Saturday, May 11, 2013

अक्षय तृतीया की शुभकामनायें

अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥
उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः। तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥
(मदनरत्न)
सोने की ख़रीदारी ज़ोरों पर है और शादियों की तैयारी भी। क्यों न हो, साल का सबसे शुभ मुहूर्त जो है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि चिरंजीवी भगवान परशुराम का जन्मदिन है। माना जाता है कि भगवान विष्णु के नर-नारायण और हयग्रीव रूपों का अवतरण भी इसी दिन हुआ था। ऐसी मान्यता है कि आज किए गए कार्य स्थायित्व को प्राप्त होते हैं। दया, दान और अन्य सत्कार्यों को विशेष महत्व देने वाली हमारी संस्कृति में आज का दिन व्रत, तप, पूजन और दान के लिए विशिष्ट है क्योंकि वह अनंतगुणा फल देने वाला समझा जाता है। स्थायित्व और वृद्धि की कामना से आज के दिन पुण्यकार्य किए जाते हैं। प्राचीन राज्यों में शासक किसानों को नई फसल की बुवाई के लिए बीजदान करते थे। उत्तर-पश्चिम के कई क्षेत्रों में किसान इस दिन घर से खेत तक जाकर मार्ग के पशु-पक्षियों को देखकर अपनी फसलों के लिए वर्षा के शकुन पहचानते हैं। कुछ समुदायों में आज सामूहिक विवाह सम्पन्न कराने की रीति है। अनेक गाँवों में बच्चे इस दिन अपने गुड्‌डे-गुड़िया का विवाह रचाते हैं। और जो ये सब नहीं भी करते हैं, उनके लिए शादी का सबसे बड़ा मुहूर्त तो है ही दावतें खाने के लिए।
संसार में जितने बड़े आदमी हैं, उनमें से अधिकतर ब्रह्मचर्य-व्रत के प्रताप से बड़े बने और सैंकड़ों-हजारों वर्ष बाद भी उनका यशगान करके मनुष्य अपने आपको कृतार्थ करते हैं। ब्रह्मचर्य की महिमा यदि जानना हो तो परशुराम, राम, लक्ष्मण, कृष्ण, भीष्म, ईसा, मेजिनी, बंदा, रामकृष्ण, दयानन्द तथा राममूर्ति की जीवनियों का अध्ययन करो। ~ अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल
जम्बूद्वीप में अक्षय तृतीया को ग्रीष्मऋतु का आधिकारिक उदघाटन भी माना जा सकता है। बद्रीनारायण धाम के कपाट अक्षय तृतीया के आगमन पर खुलते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार अक्षय तृतीया को किये गये पितृतर्पण, पिन्डदान सहित किसी भी प्रकार का दान अक्षय फलदायी होता है। श्वेत पुष्प का दान किया जा सकता है। कुछ स्थानों में 9 कुछ में 7 और कुछ में 3 प्रकार के धान्य के दान का रिवाज है। भगवान ऋषभदेव ने 400 दिन के निराहार तप के बाद ‘अक्षय तृतीया’ के दिन ही हस्तिनापुर के राजकुमार के हाथों इक्षु (ईख = गन्ना) के रस का पारायण किया था। उसी परंपरा में कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से आरम्भ वर्षीतप का उपवास ‘अक्षय तृतीया’ को सम्पन्न होता है। तपस्वियों के सम्मान में भव्य शोभायात्रा निकाली जाती है और उपहार "प्रभावना" दिये जाते हैं। विष्णु पुराण के अनुसार ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर ही हमारे राष्ट्र का नाम भारतवर्ष पड़ा। यहाँ यह दृष्टव्य है कि भगवान राम का वंश भी ईक्ष्वाकु ही कहलाता है और गन्ने और शर्करा के उत्पादन का रहस्य आज भले ही संसार भर को ज्ञात हो परंतु हजारों साल तक यह रहस्य भारत के बाहर पूर्ण अज्ञात था। (कुछ परम्पराओं में भारतवर्ष के नामकरण का श्रेय दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत को भी जाता है।)
ऋषभो मरुदेव्याश्च ऋषभात भरतो भवेत्। भरताद भारतं वर्षं, भरतात सुमतिस्त्वभूत्
ततश्च भारतं वर्षमेतल्लोकेषुगीयते। भरताय यत: पित्रा दत्तं प्रतिष्ठिता वनम
(विष्णु पुराण)
एक अक्षय तृतीया के दिन भक्त सुदामा अपने बाल सखा कृष्ण से मिलने पहुँचे थे और अपने सेवाकार्यों के लिए सम्मानित हुए थे। कथा यह भी है कि इसी दिन जब शंकराचार्य जी भिक्षा के लिए एक निर्धन दंपति के पास पहुँचे तो उस भूखे परिवार ने कई दिन बाद अपने भोजन के लिए मिले एक फल को उन्हें समर्पित कर दिया। उनकी दान प्रवृत्ति के सम्मान में आदि शंकर ने कनकधारा स्तोत्र की रचना की। यह दिन युगादि भी है और कुछ परम्पराओं में महाभारत के युद्ध का अंत और फिर कलयुग का आरंभ भी इसी दिन से माना जाता है।

राम जामदग्नेय - अमर चित्र कथा 
भारत के अनेक ग्रामों में अक्षय तृतीया के दिन ग्राम के प्रवेशद्वार पर स्थापित ब्रह्मदेव, ग्राम देवी या ग्रामदेवता के पूजन का प्रचलन था। केनरा बैंक की नौकरी के दिनों में कुछ समय सातारा जिले के शिरवळ ग्राम (तालुक खंडाळा) में कुलकर्णी काका के घर रहा था जहाँ इस दिन ग्रामदेवी अंबिका माता की वार्षिक यात्रा बड़े धूमधाम से निकली जाती है।

हिमाचल, परशुराम क्षेत्र (गोआ से केरल तक) तथा दक्षिण भारत में तो परशुराम जयंती का विशेष महत्व रहा ही है, आजकल उत्तर भारत में भगवान परशुराम की जानकारी का प्रसार हो रहा है। परशुराम जी से जुड़े मंदिरों और तीर्थस्थलों में पूजा करने का विशेष महात्म्य है। भार्गव परशुराम ने जिस प्रकार अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से एक शक्तिशाली परंतु अन्यायी साम्राज्य के घुटने टिकाकर एक नई सामाजिक व्यवस्था की नींव रखी जिसमें शस्त्र और शास्त्र एक विशिष्ट वर्ग की गुप्त शक्ति न रहकर उनका वितरण और प्रसार नवनिर्माण के लिए हुआ वह अद्वितीय क्रान्ति थी। यदुवंशी सहस्रबाहु के अहंकार का पूर्णनाश करने वाले परशुराम यदुवंशी श्रीकृष्ण को दिव्यास्त्र प्रदान कर विजयी बनाते हैं। अजेय पश्चिमी घाट के घने जंगलों को परशु के प्रयोग से मानव निवास योग्य बनाकर बस्तियाँ बसाने की बात हो या पूर्वोत्तर में अटल हिमालय की चट्टानें काटकर ब्रह्मपुत्र की दिशा बदलने की बात हो, भगवान परशुराम जनसेवा के लिए जीवन समर्पण करने का ज्वलंत उदाहरण हैं।
पृथिवीम् च अखिलां प्राप्‍य कश्‍यपाय महात्‍मने। यज्ञस्‍य अन्‍ते अददं राम दक्षिणां पुण्‍यकर्मणे ॥
दत्‍वा महेन्‍द्रनिलय: तप: बलसमन्वित:। श्रुत्‍वा तु धनुष: भेदं तत: अहं द्रुतम् आगत:।। (रामायण) 

हे राम! सम्‍पूर्ण पृथिवी को जीतकर मैने एक यज्ञ किया, जिसकी समाप्ति पर पुण्‍यकर्मा महात्‍मा कश्‍यप को दक्षिणारूप में सारी पृथिवी का दान देकर मै महेंद्रपर्वत पर रहने गया। वहाँ तपस्‍या करके तपबल से युक्‍त हुआ मैं धनुष को टूटा हुआ सुनकर वहाँ से अतिशीघ्र आया हूँ।
जिस प्रकार हिमालय काटकर गंगा को भारत की ओर मोड़ने का श्रेय भागीरथ को जाता है उसी प्रकार पहले ब्रह्मकुन्ड से, और फिर लौहकुन्ड पर हिमालय को काटकर ब्रह्मपुत्र जैसे उग्र महानद को भारत की ओर मोड़ने का श्रेय परशुराम जी को जाता है। यह भी मान्यता है कि गंगा की सहयोगी नदी रामगंगा को वे अपने पिता जमदग्नि की आज्ञा से धरा पर लाये थे। ऋषभदेव का निर्वाण स्थल कैलाश पर्वत है जो कि भगवान् परशुराम की तपस्थली है। अफसोस कि भारतीयों के तिब्बत स्थित प्राचीन तीर्थस्थल तक हमारी पहुँच अब चीनियों के वीसा पर निर्भर है। भगवान परशुराम से संबन्धित बहुत से तीर्थ हिमालय क्षेत्र में हैं। विश्व की पहली समर कला के प्रणेता, निरंकुश शासकों, अत्याचारी आतंकियों, और आसुरी शक्तियों के विरोधी परम यशस्वी भगवान् परशुराम के जन्म दिन यानी अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर आइये तेजस्वी बनकर सदाचरण और सद्गुणों से अक्षय सत्कर्म और परोपकार करने की कामना करें।

धिग्बलं क्षत्रियबलं ब्रह्मतेजो बलं बलं। एकेन ब्रह्मदण्डेन सर्वास्त्राणि हतानि मे॥ (रामायण)
ज्ञानबल के सामने बाहुबल बेकार है। एक ज्ञानदंड के सामने सभी अस्त्र नष्ट हो जाते हैं।

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सम्बंधित कड़ियाँ
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* बुद्ध हैं क्योंकि परशुराम हैं
* परशुराम स्तुति
* परशुराम स्तवन
* भगवान परशुराम की जन्मस्थली
* जिनके हाथों ने पहाडों से गलाया दरिया ...
* क्या परशुराम क्षत्रिय विरोधी थे?
* परशुराम - विकीपीडिया
* ऋषभदेव -विकीपीडिया
* पंडितों ने लिया बाल विवाह रोकने का संकल्प
* परशुराम और राम-लक्ष्मण संवाद - ज्ञानदत्त पाण्डेय
* परशुराम-लक्ष्मण संवाद प्रसंग - कविता रावत
* ग्वालियर में तीन भगवान परशुराम मंदिर
* अरुणाचल प्रदेश का जिला - लोहित
 * बुद्ध पूर्णिमा पर परशुराम पूजा

37 comments:

  1. बहुत सुंदर अनुराग जी, अज्ञेय के यात्रा विवरण में ब्रह्मपुत्र नदी पर परशुराम कुंड का जिक्र पढ़ा था पर यह नहीं मालूम था कि इस महान नदी को भारत में लाने का श्रेय परशुराम जी को है। सचमुच उनका विद्रोह एक ऐसी जाति के प्रति रहा होगा जो शस्त्रधारण करने की वजह से बहुत अहंकारी हो गई होगी, ऐसे में ज्ञान को उसकी जगह दिलाने का कार्य स्तुत्य है। बहुत सुंदर श्लोक लगा रामायण का, ईक्ष्वाकु शब्द का अर्थ भी समझ आया, सचमुच परंपरा का ज्ञान बहुत जरूरी है नहीं तो अक्षय तृतीया आपके लिए केवल गुड्डे-गुड़िया के ब्याह से ज्यादा कुछ नहीं रह जाती।

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  2. अत्यंत ज्ञानवर्धक और सूचनाप्रद लेख के लिए आभार

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  3. अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर संकल्प लें, सद्विचार, सद्गुणों और सत्कर्मों को अब अक्षय बनाएँ.....

    अक्षय तृतीया पर समग्र जानकारी युक्त पोस्ट, बहुत बहुत आभार!!

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  4. महेंद्र पर्वत - परशुराम कुंड (बर्मा बार्डर) मे हम स्नान कर आये हैं. उस भूभाग की और भगवान परशुराम से संबंधित बहुत ही सुंदर जानकारी मिली, आभार.

    रामराम.

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  5. एक बार फ़िर से सहेजने लायक जानकारी दी है आपने, आभार।

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  6. बेहद जानकारी पूर्ण लेख है पर साथ ही आपने मुझे बचपन की मेरी प्रिय कौमिक्स "अमर चित्र कथा" और "इंद्रजाल कौमिक्स" की याद दिला दी।

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  7. अक्षय तृतीया का दिन दुबई में भी भारतवासियों के लिए खास रहता है पर वो अधिकतर सोना खरीदारी की वजय से ... सोने की बड़ी बड़ी दुकानें आज के दिन के लिए विज्ञापन और आभूषण तैयार करते हैं ... पर इस दिन का सही महत्त्व आज ही समझ आया ...
    कितना कुछ है अपनी परंपरा में जिसको जानना जरूरी है ...
    मातृ दिवस एवं परशुराम जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ ...

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  8. अक्षय तृतीया से लेकर भगवान परशुराम के बारे में आपका यह आलेख अविस्‍मरणीय है। अत्‍यन्‍त ज्ञानवर्धक आलेख। इस प्रस्‍तुति हेतु आपका विशेष आभार।

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  9. अक्षय तृतीया पर एक रेफरेंस पोस्ट।
    बहुत बढ़िया जानकारी।

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  10. बहुत सारी नयी जानकारियाँ मिलीं। कोंकण क्षेत्र में तो ख़ास महत्त्व है ही आज का दिन। वैसे कल भी कुछ अंश है.

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  11. बहुत सारी नयी जानकारियाँ मिलीं। कोंकण क्षेत्र में तो ख़ास महत्त्व है ही आज का दिन। वैसे कल भी कुछ अंश है.

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  12. इतिहास को कई अनकहे तथ्यों को उजागर करती पोस्ट..आपको भी शुभकामनायें।

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  13. सहेजने योग्य पौराणिक जानकारी ..... आभार , शुभकामनायें

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  14. यह तो सुना था कि परशुराम जी ने ब्रह्मा से अलग अपनी सृष्टि की रचना कर दी थी. लेकिन आज कई अन्य तथ्यों के बारे में ज्ञात हुआ.
    अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने की होड़ मुझे समझ नहीं आती.
    परशुराम वर्ण व्यवस्था, यदि माना जाये तो, एक जीवन्त प्रतीक थे कि किस प्रकार जन्मत: शूद्र के पश्चात द्विज होने के बाद पुन: कर्म से क्षत्रिय हुये.
    एक महान व्यक्तित्व को नमन.

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    1. भारतीय नागरिक जी, ब्रह्मा से अलग सृष्टि की रचना करने वाले विश्वामित्रजी थे जिन्होने त्रीशंकु के लिये एक और स्वर्ग बनाया था!

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    2. भारतीय नागरिक जी, परशुराम कभी क्षत्रिय नहीं हुए। उन्होने असत्य, हिंसा और रक्तपात को सदा निंदनीय माना। उनके लिए गुरु के शरीर पर रुधिर की बूंद का स्पर्शमात्र को सामान्य समझना ही कर्ण को दिव्यास्त्र-शिक्षा की शिष्यता का अपात्र जानने के लिए काफी था। उनके अनंत जीवन में सशस्त्र संघर्ष का काल अति सीमित रहा है और वह भी एक विराट हिंसा का तात्कालिक उत्तर देने के लिए। और उस हिंसा का भी उन्होने कठिन प्रायश्चित किया है। उनके जीवन का अधिकांश भाग सामाजिक उत्थान में ही बीता है।

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    3. 1. @नई सृष्टि - जहां तक मैं जानरी हूँ वे विश्वामित्र जी थे।
      2. @ परशुराम जी कभी क्षत्रिय नही हुए।
      अनुराग जी। क्षत्रिय शब्द की परिभाषा क्या होगी? मुझे आपकी "ब्राह्मण कौन?" वाली पोस्ट याद आ गयी। क्षत्रिय कौन?पर भी एक पोस्ट आये तब समझ पाऊंगी कि आपने यह क्यों कहा की परशुराम जी के विषय में आपने यह कहने किस सन्दर्भ में कहा। कृपया इसे आलोचना न माने -यह प्रश्न है।

      मेरी जानकारी में क्षत्रिय वे हैं जो समाज की अपने भीतर और बाहर के शत्रुओं /बुराइयों से (शक्ति का सदुपयोग करते हुए) रक्षा करते हैं। उस परिभाषा से परशुराम जी से बेहतर क्षत्रिय शायद इतिहास में दूसरा न हो।

      मेरी एक श्रंखला थी जो सोसाइटी लॉ गवर्नेंस पर थी। उसमे मैंने लिखा था की मेरी समझ के अनुसार क्षत्रिय कौन होंगे।

      इसके अलावा विश्वामित्र जी और परशुराम जी के जन्म पूर्व उनकी माताओं की प्रार्थना और मनह स्थितियों पर भी कुछ पढ़ा है जिसके अनुसार ये दोनों ही महात्मा सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण और क्षत्रिय क्यों हैं इस पर काफी कुछ कहा गया है। इस पर थोड़ी सी जानकारी मेरे ब्लॉग पर रामायण श्रंखला के विश्वामित्र जी एवं परशुराम जी वाले भागों में भी है।

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    4. शिल्पा जी,
      ओशो ने कहा:
      क्षत्रिय जानना चाहता है—मैं कौन हूँ ? इसलिए चौबीस तीर्थंकर, राम, कृष्ण सब क्षत्रिय थे। क्योंकि ब्राह्मण होने से पहले क्षत्रिय होना जरूरी है। जिसने जन्म के साथ अपने को ब्राह्मण समझ लिया, वह चूक गया। जैसे परशुराम ब्राह्मण नहीं हैं। उनसे बड़ा क्षत्रिय खोजना मुश्किल होगा। जिंदगी भर मारने का काम करते रहे। फरसा लेकर घूमते थे। उन्हें ब्राह्मण करना ठीक नहीं है। सो—संकल्प क्षत्रिय है.....।

      अनुराग ने कहा - परशुराम ज़िंदगी भर फरसा लेकर मारने का काम नहीं करते रहे - वह सब अल्पकालिक था। न वे कभी ब्राह्मणत्व से नीचे उतरे, न केवल अन्यायी हिंसा, बल्कि अन्याय को रोकने के अपने बलप्रयोग का भी प्रायश्चित किया। ब्रहमदान का कार्य वे सदा करते रहे। कार्त्त्वीर्य और उसके कौकस का नाश करके समाज संरक्षण तो किया ही परंतु उसके आगे जाकर समाज निर्माण लंबे समय तक कराते रहे। कहूँगा तो बहुत विस्तार हो जाएगा, लेकिन संक्षेप में बात वही आती है जो आशीष ने ऊपर कही, उन्हें क्षत्रिय (या ब्राह्मण) तक सीमित करना किसी भी दृष्टि से सही नहीं है।

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    5. उन्हें या उन जैसे किसी और भी महामानव को किसी परिभाषा में बाँधा जा ही नही सकता। वे "यह भी हैं और वह भी" । आपकी संक्षेप में कही गयी बात किसी दिन विस्तारपूर्वक इसी ब्लॉग पर पढने मिले शायद।

      बलप्रयोग का प्रायश्चित करना उनके मन में कर्तव्यवश की गयी हिंसा के (अपरिहार्य हिन्सा के भी) मानसिक रूप से त्याज्य होने को दर्शाता है। निश्चित रूप से वे ब्राह्मण या क्षत्रिय तक सीमित नही हैं। लेकिन वे ये दोनों "नहीं" हैं की अपेक्षा मुझे यह लगता है कि वे ये दोनों "ही" हैं और वह भी सर्वश्रेष्ठ कोटि के।

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  15. ऐसे आलेख प्राय: ही नीरस और उबाऊ होते हैं। किन्‍तु आपकी यह पोस्‍ट इस धारणा को सिरे से निरस्‍त करती है। यह सरस भी है और रोचक भी और उपयोगी तथा संग्रहणीय भी है।

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  16. नानी के घर ट्रैक्टर ट्रौलियाँ भरकर नन्हे दुल्हों को गीत गाती महिलाओं के साथ देख इस दिन का भान होता था !
    रोचक विस्तृत जानकारी के लिए आभार !
    बहुत शुभकामनायें !

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  17. अद्भुत और संग्रहणीय जानकारी और कथा के लिए प्रणाम स्वीकार करें

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  18. मुझे परशुराम एक व्यक्ति कम एक संस्था ज्यादा लगते है। इनका कार्यक्षेत्र कितना विशाल है, सूदूर कैलास से लेकर महेन्द्र पर्वत तक, कार्यकाल भी त्रेतायुग से प्रारंभ हो कर द्वापर युग होते हुये आज भी और कल्कि को शस्त्र शिक्षा भी उन्हे ही देनी है।

    बस चिढ उस वक्त आती है जब कुछ जन्मना ब्राह्मण उन्हे अपनी जाति मे समेट्ने का प्रयास करते है।

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    1. आशीष जी, आज की भ्रष्ट, मूल्यहीन, जातिगत, राजनीति में धार्मिक, नैतिक, मानवीय मान्यताओं के साथ ही ब्राह्मण भी न केवल अप्रासंगिक हुए हैं बल्कि उन्हें मूलभूत सुविधाओं से भी लगातार वंचित किया जा रहा है। आज का शक्तिसंपन्न वर्ग वर्तमान समस्याओं के हल ढूँढने के गंभीर प्रयास करने के बजाय उनके लिए काल्पनिक ब्राह्मणों के काल्पनिक कृत्यों को गाली देने में ही अपनी सारी शक्ति लगाए हुए है। आम ब्राह्मण सदा से ही निर्धन था और यह निस्वार्थ वृत्ति उनका अपना चुनाव था। लेकिन आज उसने धन के साथ गौरव भी खोया है और बराबरी का धरातल भी। ताली एक हाथ से कहाँ बजती है? मुलायम सिंह यादव और मायावती दोनों के द्वारा अक्षय तृतीया पर ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित करना यही दिखाता है कि परशुराम को एक जाति तक सीमित करने के प्रयास की जड़ें जन्मना ब्राह्मणो के बाहर है। ब्राह्मणों की मनोवृत्ति जातिगत होती तो देश की दशा कुछ और ही होती।

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    2. अनुराग भाई
      उत्कृष्ट ओजमयी एवं सामयिक सन्दर्भ + जानकारी से भरी पोस्ट के लिए आपको बधाई
      और बड़ी बहन हूँ इस नाते , आशीर्वाद भी ! ईश्वर आपको सदा सुखी रखें ..
      स स्नेह,
      - लावण्या

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    3. समाज के एक हिस्से में बुराईयों से कौन बचा है , वह किसी भी जाति अथवा संप्रदाय रहा हो , मगर जिस तरह कुछ कर्मकांडियों को ही इसका आईना बनाकर प्रस्तुत किया जाता रहा है , शायद ही कोई और समाज हो .
      ब्राह्मणों से सम्बंधित एक आवश्यक पक्ष प्रस्तुत किया आपने .
      साधुवाद !

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    4. आदरणीय लावण्या जी, गौरवान्वित हूँ कि आपका आशीर्वाद सदा ही मेरे सिर पर है।

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    5. वाणी जी, धन्यवाद! सही कहा आपने। यह ऐसा ओपेन सीक्रेट है जिसे जानते सभी हैं लेकिन हानि-लाभ-लोभ-स्वार्थ-बेध्यानी के गणित में इस सूर्य पर ग्रहण ही लगा रहता है।

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    6. अनुराग जी, परशुराम और ब्राह्मण जाति तो एक उदाहरण मात्र था। मुझे समस्या किसी भी महापुरुष को उसकी जाति मे समेटने से है। महापुरुष समाज के होते हैं, किसी जाति के नहीं!

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  19. संग्रहणीय पोस्ट के लिए आभार।

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  20. excellent post. and very very relevant and informative .

    thanks for the detailed information.

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  21. ब्रह्मपुत्र नद को भारत की ओर मोड़ने का श्रेय परशुराम जी को है ,यह आज ज्ञात हुआ (आभार!)पर यह सोच कर मन खिन्न हो जाता है कि अब चीन इस दुर्धर्ष महानद को अपने ढंग से ढाल रहा है -पता नहीं आगे और क्या-क्या होना है !

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  22. सुंदर पंक्तिया
    कृपया अपने विचार शेयर करें।
    http://authorehsaas.blogspot.in/
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  23. बहुत अच्छी पोस्ट..ये और इससे सम्बंधित जितने भी पोस्ट्स का लिंक जो आपने लगाया है सभी पढ़ने लायक हैं..Bookmarked all of them :)

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  24. बहुत ही संसकारी जानकारी |

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  25. बहुत अच्छी जानकारी मिली.अत्यन्त ज्ञानवर्धक है ये.

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