बोझ कांधे से ज्यों उतरता नही
शहर सुनसान सा लगे है मुझे
आपका जिक्र कोई करता नहीं
दिल तो पत्थर सा हो गया या रब
मौत के नाम से भी डरता नहीं
चिन दिया आपने दीवारों में
कैसा बदबख्त हूँ कि मरता नहीं
वक्त के सामने हुआ बेबस
लाख रोका मगर ठहरता नहीं।
(अनुराग शर्मा)
* आवाज़ पर आज सुनें अक्टूबर २००८ का पॉडकास्ट कवि सम्मेलन ** आवाज़ पर सुनें प्रेमचंद की कहानी "आधार" |