अगर गोत्र की सूची पूछने पर एक ब्राह्मण गिनाना शुरू कर दे... फ़ोर्ब्स, फिलिप्स, होम्स, इमर्सन, इलियट, ओटिस, .... तो शायद आप आश्चर्यचकित रह जायेंगे। अचरज क्योंकर न हो, इस ब्राह्मण को कोई भारतीय भाषा नहीं आती है और इसके अंगरेज़ी के विशिष्ट उच्चारण को "बॉस्टन ब्राह्मण उच्चारण" कहा जाता है। आपने सही पहचाना, मैं बात कर रहा हूँ अमेरिका के प्रतिष्ठित बॉस्टन ब्राह्मण (Boston Brahmin) समुदाय की। बॉस्टन के अति-विशिष्ट वर्ग को पहली बार यह सम्बोधन जनवरी 1860 में ऐट्लांटिक मंथली पत्रिका में छपे एक आलेख में दिया गया था और तबसे यह रूढ हो गया है। अमेरिका के दूसरे राष्ट्रपति जॉन ऐडम्स, टी एस इलियट और राल्फ वाल्डो एमर्सन जैसे साहित्यकार, फोर्ब्स जैसे व्यवसायी और हाल ही में गान्धी जी के सामान की नीलामी से चर्चित होने वाला ओटिस परिवार, जिनके नाम ने कभी न कभी आपको "लिफ्ट" कराया होगा, सब बॉस्टन ब्राह्मण हैं। ब्रैह्मिन डॉट कॉम जाने पर अगर आपको चमडे के पर्स बिकते देखकर झटका लगा हो तो आशा है कि अब उसका कारण समझ आ गया होगा।
वैसे अमेरिका में गाय की एक जाति को भी ब्राह्मण गाय/गोवंश (Brahman cow / Zebu cattle) कहा जाता है। अपने चौडे कन्धे और विकट जिजीविशा के लिये प्रसिद्ध यह गोवंश पहली बार 1849 में भारत से यहाँ लाया गया था और तबसे अब तक इसमें बहुत वृद्धि हो चुकी है। और आप सोचते थे कि जर्सी और फ्रीज़ियन गायें बेहतर होती हैं। यह तो वैसी ही बात हुई जैसे उल्टे बाँस बरेली को। अब जब बॉस्टन और बरेली दोनों का ज़िक्र एक साथ ही आ गया है तो 1857 में लिखी, पाँच वर्ष पहले हमारे हत्थे चढी, और हाल में पूरी पढी गयी पुस्तक "फ्रॉम बॉस्टन टु बरेली ऐण्ड बैक" का ज़िक्र भी करे देते हैं जिसमें 1857 के स्वाधीनता संग्राम की कथा उस गोरे पादरी के मुख से कही गयी है जिसने बरेली में एशिया का पहला जच्चा-बच्चा अस्पताल बनाया था। क्लारा स्वेन अस्पताल आज भी बरेली में मिशन हस्पताल के नाम से मशहूर है। बरेली में स्टेशन मार्ग पर बटलर प्लाज़ा नामक एक बाज़ार इसी पुस्तक के लेखक विलियम बटलर के नाम पर है। उनके अच्छे काम की बधाई। किताब की विषयवस्तु के बारे में फिर कभी। पुस्तक न्यूयॉर्क के प्रकाशक फिलिप्स एण्ड हंट द्वारा प्रकाशित है और गूगल बुक्स पर मुफ्त डाउनलोड के लिये उपलब्ध है।
आप कहेंगे कि मैं बॉस्टन कैसे पहुँच गया। जनाब आजकल वहीं की खाक (बालू) छान रहा था, सोचा कुछ वालुका-कलाकृतियाँ आपसे बांट लूँ। चित्र सेलफ़ोन से लिये गये हैं - बडा करने के लिये कृपया चित्र पर क्लिक करें - मुलाहिज़ा फरमाइये:
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इस्पात नगरी से - पिछली कड़ियाँ
AMERICAN BRAHMAN BREEDERS ASSOCIATION
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[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा Photos by Anurag Sharma]
वैसे अमेरिका में गाय की एक जाति को भी ब्राह्मण गाय/गोवंश (Brahman cow / Zebu cattle) कहा जाता है। अपने चौडे कन्धे और विकट जिजीविशा के लिये प्रसिद्ध यह गोवंश पहली बार 1849 में भारत से यहाँ लाया गया था और तबसे अब तक इसमें बहुत वृद्धि हो चुकी है। और आप सोचते थे कि जर्सी और फ्रीज़ियन गायें बेहतर होती हैं। यह तो वैसी ही बात हुई जैसे उल्टे बाँस बरेली को। अब जब बॉस्टन और बरेली दोनों का ज़िक्र एक साथ ही आ गया है तो 1857 में लिखी, पाँच वर्ष पहले हमारे हत्थे चढी, और हाल में पूरी पढी गयी पुस्तक "फ्रॉम बॉस्टन टु बरेली ऐण्ड बैक" का ज़िक्र भी करे देते हैं जिसमें 1857 के स्वाधीनता संग्राम की कथा उस गोरे पादरी के मुख से कही गयी है जिसने बरेली में एशिया का पहला जच्चा-बच्चा अस्पताल बनाया था। क्लारा स्वेन अस्पताल आज भी बरेली में मिशन हस्पताल के नाम से मशहूर है। बरेली में स्टेशन मार्ग पर बटलर प्लाज़ा नामक एक बाज़ार इसी पुस्तक के लेखक विलियम बटलर के नाम पर है। उनके अच्छे काम की बधाई। किताब की विषयवस्तु के बारे में फिर कभी। पुस्तक न्यूयॉर्क के प्रकाशक फिलिप्स एण्ड हंट द्वारा प्रकाशित है और गूगल बुक्स पर मुफ्त डाउनलोड के लिये उपलब्ध है।
आप कहेंगे कि मैं बॉस्टन कैसे पहुँच गया। जनाब आजकल वहीं की खाक (बालू) छान रहा था, सोचा कुछ वालुका-कलाकृतियाँ आपसे बांट लूँ। चित्र सेलफ़ोन से लिये गये हैं - बडा करने के लिये कृपया चित्र पर क्लिक करें - मुलाहिज़ा फरमाइये:
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AMERICAN BRAHMAN BREEDERS ASSOCIATION
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[सभी चित्र अनुराग शर्मा द्वारा Photos by Anurag Sharma]
aapki jankari ruchikar hee nahin balki duniya se aur vismit bhav se jodne vali hai.soch raha hoon aapse mahinabhar pahle kyon n mila jab pittsburg aaya thaa.
ReplyDeleteरोचक और मजेदार जानकारी !
ReplyDeleteबरेली के ब्राह्मण और बॉस्टन के पण्डे, गौवंश।
ReplyDeleteऔर ये बालू की कलाकृतियाँ देखकर क्या आपको भी सुदर्शन पटनायक की याद नहीं आई?
ज्ञान वृद्धि भी हो रही है और विश्व्बंधुत्व(शायद यही कहते हैं) में विश्वास बढ़ रहा है।
आभार आपका।
प्रबोध जी,
ReplyDeleteकोई बात नहीं। भगवान ने चाहा तो न्यू यॉर्क या जयपुर में आपके दर्शन कर लेंगे। अभी आपका ब्लॉग देखा, बहुत अच्छा लगा।
संजय भाई,
ReplyDeleteहमने तो अगले दिन दफ्तर पहुंचते ही सुदर्शन की कलाक्रितियो के चित्र सबको दिखा दिये। कुछ भी कहो, रेत की कलाकृतियां देखना अपने आप में अलग सा ही अनुभव रहा।
बालू से बनी कलाकृतियां मनोहारी हैं। भारत में भी पुरी में इसी प्रकार की बनायी जाती हैं।
ReplyDeleteशर्मा जी ब्राहमण और गोत्र के विषय में अदा जी के विचार पढ़े. आपका कमेन्ट भी पढ़ा पर आपका दिया लिंक खुल नहीं पाया अब इस विषय में नई जानकारी. पर इससे ज्यादा मुझे १८५७ में लिखी पुस्तक ने आकर्षित किया. उसके उल्लेख का इंतजार रहेगा. हमारे देश से गो माता का एक्सपोर्ट हुआ है ये जानकर भी आश्चर्य हुआ. आपके लेख से ऐसा लगा कि हमने उनकी दुधारू नस्ल का आयात किया उनहोंने हमारी जुझारू नस्ल का आयात किया.
ReplyDeletebahut hi acchi jankari di hai aapne...aur wo kashyap gotr ke baare mein to bilkul hi nayi jaankaari mili hai..
ReplyDeletebahut hi rochak...
aapka dhnywaad..
बढिया रोचक जानकारी भरी पोस्ट है। आभार।
ReplyDeleteबड़ी सुन्दर व रोचक जानकारी।
ReplyDeleteविचारपरक पोस्ट !
ReplyDeleteबहुत ही रोचक जानकारी दी है ...और तस्वीरों ने मन मोह लिया !!
ReplyDeleteलाजवाब कलाकारी का नमूना... आभार दिखाने के लिए सर...
ReplyDeleteआपके इस कलाकृति दर्शन की जानकारी तो थी. आज देख भी लिया. और हर बार की तरह आज भी नयी जानकारी का बोनस तो मिला ही.
ReplyDelete@VICHAAR SHOONYA said...
ReplyDelete...आपका दिया लिंक खुल नहीं पाया
पाण्डेय़ जी,
कश्यप ऋषि का सन्दर्भ यहाँ है
ajit gupta said...
ReplyDelete...भारत में भी पुरी में इसी प्रकार की बनायी जाती हैं।
जी, अजित जी! सुदर्शन पटनायक तो विश्व प्रसिद्ध कलाकार हैं. मो सम कौन भी उन्हीं का ज़िक्र जकर रहे हैं.
धन्यवाद अभिषेक!
ReplyDeleteआज तो एकदम नई जानकारियाँ मिलीं। आप की एक पोस्ट का लिंक मेरे ब्लॉग रोल में दिख रहा है लेकिन क्लिक करने पर non existent बता रहा है। माजरा क्या है?
ReplyDeleteफ्रॉम बॉस्टन टु बरेली ऐण्ड बैक - पब्लिशर का नाम बताइए। ढूढ़ते हैं ।
गिरिजेश,
ReplyDeleteपुस्तक न्यूयॉर्क के प्रकाशक फिलिप्स एण्ड हंट द्वारा प्रकाशित है और गूगल बुक्स पर मुफ्त डाउनलोड के लिये उपलब्ध है। यह जानकारी अब मैने पोस्ट में जोड दी है।
विश्वास नहीं होता कि ये कलाकृतियाँ रेत की बनी हुई हैं...
ReplyDeleteअद्भुद हैं....
कृपया डाउनलोड लिंक दें !
ReplyDeleteसतीश सक्सेना has left a new comment on "बॉस्टन के पण्डे, गौवंश और सामुद्रिक कला"
ReplyDeleteबरेली की याद दिला दी यार !लगता है अपनी जमीन को कभी छोड़ नहीं पाओगे! यह किताब डाउनलोड करने की कोशिश करता हूँ , धन्यवाद ! ....शुभकामनायें
बॉस्टन ब्राह्मणों के बारे में सुना पढ़ा था, आज आपने भी मिलवाया। यह गायों वाली बात नई है। वैसे संसार में क्या कहाँ से गया, आया जानना बहुत रुचिकर लगता है। चित्र बहुत सुन्दर हैं, चुराने की सीमा तक!
ReplyDeleteघुघूती बासूती