Monday, October 13, 2008

रहने दो - कविता

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कुछेक दिन और
यूँ ही मुझे
अकेले रहने दो

न तुम कुछ कहो
और न मुझे ही
कुछ कहने दो

इतनी मुद्दत तक
अकेले ही सब कुछ
सहा है मैंने

बचे दो चार दिन भी
ढीठ बनकर
मुझे ही सहने दो

कुछेक दिन और
यूँ ही मुझे
अकेले रहने दो

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20 comments:

  1. यह भावना मुझमें भी आती है। पर इसके आने पर जानबूझ कर लोगों के बीच चले जाना चाहिये।
    बड़ी अवसादोत्पादक है यह।

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  2. achcha likha hai, kabhi kabhi akele rahne ki ichcha to sabki hoti hai

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  3. यह अकेलापन भयावह सा है -

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  4. "कुछेक दिन और
    यूँ ही मुझे
    अकेले रहने दो"


    बहादुर लोग इस स्थिति में भी हंसते २ पार निकल जाते हैं !
    भावो की सुंदर अभिव्यक्ति ! बहुत २ शुभकामनाएं !

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  5. इतनी मुद्दत तक
    अकेले ही सब कुछ
    सहा है मैंने

    ज़िन्दगी अपने रंग अनेक तरह से दिखाती है ..अच्छी लगी आपकी यह रचना

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  6. जो रहा अकेला
    हमेशा, यही कहेगा
    उस ने न बिगाड़ा किसी का
    कोई क्यों बिगाड़े उस का?
    और आखरी वक्त क्या खाक
    मुसमाँ होंगे।

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  7. आज मूड कुछ अलग है जनाब

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  8. कभी कभी ज़रूरी भी होता है शायद ... एकदम अकेले रहना.

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  9. बचे दो चार दिन भी
    ढीठ बनकर
    मुझे ही सहने दो

    बहुत सच्ची बात है ! धन्यवाद !

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  10. seedha/saral/prabhaavi.. ekaant ....न तुम कुछ कहो
    और न मुझे ही
    कुछ कहने दो..shart ye ki ghutan na ho....

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  11. बहुत सुन्दर

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  12. पंक्तियां आपकी और बयान मेरा । मैं भी इन दिनों इसी अवसाद को जी रहा हूं । लेकिन यह स्थिति बिलकुल ही अच्‍छी नहीं है - न मेरे लिए, न आपके लिए न ही किसी और के लिए । इस कविता का प्रति उत्‍तर आपसे जल्‍दी मिले-ईश्‍वर से यही प्रार्थना है ।

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  13. अकेलेपन की यह पीड़ा सबके भीतर का सच है, घर लौटता हुआ आदमी दि‍न भर के आपाधापी के बाद फि‍र अकेला हो जाता है, ज्‍यादातर कि‍या गया प्रक्रम अकेलेपन से बचने के लि‍ए ही कि‍या जाता है। बहुत सुंदर अभि‍व्‍यक्‍ति‍।

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  14. भई अपन को तो अकेलापन काट्ता है।बडा डर लगता है अकेलेपन से।वैसे रचना बहुत अच्छी है।

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  15. anil pushkar ji se sehmath hun, akelapan bahut hee dard dene wala hai, kabhi kabhi bahut der ho jati hai iska ehsaas hone mein.Kavita dil ko choo jati hai aur ek dard de jati hai.Badai Anurag ji.

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  16. 'तबे एकला' वाले अकेलेपन और इस अकेलेपन में बड़ा अन्तर है... यहाँ झुंझलाहट और आक्रोश सहज ही दीखता है... ये अकेलापन डरावना है भाई !

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  17. अकेले ही आये थे हम और एक जगह सभी अकेले हैँ उसका विषाद न हो !
    मन को सँयत और शाँत रखना जरुरी है
    -लावण्या

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  18. आपने बिल्कुल सही कहा अकेले ही चलना है! भीड तो दिखावा मात्र है!!

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  19. Wonderful, very nice idea!

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