प्रेमचन्द, कौशिक और सुदर्शन, इन तीनों ने हिन्दी में कथा साहित्य का निर्माण किया है।
~ भगवतीचरण वर्मा (हम खंडहर के वासी)
|
पण्डित बद्रीनाथ भट्ट "सुदर्शन"
(1896-1967) |
जम्मू में पाँचवीं कक्षा की पाठ्यपुस्तक में जब पहली बार "
हार का जीत" पढी थी, तब से ही इसके लेखक के बारे में जानने की उत्सुकता थी। कितना ही ढूँढने पर भी कुछ जानकारी नहीं मिली। दुःख की बात है कि
हार की जीत जैसी कालजयी रचना के लेखक होते हुए भी उनके बारे में जानकारी बहुत कम लोगों को है। गुलज़ार और अमृता प्रीतम पर आपको अंतरजाल पर बहुत कुछ मिल जाएगा मगर यदि आप पंडित सुदर्शन की जन्मतिथि, जन्मस्थान या कर्मभूमि के बारे में ढूँढने निकलें तो निराशा ही होगी।
पचास से अधिक पुस्तकों के लेखक पंडित सुदर्शन के नाम से प्रसिद्ध साहित्यकार का वास्तविक नाम बद्रीनाथ भट्ट (शर्मा) था। उनका जन्म 1896 में स्यालकोट पंजाब (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता पण्डित गुरुदित्तामल्ल गवर्नमेंट प्रेस शिमला में काम करते थे।
मुंशी प्रेमचंद और उपेन्द्रनाथ अश्क की तरह पंडित सुदर्शन हिन्दी और उर्दू दोनों में लिखते रहे हैं। उनकी गणना प्रेमचंद संस्थान के लेखकों में विश्वम्भरनाथ कौशिक, राजा राधिकारमणप्रसाद सिंह, भगवतीप्रसाद वाजपेयी आदि के साथ की जाती है। उनकी पहली उर्दू कहानी तब प्रकाशित हुई जब वे छठी कक्षा के छात्र थे। उसके बाद लाहौर की उर्दू पत्रिका
हज़ार दास्ताँ में उनकी अनेक कहानियाँ छपीं।
पंडित सुदर्शन ने 1913 कॉलेज छोड़ने के बाद लाहौर से प्रकाशित होने वाले उर्दू साप्ताहिक "हिंदोस्तान" के संपादकीय विभाग में नौकरी आरंभ की। उसके बाद उन्होने क्रम से चार उर्दू पत्रों, भारत, चंद्र, आर्य पत्रिका, व आर्य गज़ट का सम्पादन किया। उन्होने अखबार चलाये और साथ ही कहानियाँ लिखते रहे। उनकी पुस्तकें मुम्बई के हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय द्वारा भी प्रकाशित हुईं। उन्हें गद्य और पद्य दोनों ही में महारत थी। पंडित जी की पहली प्रकाशित हिन्दी कथा उनकी सबसे प्रसिद्ध कहानी
हार की जीत है जो कि सन् 1920 में प्रतिष्ठित हिन्दी साहित्यिक पत्रिका
सरस्वती में प्रकाशित हुई थी। उनकी कहानियों में मानवीय तत्व की प्रमुखता है।
“मेरी प्रार्थना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना। ... लोगों को यदि इस घटना का पता चला तो वे दीन-दुखियों पर विश्वास न करेंगे।” ~ बाबा भारती (हार की जीत)
मुख्य धारा के साहित्य-सृजन के अतिरिक्त उन्होंने अनेक फिल्मों की कथा, पटकथा, संवाद और गीत भी लिखे हैं। सन् 1935 में उन्होंने "कुंवारी या विधवा" फिल्म का निर्देशन भी किया था। इस फिल्म के देशभक्ति-भाव से ओत-प्रोत गीत "भारत की दीन दशा का तुम्हें भारतवालों, कुछ ध्यान नहीं ..." ने पराधीन भारत के फिल्म-दर्शकों के मन में देशप्रेम का एक ज्वार सा उत्पन्न किया। फिल्म धूप-छाँव (1935) के प्रसिद्ध गीत "तेरी गठरी में लागा चोर", "बाबा मन की आँखें खोल" आदि उन्ही के लिखे हुए हैं। इसी फ़िल्म में उनका लिखा और पारुल घोष, सुप्रभा सरकार और हरिमति का गाया गीत “मैं ख़ुश होना चाहूँ, हो न पाऊँ...” सही अर्थ में भारतीय सिनेमा का पहला प्लेबैक गीत था। सोहराब मोदी की प्रसिद्ध फिल्म सिकंदर (1941) सहित अनेक फिल्मों की सफलता का श्रेय उनके पटकथा लेखन को जाता है।
आइये सुनें उनकी एक फिल्मी रचना मन की आँखें खोल का पुनर्प्रस्तुतिकरण मन्ना डे के स्वर में
(मूल प्रस्तुति फिल्म धूप छांव में श्री केसी डे के स्वर में थी।)
उनकी साहित्यिक रचनाओं में तीर्थ-यात्रा, पत्थरों का सौदागर, पृथ्वी-वल्लभ, बचपन की एक घटना, परिवर्तन, अपनी कमाई, हेर-फेर, सुप्रभात, सुदर्शन-सुधा आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। वे सन् 1950 में बने फिल्म लेखक संघ के प्रथम उपाध्यक्ष थे और सन् 1945 में महात्मा गांधी द्वारा प्रस्तावित
अखिल भारतीय हिन्दुस्तानी प्रचार सभा वर्धा की साहित्य परिषद् के सम्मानित सदस्यों में से एक थे। उनका विवाह लीलावती देवी से हुआ था।
हिंदी के इस अग्रगण्य साहित्यकार का देहावसान 16 दिसम्बर 1967 को मुम्बई में हुआ था। यदि आपके पास पण्डित सुदर्शन पर कोई आलेख, उनका कोई चित्र या रेखाचित्र हो तो कृपया साझा कीजिये।
धन्यवाद!
(निवेदक: अनुराग शर्मा शनिवार, 26 दिसंबर, 2009)
रेडियो प्लेबैक इंडिया पर पंडित सुदर्शन की कुछ कहानियाँ (ऑडियो)
* पण्डित सुदर्शन की "परिवर्तन"
* कालजयी रचना "हार की जीत"
* पंडित सुदर्शन की "तीर्थयात्रा
* साईकिल की सवारी - पंडित सुदर्शन
* पंडित सुदर्शन की "अठन्नी का चोर"
शिशिर कृष्ण शर्मा जी के ब्लॉग बीते हुए दिन पर प्रामाणिक जानकारी -
* कलम के सिकंदर: पण्डित सुदर्शन