(अनुराग शर्मा)
सुरमयी यादों की बात ही निराली है
भंडार है अनन्त जेब भले खाली है।
परदे के पीछे से झाँक झाँक जाती थी
हृदय में रहती वह षोडशी मतवाली है।
थामा था हाथ जो ओठों से चूमा था
रूमानी शाम थी आज भी हरियाली है।
याद तेरी आयी तो सहरा शीतल हुआ
चतुर्मास की साँझ घिरी घटा काली है।
दृष्टि क्षीण हो भले रजतमय केश हों
आज भी अधरों पे याद वही लाली है।
बसंत का मौसम यादो का मौसम
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता
शुभकामनाये
आपकी कविता की बात ही निराली है।
ReplyDeleteश्रंगार पगी पंक्तियाँ।
ReplyDeletehan !aapki kavita vakai nirali hai ..
ReplyDeleteछा गये श्रीमान शर्मा जी..
ReplyDeleteसर जी, आपने मन के तार झंकृत कर दिए.
ReplyDeleteदृष्टि क्षीण हो भले रजतमय केश हों
ReplyDeleteआज भी अधरों पे याद वही लाली है
बहुत खूब...बड़ी ही प्यारी सी नज़्म है.
दृष्टि क्षीण हो भले रजतमय केश हों
ReplyDeleteआज भी अधरों पे याद वही लाली है।
Oh... क्या बात कही....
प्रेम रस पगी मोहक अतिसुन्दर रचना...
आनंद आ गया पढ़कर...
इस तरह के मामले मे,
ReplyDeleteझोली अपनी खाली है।
------------------
अंतिम पंक्तियों पर कभी पहले पड़ी दो लाईनें याद आ गईं, अनफ़िट लगे तो मत छापियेगा:)
"हर मौसम में भले रहें,
महबूबा के होंठ।
हरे रहे अदरक रहे,
सूख गये तो सोंठ॥"
बहुत खुबसुरत
ReplyDeleteदृष्टि क्षीण हो भले रजतमय केश हों
ReplyDeleteआज भी अधरों पे याद वही लाली है।
वाह...बेजोड़...
नीरज
अति सुंदर शब्द विन्यास है, आनंद आया.
ReplyDeleteरामराम.
क्या कहने अनुराग भाई आपका भी जवाब नहीं -फागुन आ गया !
ReplyDeleteशर्मा जी आपकी पिछली और वर्तमान कविता इतनी सहज और सरल हैं कि पाठक (और साथ में पाण्डेय ) को भी कविता रचने का जी कर जाता है.
ReplyDeleteवाह. एक सुंदर रचना.
ReplyDeleteबहुत प्यारी प्रेममयी पंक्तियाँ....
ReplyDeleteवाह ! वाह !
ReplyDeleteदृष्टि क्षीण हो भले , रजतमय केश हो ...
ReplyDeleteमगर स्मृतियों में वही पल !
सुन्दर !
बहुत अच्छी कविता,
ReplyDeleteधन्यवाद.
बेजोड़ रचना,वाह.
ReplyDeleteबसंत इतना जोर मारेगा ये सोचा भी ना था :)
ReplyDeleteanurag ji , sunder bhav va praye ehsas .......man ko chhoo gaye.
ReplyDeleteअनुराग भाई!! ग़ज़ल के मक़्ते पर तो हम जब होंगे साठ साल के और तुम होगी पचपन की याद करा दिया!! और पहले के सारे अशार एक फ़्लैश बैक में ले गये!! अ जर्नी डाऊन द मेमोरी लेन!!
ReplyDeleteसुरमयी यादों की बात ही निराली है
ReplyDeleteभंडार है अनन्त जेब भले खाली है।
yade sada ke liye sir ji
थामा था हाथ जो ओठों से चूमा था
ReplyDeleteरूमानी शाम थी आज भी हरियाली है
...वाह! बेहतरीन।
वाह!
ReplyDelete