Wednesday, August 22, 2018

रोशनाई - कविता

(शब्द और चित्र: अनुराग शर्मा)

रात अपनी सुबह परायी हुई
धुल के स्याही भी रोशनाई हुई

उनके आगे नहीं खुले ये लब
रात-दिन बात थी दोहराई हुई

आज भी बात उनसे हो न सकी
चिट्ठी भेजी हैं,  पाती आई हुई  

कवि होना सरल नहीं समझो
कहा दोहा,  सुना चौपाई हुई

खुद न होते न तुमसे मिलते हम
ऐसी हमसे न आशनाई हुई॥



8 comments:

  1. वाह ! यह भी खूब रही !!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (24-08-2018) को "सम्बन्धों के तार" (चर्चा अंक-3073) (चर्चा अंक-3059) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. धन्यवाद शास्त्री जी!

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  3. सच में ऐसा ही होता है कि ...कवि होना सरल नहीं समझो
    कहा दोहा, सुना चौपाई हुई...वाह क्‍या खूब कहा है ...

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  4. वाह क्‍या खूब कहा है ...

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