Thursday, August 11, 2011

अपोस्ट से आगे - कुपोस्ट तक

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ब्लॉगिंग में आने से सबसे बडा लाभ मुझे यह हुआ कि ऐसे बहुत से अनुभवीजनों से परिचय हुआ जिनकी प्रतिभा को शायद वैसे कभी जान ही न पाता। शुरुआत के ब्लॉग-मित्रों में से बहुत से अब अनियमित हैं। लेकिन फिर भी बहुत कुछ अच्छा लिखा जा रहा है। छतीसगढ के राहुल सिंह जी को पढते हुए मुझे बहुत समय नहीं हुआ है परंतु उनके लेखन से प्रभावित हूँ। उनकी ब्लॉग प्रविष्टियाँ अक्सर गम्भीर आलेख होते हैं। लेकिन अभी उनके यहाँ प्रॉलिफ़िक लेखन पर एक रोचक "अपोस्‍ट" पढा। पढने के बाद ब्लॉग-जगत के भ्रमण पर निकला तो मेरी इस अपोस्ट/कुपोस्ट/कम्पोस्ट के लिये विद्वत-ब्लॉगरी के कुछ क्लासिक उदाहरण देखने को मिले। आपके साथ साझा कर रहा हूँ।
तारीफ़ उस खुदा की जिसने जहाँ बनाया
आभार गूगल का जिसने जहाँ दिखाया
संपादकीय नोट: मेरी इस अपोस्ट/कुपोस्ट् में मौलिकता ढूंढने की कोशिश शायद बेकार ही जाये। जनहित में सभी पात्रों के नाम और घटनाओं के स्थान बदल दिये गये हैं। अभिव्यक्ति का मूल स्वरूप बरकरार रखने का पूरा प्रयास किया है। जहाँ भाषा इतनी जर्जर थी कि उठ न सके केवल वहीं उसे ममीफ़ाई किया गया है इसलिये, कृपया वर्तनी, मात्रा आदि पर टिप्पणी न करें :)
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- आज जब लिखने बैठे तो हमेशा की तरह कोई विषय तो था नहीं, लेकिन जब दिल से लिखना हो तो किसी विषय की जरूरत नहीं पड़ती! हम जो कुछ लिख दें वही विषय बन जाता है।

- आज सुबह हमने लेखक ज़, घ, क और ग को ईमेल करके बता दिया है कि जिस विषय को हमने कभी पढ़ा ही नहीं उस विषय के बारे में उनकी लिखी हर बात ग़लत है।

- हमें तीन दिन से ज़ुकाम था, आज हमारी नाक 73.43971 बार बही। प्लमर मित्र से एक टोंटी मुफ़्त लगवाने की सोच रहे हैं।

- शादियों का सीज़न है, सो चाट-पकोड़ा ज़्यादा खा लिये हम। आज सुबह सवा चार कप कॉफ़ी पीने के बाद भी नित्यक्रिया नहीं हुई। चाय हम पीते नहीं, उसमें टेनीन नामक नशीला पदार्थ होता है

- आज एक डॉक्टर ने लाइन तोड़कर अन्दर आ जाने के लिये हमें फटकार दिया। अब हम अगली तीन पोस्ट ऐलोपथी के साइड-इफ़ैक्ट्स पर लिखेंगे।

- बचपन में हमारे योगा-टीचर ने हमें डांटा था, तब से हम योग और योगाचार्यों के खिलाफ़ हो गये हैं। घुटने में दर्द है, याद्दाश्त बढाने की गोली लेने लगे हैं।

- हमारी पोस्ट "क" पढ़ने के लिये हमारी पोस्ट "ज़" पर चटका लगायें और इस प्रकार कभी न टूटने वाला चक्र चलायें।

- पिछले महीने हम प्यारेलाल जी से मिले थे। तब से उन्होने इस मुलाकात पर 7 पोस्ट लिख डाली हैं। अब हम भी उनसे मुलाकात पर 77 पोस्ट लिखेंगे।

- सब जानना चाहते हैं कि हम इतनी सारी ब्लॉग पोस्ट कैसे लिख लेते हैं। उन्हें पता नहीं है कि हमारे पास टिप्पणियों की संख्या बढ़ाने की भी कई तरकीब है। हम उन्हें इस्तेमाल भी करते हैं। लेकिन आपको बताने से हमें क्या फायदा?

- अब हम भी ताऊ की तरह पहेली पूछा करेंगे। प्रस्तुत है आज की गुणा-भाग पहेली, भागकर भूले की प्रसिद्द पुस्तक भ्रम जादू पहेली से निराभार। एक साल में यह मेरी 5,000 वीं पोस्ट है, मतलब हर रोज़ एक पोस्ट। क्या आपको पता है कि तीन सप्ताह में कितने अंडे होते हैं?

- आज हमने अम्मा से कह दिया कि हम उनकी एक नहीं सुनेंगे। वे टोकती रहीं लेकिन हम ड्राइक्लीन करे हुए नीले सूट के साथ भूरे बरसाती बूट और मजगीली कमीज़ पहनकर ही दफ़्तर गये। ग़नीमत थी कि बॉस छुट्टी पर था वर्ना हमारी भी छुट्टी हो जाती।

- मुद्दत बाद आज हमारा रोल्स रॉयस चलाने का सपना पूरा हो गया। हमने अपनी साइकिल पर ऍटलस का नाम खुरचवाकर रोल्स रॉयस लिखवा लिया है।

- पिछली पोस्ट में हमने बताया था कि मन खट्टा होने के कारण आजकल हम ब्लॉगर मिलन में नहीं जाते लेकिन ब्लॉगर सम्मान समिति का ईमेल आने पर कल हम चले तो गये परंतु वहाँ की अव्यवस्था से कुपित होकर हमने अपना भाषण नहीं पढा। उनके छोले-भटूरे भी एकदम बेस्वाद थे। अब हम अगले ब्लॉगर मिलन में बिल्कुल नहीं जायेंगे क्योंकि इस बार हमें वीआइपी सीट भी नहीं दी गयी थी और मुख्य अतिथि चुनने से पहले हमसे सलाह भी नहीं की गयी थी।

- कामवाली बाई की अम्मा मर जाने के कारण आज वह काम पर नहीं आयी, सो आज अपनी किताबों को हमने खुद ही झाड़ लिया।

- आज हमने सरकारी बैंक में लाइन में लगकर पैसा निकाला जबकि ब्रांच मैनेजर हमसे जूनियर ब्लॉगर है। दूर खड़ा देखता रहा मगर पास नहीं आया। हमने भी ऐसे जताया जैसे हम उसे जानते ही न हों। अब हम उसके ब्लॉग पर टिप्पणी नहीं किया करेंगे।

- वैसे धर्म-कर्म को तो हम पाखण्ड ही मानते हैं लेकिन ब्लॉग जगत में अपने गुट की मजबूती के लिये आज हम लस्सी-उपवास पर हैं। वैसे भी दिसम्बर में लस्सी की दुकान बन्द रहती है।

- पड़ोस में रहने वाली एक लड़की ने आज हमें अंग्रेज़ी में ईमेल किया। ग़नीमत है कि टिल्लू की अम्मा को अंग्रेज़ी नहीं आती है।

- अपने को विद्वान समझने वाला एक शख्स ने बताया कि ईमेल, ब्लॉगिंग और इंटरनैट शब्द हिन्दी के नहीं हैं। तब हमने उसकी बात नहीं मानी लेकिन अब हमें लगता है कि ईमेल, ब्लॉगिंग और इंटरनैट हिन्दी को असंगत और महत्वहीन बनाने की अमरीकी साजिश है।

- आजकल हम भी अपने नाम से एक किताब छपाने की सोच रहे हैं, सामग्री के लिये टिल्लू को अखबारों की कतरनें इकट्ठी करने के काम पर लगा दिया है। जब तक सामग्री तैयार हो, आप लोग एक टॉप-क्लास बेस्ट सेलर टाइटल सुझाइये शुद्ध हिन्दी में।

- कल अजब इत्तफ़ाक़ हो गया, आप सुनेंगे तो जलभुन के राख हो जायेंगे। हमारी मुलाकात महान ब्लॉगर माधुरी दीक्षित नेने से हुई थी, सपने में।

- आजकल हम मॉडर्न हो गये हैं। अपने ब्लॉग पर कंटेंट कम और विज्ञापन अधिक लगाते हैं।

- कल हमने सस्ता स्वास्थ्य का प्रवेशांक पढा। आज हम जल्दी सो जायेंगे और कल सुबह देर से उठेंगे।

- कल तो वाकई कमाल हो गया। इलाके के सफ़ाई कर्मचारी ने हमें सलाम करके पूछा, कैसे हैं नेता जी। बाद में 50 रुपये पेशगी ले गया।

- आजकल हम गान्धीवादी हो गये हैं। अपने विरोधियों के ब्लॉग से असहयोग और उनकी टिप्पणियों की सविनय अवज्ञा करते फिरते हैं। फिर भी नहीं मानेंगे तो गान्धीगिरी करते हुए उन्हें गूलर के फूल भेंटेंगे। अगर फिर भी नहीं मानेंगे तो उन्हें जम के पीटेंगे।

- वैसे तो बाबू सकुचाया लाल की तुकबन्दी हमारी तुकबन्दी से बेकार ही होती है। फिर भी उसने पाँच सौ में हारमोनियम वाले का आयोजन करवाकर अपना सम्मान समारोह करवा लिया है। अब हमने भी तय कर लिया है कि ब्लॉगर कोटा से काग़ज़ खरीदकर अपने सम्मानपत्र खुद छपवाकर खुद ही हस्ताक्षर कर लेंगे।

- आजकल हमारी कार का दरवाज़ा चर्र-मर्र की आवाज़ करता है, पता नहीं क्यों? मिस्त्री से पूछा तो उसने बताया कि हमारी शायरी पर इरशाद-इरशाद कहता है।

- पाठकों की बहुत शिकायतें आ रही हैं कि आजकल हमारे ब्लॉग पर भूत,पलीत, जिन्नात वगैरा के किस्से नहीं होते। हम उन्हें बताना चाहते हैं कि पिछले हफ्ते से यहाँ भी विज्ञान का ज़माना शुरू हो गया है। आगे से सारे आलेख विज्ञान-विकीपीडिया से हूबहू टीपीकृत होंगे।

- हम तीसमारखाँ ब्लॉगर अवार्ड के पक्ष में नहीं हैं। तीसमारखाँ होने में क्या बडी बात है? हमने तो ब्लॉगिंग के पहले दिन ही तीस पोस्ट लिख मारी थीं।

- सम्पादक-शिरोमणि श्री चिर्कुट लाल जी की हर नई पोस्ट पर पहली टिप्पणी हमारी ही होती है। सुना है इस बार का चिरकुट-टिप्पणी पुरस्कार हमें ही मिलने वाला है। वैसे हमारे मित्र होने के नाते अगर आप भी इस बारे में उनसे सिफ़ारिश लगा दें तो यह काम आसानी से हो जायेगा।

- इस बाल दिवस / लेबर डे पर हमें बाल-श्रम विरोध समारोह में भाषण देने जाना था मगर जा नहीं सके। कम्बख्त छोटू ने हमारी लकी कमीज़ जला दी थी। उसके बाप से पैसे की भरपाई में काफ़ी टाइम बेकार हो गया और मूड भी खराब हो गया।

[आभार: राहुल सिंह जी, सुनील कुमार जी, ब्‍लागाचार्य जी, टिप्पणीमारकर जी, उस्ताद जी और विद्वान व/वा बुद्धिजीवी हिन्दी ब्लॉगरों का]

[क्रमशः]
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* कहें खेत की सुनैं खलिहान की
* हिन्दी ब्लॉगिंग में विश्वसनीयता का संकट
* अंतर्राष्ट्रीय निर्गुट अद्रोही सर्व-ब्लॉगर संस्था

Tuesday, August 9, 2011

बॉस्टन का ईथर डोम – इस्पात नगरी से-45

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MGHअमेरिका के नव-इंग्लैंड क्षेत्र में 200 वर्ष पुराना एक ऐतिहासिक चिकित्सालय है। बॉस्टन के मैसैचुसैट्स जनरल हॉस्पिटल ने इस वर्ष अपनी द्विशताब्दी मनाई। 12 जनवरी 1965 में इस चिकित्सालय के चार्ल्स बुलफ़िंच भवन को अमेरिका की ऐतिहासिक धरोहरों में एक स्थान मिला। इस भवन के ऊपरी तल में सूर्य से प्रकाशित गुम्बद में एक छोटा सा गोल थियेटर जैसा हॉल है जो सन 1821 से 1876 तक इस चिकित्सालय का शल्यक्रिया कक्ष था।

Ether.Dome.MGH.Boston.9
उन दिनों शल्यक्रिया का काम बहुत कठिन होता था, क्योंकि मरीज़ अपने पूरे होशो-हवास में होता था। विभिन्न चिकित्सा संस्थान अनेक रसायनों के साथ ऐसे प्रयोग करते जा रहे थे जिनसे मरीज़ की पीडा कम की जा सके। इसी आशा के साथ 16 अक्टूबर 1846 में इस जगह पर गुम्बद की छत से आते सूर्य के प्रकाश में एक ऐसी शल्यक्रिया हुई जिसने नया इतिहास रचा।

उस दिन ऑपरेशन से पहले एक स्थानीय दंत चिकित्सक विलियम मॉर्टन (William Thomas Green Morton) द्वारा मरीज़ ऐडवर्ड गिल्बर्ट ऐबट को मुख द्वारा ईथर दिया गया। सर्जरी के बाद जब मरीज़ ने बताया कि उसे सर्जरी के दौरान कुछ भी पता नहीं चला, न कोई पीडा हुई तो हारवर्ड मेडिकल स्कूल के मुख्य शल्यकार जॉन कॉलिंस वारैन ने गर्व से घोषणा की, "सज्जनों, यह पाखण्ड नहीं है!" यह बयान अकारण नहीं था।  ईथर के इस सफल प्रयोग से पहले अनेक असफल प्रयोग हुए जिन्हें आलोचकों द्वारा पाखण्ड कहा गया था।

Ether.Dome.MGH.Boston.7ईथर डोम आज भी प्रयोग में लाया जाता है और जब उपलब्ध हो तब जनता द्वारा इसका दर्शन किया जा सकता है। इस कक्ष में एक ममी और अपोलो की भव्य मूर्ति के अतिरिक्त वारैन और लुसिया प्रोस्पैरी नामक कलाकारों द्वारा बनाया गया उस ऐतिहासिक सर्जरी का भव्य चित्र आज भी दीवार पर टंगा है।





[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा :: Ether Dome pictures by Anurag Sharma]
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* इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
* Ether Dome

Sunday, August 7, 2011

अमर क्रांतिकारी भगवतीचरण वोहरा

ज़ालिम फ़लक ने लाख मिटाने की फ़िक्र की
हर दिल में अक्स रह गया तस्वीर रह गयी
भगवती चरण (नागर) वोहरा
4 जुलाई 1904 - 28 मई 1930

लाहौर कांग्रेस में बांटा गया "हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएशन का घोषणा पत्र" हो या क्रांतिकारियों का दृष्टिकोण बताता हुआ "बम का दर्शन-शास्त्र (फ़िलॉसॉफ़ी ओफ़ द बॉम)" नामक पत्र हो, भगवतीचरण वोहरा अपने समय के क्रांतिकारियों के प्रमुख विचारक और लेखक रहे थे। पंडित रामप्रसाद बिस्मिल और साथियों की फ़ांसी के बाद चन्द्रशेखर आज़ाद ने जब हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के पुनर्गठन का बीडा उठाया तब नई संस्था हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन (हि.सो.रि.ए.) में पंजाब की ओर से शामिल होने वाले क्रांतिकारियों में भगवतीचरण वोहरा, सरदार भगत सिंह और सुखदेव थापर का नाम प्रमुख था। नौजवान भारत सभा के सह-संस्थापक श्री भगवतीचरण वोहरा "नौजवान भारत सभा" के प्रथम महासचिव भी थे।

वोहरा परिवार
हि.सो.रि.ए. के एक प्रमुख सदस्य और पंजाब के दल के संरक्षक श्री भगवती चरण वोहरा का जन्म 4 जुलाई सन 1904 को आगरा के प्रतिष्ठित राष्ट्रभक्त और सम्पन्न परिवार में श्री शिवचरण नागर वोहरा के घर हुआ था। इस ब्राह्मण परिवार का मूल कुलनाम नागर होते हुए भी अपनी सम्पन्नता के कारण वे लोग वोहरा कहलाते थे। वोहरा परिवार स्वतंत्र भारत के सपने में पूर्णतया सराबोर था। देशप्रेम, त्याग और समर्पण की भावना समस्त परिवारजनों में कूट-कूट कर भरी थी। विदेशी उत्पाद और मान्यताओं से बचने वाले इस परिवार में केवल खादी के वस्त्र ही स्वीकार्य थे। देश की राजनैतिक और देशवासियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिये इस परिवार का हर सदस्य जान न्योछावर करने को तैयार रहता था।

भाई के अंतिम क्षण
मात्र चौदह वर्ष की आयु में, सन् 1918 में श्री भगवती चरण वोहरा का पाणिग्रहण संस्कार इलाहाबाद की पाँचवीं कक्षा उत्तीर्ण ग्यारह वर्षीया सौभाग्यवती दुर्गावती देवी से हुआ। पति के उद्देश्य में सदा कन्धे से कन्धा मिलाकर चलने वाली यही वीरांगना दुर्गावती बाद में दुर्गा भाभी के नाम से विख्यात हुईं। खादी के वस्त्र धारण कर दुर्गावती ने पढाई जारी रखी और समय आने पर प्रभाकर की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसी बीच वोहरा जी ने नेशनल कॉलेज लाहौर से बी.ए. की उपाधि ली। यहीं पर उन्होने एक अध्ययन मण्डल (स्टडी सर्कल) की स्थापना भी की। 1925 में उन्हें एक पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई जिसका नाम महान क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल के सम्मान में शचीन्द्रनाथ रखा गया। वोहरा परिवार लाहौर के क्रांतिकारियों का दिशा-निर्देशक रहा। क्रांतिकारियों के बीच वे क्रमशः "भाई" व "भाभी" के नाम से पहचाने जाते थे। उस समय में भी लाखों की सम्पत्ति और हज़ारों रुपये के बैंक बैलैंस के उत्तराधिकारी भाई भगवतीचरण ने अपने देशप्रेम हेतु अपने लिये साधारण और कठिन जीवन चुना परंतु साथी क्रांतिकारियों के लिये अपने जीते-जी सदा धन-साधन सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति निस्वार्थ भाव से की। प्रसिद्ध नाटककार उदय शंकर भट्ट के साथ वे बरेली में भी रहे थे। लाहौर में तीन मकानों के स्वामी भाई भगवती चरण ने अपने क्रांतिकर्म के लिये उसी लाहौर की कश्मीर बिल्डिंग में एक कमरा किराये पर लेकर वहाँ बम-निर्माण का कार्य आरम्भ किया था।

9-10 सितम्बर 1928 को फ़ीरोज़शाह कोटला में हुई हि.सो.रि.ए. की गुप्त प्रथम राष्ट्रीय पंचायत में झांसी को मुख्यालय, चन्द्रशेखर "आज़ाद" को मुख्य सेनापति और भगवतीचरण वोहरा को प्रमुख सलाहकार चुना गया और उन्होंने ही संस्था के घोषणा पत्र का प्रारूप तैयार किया था। तभी नवनिर्मित संस्था द्वारा आज़ादी के उद्देश्य के लिये बमों के निर्माण और प्रयोग का निश्चय हुआ था। समझा जाता है कि भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा दिल्ली सेशन कोर्ट में पढा गया संयुक्त बयान भाई भगवतीचरण के निर्देशन में ही तैयार हुआ था।
हमें ऐसे लोग चाहिये जो आशा की अनुपस्थिति में भी भय और झिझक के बिना युद्ध जारी रख सकें। हमें ऐसे लोग चाहिये जो आदर-सम्मान की आशा रखे बिना उस मृत्यु के वरण को तैयार हों, जिसके लिये न कोई आंसू बहे और न ही कोई स्मारक बने।
~ भगवतीचरण वोहरा
यंग इंडिया में जब गांधीजी ने क्रांतिकारियों को कायर कहकर उनके कार्य की निन्दा करते हुए "कल्ट ऑफ़ द बम" आलेख लिखा तब चन्द्रशेखर "आज़ाद" के प्रोत्साहन के साथ भगवती भाई ने "फ़िलॉसॉफ़ी ऑफ़ द बम" का प्रभावशाली और चर्चित आलेख लिखा था। यह आलेख जनता के बीच बहुत अच्छी तरह वितरित हुआ परंतु पुलिस अपने पूरे प्रयास के बाद भी इसके उद्गम का पता न लगा सकी।
मेरे पति की मृत्यु 28 मई 1930 में रावी नदी के किनारे बम विस्फोट के कारण हुई थी। उनके न रहने से भैया (आज़ाद) कहते थे कि उनका दाहिना हाथ कट चुका है। ~ दुर्गा भाभी
इस पत्र के बाद ही पण्डित मोतीलाल नेहरू ने क्रांतिकारियों की दृष्टि को पहचाना और आनन्द भवन (इलाहाबाद) में गांधीजी के साथ क्रांतिकारियों की भेंट कराई। दोनों पक्ष ही एक-दूसरे को समझाने में असफल रहे परंतु भाई भगवतीचरण की लेखनी के कारण क्रांतिकारियों को कॉंग्रेस में मोतीलाल नेहरू के रूप में एक पक्षकार अवश्य मिला।
युद्ध हमारे साथ आरम्भ नहीं हुआ है और हमारे जीवन के साथ समाप्त नहीं होगा। हमारे तुच्छ बलिदान उस श्रृंखला की कडी मात्र होंगे जिसका सौन्दर्य कामरेड भगवतीचरण के दारुण पर गर्वीले आत्म त्याग और हमारे प्रिय योद्धा आजाद की गरिमामय मृत्यु से निखर उठा है। ~ सरदार भगत सिंह (3 मार्च 1931)
लाहौर षडयंत्र काण्ड में शहीदत्रयी को मृत्युदंड की घोषणा के बाद हि.सो.रि.ए. ने तय किया कि क़ैद क्रांतिकारियों को लाहौर जेल से न्यायालय ले जाते समय नये और अधिक शक्तिशाली बमों का प्रयोग करके उन्हें छुड़ा लिया जाये। सुखदेव, राजगुरू और भगत सिंह को छुड़ाने के प्रयास के लिये बनाये गये बमों के परीक्षण के समय 28 मई 1930 को रावी तट पर हुई दुर्घटना में वोहरा जी का असामयिक निधन हो गया। उनके अंतिम समय में विश्वनाथ वैशम्पायन और सुखदेव राज उनके साथ थे। यही सुखदेव राज संयोगवश आज़ाद के अंतिम समय में भी साथ रहे थे।
आज आज़ाद का कोई क्रांतिकारी साथी जीवित नहीं है। स्वतंत्र भारत में एक-एक कर उनके सारे साथियों की मौत हो गयी और किसी ने नहीं जाना। वे सब गुमनाम चले गये। उनके न रहने पर किसी ने आंसू नहीं बहाये, न कोई मातमी धुन बजी। किसी को पता ही न लगा कि ज़मीन उन आस्मानों को कब कहाँ निगल गयी।
~ सुधीर विद्यार्थी
बम विस्फ़ोट से भाई का एक हाथ कलाई से आगे पूरा उड गया और दूसरे की उंगलियाँ नष्ट हो गयीं। पेट में इतना बडा घाव हुआ कि आंतें बाहर निकल आयीं। सुखदेव राज जब तक अन्य साथियों व चिकित्सक की तलाश में गये तब तक भाई की कोख से लगातार बहते खून को रोकने के लिये विश्वनाथ ने पहने हुए वस्त्रों की पट्टियाँ बनाकर प्रयोग कीं। शरीर को रक्त की कमी से सूखने से बचाने के लिये विश्वनाथ उनके मुँह में संतरे निचोडते रहे जोकि वे लोग पहले ही अपने साथ लेकर आये थे। अपने अंत से पहले भाई ने मुस्कराकर विश्वनाथ से कहा कि अच्छा ही हुआ कि घाव उनको ही हुए, यदि सुखदेव राज या विश्वनाथ वैशम्पायन को कुछ हो जाता तो वे भैय्या (आज़ाद) को क्या जवाब देते?

प्रणम्य है उनका त्याग। कोटि-कोटि नमन है उन्हें और उनके जज़्बे को!

[इस आलेख में प्रस्तुत सभी स्कैन क्रांतिकारियों से सम्बन्धित दुर्लभ मुद्रित आलेखों की जानकारी के प्रसार के सदुद्देश्य से सादर और साभार लिये गये हैं। चित्रों पर क्लिक करके उनका बडा प्रतिरूप देखा जा सकता है। स्वर्गीय भगवतीचरण वोहरा के अंतिम क्षणों का चित्रण उनके अंतिम क्षणों के साथी विश्वनाथ वैशम्पायन की लेखनी से लिया गया है।]
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सम्बन्धित कड़ियाँ
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* हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएशन का घोषणा पत्र
* महान क्रांतिकारी चन्द्रशेखर "आज़ाद"
* शहीदों को तो बख्श दो
* नेताजी के दर्शन - तोक्यो के मन्दिर में
* 1857 की मनु - झांसी की रानी लक्ष्मीबाई