Monday, September 15, 2008

नहीं होता - एक कविता


बात तो आपकी सही है यह
थोड़ा करने से सब नहीं होता

फिर भी इतना तो मैं कहूंगा ही
कुछ न करने से कुछ नहीं होता

इक खुमारी सी छाई रहती है
उन पर कुछ भी असर नहीं होता

लोग दिन में नशे में रहते हैं
मैं तो रातों को भी नहीं सोता

खून मेरा भी खूब खौला था
अपना सब क्रोध पी गया लेकिन

कुछ न कहने से कुछ न बदला था
कुछ भी कहता तो झगड़ा ही होता

सच ही कहता था दिल बुलंद रखो
डरना तो मौत से भी बदतर है

दम लगाते तो जीतते शायद
लेखा किस्मत का सच नहीं होता।
(अनुराग शर्मा)

25 comments:

  1. सच है, तकदीर से तदबीर बड़ी है।

    ReplyDelete
  2. " बात तो आपकी सही है यह
    थोड़ा करने से सब नहीं होता

    फिर भी इतना तो मैं कहूंगा ही
    कुछ न करने से कुछ नहीं होता "


    भाव बहुत अच्छे लगे| बहुत व्यावहारिक बात है यह्|

    ReplyDelete
  3. दम लगाते तो जीतते शायद
    लेखा किस्मत का सच नहीं होता।

    बिल्कुल सही लिखा आपने अनुराग जी ..अच्छी रचना

    ReplyDelete
  4. बात तो आपकी सही है यह
    थोड़ा करने से सब नहीं होता

    फिर भी इतना तो मैं कहूंगा ही
    कुछ न करने से कुछ नहीं होता

    इक खुमारी सी छाई रहती है
    उन पर कुछ भी असर नहीं होता

    शानदार कविता है...

    ReplyDelete
  5. दम लगाते तो जीतते शायद
    लेखा किस्मत का सच नहीं होता।

    मेरी सोच अक्सर इसी भावना का समर्थन करती है !!

    कमाले बुजदिली है पस्त होना अपनी आखो मे।
    गर थोडी सी हिम्मत हो तो क्या हो सकता नही।

    ReplyDelete
  6. सच ही कहता था दिल बुलंद रखो
    डरना मरने से भी बदतर है

    एक इमानदार कोशीश के बाद शायद आपकी
    उपरोक्त लाइने ही गीता का ज्ञान हैं ! बहुत
    शुभकामनाएं आपको !

    ReplyDelete
  7. लोग दिन में नशे में रहते हैं
    मैं तो रातों को भी नहीं सोता


    ओह डीयर, आप भी मेरी तरह नींद की गोली का सेवन करते हैं?!

    ReplyDelete
  8. अच्छी कविता है।

    ReplyDelete
  9. लोग दिन में नशे में रहते हैं
    मैं तो रातों को भी नहीं सोता।

    बहुत प्यारा शेर है, एकदम सच्चाई के करीब। बधाई।

    ReplyDelete
  10. achchi aur vyavhaarik soch wali kavita hai....

    ReplyDelete
  11. बहुत अच्छे दोस्त...

    सब कुछ खरा बोले सब
    इन दिनों ऐसा नही होता

    ReplyDelete
  12. अच्‍छी बात लगी-
    दम लगाते तो जीतते शायद
    लेखा किस्मत का सच नहीं होता।

    ReplyDelete
  13. सही बात है... साधारण शब्दों में अच्छे भाव.

    ReplyDelete
  14. कर्ता का मन कुछ और है विधना का कुछ और !

    ReplyDelete
  15. सुंदर रचना. बधाई स्वीकारें.

    ReplyDelete
  16. डरना मरने से भी बदतर है

    यह तो रही कापी-पेस्ट
    अब सवाल है, टिप्पणी...
    तो, मैं आपकी कविता पढ़ लूँ, फिर तो करूँ
    .... नहीं होता .....

    ReplyDelete
  17. बहुत ही सुन्दर रचना। पढकर अच्छा लगा। शायद पहली बार आना हुआ हमारा। आकर अच्छा लगा।
    दम लगाते तो जीतते शायद
    लेखा किस्मत का सच नहीं होता।
    वाह ......

    ReplyDelete
  18. अच्छी कविता !
    स स्नेह्,
    - लावण्या

    ReplyDelete
  19. फिर भी इतना तो मैं कहूंगा ही
    कुछ न करने से कुछ नहीं होता

    -बिल्कुल सही!! बेहतरीन रचना!! वाह!!

    ReplyDelete
  20. अब कुछ कर ही डालो भाई! करते ही रहो!

    ReplyDelete
  21. सच ही कहता था दिल बुलंद रखो
    डरना तो मौत से भी बदतर
    सच ही लिखा है आपने और कैसे हैं अनुराग जी पतझड़ सावन वसंत बहार के बारे में क्या प्रगति है
    फुर्सत हो तो मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें स्वागत है

    ReplyDelete
  22. aapne to meri soch ki dhara ko ho mod diya.. bahut barhiya..

    mera blog follow karein taaki aapke dwara lagaataar margadarshan praapt kar saku..

    blog ka link hai --
    http://merastitva.blogspot.com

    ReplyDelete
  23. कुछ ना करना से कुछ करना तो बेहतर ही है .

    ReplyDelete

मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।