyDeleteखोल सकें तो ज्ञान सत्य है
ग्रहण हटा, कर ज्योति ग्रहण
मैं भी एक कवि बन पाता
...बेहतरीन।
गहन अनुभूतियों और दर्शन से परिपूर्ण इस रचना के लिए बधाई स्वीकारें !
ReplyDeleteआपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनायें !
bahut sundar
ReplyDeleteसत्य ढंका क्यों स्वर्णपात्र से
ReplyDeleteखोल सकें तो ज्ञान सत्य है
ग्रहण हटा, कर ज्योति ग्रहण
मैं भी एक कवि बन पाता
...बेहतरीन।बहुत बढ़िया पंक्तिया है ..सभी जानदार है ....आप तो बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी है ..आप का दूसरे देश में रहकर भी हिंदी को प्रमोट करना ख़ुशी देता है ...
क्या कहूँ...???
ReplyDeleteअनुराग जी आप कवि बन चुके हो.... लाजवाब कविता....
ReplyDeleteलाजवाब कविता..आप तो कवि ही है
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