Wednesday, July 18, 2012

1857 के महानायक मंगल पांडे

19 जुलाई सन 1827 को बलिया जिले के नगवा ग्राम में जानकी देवी एवं सुदृष्टि पाण्डेय् के घर उस बालक का जन्म हुआ था जो कि भारत के इतिहास में एक नया अध्याय लिखने वाला था। इस यशस्वी बालक का नाम रखा गया मंगल पाण्डेय। कुछ् सन्दर्भों में उनका जन्मस्थल अवध की अकबरपुर तहसील के सुरहुरपुर ग्राम (अब ज़िला अम्बेडकरनगर का एक भाग) बताया गया है और उनके माता-पिता के नाम क्रमशः अभय रानी और दिवाकर पाण्डेय। इन सन्दर्भों के अनुसार फ़ैज़ाबाद के दुगावाँ-रहीमपुर के मूल निवासी पण्डित दिवाकर पाण्डेय सुरहुरपुर स्थित अपनी ससुराल में बस गये थे। कुछ अन्य स्थानों पर उनकी जन्मतिथि भी 30 जनवरी 1831 दर्शाई गई है। इन सन्दर्भों की सत्यता के बारे में मैं अभी निश्चित नहीं हूँ। यदि आपको कोई जानकारी हो तो स्वागत है।

प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के प्रथम सेनानी मंगल पाण्डेय सन 1849 में 22 वर्ष की उम्र में ईस्ट इंडिया कम्पनी की बेंगाल नेटिव इंफ़ैंट्री की 34वीं रेजीमेंट में सिपाही (बैच नम्बर 1446) भर्ती हो गये थे। ब्रिटिश सेना के कई गोरे अधिकारियों की तरह 34वीं इन्फैंट्री का कमांडेंट व्हीलर भी ईसाई धर्म का प्रचारक था। अनेक ब्रिटिश अधिकारियों की पत्नियाँ, या वे स्वयं बाइबिल के हिन्दी अनुवादों को फारसी और भारतीय लिपियों में छपाकर सिपाहियों को बाँट रहे थे। ईसाई धर्म अपनाने वाले सिपाहियों को अनेक लाभ और रियायतों का प्रलोभन दिया जा रहा था। उस समय सरकारी प्रश्रय में जिस प्रकार यूरोप और अमेरिका के पादरी बड़े पैमाने पर धर्मांतरण करने के लिये भारत में प्रचलित धर्मों का अपमान कर रहे थे, उससे ऐसी शंकाओं को काफ़ी बल मिला कि गोरों का एक उद्देश्य भारतीय संस्कृति का नाश करने का है। अमेरिका से आये पादरियों ने सरकारी आतिथ्य के बल पर रोहिलखंड में अपनी पैठ बनानी शुरू कर दी थी। फ़तहपुर के अंग्रेज़ कमिश्नर ने नगर के चार द्वारों पर खम्भे लगवाकर उन पर हिन्दी और उर्दू में दस कमेन्डमेंट्स खुदवा दिए थे। सेना में सिपाहियों की नैतिक-धार्मिक भावनाओं का अनादर किया जाने लगा था। इन हरकतों से भारतीय सिपाहियों को लगने लगा कि अंग्रेज अधिकारी उनका धर्म भ्रष्ट करने का भरसक प्रयत्न कर रहे थे।

सेना में जब ‘एनफील्ड पी-53’ राइफल में नई किस्म के कारतूसों का प्रयोग शुरू हुआ तो भारतीयों को बहुत कष्ट हुआ क्योंकि इन गोलियों को चिकना रखने वाली ग्रीज़ दरअसल पशु वसा थी और गोली को बन्दूक में डालने से पहले उसके पैकेट को दांत से काटकर खोलना पड़ता था। अधिकांश भारतीय सैनिक तो सामान्य परिस्थितियों में पशुवसा को हाथ से भी नहीं छूते, दाँत से काटने की तो बात ही और है। हिन्दू ही नहीं, मुसलमान सैनिक भी उद्विग्न थे क्योंकि चर्बी तो सुअर की भी हो सकती थी - अंग्रजों को तो किसी भी पशु की चर्बी से कोई फ़र्क नहीं पड़ता था। कुल मिलाकर सैनिकों के लिये यह कारतूस काफ़ी रोष का विषय बन गये। सेना में ऐसी खबरें फैली कि अंग्रेजों ने भारतीयों का धर्म भ्रष्ट करने के लिए जानबूझकर इन कारतूसों में गाय तथा सुअर की चर्बी का इस्तेमाल किया है।

इन दिनों देश में नई हलचल दिख रही थी। छावनियों में कमल और गाँवों में रोटियाँ बँटने लगी थीं। कुछ बैरकों में छिटपुट आग लगने की घटनायें हुईं। जनरल हीयरसे जैसे एकाध ब्रिटिश अधिकारियों ने पशुवसा वाले कारतूस लाने के खतरों के प्रति अगाह करने का असफल प्रयास भी किया। अम्बाला छावनी के कप्तान एडवर्ड मार्टिन्यू ने तो अपने अधिकारियों से वार्ता के समय क्रोधित होकर इन कारतूसों को विनाश की अग्नि ही बताया था लेकिन विनाशकाले विपरीत बुद्धि, दिल्ली से लन्दन तक सत्ता के अहंकार में डूबे किसी सक्षम अधिकारी ने ऐसे विवेकी विचार पर ध्यान नहीं दिया।

26 फरवरी 1857 को ये कारतूस पहली बार प्रयोग होने का समय आने पर जब बेरहामपुर की 19 वीं नेटिव इंफ़ैंट्री ने साफ़ मना कर दिया तो उन सैनिकों की भावनाओं पर ध्यान देने के बजाय उन सबको बैरकपुर लाकर बेइज़्ज़त किया गया। इस घटना से क्षुब्ध मंगल पाण्डेय ने 29 मार्च सन् 1857 को बैरकपुर में अपने साथियों को इस कृत्य के विरोध के लिये ललकारा और घोड़े पर अपनी ओर आते अंग्रेज़ अधिकारियों पर गोली चलाई। अधिकारियों के नज़दीक आने पर मंगल पाण्डेय ने उनपर तलवार से हमला भी किया। उनकी गिरफ्तारी और कोर्ट मार्शल हुआ। छह अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी की सज़ा सुनाई गई।

This article was originally written by 
Anurag Sharma for pittpat.blogspot.com
मंगल पाण्डे की फांसी के लिए 18 अप्रैल की तारीख तय हुई लेकिन यह समाचार पाते ही कई छावनियों में ईस्ट इंडिया कम्पनी के खिलाफ असंतोष भड़क उठा जिसके मद्देनज़र अंग्रेज़ों ने उन्हें आठ अप्रैल (8 अप्रैल 1857) को ही फाँसी चढ़ा दिया। 21 अप्रैल को उस टुकड़ी के प्रमुख ईश्वरी प्रसाद को भी फाँसी चढ़ा दिया। अंग्रेज़ों के अनुसार ईश्वरी प्रसाद ने मंगल पाण्डेय को गिरफ़्तार न करके आदेश का उल्लंघन किया था। इस विद्रोह के चिह्न मिटाने के उद्देश्य से चौंतीसवीं इंफ़ैंट्री को ही भंग कर दिया गया। इस घटनाक्रम की जानकारी मिलने पर अंग्रेज़ों के अन्दाज़े के विपरीत भारतीय सैनिकों में भय के स्थान पर विद्रोह की ज्वाला भड़क उठी। लगभग इसी समय नाना साहेब, तात्या टोपे और रानी लक्ष्मी बाई भी अंग्रेज़ों के खिलाफ़ मैदान में थे। इस प्रकार भारतीय स्वतंत्रता के प्रथम संग्राम के प्रथम नायक बनने का श्रेय मंगल पाण्डेय् को मिला।

एक भारतीय सिपाही मंगल पाण्डेय का साहस मुग़ल साम्राज्य और ईस्ट इंडिया कम्पनी जैसे दो बडे साम्राज्यों का काल सिद्ध हुआ जिनका डंका कभी विश्व के अधिकांश भाग में बजता था। यद्यपि एक वर्ष से अधिक चले संघर्ष में अंग्रेज़ों को नाकों चने चबवाने और अनेक वीरों के प्राणोत्सर्ग के बाद अंततः हम यह लड़ाई हार गये लेकिन मंगल पाण्डेय और अन्य हुतात्माओं के बलिदान व्यर्थ नहीं गये। 1857 में भड़की क्रांति की यही चिंगारी 90 वर्षों के बाद 1947 में भारत की पूर्ण-स्वतंत्रता का सबब बनी। स्वाधीनता संग्राम के सेनानियों ने सर्वस्व त्याग के उत्कृष्ट उदाहरण हमारे सामने रखे हैं। आज़ाद हवा में साँस लेते हुए हम सदा उनके ऋणी रहेंगे जिन्होंने दासता की बेड़ियाँ तोड़ते-तोड़ते प्राण त्याग दिये।

[आलेख: अनुराग शर्मा; चित्र: इंटरनैट से साभार]
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38 comments:

  1. भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम के पहले नायक मने जाने वाले मंगल पाण्डे के बारे में कुछ नै जानकारियां मिलीं.
    ...उनकी वीरता और आपके इस प्रयास को नमन !

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  2. मंगल पाण्डे के विषय में बहुत कुछ पढ़ा और सुना है....
    आपका लेख संग्रहणीय है.
    शुक्रिया.

    अनु

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  3. दयानिधि वत्सJuly 18, 2012 at 10:14 PM

    मंगल पाण्डेय जी को शत शत नमन. अपेक्षा है कि अमर शहीदों पर आपके द्वारा लिखी गयी एक अच्छी पुस्तक शीघ्र ही पढ़ने को मिलेगी .

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  4. एक अदना से सिपाही के साहस ने स्वतंत्र संग्राम की नींव रखी .
    शत- शत नमन !

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    1. जी, नायकत्व को पद और प्रतिष्ठा के सहारे की ज़रूरत कहाँ!

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  5. आज़ाद हवा में साँस लेते हुए हम सदा उनके ऋणी रहेंगे जिन्होंने दासता की बेड़ियाँ तोड़ते-तोड़ते प्राण त्याग दिये।

    winamra shraddhanjali PRANAM SHAT SHAT

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  6. आने वाली पीढ़ियों को कभी यह शिकायत नहीं रहेगी कि उनकी स्वतन्त्रता के लिये कभी समुचित प्रयास नहीं हुये। यह बात अलग है कि नयी पीढ़ियाँ अभी भी मानसिक गुलामी कर रही हैं।

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  7. बहुत प्रेरणादायी है is senani kaa jeevan| dhanyavad

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  8. abhar to chachu aur hardik shradhanjali unko.....


    pranam.

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  9. हुतात्मा का सभी दृष्टिकोण से अद्भुत चिंतन!! गजब की पहल भरा साहस!!

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  10. सुन्दर आलेख. शहीद मंगल पण्डे जी को नमन. छान बीन करें तो उनके जन्म तिथि के बारे में पुष्टि हो सकती है.

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  11. मंगल पाण्डे के जन्मदिन पर उनके बारे में संग्रहणीय जानकारी देते हुए सार्थक लेख .
    उन्होंने जो मशाल जलाई थी , उसी की बदौलत आज हम चैन की साँस ले रहे हैं .

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  12. यह भारत के इतिहास के सबसे अविस्मरणीय क्षणों में से एक था

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  13. अमर बलिदानी मंगल पाण्डेय को उनके जन्म दिन पर नमन।

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  14. संग्रहणीय आलेख है .आभार

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  15. संग्रहणीय आलेख के लिए साधुवाद।

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  16. हुतात्मा मंगल पांडे को नमन

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  17. देश ने करना चाहिये जिन शहीदों को याद
    वो याद भी अब कहाँ किसी को आते हैं
    शुक्रिया आपका जनाब कुछ लोग हैं अभी
    जो लिख कर कुछ हमें भी याद दिलाते हैं !!

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  18. पराधीनता के लिए, जो देते निज प्राण।
    ऐसे वीर शहीद का , नहीं यहाँ सम्मान।

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  19. आजादी के वास्ते, देते जो बलिदान।
    ऐसे वीर शहीद का , नहीं यहाँ सम्मान।

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  20. स्वतन्त्रता संग्राम के प्रथम सिपाही के जन्मदिवस पर सार्थक पोस्ट ... आभार आपका जो ये जानकारी हम सबके साथ बांटी ।

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  21. Thanks Anurag ji, for giving us this wonderful post on Shri Mangal Pandey ji's birthday, the 19th of July.

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  22. शत शत नमन..... आज़ादी के इस वीर सिपाही के बारे में जानकारीयां मिली...आभार

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  23. मंगल पांडे के जन्मदिन पर उनके महान जीवन से सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी के लिये बहुत बहुत शुक्रिया..भारत के इस सपूत को हार्दिक श्रद्धाजंलि !

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  24. सदैव की तरह महत्‍वपूर्ण, उपयोगी और संग्रहणीय पोस्‍ट। कुछ सन्‍दर्भ तो पहली बार सामने आए हैं।

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  25. मंगल पांडे जैसी आत्मा को जन्मदिन पर नमा ...
    आपका आभार ...इस पोस्ट के लिये ....!!

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  26. संग्रहणीय! बहुत महत्वपूर्ण जानकारियाँ समेटे है यह पोस्ट।

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  27. महत्वपूर्ण पोस्ट..

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  28. मेरठ में जब भी कभी दो तीन घंटे रुकने का मौक़ा मिलता है, स्वतंत्रता सेनानी स्मारक पर जरूर जाता हूँ|
    क्रूर शासन के विरुद्ध पहली सशक्त आवाज बने शहीद मंगल पांडे को सादर नमन|

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  29. आपका हार्दिक आभार, रविकर जी!

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  30. स्वतंत्रता की नींव के पत्थर बने ऐसे सेनानियों को नमन !

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  31. मन्गल पांड़े के बारे में कहीं भी पढ़ना रोमांचित कर देता है। और आपने तो बहुत सारगर्भित लिखा है! ...

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  32. वर्तमान परिपेक्ष्य में मंगल पांडे जी के साहस और बलिदान से यह प्रेरणा मिलती है कि इंसान ठान ले तो बिना किसी उंचे पद और साधनों के भी बडी मंजिल की नींव रखी जा सकती है. आपके द्वारा लिखी जा रही उए कडियां हमेशा सभी का संबल बनी रहेंगी.

    रामराम.

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  33. मंगल पण्डे की पुण्य स्मृति दिलाने के लिए बहुत बहुत आभार I

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  34. मंगल पण्डे के वारे में आपका आलेख पढ़ा बहुत जानकारी मिली एक उत्सुकता लेकिन मन अभी भी है की झाँसी से लगी म प्र की तहसील करेरा में मंगल पण्डे का स्मारक बना है उनका करेरा से क्या नाता रहा यह क्यों उनकी प्रतिमा स्थापित हुई और किसने कराइ इसके बैव में कोई कुछ नहीं जनता यदि कुछ जानकारी हो तो जरूर अबगत कराए

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