काफी दिनों से इस कहानी का प्लाट दिमाग में घुमड़ रहा था। पर किसी न किसी कारणवश लिखना शुरू न कर सका। अब प्रतिदिन इस कहानी की एक कड़ी लिखने का प्रयास करूंगा। आशा है आपको पसंद आयेगी। आपका सुझाव है कि कड़ी थोड़ी और बड़ी हो, सो हाज़िर है एक बड़ी कड़ी। अब तक की कथा यहाँ उपलब्ध है: सौभाग्य - खंड १ |
"तो आ गयीं आप, मुझे लगा छुट्टी पर हैं आज भी।” बुड्ढे ने हमेशा की तरह ताना मारा। बदतमीज़ कहीं का!
फ्यूचरटेक वाला जैन मेरे पहुँचने से पहले ही मेरी सीट पर पहुँच गया, "मैडम मेरी बिल पहले डिसकाउंट कर दीजिये, नहीं तो पार्टी कानूनी कार्रवाई शुरू कर देगी।” यह आदमी हमेशा कानूनी कार्रवाई की ही धमकी देता रहता है। इतना ही डर है तो अकाउंट में पहले से पैसा रखा करो ना। सबने सर पर चढा रखा है। मंत्री जी का साला जो ठहरा। सारे अकाउंट ऊपर से ही तैयार होकर आते हैं हमारे पास तो साइन करने के अलावा कोई चारा ही नहीं होता है। जल्दी जल्दी उसका काम किया। दोपहर तक फ्यूचरटेक का खाता फ़िर से ओवर हो गया।
लंच करने बैठी तो पहले ही कौर में दांत के नीचे कंकर आ गया। खाने का सारा मज़ा किरकिरा हो गया। तब तक राम बाबू आ गया। यह हमारा चपरासी है। चीफ मेनेजर से कम बदतमीज़ नही है। उससे कम समझता भी नहीं है अपने को। पढ़ा लिखा नहीं है। पढ़ाई की क़सर फैशनेबिल कपडों से पूरी करने की कोशिश में लगा रहता है। है तो चपरासी ही और शायद सारी उम्र चपरासी ही रहे लेकिन खूबसूरती में अपने को ऋतिक रोशन से ज़्यादा सुंदर समझता है। हमेशा कुछ न कुछ कमेंट करता रहेगा। मेरी तरफ़ बढ़ा तभी मैं समझ गई कुछ बकवास करने वाला है। और ठीक वही हुआ।
उसने अपना बड़ा सा मुंह खोला, "मैडम आप न जींस में बहुत अच्छी लगती हैं, रोजाना ही जींस पहनकर आया करिये। एकदम टिप-टॉप लगेंगी।”
मुझे इतना गुस्सा आया कि उसी वक्त खाने की प्लेट छोड़कर उठ गयी।
वापस अपनी सीट पर आयी ही थी कि फ़ोन घनघनाया। "क्या प्रीति मैडम से बात कर सकता हूँ?" पूरे दिन में पहली बार किसी ने इतनी सभ्यता से बात की थी। अच्छा लगा। आवाज़ भी अच्छी लगी, कुछ हद तक जानी पहचानी भी।
"मैडम आपसे एक जानकारी चाहिए थी।”
"हाँ, पूछिए", पूरे दिन में अब मैं पहली बार सामान्य होने लगी थी।
"क्या आप किसी आदित्य रंजन को जानती हैं?"
उस सभ्य आवाज़ ने आदित्य कहा तो मेरा सारा शरीर एकबारगी पुलकित सा हो गया। यह नाम सुनने को मेरे कान तरस रहे थे। और मेरे होंठ भी पिछले दस सालों में कितनी बार अस्फुट स्वरों में यह नाम बोलते रहते थे। वही गंभीर स्वर, वही मिठास और वही शालीनता, मुझे यह पहचानने में एक पल भी नहीं लगा कि यह आदित्य ही है।
"बदमाश, कहाँ हो तुम?" बस यही वाक्य ठीक से निकला। गला काँपने लगा था।
"कहाँ खो गए थे तुम? पता भी है मैं किस हाल में हूँ? कितनी अकेली और उदास हूँ?" कहते कहते मेरी रुलाई फ़ूट पड़ी।
"मैं काम से नौसेना मुख्यालय आया था। पुरानी यादें ढूँढने कनोट प्लेस आया तो अरविंद मिल गया। उस से तुम्हारा सब हाल मिला। उसी ने तुम्हारा नंबर दिया और बताया कि तुम्हारी ब्रांच नजदीक ही है। सुनो… प्लीज़ रो मत। मैं पाँच मिनट में आ रहा हूँ।”
उसे आज भी मेरा इतना ख्याल है, यह जानकर अच्छा लगा। वह आज भी उतना ही भला था, उसकी आवाज़ में आज भी वही शान्ति थी जिसे मैं अब तक मिस करती रही थी।
[क्रमशः]
प्रीती मैडम का मूड सब खराब कर रहे थे पर अन्तत: आदित्य रन्जन जी का आना उन्हे रुचिकर लगा ! बहुत अच्छा लगा ! अब आगे देखते हैं , क्या होता है ?
ReplyDeleteरा्म राम !
अगली कडी का इँतज़ार रहेगा.
ReplyDeleteकहानी अच्छी जा रही है। आगे इंतजार रहेगा।
ReplyDeletewah
ReplyDeleteबड़ी जीवंत लेखनी है भई..चित्र उभरते चलते हैं..अगली कड़ी का इन्तजार लगवा कर ही जाते हो!!
ReplyDeleteबढ़िया ! आगे जानने की उत्सुकता है ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
आदित्य उगे हैं, अब देखें...
ReplyDeleteकहानी के दोनों भाग आज ही पढ़े
ReplyDeleteअच्छे लगे.............
आगे का इंतज़ार रहेगा
आगे का इंतजार हैं। वैसे आदित्य ने आकर एक नया मोड दिया है देखे आगे क्या होता है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर लगी आप की यह कहानी.... जल्द आगे की कहानी भी लिखे... इन्तजार है.
ReplyDeleteधन्यवाद