Monday, February 21, 2011

डीसी डीसी क्या है? [इस्पात नगरी से-37]

संसद भवन
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न्यू योर्क और वाशिंग्टन डीसी के रिक्शा के बारे मै मेरी एक पिछ्ली पोस्ट पर एक मित्र का प्रश्न था, "यह डीसी क्या है?" बहुत अच्छा सवाल था, काफी लोगों के मन में हो सकता है| मैंने सोचा कि एक पोस्ट लिखकर बता दिया जाये तो बेह्तर रहेगा| वाशिंगटन डी सी (Washington DC) संयुक्त राज्य अमेरिका की राष्ट्रीय राजधानी का नाम है| यहाँ डीसी का अर्थ है डिस्ट्रिक्ट ऑफ़ कोलंबिया (DC = District of Columbia) |

वाशिंगटन डी सी की स्थापना १६ जुलाई १७९० को हुई| उन दिनों अमेरिका के लिए काव्यमय नाम "कोलंबिया" प्रचलित था इसलिए इस नए नगर का नाम "टेरिटरी ऑफ़ कोलंबिया" रखा गया था| देश के प्रथम राष्ट्रपति जोर्ज वाशिंगटन के नाम पर इस नगर का नामकरण हुआ "वाशिंगटन - डिस्ट्रिक्ट ऑफ़ कोलंबिया" या सूक्ष्म रूप में वाशिंगटन डीसी|

विश्व युद्ध स्मारक
यह नगर १७ नवम्बर १८०० को अमेरिका की राजधानी बना| इससे पहले न्यू यॉर्क और फिलाडेल्फिया नगरों को राष्ट्रीय राजधानी रहने का गौरव प्राप्त है|
न्यू योर्क - ४ मार्च सन १७८९ से ५ दिसंबर १७९० तक
फिलाडेल्फिया - ६ दिसंबर १७९० से १४ मई १८०० तक

पोटोमाक नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित यह नगर वर्जिनिया और मेरीलैंड से छूता है. नयी दिल्ली और चण्डीगढ़ की तरह डीसी भी किसी राज्य का हिस्सा न होकर एक केंद्र शासित क्षेत्र के रूप में अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखता है|

वाशिंगटन स्मारक
इस नगर का क्षेत्रफल लगभग १७७ वर्ग किलोमीटर है| स्मारकों से भरे इस नगर का पांचवां भाग उद्यान क्षेत्र है| एक मेयर के नेतृत्व में एक तेरह सदस्यीय नगर पालिका डीसी का प्रशासन संभालती है परन्तु केंद्र सरकार इस नगर पालिका के किसी भी निर्णय को पलट सकती है| संयुक्त राज्य अमेरिका की राष्ट्रीय संसद में डी सी से एक नामित सांसद के अतिरिक्त कोई चुना हुआ प्रतिनिधि नहीं होता है| १९६१ में हुए २३ वें संविधान संशोधन से पहले यहाँ के नागरिकों को राष्ट्रपति चुनाव में मतदान का अधिकार तक नहीं था|
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सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा::Photos by Anurag Sharma
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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Wednesday, February 16, 2011

वाट्सन आया [इस्पात नगरी से -36]


1964 में आरम्भ हुआ कार्यक्रम जेपर्डी (Jeopardy!) टीवी पर आने वाले सबसे पुराने सामान्य ज्ञान प्रहेलिका कार्यक्रमों में से एक है। कठिनाई से ही टीवी के सामने बैठने वाला मैं भी अपनी श्रीमती जी के कठोर अनुशासन में इस कार्यक्रम को नियमित सपरिवार देखता हूँ। ऐलेक्स ट्रेबैक की यजमानी वाले इस कार्यक्रम में तीन प्रतिस्पर्धी होते हैं जो विभिन्न श्रेणियों में पूछे गये अलग-अलग मूल्य के प्रश्नों के उत्तर देकर नकद पुरस्कार पाते हैं।

इस बार के कार्यक्रम में पिछ्ली प्रतियोगिताओं के दो महान चैम्पियन ब्रैड रटर (Brad Rutter) और कैन जेनिंग्स(Ken Jennings) को बुलाया गया था वाटसन (Watson) से मुकाबला करने। कार्यक्रम का यह प्रकरण क्रांतिकारी था क्योंकि वाटसन कोई व्यक्ति नहीं बल्कि आईबीएम द्वारा निर्मित ऐसा विशालकाय कम्प्यूटर (supercomputer) है जो मानव भाषा में पूछे गये प्रश्नों का निर्णायक उत्तर देने की क्षमता रखता है। तो क्या गूगल सर्च के बेतुके उत्तरों के दिन पूरे हो गये? आइये देखते हैं कि वाटसन ने कार्यक्रम में क्या किया?

आज जब पूछा गया कि किस भाषा की 4000 वर्ष पुरानी एक बोली "वैदिक" कहलाती है तो वाटसन ने तुरंत संस्कृत कहा। इस्पात नगरी से सम्बन्धित प्रश्न (सही उत्तर: पिट्सबर्ग) में वाटसन के सम्भावित उत्तरों में एक जमशेदपुर भी था। तीन दिन चले इस कार्यक्रम के दौरान कई रोचक तथ्य भी सामने आये। मसलन, कल के कार्यक्रम में "अमेरिकी नगरों" की श्रेणी में एक प्रश्न के उत्तर में वाटसन ने टोरंटो लिखा। सही उत्तर शिकागो था। शायद हम सभी एक स्वर में टोरंटो को "कैनाडा का नगर" कहेंगे परंतु सच्चाई यह है कि कैनाडा में केवल एक टोरंटो है जबकि सं. रा. अमेरिका में आठ नगरों का नाम टोरंटो है। उत्तर गलत था परंतु उस श्रेणी में वाटसन ने अपने अज्ञान को आंकते हुए केवल $947 का मामूली खतरा लिया था और कुल $35,734 जीतकर दोनों मानवों से आगे रहा। दोनों मानवों ने मिलाकर कुल $15,200 जीते। आश्चर्य नहीं कि वाटसन आज भी जीता और एक बडे अंतर के साथ इस प्रतियोगिता का चैम्पियन घोषित हुआ है। तीन दिन चले कार्यक्रम में तीनों विजेताओं की कुल आय क्रमशः $77,147 (वाटसन), $24,000 (केन) और $21,600 (ब्रैड) रही।

आइबीएम ने वाटसन के तीन दिन का विजेता होने के दस लाख डॉलर समेत समस्त पुरस्कार राशि को वर्डविज़न नामक स्वयंसेवी संस्था को दान देने की घोषणा की है। अन्य प्रतिस्पर्धी भी इस बार के कार्यक्रम की अपनी आय का आधा अपनी चहेती संस्थाओं को दान करेंगे।

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सम्बन्धित कड़ियाँ
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इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
आई बी एम वाटसन का आधिकारिक पृष्ठ
जेपर्डी - आधिकारिक पृष्ठ
जेपर्डी पर अंग्रेज़ी विकीपीडिया पृष्ठ
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Monday, February 14, 2011

टोड - कहानी - अंतिम भाग

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मैं चिंटू के साथ बाहर आया तो देखा कि लॉन के एक कोने में एक बड़े से टोड के सामने तीन छोटे टोड बैठे थे। नन्हें बच्चे की कल्पनाशीलता से होठों पर मुस्कान आ गयी। सचमुच बच्चों के सामने टोड मास्टर जी बैठे थे।

टोड कहानी का भाग एक पढने के लिये यहाँ क्लिक करें
अब आगे की कहानी:

दिन बीते, एक रविवार को मैं दातागंज में था। उसी जूनियर हाई स्कूल के बाहर जहाँ की एक एक ईंट किसी पशु का नाम ले-लेकर मेरी कल्पनाशीलता पर तंज़ कस रही थी। सुनसान इमारत। बाहर मैदान में कुछ आवारा पशु घूम रहे थे। मैं स्कूल के फ़ोटो ले रहा था तभी लाठी लिये एक बूढे ने पास आकर कहा, "हमरा भी एक फोटू ले ल्यो।"

मुझे तो बैठे-बिठाये एक अलग सा फ़ोटो मिल गया था। मैंने अपने नये सब्जेक्ट को ध्यान से देखा, "अरे, तुम मूखरदीन हो क्या?"

"हाँ मालिक, आपको कैसे पता लगो?

"मैं यहाँ पढता था, आरपी रंगत जी कहाँ रहते हैं आजकल?"

"आरपी... रंगत..." वह सोचने लगा, "अच्छा बेSSS, बे तौ टोड हैंगे।"

"अबे तू भी तो मुर्गादीन था" मैंने कहना चाहा परंतु उसकी आयु के कारण शब्द मुँह से बाहर नहीं निकल सके, "हाँ, वही। कहाँ रहते हैं?"

"साहूकारे मैं, उतै जाय कै, पकड़िया के उल्ले हाथ पै" उसने हाथ के इशारे से बताया। मैंने उसका फ़ोटो कैमरा के स्क्रीन पर दिखाया तो वह अप्रसन्न सा दिखा, "निरो बेकार हैगो। ऐते बुढ़ाय गये का हम? कहूँ नाय, तुमईं धल्ल्यो जाय।"

मैं तेज़ कदमों से साहूकारे की ओर बढ़ा। कभी हमारा भी एक घर था वहाँ। आज तो शायद ही कोई पहचानेगा मुझे। चौकीदार के बताये पाकड़ के पेड के सामने कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। "आरपी रंगत" का नाम किसी ने नहीं सुना था। जब मैंने बताया कि वे जूनियर हाई स्कूल में पढाते थे तो सभी के चेहरे पर अर्थपूर्ण मुस्कान आ गयी और वे एक दूसरे से बोले, "अबे, टोड को पूछ रहे हैं ये।"

एक लड़का मुझे पास की गली में एक जर्जर घर तक ले गया। कुंडी खटकाई तो मैली धोती में एक कृषकाय वृद्ध बाहर आया। अधनंगे बदन पर वही खुरदुरी त्वचा।

"किससे मिलना है?" आवाज़ में वही चिरपरिचित स्नेह था।

"नमस्ते सर! सकल पदारथ हैं जग माही..." मैंने अदा के साथ कहा।

"अहा! होइहै वही जो राम रचि राखा..." उन्होने उसी अदा के साथ जवाब दिया, "अरे अन्दर आओ बेटा। तुम तो निरे गंजे हो गये, पहचानते कैसे हम?"

लगता था जैसे उनकी सारी गृहस्थी उसी एक कमरे में समाई थी। एक कुर्सी, एक मेज़, और ढेरों किताबें। कांपते हाथों से उन्होंने खटिया के पास एक कोने में पडे बिजली के हीटर पर चाय का पानी रखा और फिर निराशा से बोले, "अभी है नहीं बिजली।"

मैं एक स्टूल पर बैठा सोच रहा था कि बात कहाँ से शुरू करूँ कि उन्होंने ही बोलना शुरू किया। पता लगा कि उनके कोई संतान नहीं थी। पत्नी कब की घर छोड़कर चली गयीं क्योंकि वे जहाँ भी जातीं आवारा और उद्दंड लडकों के झुण्ड के झुण्ड उन्हें "मिसेज़ टोड" कहकर चिढ़ाते रहते थे।

जब तक नौकरी रही, लड़कों के व्यंग्य बाण सुने-अनसुने करके विद्यालय जाते रहे। अब तो जहाँ तक सम्भव हो घर में ही रहते हैं।

"ज़िन्दगी नरक हो गयी है मेरी" उनका विषाद अब मुझे भी घेरने लगा था।

वे अपनी बात कह रहे थे कि एक गेंद खिड़की से अन्दर आकर गिरी। शायद उन्हीं लड़कों की होगी जो बाहर नुक्कड़ पर क्रिकेट खेल रहे थे। गेन्द की आमद से उनकी कथा भंग हुई। उन्होंने एक क्षण के लिये गेन्द को देखा फिर उठकर मेरी ओर आये और बोले, "तुम तो सबके चहेते छात्र थे। तुम्हें ज़रूर पता होगा। बताओ, मेरे साथ यह गन्दा मज़ाक किसने किया?"

"मेरा नाम टोड किसने रखा था?"

तभी दरवाज़ा खुला और एक 7-8 वर्षीय लड़का अन्दर आकर बोला, "हमारी गेन्द अन्दर आ गयी है टोड।"

[समाप्त]