Monday, October 9, 2017

एक नज़र - कविता

(अनुराग शर्मा)

हर खुशी ऐसे बच निकलती है
रेत मुट्ठी से ज्यूँ फिसलती है

ये जहाँ आईना मेरे मन का
अपनी हस्ती यूँ ही सिमटती है

बात किस्मत की न करो यारों
उसकी मेरी कभी न पटती है

दिल तेरे आगे खोलता हूँ जब
दूरी बढ़ती हुई सी लगती है

धर्म खतरे में हो नहीं सकता
चोट तो मजहबों पे पड़ती है

सर्वव्यापी में सब हैं सिमटे हुए
छाँव पर रोशनी से डरती है।



साक्षात्कार: अनुराग शर्मा और डॉ. विनय गुदारी - मॉरिशस टीवी - 13 सितम्बर 2017

12 comments:

  1. बहुत बढ़िया ...👍 "आपकी भाषा आपके साथ ही रहती है,चाहे आप कहीं भी जाएं।"👍..
    श्रुति परंपरा ...👌ब्लॉगिंग, रेडियोप्लेबेक, और सेतु तक का सफर ....बहुत अच्छा लगा ,बधाई!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-10-2017) को
    "थूकना अच्छा नहीं" चर्चामंच 2753
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बैंक से शुरू होकर आवाज़, रेडियो प्लेबैक इंडिया,ब्लॉगिंग, तकनीक, शब्दों के चाक पर, सेतु....कुछ ही वर्षों में आपने कितना काम किया है....बेहतरीन तरीके से ऑर्गनाइज होना विशिष्टता है आपकी...
    जितना लिखा जाये ,कम ही मानूँ....

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  4. वाह । बधाई भी साथ में ।

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  5. मधुर मनोहर अतीव सुन्दर ! :)

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  6. रेत मुट्ठी से ज्यूँ फिसलती है
    ......एहसासों को खूब पिरोया है!

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  7. बहुत व्यस्त था ! बहुत मिस किया ब्लोगिंग को ! बहुत जल्द सक्रिय हो जाऊंगा !

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  8. बहुत खूब ... आगाज़ ही लाजवाब ...
    रेत मुट्ठी से ज्यों फिसलती है ... क्या बात ...

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