Sunday, November 9, 2008

साथ तुम्हारा - कविता

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साथ तुम्हारा होता तो
यह बोझिल रस्ता हँसत़े हँसते
कट ही जाता

हार तुम्हारी बाहों का
मेरी ग्रीवा में पडता तो
दुख थोड़ा तो घट ही जाता

हँसता रहता कभी न रोता
साहस सहज न खोता
पास तुम्हें हरदम जो पाता

कभी जिसे अपना सरबस सौंपा था तुमने
आज वही मैं पछतावे में झुलस रहा हूँ
तुम मिलते तो क्षमादान तो पा ही जाता

यह बोझिल रस्ता हँसते हँसते
कट ही जाता।

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21 comments:

  1. बधाई बंधुवर
    इस खूबसूरत कविता के लिये
    शुभकामनाएं

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  2. दूरियां ही सामीप्‍य का महत्‍व अनुभव कराती हैं । मिल जाने पर सुख अवश्‍य होता है किन्‍तु अप्राप्ति से उपजने वाली अकुलाहट जो सक्रियता प्रदान करती है, उसस वंचित हो जाना पडता है ।
    क्‍या करें - साथ रहें या अलग-अलग ।
    सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति है आपकी ।

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  3. सच में, न जाने कैसे "चल अकेला" की बात कही जाती है। मेरे विचार से यह साथ तो चाहिये ही।

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  4. कभी जिसे अपना सरबस था सौंपा तुमने
    आज वही मै पछतावे में झुलस रहा हूँ
    तुम मिलते तो क्षमादान तो पा ही जाता

    bahot badhiya bhav bhara hai aapne bahot umda ..

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  5. जिन्दगी ऐसे ही कट जाती है, सर, पता भी नहीं चलता और आजकल तो सरकार ने आतंकवादियों और बांग्लादेशियों को जिन्दगी काटने की इजाजत दे दी है.

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  6. जिन्दगी ऐसे ही कट जाती है, सर, पता भी नहीं चलता और आजकल तो सरकार ने आतंकवादियों और बांग्लादेशियों को जिन्दगी काटने की इजाजत दे दी है.

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  7. अप्रूवल का झंझट हटाइये, सर.

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    1. कमेन्ट-मोडरेशन तब भी ज़रूरी था बंधु और उसकी ज़रुरत आज भी बनी हुई है

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  8. कभी जिसे अपना सरबस था सौंपा तुमने
    आज वही मै पछतावे में झुलस रहा हूँ
    तुम मिलते तो क्षमादान तो पा ही जाता

    वाह वाह .. बेहतरीन और सुंदर भाव अभिव्यक्ति ! शुभकामनाएं !

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  9. सुंदर ! ये आइंस्टाइन और गाँधी वाली पोस्ट क्यों हटा दी? रीडर में बस एक लाइन दिखी !

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  10. दो नये शब्दों के साथ ये कविता अलग बन पडी है, स्वागत.

    अलग से मतलब, जो अमूमन वापरे नहीं जाते..

    ग्रीवा और सरबस.

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  11. बहुत सुन्दर
    धन्यवाद

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  12. badhai is sundar kavita ke liye smart kavita from smart indian

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  13. bahot badhiyan, dhnyabad

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  14. कोई पास आकर इतना ही कह दे
    अकेले जाने वाले अपने साथ मेरी दुआएँ लेता जा !!

    उम्दा अभिव्यक्ती !!

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  15. दुर्लभ है ऐसा प्‍यार-
    कभी जिसे अपना सरबस था सौंपा तुमने
    आज वही मै पछतावे में झुलस रहा हूँ
    तुम मिलते तो क्षमादान तो पा ही जाता

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  16. जीवन के सच को साथॆक तरीके से अिभव्यक्त िकया है ।
    अच्छा िलखा है आपने ।

    http://www.ashokvichar.blogspot.com

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  17. Waah ! kya baat hai.......
    bahut bahut bhaavpoorn,sundar udgaar hain.Lajawaab.

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  18. बहुत ही उम्दा.. वाकई

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  19. बंधू आप की कविताओं मैं कुछ है जो खींचता है
    सीधे शब्दों मैं आप बहुत गहरी बात कहते हो

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