चलो अब डायरी में लिख लेंगे
मन को कहके यही भरमाते हैं।
बीती बातों को याद कर-कर के
दिल के घावों को वे सहलाते हैं।
दिल के घावों को वे सहलाते हैं।
सबकी मजबूरियों को समझा है
अपनी बारी पे चुप हो जाते हैं।
अपनी बारी पे चुप हो जाते हैं।
अपनी तनहाइयों को झटका दे
गीत उत्सव के गुनगुनाते हैं॥
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गीत उत्सव के गुनगुनाते हैं॥
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