Saturday, May 12, 2012

मातृ दिवस पर सभी माताओं को हार्दिक नमन!

मेरे एक मित्र ने एक बार यह कथा सुनाई थी। वही क़िस्सा आज मातृदिवस के अवसर पर आपकी सेवा में प्रस्तुत है।
मातृ देवो भवः, पितृ देवो भवः, आचार्य देवो भवः, अतिथि देवो भवः॥

एक बार एक पहुँचे हुए सत्पुरुष ने सिनाई पर्वत पर ईश्वर का साक्षात्कार किया। ईश्वर ने उन्हें बताया कि अमुक स्थान में रहने वाला एक वधिक स्वर्ग में उनका साथी होगा। एक वधिक, स्वर्ग में, उनका साथी? सत्पुरुष को आश्चर्य तो हुआ पर बात ईश्वर की थी सो उसका रहस्य जानने के उद्देश्य से वे इस वार्ता के बाद, अपनी पहचान गुप्त रखते हुए उस वधिक को मिले। अतिथि की सेवा करने के उद्देश्य से वह वधिक उन्हें अपने घर ले गया। घर पहुँचकर उन्हें बिठाकर कुछ देर इंतज़ार करने के लिये कहकर यजमान अपनी वृद्ध और जर्जर माँ के पास पहुँचा और उनके हाथ पाँव धोकर बाल संवारे फिर अपने हाथ से खाना खिलाया। तृप्त होकर वृद्धा कुछ बुदबुदाई जिस पर यजमान ने तथास्तु कहा।
माँ - एक कविता 
जब यजमान अतिथि के पास वापस पहुँचा तो सत्पुरुष ने उससे वृद्धा और उसकी कही बात के बारे में पूछा। यजमान ने हँसते हुए बताया कि माँ अपने बेटे के स्नेह में कुछ भी बोल देती है और मैं तो माँ की भावना का आदर करते हुए तथास्तु कहता हूँ। वरना, जो वह कहती है, वैसा संभव नहीं है।

अतिथि ने जानने का इसरार किया तो यजमान ने शर्माते हुए बताया कि माँ कहती है कि जन्नत में मूझे हज़रत मूसा का साथ मिलेगा, माँ की ममता को जानते हुए हाँ कह देता हूँ। वर्ना कहाँ एक वधिक, कहाँ स्वर्ग और कहाँ हज़रत मूसा।

तब अतिथि ने कहा, "तुम्हारी माँ की प्रार्थना स्वीकार हो चुकी है, मैं स्वर्ग में तुम्हारा साथी मूसा हूँ।"

पाकिस्तान में रहनेवाले डॉ क़ुरेशी से यह कथा सुनने के बाद मेरे मन में पहला विचार यही आया कि वन्दे-मातरम पर हम भारतीयों का एकाधिकार नहीं है। अन्य संस्कृतियों में भी जन्नत माँ के चरणों में ही मानी जाती है।

अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रुच्यते। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥

मूल आलेख की तिथि: रविवार, 12 मई 2012, मातृदिवस (Mother's Day)

53 comments:

  1. सकारात्मक उर्जा से भरी हुई ....बहुत बढ़िया पोस्ट ....!

    ReplyDelete
  2. मातृसेवा से वधिक भी सत्पुरूषों का सहवासी बना।

    मातृदिवस पर शुभकामनाएं

    ReplyDelete
    Replies
    1. सच है! आगे की कहानी मुझे नहीं पता लेकिन विश्वास है कि सत्पुरुष के दर्शन होने से स्वर्ग जाने तक के मार्ग में कई पड़ाव आये होंगे जिनमें से एक निश्चित रूप से पशुदया भी रहा होगा।

      Delete
    2. कथा के सारे पड़ाव निष्पत्ति में गर्भित होते है। ईश्वर का सत्पुरुष को संकेत, उपदेश प्रेरणा होती है, वधिक से मिलने की इच्छा महापुरूषों का मात्र जिज्ञासा भाव नहीं होता। पूर्वनिश्चित नियति में भी कर्म-प्रबंध अपरिहार्य है। बोध,दुष्कर्मों का त्याग,पश्चाताप और प्रायश्चित एक नियति, संयोग और पुरूषार्थ के सम्वेत संयोजन से प्रवर्तमान रहता है।

      Delete
  3. मां की भावना तो सभी जगह एक सी ही होती है । फर्क तो बेटा बेटी में आ जाता है ।
    शुभकामनायें ।

    ReplyDelete
  4. Replies
    1. मेरे माता-पिता, अपने पौत्र-पौत्री के साथ!

      Delete
  5. जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥

    ReplyDelete
  6. सच है ...माँ का मान तो सबसे बढ़कर है.... माँ को नमन

    ReplyDelete
  7. बहुत ही बढ़िया पोस्ट.....
    :-)

    ReplyDelete
  8. वन्दे मातरम ही नहीं, किसी भी शुभ विचार और भावना पर किसी एक देश, धर्म का एकाधिकार नहीं है| पिछले दिनों किसी ब्लॉग पर कुछ असहमति हुई थी, वहां ऐसा जिक्र था कि हम जैसों के लिखने से सच्चे मुसलामानों का अपमान हो रहा है| मेरी समझ में तो मेरी तकलीफ सच्चे मुसलमान के लिए भी थी, जिसकी आवाज मुखर नहीं हो पाती| आपकी पोस्ट में आपके दोस्त के बारे में जानकर यह अंतर और स्पष्ट हो गया कि सच सबके लिए अलग अलग होता है|
    शायद विषय से हटकर टिप्पणी कर रहा हूँ, वो मुहावरा है न की सावन के अंधे को..... :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही कहा संजय. मुसलमानियत की कट्टर से कट्टर परिभाषायें देकर अधिसंख्य मुसलमानों को "चुपचाप भेड़ की तरह हमारे पीछे आओ या मारे जाओ" के तरीके से बदलने की भरपूर कोशिशें देखी जा रही हैं। बन्दूक के ज़ोर पर कहीं अहमदिया, कहीं शिया, बोहरा, कहीं बंगाली तो कहीं सैकुलर के नाम से थोक में क़ौम के दुश्मन भी घोषित किये जा रहे हैं। खुशी की बात यह है कि पाकिस्तान जैसे पतनशील देश में भी हसन निसार और मार्वी सेर्माद जैसी हस्तियाँ इन दरिन्दों के मुक़ाबले के लिये बहादुरी से खड़े हैं। आशा करता हूँ कि भारत के मुसलमानों में भी ऐसे साहसी व्यक्तित्व जल्दी ही सामने आयेंगे। अफ़सोस की बात यह है कि अतिवादी हरकतों पर प्रशासन का ढुलमुल रवैया देखकर इस्लाम का यही अतिवादी मॉडल कई ऐसे ग्रुप भी अपनाने का प्रयास कर रहे हैं जो अपने को कम्युनिस्ट या हिन्दू संस्कृति का ठेकेदार सिद्ध करने पर जुटे हुए हैं। जागरूकता की ज़रूरत है।

      Delete
    2. इस विषय पर अब संवेदनशीलता का छद्म भय त्याग कर प्रखरता से विचार प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।

      Delete
  9. प्रेरणादाई पोस्ट.

    ReplyDelete
  10. सच है, सब सुख है यहाँ..

    ReplyDelete
  11. इन पंक्तियों का फ़र्क देखिए...​
    ​​
    ​मेरी मां मेरे साथ रहती है...​
    ​​
    ​या ​
    ​​
    ​मैं अपनी मां के साथ रहता हूं...​
    ​​
    ​जय हिंद...

    ReplyDelete
    Replies
    1. ...
      कोई कैसे भी कहे
      माँ सर्वोपरि रहती है।

      Delete
  12. वन्दे-मातरम पर हम भारतीयों का एकाधिकार नहीं है। अन्य संस्कृतियों में भी जन्नत माँ के चरणों में ही मानी जाती है।
    ...प्रेरक लघुकथा के माध्यम से आपने सुंदर संदेश दिया है।

    ReplyDelete
  13. ईश्वर माँ की प्रार्थना जरुर सुनता है !

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी अवश्य! एक वधिक को स्वर्ग के द्वार तक पहुँचाने की इसी शक्ति के कारण माँ का स्थान गुरु और पिता से भी पहले है - हमारी सर्वप्रमुख रक्षक और शिक्षिका!

      Delete
  14. रविकर चर्चा मंच पर, गाफिल भटकत जाय |
    विदुषी किंवा विदुष गण, कोई तो समझाय ||

    सोमवारीय चर्चा मंच / गाफिल का स्थानापन्न

    charchamanch.blogspot.in

    ReplyDelete
    Replies
    1. रविकर जी, आपका हार्दिक आभार!

      Delete
  15. पाकिस्तान में रहनेवाले डॉ क़ुरेशी से यह कथा सुनने के बाद मेरे मन में पहला विचार यही आया कि वन्दे-मातरम पर हम भारतीयों का एकाधिकार नहीं है। अन्य संस्कृतियों में भी जन्नत माँ के चरणों में ही मानी जाती है।
    सुन्दर कथा वृतांत के लिए ह्रदय से धन्यवाद् .

    ReplyDelete
  16. प्रवंचना के अतिरिक्त हमारे पास कुछ नहीं है ,समाज का दोगलापन इतना वीभत्स रूप लेगा कभी सोचा न था,माँ को, माँ कहने का साहस यदि करता है ,तो नारी को क्या समझता है,किसी से छिपा नहीं है..../ परम्पराओं ,रुढियों का अनुपालन भी है,वहीँ आदर्श व विकास का आह्वाहन भी ,क्या विडम्बना है .."जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" सूत्र वाक्य का उद्धरण तो जिह्वा पर आता है,कार्य रूप में विस्थापित हो जाता है ......काश नारी को को मात्र उपकार की वस्तु न समझ उसको उसका अधिकार दे देते .....शायद कुछ न्याय कर पाते....साभार

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी, सतत प्रयास की आवश्यकता है, मशाल जलाये रखिये!

      Delete
  17. बिल्कुल, माँ तो माँ है. चाहे वो संसार के किसी भी कोने में हो.

    ReplyDelete
  18. दयानिधि वत्सMay 13, 2012 at 7:18 AM

    धरती पर साक्षात भगवान ही हैं माता-पिता| वंदेमातरम का विरोध तो टी-आर-पी के लिए करना ही पड़ता है|

    ReplyDelete
    Replies
    1. बिल्कुल, मगर ऐसे अन्ध-विरोधियों की कलई खोलना भी ज़रूरी है।

      Delete
  19. बहुत ही ख़ूबसूरत कहानी......भावनाएं तो एक सी ही हैं..हर देश की

    ReplyDelete
  20. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.



    आपको मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  21. सुंदर ....
    आभार आपका !

    ReplyDelete
  22. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.

    अगर दुनिया मां नहीं होती तो हम किसी की दया पर
    या
    किसी की एक अनाथालय में होते !
    संतप्रवर श्री चन्द्रप्रभ जी

    आपको मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  23. अनुराग जी.. बहुत ही प्रेरक कथा.. वैसे भी माँ का कोई धर्म, जाति या नेशनलिटी नहीं होती.. वैसे ही माँ की वन्दना अर्थात वंदे मातरम को कोई कैसे इन दायरों में बाँध सकता है!!

    ReplyDelete
  24. आपको भी मदर्स डे की हार्दिक शुभकामनायें ...स्वीकार करें

    ReplyDelete
  25. बहुत सुन्दर. शुभकामनाएं.

    ReplyDelete
  26. अच्छी पोस्ट!
    --
    मातृदिवस की शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  27. भावनाएं जगह का फरक नहीं करतीं ..सुन्दर सकारात्मक पोस्ट.

    ReplyDelete
  28. मदर्स दे की शुभकामना

    ReplyDelete
  29. कितनी सुन्दर सुन्दर सी पोस्ट है - अहा !!!
    आभार आपका |
    वन्दे मातरम |

    ReplyDelete
  30. प्रेरक कथा. माताओं की ओर से धन्यवाद .नमन करनेवाले पिताओं को भी प्रणाम!

    ReplyDelete
  31. ye kissa pahli baar suna....sach hai maa ka darja sabse upar hai

    ReplyDelete
  32. हार्दिक धन्यवाद!

    ReplyDelete
  33. बेहद अच्छी पोस्ट है !
    आभार .....

    ReplyDelete
  34. अनुराग जी, सच कहा मां के चरणों में ही सच्चा स्वर्ग है....

    ReplyDelete
  35. sundar,prerak aur shikshaprad prastuti ke liye bahut
    bahut aabhar ji.abhi US tour par tha,bete ke laptop
    se devnaagri men tippani nahi kar paa raha hun.

    Mother's day par haardik badhai aur shubhkamnaayen.
    New York men bahut chahal pahal mili Mother's day par.
    Bahut se museums men Mother ka ticket free tha,

    ReplyDelete
  36. bhagwan krishN aur bhagwan Ramram ki chhavi bagairdadimnch tatha
    bagairjataon ki hai aur bhagawan shankar dadimoochh v jatajutdari hai
    karanh krishnh aurramka lalan palan karne wali ek seadhik mataynthi
    shiv ajanma hai unki koi mata nahi hai bina mawale shankar ko dekhne
    par maa ki mahima ka patalagjata hai maatujhe pranaam

    ReplyDelete
  37. बहुत प्रेरक कथा

    ReplyDelete
  38. यह मनुष्‍यता की कहानी है - वैश्विक मनुष्‍यता की।

    ReplyDelete

मॉडरेशन की छन्नी में केवल बुरा इरादा अटकेगा। बाकी सब जस का तस! अपवाद की स्थिति में प्रकाशन से पहले टिप्पणीकार से मंत्रणा करने का यथासम्भव प्रयास अवश्य किया जाएगा।