ईश्वर को साधारण प्रिय है(अनुराग शर्मा)
बार बार रचता क्यों वरना
खास बनूँ यह चाह नहीं है
मुझको भी साधारण रहना
न अति ज्ञानी न अति सुन्दर
मिल जाऊँ सबमें वह गहना
साधारण जन विश्व चलाते
नायक प्रभु कृपा का खाते
साधारण ही नायक होते
अति साधारण आते जाते
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Sunday, October 3, 2010
आम लोग - कविता
औसत व्यक्ति को दोयम दर्ज़े का कहकर दुत्कारने वालों को अक्सर मीडियोक्रिटी का रोना रोते सुना है। बहुत बार सुनने पर एक विचार मन में आया, प्रस्तुत है:
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