Sunday, October 3, 2010

आम लोग - कविता

औसत व्यक्ति को दोयम दर्ज़े का कहकर दुत्कारने वालों को अक्सर मीडियोक्रिटी का रोना रोते सुना है। बहुत बार सुनने पर एक विचार मन में आया, प्रस्तुत है:

ईश्वर को साधारण प्रिय है
बार बार रचता क्यों वरना

खास बनूँ यह चाह नहीं है
मुझको भी साधारण रहना
न अति ज्ञानी न अति सुन्दर
मिल जाऊँ सबमें वह गहना

साधारण जन विश्व चलाते
नायक प्रभु कृपा का खाते
साधारण ही नायक होते
अति साधारण आते जाते
(अनुराग शर्मा)

23 comments:

  1. सरल होना इतना सरल कहाँ भला।

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  2. सादर वन्दे !
    सार्थक रचना |
    जो यह बात समझ हम जाते !
    सारे पाप यहीं धुल जाते |
    रत्नेश त्रिपाठी

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  3. मानस में उल्लिखित है -
    ’छिद्र कपट छल मोहे न भावा,
    नि्र्मल मन जन सो मोहे पावा।’

    हम ये राग, द्वेष छोड़ भर पायें तो ईश्वर कहाँ दूर है?

    कविता शायद पहली बार दिखी आपके ब्लॉग पर, लिखी साधारण लोगों पर है लेकिन असाधारण है।

    आभार।

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  4. औसत दर्जे का अपना महत्व होता है। हम तो जीवन भर औसत दर्जे के ही रहे..न कभी आगे न कभी पीछे...आगे गए तो धकिया के पीछे कर दिए गए, पीछे गए तो आगे बढ़ने का प्रयास किया।
    ..आपकी कविता के भाव ने कई तार झनझना दिए ..इसी भाव पर एक कविता मैने भी लिखी है..थोड़ा उपदेशात्मक है ..लेकिन अब ब्लॉग में डालने का मूड बना रहा हूँ..आभार।

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  5. @कविता शायद पहली बार दिखी आपके ब्लॉग पर ...
    अनुराग शर्मा की हिंदी कवितायें

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  6. खास बनूं यह चाह नहीं है
    मुझको भी साधारण रहना

    बहुत ही लाजवाब बात कह दी, शुभकामनाएं.

    रामराम

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  7. साधारण!
    कौन न फिदा हो जाय इस अदा पर!
    हम भी सोचता हूँ कि ऐसा साधारण बन जाऊँ लेकिन हो ही नहीं पाता :)

    @ ईश्वर को साधारण प्रिय है
    बार बार रचता क्यों वरना
    साधारण ही नायक होते
    अति साधारण आते जाते

    शेखर एक जीवनी की समीक्षा में किसी ने कहा था - विलक्षण जीवन परिधि के ऊपर टैनजेंट की तरह स्पर्श करते हैं, उसे मथते हैं और चल देते हैं लेकिन जीवन का गढ़न और चलन तो साधारणों, आम लोगों से ही होता है।

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  8. साधारण बन कर रह पाना अपने आप में असाधारण है। साधारण होना जितनी अच्‍छी बात है उतना ही कठिन है, साधारण होना।

    तब भी हम खुशहाल थे, अब भी हम खुशहाल।
    तब भी छोटलाल थे, अब भी

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  9. साधारण-प्रिय की सहज अभिव्यक्ति.
    खूबसूरत |

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  10. ईश्वर को साधारण भोले भाले लगते हैं प्यारे
    ज्ञान मार्ग से अधिक भक्ति मार्ग के वारे न्यारे

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  11. अपने साधारण होने पर अभिमान हो रहा है ...:):)
    साधारण सी कविता साधारण होते हुए भी असाधारण हो गयी है ...
    आपकी कहानी कहाँ अटकी पड़ी है ....?

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  12. वाणी जी,
    कहानी के कर्बुरेटर में थोड़ा कचरा फंस गया है, अभी गैराज में खड़ी है. मरम्मत पूरी होते ही यहाँ ला रहा हूँ

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  13. साधारण तो हम आज भी हैं ....असाधारण होने की आस है ...प्यास है !

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  14. अगर साधारण को साधारण प्रिय हो जायें तो दुनिया का कायाकल्प हो जायेगा ! आपका आज का विचार बेहद पसंद आया !

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  15. बहुत सुन्दर रचना है ...
    साधारण पर असाधारण रचना ...

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  16. साधारण बने रहना ही सबसे मुश्किल है...
    सुन्दर कविता

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  17. आदरणीय अनुराग जी,
    चरण स्पर्श...
    आपका ब्लॉग अभी अभी फोलो करना शुरू किया है और काफी पसंद आ रहा है| शुरुआत आपकी कविता " आम लोग" से की है,बहुत ही अमदा है|
    पढ़कर हर कोई साधारण इंसान बनना चाहेगा|
    ब्लॉग जगत में अभी कदम ही रखा है,कोई भी गलती हो तो छोटा समझकर माफ़ कर दीजियेगा |

    अंकित...

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  18. प्रिय अंकित,

    सदैव प्रसन्न रहो। तुम्हारी टिप्पणी पाकर प्रसन्नता हुई। तुम जैसे संस्कारवान और विनम्र युवओं को देखकर यह विश्वास दृढ रहता है कि भारत की शान कभी कम नहीं होगी।

    शुभाशीष,
    अनुराग.

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  19. न अति ज्ञानी न अति सुन्दर
    मिल जाऊँ सबमें वह गहना
    bahut sundar ...

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  20. साधारण होने के सुख असाधारण होने के साथ गुम हो जाते हैं। जाने क्यों मन इस सुख का अस्वाद नहीं उठाता।
    सुंदर रचना

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